इन राजनीतिक दलों, सरकारों एवं उनके समर्थक तथाकथित प्रगतिशील बुद्धिजीवियों का पाखंड देखिए कि यही लोग भारतीय संस्कृति को विकृत रूप में प्रस्तुत करनेवाली फिल्मों के बहिष्कार का विरोध करते हैं, जबकि एक दु:खद सच को सामने लानेवाली फिल्म पर प्रतिबंध लगाने की वकालत कर रहे हैं। प्रतिबंध लगाकर लोगों को रोकने की जगह ये ताकतें भी बहिष्कार की अपील करके देख ले, ध्यान आ जाएगा कि समाज इनकी कितना सुनता है। बहरहाल, फिल्म निर्माताओं ने सर्वोच्च न्यायालय में जाकर प्रतिबंध को चुनौती देकर उचित ही किया है। नि:संदेह न्यायालय सरकारों को आईना दिखाएगा। इसी फिल्म के संदर्भ में पहले भी न्यायालय ने न्यायसंगत निर्णय दिया और ‘द केरल स्टोरी’ के माध्यम से आनेवाले सच को समाज तक पहुँचने का मार्ग प्रशस्त किया। न्यायालय ने पूछा भी है कि जब समूचे देश में फिल्म दिखायी जा रही है, कहीं कोई अशांति नहीं, तब पश्चिम बंगाल में प्रतिबंध क्यों?
#TheKeralaStory को लेकर तथाकथित प्रगतिशील, मार्क्सवादी, माओवादी, लेनिनवादी और उनके साथ में तथाकथित सेकुलर बुद्धिजीवी हो-हल्ला मचा रहे हैं। फिल्म को दर्शकों तक पहुँचने से रोकने के लिए इस वर्ग ने एड़ी-चोटी का जोर लगा लिया है....https://t.co/iDthbQngrM pic.twitter.com/HxqFKKq97k
— लोकेन्द्र सिंह राजपूत (Lokendra Singh Rajput) (@lokendra_777) May 5, 2023
‘द केरल स्टोरी’ में जिस साजिश को दिखाया गया है, उसे कोई भी खारिज नहीं कर सकता। स्मरण रखें कि इस फिल्म में शामिल दर्दनाक कहानियां केवल केरल की नहीं हैं, पश्चिम बंगाल में भी कई लड़कियां और उनके परिवार सुबुक रहे हैं। देशभर में अनेक स्थानों पर इस प्रकार की घटनाएं सामने आ रही हैं कि मुस्लिम लड़के योजनापूर्वक हिन्दुओं और गैर-मुस्लिम लड़कियों को निशाना बना रहे हैं। ये लव जिहाद नहीं तो क्या है? इस कड़वे सच से वही लोग इनकार कर सकते हैं, जिन्होंने अपनी संवेदनाओं को खत्म कर दिया है। जिनकी आँखों में शर्म नहीं बची है, वे ही लोग युवतियों के विरुद्ध चल रहे इस घिनौनी साजिश को नहीं देख पाएंगे।
ये लव जिहाद नहीं तो क्या है? आखिर नाम बदलकर युवतियों को अपने प्रेम में फंसाने का क्या तुक हो सकता है? #LoveJihad https://t.co/p30RNhNxFf
— लोकेन्द्र सिंह राजपूत (Lokendra Singh Rajput) (@lokendra_777) May 11, 2023
हम सब जानते हैं कि केरल और पश्चिम बंगाल में मुस्लिम आबादी प्रमुख वोटबैंक है। दोनों ही राज्यों की सरकारों ने ‘द केरल स्टोरी’ का विरोध करके तुष्टीकरण की राजनीति का ही संदेश दिया है। परंतु वह भूल गए कि ऐसा करके उन्होंने मुस्लिम संप्रदाय के प्रति और संदेह का वातावरण बनाने का काम किया है। उल्लेखनीय है कि फिल्म को दिखाया जाना है या नहीं, या किस प्रमाणपत्र के साथ फिल्म का प्रदर्शन होना चाहिए, इसके लिए केंद्रीय स्तर पर एक संस्था पूर्व से है। फिल्म प्रमाणन बोर्ड ने उचित प्रक्रिया के तहत उसका परीक्षण करने के बाद बाकायदा उसे ए सर्टिफिकेट प्रदान किया है। चिंताजनक बात है कि हमारे नेता अपने राजनीतिक स्वार्थ की चिंता में महत्वपूर्ण संस्थाओं के अधिकार क्षेत्रों और उनकी मान-मर्यादा का ख्याल छोड़ देते हैं। ‘द केरल स्टोरी’ को प्रतिबंधित करने का निर्णय कुछ इसी तरह का है। परंतु एक सत्य सभी राजनीतिक दलों, उनकी सरकारों एवं समर्थक बुद्धिजीवियों को जान लेना चाहिए कि प्रतिबंध लगाकर कभी किसी सत्य को दबाया नहीं जा सका है। हाँ, कोई निराधार बात करे या भारतीय व्यवस्था के विरुद्ध जाकर कोई रचना तैयार करे, तब उसे रोका जाना न्यायोचित ठहराया जा सकता है। ‘द केरल स्टोरी’ का सच तो जिंदा है, वह अपनी कहानी कहकर कब से समाज के साथ अपना दु:ख साझा करना और उसे जागृत करना चाहता था।
वास्तव में #TheKeralaStory आतंकवाद के अंतहीन अत्याचार और #जिहाद की जुगुत्सा का बेहद वीभत्स और जीवंत चलचित्र है। यह केवल #केरल और मंगलौर की हिन्दू-ईसाई युवतियों के लापता होने की कहानी भर नहीं है, बल्कि देशभर की लाखों हिन्दू बहनों की दु:खद दास्तां है...जरूर देखिए !!#केरला_स्टोरी pic.twitter.com/wrWdKN3O9Y
— HARISH MALIK (@HARISHMALIK007) May 7, 2023
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
पसंद करें, टिप्पणी करें और अपने मित्रों से साझा करें...
Plz Like, Comment and Share