याद रखें कि विपक्षी गठबंधन में शामिल राजनीतिक दल यह कहते नहीं अघाते कि क्या भाजपा हिन्दू धर्म की ठेकेदार है? हिन्दू धर्म पर होनेवाले हमलों के बीच जिस प्रकार भाजपा डटकर खड़ी होती है, उससे तो यही साबित होता है कि हाँ, भाजपा हिन्दू धर्म की सबसे बड़ी हितैषी है। समाजवादी पार्टी के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने जब यह कहा कि “हिन्दू धर्म कोई धर्म नहीं बल्कि सिर्फ एक धोखा है”। तब केवल भाजपा ने ही स्वामी प्रसाद मौर्य को आड़े हाथ लिया। बाकी के राजनीतिक दलों की चुप्पी आखिर क्या कहती है? विशेषकर अपने आप को ‘इंडिया’ गठबंधन कहनेवाले राजनीतिक दल क्यों हिन्दू धर्म पर हो रहे राजनीतिक हमलों पर चुप्पी साध लेते हैं? क्या हिन्दू धर्म पर हमला करनेवाले राजनीतिक दलों एवं नेताओं को क्या खुद को ‘इंडिया’ कहने का जरा भी नैतिक अधिकार है?
यह सच ही प्रतीत होता है कि इन राजनीतिक दलों का भारत के विचार से कोई लगाव नहीं है। इन्होंने केवल राजनीतिक स्वार्थों की पूर्ति के लिए अपने गठबंधन का नामकरण ऐसा किया है ताकि लोगों को छला जा सके। यदि वास्तव में विपक्षी गठबंधन भारत के विचार का प्रतिनिधित्व करता है, तब उसे खुलकर ऐसे दलों एवं नेताओं को विरोध करना चाहिए, जो हिन्दू एवं भारत विरोधी सोच को बढ़ावा दे रहे हैं। ऐसे दलों को गठबंधन से बाहर निकालने में जरा भी देर क्यों लगनी चाहिए? यदि विपक्षी गठबंधन ने इसी प्रकार चुप्पी बनाए रखी तो इसकी भारी कीमत उसे लोकसभा चुनावों में चुकानी पड़ सकती है। डीएमके के नेताओं के बयानों के बाद से उत्तर भारत की जनता में गहरा आक्रोश है। लेकिन विपक्षी गठबंधन इससे बेखबर है। बाद में जब जनता का आक्रोश मताधिकार के रूप में प्रकट होगा और भाजपा को प्रचंड जीत मिलेगी, तब आज चुप्पी साधकर बैठे नेता ईवीएम का रोना रोएंगे।
हिन्दू संगठनों, साधु-संन्यासियों एवं आम लोगों ने स्वामी प्रसाद मौर्य के बयान पर अपना आक्रोश व्यक्त करते हुए सार्वजनिक माफी की माँग की है। हालांकि, इसकी संभावना कम ही है कि सपा नेता मौर्य अपने बयान के लिए माफी माँगेंगे क्योंकि इससे पूर्व डीएमके के नेताओं ने भी खेद तक व्यक्त नहीं किया। अपितु वे बड़ी बेशर्मी से अपने बयानों पर अड़े रहे। बहरहाल, देश के आम नागरिकों को भी यह लगने लगा है कि विपक्षी गठबंधन और कुछ नहीं अपितु हिन्दू विरोधी पार्टियों का कुनबा है। बड़ी और अनुभवी पार्टियों की चुप्पी जनता की इस सोच को और पक्का कर रही है।
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