ओरछा में राजा राम के दरबार में उस दिन बहुत हलचल थी। इस दिन विवाह की उत्तम लग्र थी। कई युवा जोड़े एक-दूजे का हाथ थाम कर, अग्नि को साक्षी मानकर एक-दूजे के हो रहे थे। यह बात फरवरी माह की है। मैं अजीज के विवाह समारोह में शामिल होने के लिए ओरछा पहुंचा था। मेरा यह मित्र बहुत ही सादगी पसंद है। उसने धूमधाम से विवाह करने की जगह साधारण ढंग से विवाह करने का फैंसला लिया था। विवाह में उसने दहेज के रूप में एक नया पैसा लड़की वालों से नहीं लिया। जैसे-तैसे हमने जिद करके एक स्टेज सजा ली थी उसे तो वह भी पसंद नहीं था। स्टेज पर दो कुर्सियां जमा ली थीं और उनके पीछे कुछ फूलों की लडिय़ां लटका ली थीं। उन कुर्सियों पर ही दूल्हा-दुल्हन बैठे थे। सभी उनको बधाई दे रहे थे और याद के लिए फोटो निकलवा रहे थे। कार्यक्रम चल ही रहा था तभी अचानक मैं पलटा और देखा कि हमारा एक दोस्त दो अंग्रेजों के साथ स्टेज की ओर चला आ रहा है। मैंने दोस्त से पूछा कहां से पकड़ लाया तू इन फिरंगियों को। उसने कहा कहीं से नहीं खुद ही कौतुहलवश विवाह की रस्में देखने चले आए थे। अतिथि देवो भव की परंपरा हमारे यहां है ही। सो मैंने उससे कहा अब ये आए हैं तो इनका स्वागत सत्कार करो। कुछ खिलाओ-पिलाओ आखिर ये हमारे अतिथि हैं। वे बेल्जियम के रहने वाले थे और भारत भ्रमण पर आए थे। उनसे पूछने के बाद मुझे पता चला। मैंने उन्हें गुलाब जामुन और दहीबड़े खाने को दिए। उन्होंने चटकारे लेकर दो दौने दहीबड़े चट कर दिए। काफी देर तक मैं और मेरा दोस्त उनसे बातें करते रहे। विवाह की अलग-अलग रस्मों की जानकारी उन्हें देते रहे। उनकी भी इच्छा हुई वर-वधू के साथ फोटो निकलवाने की। मैंने उनको हिंदी में सिखाया कि वर-वधू को कहना- खुश रहो और पूतो फलो-दूधो नहाओ। बंदो ने जल्दी सीख भी लिया। स्टेज पर पहुंचते ही जैसे ही उसने ये बोला, माहौल ठहाकों से गूंज गया। काफी देर बाद जब वो जाने लगे तो मैं उन्हें बाहर तक छोडऩे गया। अधिक समय हो जाने के कारण धर्मशाला के दोनों गेट पर ताला लटक रहा था। मैंने दोस्त को चौकीदार को बुलाने के लिए भेजा। मजाक में दोनों गोरों से कहा कि- अब आप आज यहीं रूक जाइए, सुबह चले जाना। उन्होंने जो जवाब दिया उसकी मुझे कतई आशा नहीं थी। उनका प्रत्युत्तर सुनकर मुझे बड़ा क्रोध आया। मैंने तुरंत ही गेट खोलकर उन्हें बाहर का रास्ता दिखाया और सोचता रहा- इतना सम्मान मिलने पर क्या हम इस तरह की बात अपने मेजबान के सामने रख सकते हैं। दिल ने उत्तर दिया नहीं मेरे संस्कार इस बात की इजाजत नहीं देते। उनकी बात सुनकर ही मुझे समझ आया कि- क्यों हमारी सभ्यता और संस्कृति महान है। उन्होंने जवाब दिया था- हम रुक जाते हैं। क्या हमें सोने के लिए सुंदर औरतें मिलेंगी।
स्त्री की इज्जत करोदुनिया आपकी इज्जत करेगी।