दिल्ली की यह अकेली घटना नहीं है, इससे पहले भी इस प्रकार की अनेक घटनाएं सामने आ चुकी हैं। उत्तरी दिल्ली के सब्जी मंडी रेलवे स्टेशन में 20 साल के युवक की सरेआम तीन लोगों ने पीट-पीट कर हत्या कर दी थी। पुलिस ने बताया कि जिस समय युवक को पीटा जा रहा था, तब स्टेशन पर मौजूद किसी व्यक्ति ने उसे बचाने का प्रयास नहीं किया। मध्यप्रदेश के शिवपुरी का भी ऐसा ही एक मामला सामने आया है। अजमत खान, वकील खान, आरिफ, शाहिद, इस्लाम खान, रहीशा बानो, साइना बानो ने अनुसूचित जाति के दो युवकों को सरेराह बेरहमी से पीटा और गले में जूतों की माला डालकर गांव में घुमाया। आरोपियों पर युवकों को गंदगी खिलाने का भी आरोप है। जब वे युवकों के साथ यह अमानवीय व्यवहार कर रहे थे, तब कई लोग यह देख रहे थे। किसी ने यह पूछा भी कि इन्हें इस तरह क्यों पीट रहे हो, तब वह इतने उत्तर से संतुष्ट होकर चला गया कि दोनों युवक आरोपियों के परिवार की किसी लड़की को छेड़ रहे थे। राजस्थान के टोंक जिले से भी मानवता को शर्मसार करनेवाला और हमारे समाज की नपुंसकता को दिखानेवाला मामला सामने आया, जिसमें जयपुर-कोटा राजमार्ग पर एक युवक की मामूली विवाद को लेकर लातों-घूसों से पीट-पीटकर हत्या कर दी गई। इस दौरान आसपास के लोग तमाशबीन बनकर यह घटना देखते रहे। लेकिन किसी ने भी उस युवक को बचाने की कोशिश नहीं की। ये घटनाएं प्रतीक मात्र हैं। इन्हें दिल्ली, राजस्थान और मध्यप्रदेश तक सीमित करके नहीं देखना चाहिए बल्कि इस प्रकार की घटनाएं केरल, छत्तीसगढ़, तमिलनाडु, कर्नाटक और महाराष्ट्र में भी हुई हैं। जैसे ‘द केरल स्टोरी’ में दिखायी गई लव जेहाद की वास्तविक कहानियां केवल तीन नहीं है और न ही ये केरल तक सीमित हैं। समाचारपत्र उठाकर देख लीजिए, देश के किसी न किसी प्रदेश में लव जेहाद की नित्य कोई घटना आपको मिल जाएगी। चूँकि समाज इसका प्रतिकार नहीं कर रहा। वह मूक होकर यह सब होते हुए देख रहा है, इसलिए यह कैंसर की तरह फैल रहा है। भले ही आज तमाशबीनों के घर में आग नहीं लगी है, लेकिन यही हालात रहे तो वह दिन दूर नहीं होगा, जब इस आग में वे भी जल रहे होंगे। सहायता के लिए पुकारेंगे लेकिन कोई आगे नहीं आएगा। उन अंतिम क्षणों में उन्हें याद आएगा कि वे भी कभी किसी को मरते हुए देख रहे थे, कुछ बोले नहीं थे, प्रतिकार नहीं किया था, साहस नहीं दिखाया था।
MP के शिवपुरी में अजमत खान, वकील खान, आरिफ, शाहिद, इस्लाम खान, रहीशा बानो, साइना बानो ने अनुसूचित जाति के 2 युवकों को बेरहमी से पीटा और गले में जूतों की माला डालकर गांव में घुमाया। गंदगी भी खिलाने का आरोप। @brajeshabpnews @ABPNews @pravindubey121 @vinodkapri pic.twitter.com/8QpYFJ9lFm
— लोकेन्द्र सिंह (Lokendra Singh) (@lokendra_777) July 4, 2023
