रवींद्र भवन, भोपाल में आयोजित अंतरराष्ट्रीय साहित्य और सांस्कृतिक उत्सव ‘उत्कर्ष–उन्मेष’ में दैनिक भास्कर के लिए कवरेज किया। लगभग 13 वर्ष पुरानी स्मृतियां ताजा हो उठीं, जब मैं दैनिक भास्कर, ग्वालियर में उपसंपादक हुआ करता था।
कल एक और विशेष अवसर बना– ‘कविता : आत्मा की अभिव्यक्ति’ पर हो रहे विमर्श का कवरेज करते हुए अंग्रेजी में कविताएं सुनीं। पहले भी सुनीं हैं। मेरे कई विद्यार्थी अंग्रेजी में ही लिखते हैं। वे लिखते हैं तो मुझे पढ़ाते–सुनाते भी हैं। कभी–कभी एकाध गीत म्यूजिक एप पर भी सुनने की कोशिश की है। परंतु इस तरह आयोजन में सभी कवियों का अंग्रेजी में कविता पाठ सुनने का यह पहला अवसर था।
सब गंभीर होकर सुन रहे थे। न ‘वाह–वाह’ की दाद मिल रही थी, न ‘बहुत खूब–बहुत खूब’ कह कर कुछ पंक्तियों को फिर से सुनाने का आग्रह हो रहा था। बस सब चुपचाप सिर हिलाए जा रहे थे। हां, कवि कविता के बाद कुछ हास्य बोध के लिए कुछ कहता (अंग्रेजी में ही) तब अवश्य ही थोड़ी हर्ष उस छोटे सभागार में उद्घाटित हो उठता। तब प्रतिभागी विद्वान कवियों में से ही सुकृता पॉल कुमार, जो मॉडरेटर जैसी भूमिका में भी नजर आ रही थीं, ने कहा– "यहां कुछ लोग ‘साइलेंट क्लैपिंग’ कर रहे हैं। कुछ अच्छा लगने पर ‘रिस्पॉन्स’ तो करना चाहते हैं, लेकिन पता नहीं क्यों ‘ब्रिटिश कल्चर’ चेहरे की मांसपेशियां खींचकर गंभीर होकर बैठे हैं। इस ‘ब्रिटिश कल्चर’ को तोड़ दो। उर्दूवालों की तरह ‘वाह–वाह’ कीजिए। बिना बात नहीं, जब कविता की कोई बात आपकी आत्मा को छू जाए"।
हालांकि, यह काव्यपाठ नहीं था, विमर्श था– ‘कविता : आत्मा की अभिव्यक्ति’ विषय पर। अब कविता पर विमर्श था तो कविताओं के माध्यम से होना सहज ही था। संवेदनाओं से भरी कविताओं के साथ ही बहुत महत्व के विचारों का प्रतिपादन भी कवियों ने किया। मेरी आत्मा बार–बार कह रही थी कि "सब विदेशी भाषा में काहे ‘अभिव्यक्ति’ कर रहे हैं। कोई नहीं है, अपनी भाषा में कहनेवाला"। मैंने उसे समझाया– "बंधु, ये सब अंग्रेजी में ही पढ़ते, लिखते और सोचते हैं। संभव है कि पूरे समय अंग्रेजी के वातावरण में रहने से इनके सपनों की भाषा भी अंग्रेजी हो। देखो, एक का तो ‘एक्सेंट’ ही ब्रिटिश है। इसलिए इनकी कविता और आत्मा की अभिव्यक्ति अंग्रेजी में ही स्वाभाविक रूप से होगी। तुमने एक बार प्रयास किया था न, अंग्रेजी में कविता लिखने का। फिर क्या हुआ?" मेरे मन ने झटपट उत्तर दिया- "होता क्या, आत्मा की अभिव्यक्ति नहीं हुई। उसके बाद कभी नहीं लिखा अंग्रेजी में। क्योंकि मुझे तो सपने हिन्दी में ही आते हैं"।
बहरहाल, इस आयोजन से एक और बात ध्यान में आई कि वर्तमान समय में जो सबसे बड़ा झूठ बोला जा रहा है, वह है– सब संस्थाओं पर भाजपा की विचारधारा का कब्जा हो गया है। इस आयोजन में तो उस विचार के लोग भी बहुतायत में आए हैं, जिनका कभी संस्कृति, संचार और रंगकर्म के क्षेत्र पर एकाधिकार था। या तो भाजपा के विचार का प्रभुत्व नहीं है या फिर भाजपा का विचार ही उदार है, जो सबको ‘अभिव्यक्ति’ का अवसर और मंच देता है। भारतीय विचार की यही उदात्त पहचान है। बाहरी विचारों की तरह भारत का विचार यह नहीं कहता कि “केवल वही सत्य है। केवल उसकी ही अभिव्यक्ति और अनुसरण होना चाहिए”। हम तो कहते हैं– “एकं सद् विप्रा बहुधा वदन्ति”।
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'कविता : आत्मा की अभिव्यक्ति' के कुछ नोट्स
