शुक्रवार, 20 अक्तूबर 2023

गो-वर : पर्यावरण एवं मानवता के लिए गाय का वरदान

गाय के महत्व को रेखांकित करती फिल्म


‘बाचा: द राइजिंग विलेज’ को मिली सराहना के बाद हमारे समूह का उत्साह बढ़ा। अब हम नये वृत्तचित्र के लिए नयी कहानी खोज रहे थे। एक कार्यक्रम के निमित्त भोपाल स्थित शारदा विहार आवासीय विद्यालय जाना हुआ। वहां कई कहानियां थीं, जिन्हें हम सुना सकते थे। भौतिकी की खुली प्रयोगशाला में नवाचार दिखा, ध्यान के लिए बनाया गया एक विशेष मंडप में भारतीय ज्ञान–परंपरा की झलक थी, शिक्षा की भारतीय पद्धति का महत्व भी ध्यान में आ रहा था। परंतु हमने चुनी गोशाला।

तथाकथित प्रगतिशील गाय–गोबर का जितना चाहे उपहास उड़ाएं, लेकिन शारदा विहार, भोपाल स्थित ‘कामधेनु गोशाला एवं गोविज्ञान अनुसंधान केंद्र’ अपने प्रयोगों से गाय की महत्ता सिद्ध कर रहा है। परंपरागत और आधुनिक विज्ञान के सहयोग से इस प्रकल्प ने सिद्ध किया है कि भारत में गाय न केवल आर्थिक विकास की धुरी है अपितु पर्यावरण को संभालने में भी उपयोगी है। उल्लेखनीय है कि हमारी बदली हुई जीवनशैली के कारण पर्यावरण संरक्षण दुनिया का ज्वलंत मुद्दा बन गया है। तेजी से कटते जंगल, प्रदूषित होती हवा, जल संकट और ऊर्जा-ईंधन चिंता के कारण बन गए हैं। जब हम इन सब समस्याओं का समाधान तलाशते हैं, तो भारतीय जीवन शैली में ही एक उम्मीद की किरण नजर आती है और इस दिशा में हमारा विश्वास पक्का किया है- ‘कामधेनु गोशाला एवं गोविज्ञान अनुसंधान केंद्र’ ने।

शारदा विहार की गोशाला से निकलने वाले अपशिष्ट को बहु–उपयोगी बनाने की दिशा में ‘कामधेनु गोशाला एवं अनुसंधान केंद्र’ के एक अनुकरणीय मॉडल खड़ा किया है। यहां गाय के गोबर से गोबर गैस बन रही है, जिससे लगभग 800 विद्यार्थियों का भोजन पकाया जाता है। इसके साथ ही यहां गाय के गोबर से बायो–सीएनजी भी बनाई जा रही है, जिससे यहां के वाहन चलाए जाते हैं। इसके बाद जो अपशिष्ट बचाता है, उससे गोबर खाद बनाई जा रही है। परिसर के खेतों में इसी गोबर खाद का उपयोग किया जाता है। और तो और इसके बाद भी कुछ गोबर बचा रह जाता है तो उससे गो–काष्ट का निर्माण किया जा रहा है। यह अनुसंधान केंद्र गाय से प्राप्त पंचगव्य से अन्य उत्पाद भी तैयार करता है। 

इस अनुसंधान केंद्र ने एक उदाहरण प्रस्तुत किया है कि हम ‘आम के आम, गुठलियों के भी दाम’ की तर्ज पर बायोगैस प्लांट का ‘जीरो वेस्ट मैनेजमेंट’ कर सकते हैं। गोबर गैस प्लांट से निकलने वाले गोबर से गोकाष्ठ बना सकते हैं, जिसको हम लकड़ी की जगह उपयोग कर सकते हैं। इससे हम जैविक खाद बना सकते हैं। यह खाद जमीन को रासायनिक प्रदूषद से मुक्त रखता है। खेत में पैदावार को भी बढ़ाता है। भारत जैसे कृषि प्रधान देश में बायोगैस, वैकल्पिक ऊर्जा का सबसे बड़ा स्रोत है। आज की जरूरत है इन प्रयोगों को बढ़ावा और विस्तार देने की।

ईंधन के लिए बड़ी संख्या में जंगलों को काटा जा रहा है। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुतबिक 2015 से 2019 तक देश में लगभग 95 लाख पेड़ काट दिए गए। एक आंकड़े के मुताबिक, भारत में करीब 30 करोड़ मवेशी हैं। बायो-गैस के उत्पादन में उनके गोबर का प्रयोग कर हम 6 करोड़ टन ईंधन योग्य लकड़ी प्रतिवर्ष बचा सकते हैं।

‘कामधेनु गोशाला एवं गोविज्ञान अनुसंधान केंद्र’ पर आधारित हमारी डाक्युमेंट्री फिल्म ‘गो-वर : पर्यावरण और मानवता के लिए गाय का वरदान’ (निर्देशक- मनोज पटेल और प्रोड्यूसर- लोकेन्द्र सिंह) को भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय एवं पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की ओर से आयोजित अंतरराष्ट्रीय विज्ञान फिल्म फेस्टीवल में प्रदर्शित किया गया था। फिल्म निर्माताओं ने ‘गो-वर’ की बहुत सराहना की है। इस फिल्म में बताया गया है कि भारत में गाय आधारित जीवन पर्यावरण के अनुकूल है। विज्ञान के सहयोग से हम गाय से प्राप्त प्रत्येक वस्तु का बेहतर उपयोग कर सकते हैं। गाय हमारी वैकल्पिक ऊर्जा और धुंआ रहित ईंधन की पूर्ति भी कर सकती है। परंपरागत विज्ञान का सहारा लेकर हम गाय के गोबर से बायोगैस और गोकाष्ठ का उत्पादन कर सकते हैं। बायोगैस को ‘अक्षय ऊर्जा’ में शामिल किया जाता है। इसका अनेक प्रकार से उपयोग किया जा सकता है। घर की लाइट से लेकर खाना पकाने में बायो-गैस उपयोगी है। अब तो विज्ञान के सहयोग से गोबर गैस को बायो-सीएनजी गैस में भी बदल कर उसका कमर्शियल उपयोग किया जा रहा है।

कुल मिलाकर इस प्रकल्प के अभिनव प्रयोगों से यह तो ध्यान में आ ही जाता है कि गाय मानवता के लिए वरदान है। हमारी बदली हुई जीवनशैली में पुनः गाय का स्थान कैसे सुनिश्चित किया जाए, इस पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए। 

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