स्मरण रखें कि अपराध को इस तरह चुपचाप देखते रहने की यह जो स्थिति है, वह जीवंत समाज का लक्षण नहीं है। ऐसे समाज के साथ देश कैसे आगे बढ़ेगा? एक कुशल और दूरदृष्टा नेतृत्व के साथ ही किसी भी राष्ट्र की नियति उसका समाज तय करता है। समाज जैसा होगा, वैसा ही वह देश भी बनेगा। जब-जब हमारा समाज कमजोर हुआ है, देश अंधकार में गया है। इसलिए हमें इतिहास में दिखायी पड़ता है कि बड़े परिवर्तन की ओर कदम बढ़ाने से पहले हमारे पुरुखों ने सुप्त समाज को जगाने का काम किया। मुगलिया सल्तनत के अत्याचार को समाप्त करने के लिए महाराणा प्रताप से लेकर छत्रपति शिवाजी महाराज तक ने समाज को लड़ना सिखाया। स्वतंत्रता का आंदोलन चलाने से पहले महात्मा गांधी ने देश का भ्रमण करके समाज की नब्ज को समझा और उसे ब्रिटिश शासन व्यवस्था के दोषों के प्रति जागरूक किया। अंग्रेजों से स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद यह देश फिर से किसी बाह्य आक्रमण का शिकार न बन जाए, इसलिए क्रांतिकारी राजनेता डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने इस देश के हिन्दू समाज के मन में आत्मविश्वास जगाने एवं उसे एकजुट करने का काम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के रूप में प्रारंभ किया। संघ का ध्येय ही है कि स्थायी परिवर्तन समाज को बदले बिना नहीं आ सकता। इसलिए आज भी हमें यह तमाशबीन समाज नहीं चाहिए, हमें चाहिए जागृत समाज, जो अन्याय और अत्याचार को होते हुए देखकर चुप न रहें बल्कि उसका प्रतिकार करें। चूँकि यह हिन्दवी स्वराज्य की स्थापना का 350वां वर्ष है इसलिए हमें स्वाभाविक रूप से इतिहास के पन्ने पलटकर देखना चाहिए कि आत्मविस्मृत समाज की कमोबेश ऐसी ही स्थिति उस समय भी थी। आदिलशाही, निजामशाही, कुतुबशाही और औरंगजेब की मुगलिया सल्तनत में मनसबदारों एवं इस्लामिक फौज के अत्याचारों को लोग चुपचाप सहते और देखते रहते। समाज को इस दैन्य भाव से निकालने का काम छत्रपति शिवाजी महाराज ने किया। उन्होंने समाज को जागरूक किया और अत्याचार के विरुद्ध लड़ना सिखाया। उसका परिणाम यह हुआ कि मुगलिया छाप अत्याचारों में एकदम से कमी आ गई। जो लोग अपने को असुरक्षित महसूस करते थे, उन्होंने हिन्दवी स्वराज्य में सुकून की सांस लेना शुरू कर दिया। वे निर्भर हो गए क्योंकि समाज एकजुट और सजग हो गया। वह तमाशबीन नहीं रहा, वह साहस करके अत्याचारी के सामने सीना तानकर खड़ा हो गया। समाज के मन में यह विश्वास पैदा करना होगा कि जितने भी अत्याचारी होते हैं, वे डरपोक भी होते हैं। जब उन्हें समाज में एकजुटता दिखायी देती है, तो उनकी हिम्मत जवाब दे जाती है।
वर्तमान परिस्थितियों में समाज का राजनीतिक एवं सामाजिक नेतृत्व करनेवाली सज्जनशक्ति को गंभीरता से विचार करना होगा कि इस तमाशबीन समाज को कैसे जागरूक समाज में बदला जाए। कैसे इस भीरुता को मिटाकर, साहस का संचार किया जाए।
मुंबई से प्रकाशित मासिक पत्रिका 'हिन्दी विवेक' के अगस्त-2023 के अंक में प्रकाशित |
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