अच्छा होता कि इस प्रकार के विवादित मामलों का निराकरण देश की स्वतंत्रता के साथ ही कर दिया जाता। परंतु ऐसा लगता है कि राजनीतिक लाभ के लिए कुछ दलों ने जानबूझकर अयोध्या, काशी और मथुरा जैसे महत्वपूर्ण स्थानों पर विवाद की स्थिति बनी रहने दी। ये दल स्वयं को सेकुलर कहते हैं, परंतु वास्तव में इनकी राजनीति घोर सांप्रदायिक है। एक संप्रदाय को भ्रमित रखकर उसको वोटबैंक की तरह इस्तेमाल किया गया। दुर्भाग्य की बात है कि भारत का मुसलमान भी ऐसे दलों एवं नेताओं की कठपुतली बना रहा। ईमानदारी से तो मुस्लिम समुदाय को ही अयोध्या, काशी और मथुरा के ऐतिहासिक एवं धार्मिक महत्व के स्थानों पर कब्जा छोड़कर धर्मांध आक्रांताओं की गलतियों से अपना पिंड छुड़ा लेना चाहिए। परंतु ऐसा हुआ नहीं अपितु मुस्लिम समुदाय आक्रांताओं के कृत्यों के पक्ष में खड़े हो गए। इस कारण हिन्दू और मुस्लिम तनाव भी बढ़ा।
एक जरूरी प्रश्न है कि क्या हिन्दू अपने तीन प्रमुख ईश्वरों के जन्मस्थानों को विवाद मुक्त न चाहे? याद रखें कि जब तक विवादित ढांचे हटेंगे नहीं, तब तक इन स्थानों पर आपसी सौहार्द स्थायी रूप से कायम नहीं होगा। समय-समय पर सांप्रदायिक तनाव को उभारा जाता रहेगा। इसलिए उचित ही है कि इन मामलों की सुनवाई करके न्यायालय निर्णय दे दे। संभवत: न्यायालय की दृष्टि भी यही है इसलिए वह ऐसे मामलों पर निर्णय करके हिन्दू और मुसलमानों को आपसी संघर्ष से बाहर निकालना चाहता है।
कोर्ट का निर्णय: मथुरा में जन्मस्थान के सर्वे से सत्य सामने आएगा : श्री आलोक कुमार (@AlokKumarLIVE), अंतर्राष्ट्रीय कार्याध्यक्ष, विश्व हिन्दू परिषद #Mathura pic.twitter.com/rKiXdeNYHs
— Vishva Hindu Parishad -VHP (@VHPDigital) December 14, 2023
यह सर्वविदित है कि जिस प्रकार अयोध्या में तथाकथित मस्जिद के कोई प्रमाण नहीं मिले अपितु बाहरी ढांचे से लेकर खुदाई तक में हिन्दू स्थापत्य के ही प्रमाण मिले थे, उसी प्रकार काशी और मथुरा के प्रकरण में भी साफतौर पर दिखायी देता है कि मंदिरों पर अतिक्रमण किया गया है। हिन्दुओं का अपमान करने की दृष्टि से हिन्दुओं के मान बिन्दुओं पर कुछ ढांचे खड़े कर दिए गए हैं। कोई भी व्यक्ति देखकर ही बता सकता है कि मथुरा में स्थित श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर के बराबर में बनी शाही ईदगाह वाला ढाँचा जबरन वहीं बना दिया गया जहाँ भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था। अभी भी कई ऐसे सबूत हैं जो कि यह सिद्ध करते हैं कि यहाँ पहले एक मंदिर हुआ करता था।
उल्लेखनीय है कि सन् 1670 में मुगल आक्रांता औरंगजेब ने मथुरा पर हमला कर दिया था और केशवदेव मंदिर को ध्वस्त करके उसके ऊपर शाही ईदगाह ढाँचा बनवा दिया था और इसे मस्जिद कहा जाने लगा। इस्लाम के अनुसार, ऐसा कोई स्थान मस्जिद हो ही नहीं सकता जो किसी और के धार्मिक स्थल को तोड़कर बनाया गया हो या जिसको लेकर विवाद हो। बहरहाल, न्यायालय ने हिन्दू पक्ष की याचिका को स्वीकार करके बहुत अच्छा निर्णय लिया है। अब वैज्ञानिक सर्वेक्षण के बाद ही बहुत हद तक स्थिति स्पष्ट हो जाएगी। सभी वर्गों को न्यायालय की प्रक्रिया एवं निर्णय को धैर्य और संयम के साथ स्वीकार करना चाहिए।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
पसंद करें, टिप्पणी करें और अपने मित्रों से साझा करें...
Plz Like, Comment and Share