'छी हो, ऐसी राजनीति पर...' जिसने भी सुना कि जतंर-मतंर पर किसान ने भरी सभा में आत्महत्या कर ली, लेकिन दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल का भाषण अनवरत जारी रहा। 'ये कैसा नेता है? ये कैसी सियासत है? दुर्भाग्यपूर्ण है यह...' उन सबके बोल लगभग यही थे। राजनीति का घृणित अध्याय। क्या संवेदनाएं मर गई हैं? हम मनुष्य ही हैं न, संदेह होता है। मोहल्ले में भी किसी अपरिचित की मौत हो जाती है तो सन्नाटा खिंच जाता है, लोगों के घरों में चूल्हे नहीं जलते। लेकिन, जंतर-मंतर पर भरी सभा में, मुख्यमंत्री के सामने एक किसान पेड़ पर झूल जाता है, आम आदमी के मसीहा कहलाने की जिद पाले नेताओं पर कोई फर्क नहीं पड़ता। उनकी राजनीति चलती रहती है। किसान की मौत को भुनाने के लिए सब गिद्ध की तरह झपट पड़ते हैं। आम आदमी पार्टी की नई राजनीति, औरों से अलग राजनीति, जनता के हित की राजनीति, यही है क्या? तो नहीं चाहिए ऐसी राजनीति और संवेदनहीन नेताओं की फौज।
शनिवार, 25 अप्रैल 2015
बुधवार, 22 अप्रैल 2015
ये मुल्क पाकिस्तान है क्या?
ग जब है! आज के समय में हिन्दुस्थान में हिन्दुओं को अपने घर बचाने के लिए धर्म बदलने पर मजबूर होना पड़ रहा है। इतिहास की किताबों में पढ़ते हैं कि मुगलों के अत्याचार से बचने के लिए हिन्दुओं ने मजबूरी में इस्लाम स्वीकार किया। जरूर किया होगा। गर्दन पर तलवार रखी हो और पूछा जा रहा हो- 'जान बचानी है या धर्म? ' तब विकल्प ही कितने बचते हैं आदमी के पास। कुछ ने मौत स्वीकारी तो बहुतों ने मजबूरी में इस्लाम। लेकिन, अब न तो मुगलिया शासन है और न उनकी तलवार का आतंक। फिर कौन है? क्या परिस्थितियां हैं? क्या संकट है कि अपना घर बचाने के लिए हिन्दू धर्मांतरण को मजबूर हैं।
गुरुवार, 16 अप्रैल 2015
बोल कि लब आज़ाद हैं तेरे
बो ल कि लब आज़ाद हैं तेरे, बोल ज़बाँ अब तक तेरी है। अभिव्यक्ति की आजादी से जुड़े मसले पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद दिल-ओ-दिमाग में सबसे पहले ये ही पंक्तियां गूँजी। अभिव्यक्ति की आजादी के मायने समझने के लिए फैज़ अहमद फैज़ की लोकप्रिय गजल का यह शेर मुकम्मल है। बहरहाल, सोशल मीडिया पर अभिव्यक्ति की आजादी का गला घोंटने के लिए आईटी एक्ट की कुख्यात धारा-66A को उच्चतम न्यायालय ने जब रद्द किया तो फैज़ साहब के इस शेर की दूसरी पंक्ति को कुछ इस तरह दोहरा रहा हूं- '...बोल ज़बाँ फिर से तेरी है।' आईटी एक्ट (सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम) की धारा-66A अभिव्यक्ति की आजादी और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों के खिलाफ थी। फेसबुक, ट्विटर और अन्य सोशल माध्यम पर की गई किसी भी टिप्पणी को आपत्तिजनक बताकर टिप्पणीकर्ता को गिरफ्तार कर जेल भेजा जा सकता था। इसके तहत पांच लाख रुपये तक का जुर्माना और तीन साल कैद की सजा का प्रावधान था। यही नहीं किसी के कमेंट को लाइक करने तक की आजादी आपको नहीं थी। वर्ष 2012 में शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे के निधन के बाद मुम्बई बंद पर फेसबुक पोस्ट लिखने वाली शाहीन ढड्ढा को ही नहीं बल्कि उनकी पोस्ट को लाइक करने वाली रीनू श्रीनिवासन को भी गिरफ्तार कर लिया गया था। दोनों लड़कियों की गिरफ्तारी के बाद से आईटी एक्ट की धारा-66A पर काफी विवाद हुआ था। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए एक बहस और लड़ाई शुरू हुई। कई संगठनों और नागरिकों ने धारा-66A के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। सुप्रीम कोर्ट के दर से नतीजा सुखद आया है। दरअसल, अभिव्यक्ति की आजादी किसी भी लोकतंत्र की खूबसूरती है। सबसे बड़े लोकतंत्र और सांस्कृतिक राष्ट्र भारत में तो सबको अपनी बात कहने की आजादी हमेशा से रही है और रहनी भी चाहिए। यह बात इस देश को औरों से अलग करती है। यहां विरोध की आवाज को जब-जब दबाने का प्रयास किया गया है, तब-तब वह और बुलंद हुई है। सच हमेशा जीता है।
सोमवार, 6 अप्रैल 2015
भारत के उजले पक्ष को दिखाएं साहित्यकार : श्री महेश श्रीवास्तव
लोकेन्द्र सिंह के काव्य संग्रह 'मैं भारत हूं' का विमोचन
भोपाल, 04 अप्रैल। अपने देश को हमें हीन भावना से प्रस्तुत नहीं करना चाहिए। अपने लेखन में भारतीय वाग्ंमय और भारतीय उदाहरणों को प्रस्तुत करना चाहिए। ताकि प्रत्येक भारतवासी को अपने देश पर गौरव हो और दुनिया भी जाने की भारत एक महान देश है। यह पुरानी कहावत है कि साहित्य समाज का दर्पण होता है। लेकिन, धन और बाजारवाद का प्रभाव बढ़ रहा है, जिससे ये दर्पण कुछ दरक गया है। इस कारण बिम्ब कुछ धुंधले बन रहे हैं। साहित्यकारों को भारत के उजले पक्ष को दिखाना चाहिए। ये विचार प्रख्यात कवि और वरिष्ठ पत्रकार श्री महेश श्रीवास्तव ने व्यक्त किए। वे युवा साहित्यकार लोकेन्द्र सिंह के काव्य संग्रह 'मैं भारत हूं' के विमोचन समारोह में बतौर मुख्य अतिथि उपस्थित थे। समारोह का आयोजन 'एक भारतीय आत्मा' पं. माखनलाल चतुर्वेदी की जयंती प्रसंग पर मीडिया विमर्श पत्रिका के तत्वावधान में किया गया। समारोह की अध्यक्षता माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बृज किशोर कुठियाला ने की। वरिष्ठ पत्रकार श्री अक्षत शर्मा भी बतौर विशिष्ट अतिथि मौजूद रहे।
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