जी-20 के अंतर्गत ‘कनेक्टिंग साइंस टू सोसाइटी एंड कल्चर’ विषय पर आयोजित विज्ञान-20 सेमिनार में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का महत्वपूर्ण वक्तव्य
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जी-20 के अंतर्गत ‘कनेक्टिंग साइंस टू सोसाइटी एंड कल्चर’ विषय पर आयोजित विज्ञान-20 सेमिनार में महत्वपूर्ण वक्तव्य दिया, जो हमें विज्ञान के प्रति भारतीय दृष्टिकोण से परिचित कराता है। आज विज्ञान के क्षेत्र में जिस गति से प्रगति हो रही है, उसे देखकर दुनियाभर के मानवतावादी उत्साहित तो हैं परंतु उनके मनों में गहरी आशंकाएं भी हैं। यह आशंकाएं इसलिए भी स्वाभाविक हैं क्योंकि आज जिनके हाथों में विज्ञान की ताकत है, उनके पास मानवतावादी दृष्टि नहीं है। वैज्ञानिक खोजों में सक्रिय ताकतों का प्राथमिक उद्देश्य व्यवसाय है। उनकी दृष्टि में लोक कल्याण की भावना बहुत पीछे है। इसकी अनुभूति कोविड-19 से जनित वैश्विक महामारी के दौरान दुनिया ने भली प्रकार कर ली है। जबकि भारत की विज्ञान परंपरा में लोक कल्याण ही विज्ञान का प्राथमिक लक्ष्य है। हमारे ऋषि वैज्ञानिकों ने विज्ञान को मानवता का आधार दिया था। दुनियाभर में घटी अनेक घटनाएं इस बात की साक्षी हैं कि विज्ञान जब भी मानवता से हटा है, वह विध्वंस ही लाया है। आज हम उस दौर में पहुँच चुके हैं, जब यह आवश्यक हो गया है कि विज्ञान को समाज एवं संस्कृति से जोड़ने की दिशा में ठोस पहल करें और विज्ञान के लिए कुछ अनिवार्य वैश्विक सिद्धांत स्वीकार किए जाएं। विज्ञान को मानवता के आधार पर केंद्रित नहीं किया तो आनेवाले समय में यह हमारी समस्याओं का समाधान देने की जगह नई चुनौतियां पैदा कर देगा। विज्ञान के क्षेत्र में काम कर रही वैश्विक संस्थाओं के वैज्ञानिकों एवं प्रतिनिधियों के बीच मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ‘विज्ञान की भारतीय दृष्टि’ को प्रस्तुत करके सबको एक संदेश देने का प्रयास किया है। अच्छा होगा कि ‘विज्ञान-20’ में शामिल होने आए दुनियाभर के वैज्ञानिक अपने साथ भारतीय विचार को लेकर जाएं।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने उचित ही कहा है कि “विज्ञान का उपयोग समाज के कल्याण के लिए मर्यादित रूप में होना चाहिए। वैज्ञानिकों का कर्त्तव्य है कि विज्ञान का उपयोग विनाश के लिए नहीं बल्कि रचनात्मकता के लिए किया जाए। लोगों की समस्याओं के समाधान, उनके कल्याण और आगे आने वाली पीढ़ियों के लिए धरती को रहने लायक बनाने में तकनीक का बेहतर उपयोग करें”। मुख्यमंत्री का यह वक्तव्य विज्ञान को लेकर पश्चिम और भारतीय अवधारणा के अंतर को स्पष्ट करता है। प्राचीन काल से लेकर आधुनिक समय तक, भारत ने कभी भी विज्ञान का अमर्यादित उपयोग नहीं किया है। भारतीय परंपरा में विज्ञान का विकास प्रकृति और मनुष्य की आवश्यकताओं के साथ सामंजस्य बनाकर ही हुआ है। आज दुनिया में जिस प्रकार से पर्यावरण संबंधी चुनौतियां उत्पन्न हुई हैं, उसके लिए विज्ञान का अनियंत्रित और अमर्यादित उपयोग भी बहुत हद तक जिम्मेदार है। अकसर देखने में आता है कि विज्ञान का अमर्यादित उपयोग करके हम पहले मर्ज देते हैं और फिर उसकी दवा बनाने का ढोंग करते हैं। विनाश करने के बाद सृजन करना कोई बुद्धिमानी नहीं है। प्रकृति ने हमें जो कुछ उपहार स्वरूप दिया है, उसका संरक्षण करते हुए उसके संवर्धन के लिए हमें विज्ञान का उपयोग करना चाहिए। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने उचित ही संदेश दिया कि “वैज्ञानिक विकास की कीमत पर प्रकृति का शोषण नहीं होना चाहिए, मानव कल्याण के लिए उसका सही दिशा में दोहन किया जाए। तकनीक मनमानी करने के लिए नहीं है। भौतिक और नैतिक दोनों का समन्वय करने के लिए तकनीक का इस्तेमाल करना बेहतर है। हमें पर्यावरण संतुलन बनाए रखने और प्रदूषण फैलने से रोकने के उपाय सुनिश्चित करने होंगे। पेड़-पौधे, कीट-पतंगे तथा जीव-जंतुओं की प्रजातियाँ समाप्त न हों, इस पर भी ध्यान देना होगा”।
किसी को यह भ्रम नहीं रहे कि भारत में विज्ञान का कोई इतिहास नहीं है, इसलिए दूसरों को उपदेश देना आसान है। इस संबंध में भी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने वैज्ञानिक समुदायों के प्रतिनिधियों का ध्यान आकर्षित किया- “भारतवासियों की सोच में विज्ञान, तकनीक, समाज और संस्कृति, आज से नहीं हजारों वर्षों से है”। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के विचार ‘वन अर्थ, वन फेमिली और वन फ्यूचर’ और प्रत्येक भारतीय नागरिक द्वारा उद्घोष किए जानेवाले विचार ‘विश्व का कल्याण हो’ का उल्लेख करके संदेश दिया कि भारत प्रारंभ से ही केवल अपने बारे में विचार नहीं करता है, अपितु दुनिया को एक परिवार मानकर सबके हित को ध्यान में रखता है। स्मरण रखें कि भारत में विज्ञान का सूर्य किस प्रखरता के साथ चमकता था, इसे समझने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विचारक सुरेश सोनी की पुस्तक ‘भारत में विज्ञान की उज्ज्वल परंपराएं’ पढ़ना चाहिए। आचार्य प्रफुल्लचंद्र राय की ‘हिन्दू केमेस्ट्री’, ब्रजेन्द्रनाथ सील की ‘दी पॉजेटिव सायन्स ऑफ एन्शीयन्ट हिन्दूज’, राव साहब वझे की ‘हिन्दी शिल्प मात्र’ और धर्मपालजी की ‘इण्डियन सायन्स एण्ड टेकनोलॉजी इन दी एटीन्थ सेंचुरी’ में भारत में विज्ञान व तकनीकी परंपराओं को प्रमाणों के साथ उद्घाटित किया गया है। वर्तमान में संस्कृत भारती ने संस्कृत में विज्ञान और बॉटनी, फिजिक्स, मेटलर्जी, मशीन्स, केमिस्ट्री आदि विषयों पर कई पुस्तकें निकालकर इस विषय को आगे बढ़ाया। भारत में विज्ञान की क्या दशा और दिशा थी उसको समझने के लिए आज भी वे ग्रंथ मौजूद हैं, जिनकी रचना के लिए वैज्ञानिक ऋषियों ने अपना जीवन खपया। वर्तमान में जरूरत है कि उनका अध्ययन हो, विश्लेषण हो और प्रयोग किए जाएं।
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