शनिवार, 13 मई 2023

द केरल स्टोरी : प्रतिबंध लगाकर सच को नहीं दबा पाएंगे


अपने समय के गंभीर सच को सामने लाने वाली साहसिक फिल्म ‘द केरल स्टोरी’ को लेकर कुछ राजनीतिक दलों, उनकी सरकारों और उनके समर्थक बुद्धिजीवियों ने एक रंग देने का प्रयास किया है जबकि यह फिल्म किसी संप्रदाय के विरुद्ध नहीं है अपितु यह तो आतंकवाद के क्रूरतम चेहरे को सामने लाने का काम कर रही है। जिस संप्रदाय से इस फिल्म को जोड़कर, फिल्म को दर्शकों तक पहुँचने से रोकने के प्रयास किए जा रहे हैं, यह फिल्म उस संप्रदाय के लोगों को भी सजग करने का काम करती है। ऐसे में पश्चिम बंगाल की सरकार ने फिल्म पर प्रतिबंध लगाकर एक तरह से स्त्रियों पर होनेवाले अमानवीय अत्याचार, एक घिनौनी मानसिकता से किए जानेवाले कन्वर्जन और आतंकवाद का पक्ष लिया है। आखिर यह सच सामने क्यों नहीं आना चाहिए कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कुख्यात आतंकी संगठन या अन्य गिरोह किस तरह युवतियों को निशाना बना रहे हैं, कन्वर्जन कर रहे हैं और उनका शोषण कर रहे हैं?

इन राजनीतिक दलों, सरकारों एवं उनके समर्थक तथाकथित प्रगतिशील बुद्धिजीवियों का पाखंड देखिए कि यही लोग भारतीय संस्कृति को विकृत रूप में प्रस्तुत करनेवाली फिल्मों के बहिष्कार का विरोध करते हैं, जबकि एक दु:खद सच को सामने लानेवाली फिल्म पर प्रतिबंध लगाने की वकालत कर रहे हैं। प्रतिबंध लगाकर लोगों को रोकने की जगह ये ताकतें भी बहिष्कार की अपील करके देख ले, ध्यान आ जाएगा कि समाज इनकी कितना सुनता है। बहरहाल, फिल्म निर्माताओं ने सर्वोच्च न्यायालय में जाकर प्रतिबंध को चुनौती देकर उचित ही किया है। नि:संदेह न्यायालय सरकारों को आईना दिखाएगा। इसी फिल्म के संदर्भ में पहले भी न्यायालय ने न्यायसंगत निर्णय दिया और ‘द केरल स्टोरी’ के माध्यम से आनेवाले सच को समाज तक पहुँचने का मार्ग प्रशस्त किया। न्यायालय ने पूछा भी है कि जब समूचे देश में फिल्म दिखायी जा रही है, कहीं कोई अशांति नहीं, तब पश्चिम बंगाल में प्रतिबंध क्यों? 

‘द केरल स्टोरी’ में जिस साजिश को दिखाया गया है, उसे कोई भी खारिज नहीं कर सकता। स्मरण रखें कि इस फिल्म में शामिल दर्दनाक कहानियां केवल केरल की नहीं हैं, पश्चिम बंगाल में भी कई लड़कियां और उनके परिवार सुबुक रहे हैं। देशभर में अनेक स्थानों पर इस प्रकार की घटनाएं सामने आ रही हैं कि मुस्लिम लड़के योजनापूर्वक हिन्दुओं और गैर-मुस्लिम लड़कियों को निशाना बना रहे हैं। ये लव जिहाद नहीं तो क्या है? इस कड़वे सच से वही लोग इनकार कर सकते हैं, जिन्होंने अपनी संवेदनाओं को खत्म कर दिया है। जिनकी आँखों में शर्म नहीं बची है, वे ही लोग युवतियों के विरुद्ध चल रहे इस घिनौनी साजिश को नहीं देख पाएंगे। 

हम सब जानते हैं कि केरल और पश्चिम बंगाल में मुस्लिम आबादी प्रमुख वोटबैंक है। दोनों ही राज्यों की सरकारों ने ‘द केरल स्टोरी’ का विरोध करके तुष्टीकरण की राजनीति का ही संदेश दिया है। परंतु वह भूल गए कि ऐसा करके उन्होंने मुस्लिम संप्रदाय के प्रति और संदेह का वातावरण बनाने का काम किया है। उल्लेखनीय है कि फिल्म को दिखाया जाना है या नहीं, या किस प्रमाणपत्र के साथ फिल्म का प्रदर्शन होना चाहिए, इसके लिए केंद्रीय स्तर पर एक संस्था पूर्व से है। फिल्म प्रमाणन बोर्ड ने उचित प्रक्रिया के तहत उसका परीक्षण करने के बाद बाकायदा उसे ए सर्टिफिकेट प्रदान किया है। चिंताजनक बात है कि हमारे नेता अपने राजनीतिक स्वार्थ की चिंता में महत्वपूर्ण संस्थाओं के अधिकार क्षेत्रों और उनकी मान-मर्यादा का ख्याल छोड़ देते हैं। ‘द केरल स्टोरी’ को प्रतिबंधित करने का निर्णय कुछ इसी तरह का है। परंतु एक सत्य सभी राजनीतिक दलों, उनकी सरकारों एवं समर्थक बुद्धिजीवियों को जान लेना चाहिए कि प्रतिबंध लगाकर कभी किसी सत्य को दबाया नहीं जा सका है। हाँ, कोई निराधार बात करे या भारतीय व्यवस्था के विरुद्ध जाकर कोई रचना तैयार करे, तब उसे रोका जाना न्यायोचित ठहराया जा सकता है। ‘द केरल स्टोरी’ का सच तो जिंदा है, वह अपनी कहानी कहकर कब से समाज के साथ अपना दु:ख साझा करना और उसे जागृत करना चाहता था।  

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