गुरुवार, 17 मार्च 2022

अब तक बीती नहीं है, 19 जनवरी की वह रात

जम्मू-कश्मीर में हुए हिन्दुओं के नरसंहार को सप्रमाण प्रस्तुत करनेवाली फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ भारतीय सिनेमा के लिए एक मील का पत्थर है। जम्मू-कश्मीर को केंद्र में रखकर पहले भी फिल्में बनती रही हैं लेकिन उनमें सच कभी नहीं दिखाया गया बल्कि सच पर पर्दा डालने के प्रयास ही अधिक हुए। निर्देशक विवेक रंजन अग्निहोत्री ने हिन्दुओं के नरसंहार को दिखाने का साहस जुटाया है। एक-एक व्यक्ति यह बात कर रहा है कि आज देश में राष्ट्रीय विचार की सरकार नहीं होती तो 30 वर्ष बाद भी यह सच इस तरह सामने नहीं आ पाता। न तो कोई निर्देशक इस तरह की फिल्म बनाने की कल्पना कर पाता और यदि कोई बना भी लेता, तब उसका प्रदर्शन संभव न हो पाता। जिस तरह से तथाकथित सेकुलर खेमा, कांग्रेस समर्थक बुद्धिजीवी और अन्य लोग ‘द कश्मीर फाइल्स’ का विरोध कर रहे हैं, उसे देखकर आमजन की यह आशंका सही नजर आती है। सोचिए न कि 30 वर्ष पुराने इस भयावह घटनाक्रम की कितनी जानकारी लोगों को है? कितने लोगों को पता था कि हिन्दुओं को भगाने के लिए कश्मीर की मस्जिदों से सूचनाएं प्रसारित की गईं। ‘यहां क्या चलेगा, निजाम-ए-मुस्तफा’, ‘कश्मीर में अगर रहना है, अल्लाहू अकबर कहना है’ और ‘असि गछि पाकिस्तान, बटव रोअस त बटनेव सान मतलब हमें पाकिस्तान चाहिए और हिंदू औरतें भी मगर अपने मर्दों के बिना’। यह धमकी भरे संदेश लगातार प्रसारित किए जा रहे थे। कश्मीरी हिन्दुओं के घरों पर पर्चे चिपका दिए गए। ‘कन्वर्ट हो जाओ, भाग जाओ या मारे जाओ’ इनमें से एक ही रास्ता चुनने का विकल्प हिन्दुओं के पास था। महिलाओं के साथ सामूहिक दुष्कर्म और उसके बाद नृशंस ढंग से हत्याएं करने की जानकारी कितनों को थी? महिलाओं को पति के रक्त से सने चावल खाने के लिए मजबूर किया गया। ये घटनाएं एक-दो नहीं थी, अनेक थीं।

शुक्रवार, 11 मार्च 2022

आत्मदैन्य से मुक्ति का विमर्श है ‘भारतबोध का नया समय’


पत्रकारिता के आचार्य एवं भारतीय जनसंचार संस्थान के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी की नयी पुस्तक ‘भारतबोध का नया समय’ शीर्षक से आई है। स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव के अवसर पर उन्होंने पूर्ण मनोयोग से अपनी इस पुस्तक की रचना-योजना की है। वैसे तो प्रो. द्विवेदी सदैव ही आलेखों के चयन एवं संपादन से लेकर रूप-सज्जा तक सचेत रहते हैं क्योंकि उन्होंने काफी समय लोकप्रिय समाचारपत्रों के संपादक के रूप में बिताया है। परंतु अपनी इस पुस्तक को उन्होंने बहुत लाड़-दुलार से तैयार किया है। पुस्तक में शामिल 34 चुनिंदा आलेखों के शीर्षक और ले-आउट एवं डिजाइन (रूप-सज्जा), आपको यह अहसास करा देंगे। संभवत: पुस्तक को आकर्षक रूप देने के पीछे लेखक का मंतव्य, ‘भारतबोध’ के विमर्श को प्रबुद्ध वर्ग के साथ ही युवा पीढ़ी के मध्य पहुँचना रहा है। आकर्षक कलेवर आज की युवा पीढ़ी को अपनी ओर खींचता है। हालाँकि, पुस्तक के कथ्य और तथ्य की धार इतनी अधिक तीव्र है कि भारतबोध का विमर्श अपने गंतव्य तक पहुँच ही जाएगा। पहले संस्करण के प्रकाशन के साथ ही यह चर्चित पुस्तकों में शामिल हो चुकी है।

शनिवार, 5 मार्च 2022

सर्वस्पर्शी शिव-राज


मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपनी यात्रा में बड़ों को आदर देकर, छोटों को स्नेह देकर और समकक्षों को साथ लेकर लगातार आगे बढ़ रहे हैं। यह उनके नेतृत्व की कुशलता है। उनका व्यक्तित्व इतना सहज है कि जो भी उनके नजदीक आता है, उनका मुरीद हो जाता है। शिवराज के राजनीतिक विरोधी भी निजी जीवन में उनके व्यवहार के प्रशंसक हैं। सहजता, सरलता, सौम्यता और विनम्रता उनके व्यवहार की खासियत है। उनके यह गुण उन्हें राजनेता होकर भी राजनेता नहीं होने देते हैं। वह मुख्यमंत्री हैं, लेकिन जनता के मुख्यमंत्री हैं, जनता के लिए मुख्यमंत्री हैं। 'जनता का मुख्यमंत्री' होना उनको औरों से अलग करता है। प्रदेश में पहली बार शिवराज सिंह चौहान ने मुख्यमंत्री निवास के द्वार समाज के लिए खोले। वह प्रदेश में गाँव-गाँव ही नहीं घूमे, बल्कि समाज के प्रत्येक वर्ग को मुख्यमंत्री निवास पर बुलाकर भी उनको सुना और समझा। अपने इस स्वभाव के कारण शिवराज सिंह चौहान 'जनप्रिय' हो गए हैं। मध्यप्रदेश में उनके मुकाबले लोकप्रियता किसी मुख्यमंत्री ने अर्जित नहीं की है।