शिमला से आईं सुप्रसिद्ध कवयित्री एवं चित्रकार सुकृता पॉल कुमार ने कहा कि जब हम कविता में रच–बस जाते हैं तो वह हमारी आत्मा को अभिव्यक्त करती है। कविता लिखना अपनी आत्मा को खोजने का तरीका है। कविता की हमारी अपनी एक परंपरा है, जिसमें सहजता के ताल और लय है। उन्होंने कबीर का दोहा- “लाली मेरे लाल की, जित देखूँ तित लाल, लाली देखन मैं गई, मैं भी हो गई लाल” और जिगर मुरादाबादी का शे’र “ये इश्क़ नहीं आसाँ इतना ही समझ लीजे, इक आग का दरिया है और डूब के जाना है”, सुनाकर समझाया कि इन कविताओं की भाषा सरल है लेकिन कवियों के मन की अभिव्यक्ति शीर्ष पर है।
न्यूयॉर्क में रह रहीं कवयित्री आद्रा मानसी ने कहा कि कविता आपके भीतर वर्षों तक चलती रहती है। दुनिया में सब कुछ ब्लैक एंड व्हाइट नहीं है, ग्रे भी है। एक कवि अपनी कविता के माध्यम से जीवन के इन धूसर रंगों को भी दिखता है। इस संदर्भ में उन्होंने कविता की जापानी शैली हाइकु का उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि कविता में आप अपनी देह और मस्तिष्क दोनों की अनुभूति करते हैं। कविता जीवन के अनुभवों की अभिव्यक्ति है। आइरिश कवि को कोट करते हुए उन्होंने कहा कि कविता दुनिया बदल सकती है या नहीं, कह नहीं सकते लेकिन यह दुनिया को देखने के हमारे दृष्टिकोण को अवश्य बदल देती है। कविता हमारी साझा समझ को भी विकसित करती है। दुनिया को देखने का एक दृष्टिकोण देती है।
चेन्नई से आईं कवियित्री के. श्रीलता ने कहा कि पुस्तकों की बिक्री और रीडरशिप में सीधा कोई संदेश नहीं है। भले ही आपकी पुस्तक बेस्ट सेलर श्रेणी में नहीं आई होगी लेकिन हो सकता है कि उसकी कविताएं बहुत पढ़ी जा रही हों। उन्होंने कहा कि कई बार मैं अपने आप से पूछती हूँ कि कविताएं लिखने से आमदनी तो होती नहीं, फिर मैं यह क्यों लिखती रहती हूँ। अपने भीतर से इसका उत्तर यही मिलता है कि कविताओं के माध्यम से हम जीवन के संघर्ष के भावनात्मक सच तक पहुँच पाते हैं। मैंने फूल, पत्तियों, बीज और प्रकृति के अन्य खूबसूरत पहलुओं पर कविताएं लिखी हैं, लेकिन जो बातें हमारी आत्मा को चुभती हैं, उन पर भी कविताएं लिखी हैं। उन्होंने कहा कि हम कविताएं इसलिए लिखते हैं क्योंकि यह हमें उन्होंने कश्मीर के हालात पर अपनी कविता ‘चिनार की पीली गवाही में’ का पाठ किया।
लंदन से आई कवयित्री मेधा सिंह ने कहा कि कुछ साल पहले जब वे भारत से यूके गईं, तब उन्हें अपनी बहुत-सी बातों से लगाव हो गया। उस समय मुझे संतुष्टि की गहरी भावना की अनुभूति हुई, मैं कह सकती हूँ कि इस अनुभूति में आध्यात्मिक थी। उन्होंने अमेरिकन कवयित्री लिंडा ग्रेग और कैनेडियन कवि पैट्रिक जेम्स एरिंगटन की कविताएं सुनाकर अपने विचार व्यक्त किए।
वहीं, दिल्ली के कवि रूमी नकवी ने रामानुजन की कविता ‘ए डेथ ऑफ पोइम’ सुनाकर बताया कि किस तरह सबसे छोटी कविता के माध्यम से भी कवि अपनी बात अच्छे से कह सकता है। उन्होंने रामानुजन की एक और कविता ‘कनेक्ट’ सुनाकर समझाने का प्रयास किया कि एक–एक शब्द से भी अभिव्यक्ति के प्रभावी दृश्य बनाए जा सकते हैं। नकवी ने ‘वसुधैव कुटुंबकम्‘ शीर्षक से अपनी कविता सुनाकर भारत की विविधता के रंग सबके सामने रखे। उन्होंने कहा कि दुनिया में अनेक भाषाएं हैं लेकिन प्रेम की भाषा ही असल में हमारी मातृभाषा है। उन्होंने बताया कि इग्लैंड की कवयित्री एलिजाबेथ बैरेट ब्राउनिंग ने अपनी कविता ‘द सोलस् एक्सप्रेशिंग’ के माध्यम से आत्मा की अभिव्यक्ति के बारे में कहा है। आतंरिक द्वंद्व के माध्यम से आत्मा को समझने के लिए मिल्टन सोनेट को भी पढ़ा जा सकता है।
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