फिल्म निर्माता प्रकाश झा की विवादित वेबसीरीज ‘आश्रम’ के कारण एक बार फिर आम समाज में यह विमर्श चल पड़ा है कि सिनेमाई अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एवं रचनाधर्मिता के निशाने पर हिन्दू संस्कृति ही क्यों रहती है? फिल्मकार अन्य संप्रदायों पर सिनेमा बनाने का साहस क्यों नहीं कर पाते हैं? हिन्दू संस्कृति एवं प्रतीकों को ही अपनी तथाकथित रचनात्मक अभिव्यक्ति के लिए चुनने के पीछे का एजेंडा क्या है? मुस्लिम कलाकार भी अपने धर्म की आलोचनात्मक प्रस्तुति करने की जगह हिन्दू धर्म पर ही व्यंग्य करना पसंद करता है। पिछले दिनों एम्स दिल्ली के विद्यार्थियों ने भी रामलीला का आपत्तिजनक मंचन किया, जिसका निर्देशन शोएब नाम के लड़के ने किया था। हिन्दू बार-बार इन प्रश्नों के उत्तर माँगता है, लेकिन उसको कभी भी समाधानमूलक उत्तर मिले नहीं। परिणामस्वरूप अपमानजनक एवं उपेक्षित परिस्थितियों और चयनित आलोचना एवं चुप्पी ने उसके भीतर आक्रोश को जन्म देना प्रारंभ कर दिया है।
शुक्रवार, 29 अक्तूबर 2021
शुक्रवार, 15 अक्तूबर 2021
व्यक्तियों के आधार पर नहीं, संघ को तत्व के आधार पर समझें
डॉक्टर केशव बलिराम हेडगेवार ने 1925 में विजयादशमी के दिन शुभ संकल्प के साथ एक छोटा बीज बोया था, जो आज विशाल वटवृक्ष बन चुका है। दुनिया के सबसे बड़े सांस्कृतिक-सामाजिक संगठन के रूप में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हमारे सामने है। नन्हें कदम से शुरू हुई संघ की यात्रा समाज जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में पहुँची है, न केवल पहुँची है, बल्कि उसने प्रत्येक क्षेत्र में अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज कराई है। ऐसे अनेक क्षेत्र हैं, जहाँ संघ की पहुँच न केवल कठिन थी, बल्कि असंभव मानी जाती थी। किंतु, आज उन क्षेत्रों में भी संघ नेतृत्व की भूमिका में है। बीज से वटवृक्ष बनने की संघ की यात्रा आसान कदापि नहीं रही है। 1925 में जिस जमीन पर संघ का बीज बोया गया था, वह उपजाऊ कतई नहीं थी। जिस वातावरण में बीज का अंकुरण होना था, वह भी अनुकूल नहीं था। किंतु, डॉक्टर हेडगेवार को उम्मीद थी कि भले ही जमीन ऊपर से बंजर दिख रही है, पंरतु उसके भीतर जीवन है। जब माली अच्छा हो और बीज में जीवटता हो, तो प्रतिकूल वातावरण भी उसके विकास में बाधा नहीं बन पाता है। अनेक व्यक्तियों, विचारों और संस्थाओं ने संघ को जड़ से उखाड़ फेंकने के प्रयास किए, किंतु उनके सब षड्यंत्र विफल हुए। क्योंकि, संघ की जड़ों के विस्तार को समझने में वह हमेशा भूल करते रहे। आज भी स्थिति कमोबेश वैसी ही है। आज भी अनेक लोग संघ को राजनीतिक चश्मे से ही देखने की कोशिश करते हैं। पिछले 96 बरस में इन लोगों ने अपना चश्मा नहीं बदला है। इसी कारण यह संघ के विराट स्वरूप का दर्शन करने में असमर्थ रहते हैं। जबकि संघ इस लंबी यात्रा में समय के साथ सामंजस्य बैठाता रहा और अपनी यात्रा को दसों दिशाओं में लेकर गया।
बुधवार, 13 अक्तूबर 2021
अंतरिक्ष विज्ञान में भारत के बढ़ते कदम
भारतीय अंतरिक्ष संघ (इंडियन स्पेस एसोसिएशन) की स्थापना के साथ भारत ने अंतरिक्ष विज्ञान में अपनी स्थिति को और मजबूत करने की दिशा में कदम बढ़ा दिया है। अंतरिक्ष विज्ञान में भारत को नयी ऊंचाइयों तक ले जाने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का अपना एक दृष्टिकोण है। विज्ञान के क्षेत्र में भारत नवोन्मेष का केंद्र बने, इसके लिए वह लगातार प्रयास कर रहे हैं। वैज्ञानिकों के साथ न केवल उन्होंने संवाद बढ़ाया है बल्कि वैज्ञानिकों को नवोन्मेष के लिए प्रोत्साहित भी किया है। पिछले कुछ वर्षों में अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में भारत ने कई कीर्तिमान स्थापित किए हैं।
सोमवार, 11 अक्तूबर 2021
निशाने पर कश्मीरी हिन्दू
जम्मू-कश्मीर के घाटी और श्रीनगर के क्षेत्रों में इस्लामिक आतंकी जिस तरह चिह्नित करके हिन्दुओं की हत्याएं कर रहे हैं, उससे पता चलता है कि वह 1990 की तरह हिन्दुओं को भयाक्रांत करके बचे-खुचे हिन्दुओं को भी खदेडऩा चाहते हैं। विवादास्पद अनुच्छेद-370 हटाए जाने के बाद से केंद्र सरकार की योजनाओं का लाभ लेकर अनेक हिन्दू घाटी में नौकरी एवं व्यवसाय करने गए हैं। 1990 में इस्लामिक आतंकवाद से पीडि़त होकर जिन हिन्दुओं को घर छोडऩे पड़े, सरकार उन्हें उनके घर एवं संपत्तियों वापस दिखाने के प्रयास भी कर रही है। मोदी सरकार के यह सब प्रयास इस्लामिक चरमपंथियों को पसंद नहीं आ रहे हैं। यही कारण है कि उन्होंने एक बार फिर यह संदेश देने का प्रयास किया है कि कश्मीर घाटी में हिन्दुओं को जीवित नहीं रहने दिया जाएगा। सरकार को आतंकवादियों की इस चुनौती को गंभीरता से लेना चाहिए।
शुक्रवार, 1 अक्तूबर 2021
शिक्षक के हाथ में राष्ट्र के उत्थान-पतन की बागडोर
‘स्वतंत्र भारत के 75 वर्ष और शिक्षकों की भूमिका’
तत्कर्म यन्न बन्धाय सा विद्या या विमुक्तये।
आयासायापरं कर्म विद्यान्या शिल्पनैपुणम्॥ - श्रीविष्णुपुराण 1-19-41
अर्थात, कर्म वही है जो बन्धन का कारण न हो और विद्या भी वही है जो मुक्ति की साधिका हो। इसके अतिरिक्त और कर्म तो परिश्रम रुप तथा अन्य विद्याएँ कला-कौशल मात्र ही हैं॥