77वें स्वतंत्रता दिवस के प्रसंग पर 15 अगस्तर, 2023 को स्वदेश ग्वालियर समूह में प्रकाशित यह आलेख |
आज वैश्विक पटल पर भारत की जो प्रगति दिख रही है, उसका कारण है कि अब हम अपने मानकों एवं मानस के अनुरूप नीतियां बनाकर अपने कदमों को मजबूती दे रहे हैं। यह सर्वविदित तथ्य है कि अपनी जड़ों से कटने के बाद वृक्ष पुष्पित-पल्लवित नहीं हो सकता, उसमें फल नहीं आएंगे अपितु वह धीरे-धीरे सूखने लगता है। यही स्थिति किसी भी देश और समाज की होती है, जब वह अपने जीवनमूल्यों से कट जाता है। भारत का वर्तमान राजनीतिक एवं सामाजिक नेतृत्व ‘स्व’ के महत्व को भली प्रकार जानता है, इसलिए नाना प्रकार के अवसरों के माध्यम से वह शासन एवं समाज व्यवस्था को स्मरण करा रहा है कि हमें अपने ‘स्व’ को पहचानना चाहिए। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पहल पर देश में स्वाधीनता का अमृत महोत्सव मनाया गया। इस बहाने हमने अपने स्वाधीनता आंदोलन का अध्ययन किया और उसमें हमें ध्यान आया कि हमारा यह आंदोलन भी ‘स्व’ के प्रकाश में चला। इस ‘स्व’ की अभिलाषा ने ही प्राणों को दांव पर लगाकर अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष का रास्ता चुनने के लिए हमारे नायकों का मानस तैयार किया। जब हम अपने स्वाधीनता आंदोलन का गहरायी से विश्लेषण करते हैं तब हमें यह स्पष्टतौर पर दिखायी देता है कि यह आंदोलन किन्हीं मुट्ठीभर लोगों, दो-चार संस्थाओं एवं संगठनों और भारत के एक हिस्से के निवासियों ने ही नहीं चलाया। इस आंदोलन में उत्तर से लेकर दक्षिण तक और पूरब से लेकर पश्चिम तक के नागरिक सम्मिलित हुए।
We stepped into Amritkaal with a strong footing – with a firm resolve to shed the vestiges of the slavish mentality that was instilled in us by colonisers. The clarion call for undertaking this course...
— J Nandakumar (@kumarnandaj) August 15, 2023
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यह संयोग ही है कि भारत जब ‘स्व’ बोध लेकर अमृतकाल में प्रवेश कर रहा है, तब हिन्दवी स्वराज्य की स्थापना का 350वां वर्ष भी प्रारंभ हुआ है और उसकी स्मृति में पुन: ‘स्व’ की संकल्पना को लेकर गहरे विमर्श प्रारंभ हुए हैं। अपना ‘स्व’ क्या है और अवसर आने पर ‘स्व’ के आधार पर ही व्यवस्थाएं क्यों खड़ी करनी चाहिए, इसका सटीक उत्तर हमें छत्रपति शिवाजी महाराज के व्यक्तित्व एवं उनके द्वारा स्थापित हिन्दू साम्राज्य के अध्ययन से मिल जाएंगे। जब समूचे देश पर मुगलों का एकछत्र राज्य था, तब एक दुस्साहसी युवक के मन में ‘स्वराज्य’ का विचार आया। स्वराज्य को साकार करने के लिए उन्होंने जनता को ‘स्व-राज्य’ का महत्व समझाया। उसके बाद छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपने राज्य का विस्तार किया और स्वभाषा, स्वदेशी, स्व-मुद्रा, स्व-नीति एवं सुराज्य को बढ़ावा दिया। भारत की वर्तमान शासन व्यवस्था में भी यह सद्गुण दिखायी दे रहे हैं। गुलामी और आक्रांताओं के चिह्न हटाने से लेकर नये कार्य भी भारत के ‘स्व’ के आधार पर किए जाने के निर्णय हो रहे हैं।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वर्तमान सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने 2019 में ही विजयदशमी के अपने संबोधन में सामाजिक परिवर्तन के लिए ‘स्व’ केंद्रित सामूहिक दृष्टि विकसित किए जाने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने और अधिक स्पष्टता देते हुए कहा कि भौतिक जगत में हमारे द्वारा किए जानेवाले सभी प्रयास एवं परिणाम भी ‘स्व’ आधारित होने चाहिए। तभी और केवल तभी भारत को स्व-निर्भर कहा जा सकता है। अर्थात् हम जिस भी क्षेत्र में सक्रिय हैं, वहाँ ‘स्व’ का सार ही हमारे वैचारिक चिंतन और हमारी कार्ययोजना का दिशाबोधक होना चाहिए। इसी तरह, राजनीति में संस्कृति के प्रतिनिधि दीनदयाल उपाध्याय भी संकेत करते हैं कि भारत की जो आत्मा है, जिसे चिति कहा गया है, उसको जानना और समझना अत्यंत आवश्यक है। प्रख्यात गांधीवादी चिंतक धर्मपाल ने तो स्पष्ट लिख दिया कि भारत के चित्त को समझे बिना हम भारत को ‘भारत’ नहीं बना सकते। अपने स्वभाव को विस्मृत करने के कारण ही आज अनेक समस्याएं उत्पन्न हुई हैं। पिछले 70 वर्षों में एक खास विचारधारा के लेखकों, साहित्यकारों एवं इतिहासकारों ने आम समाज को ‘भारत बोध’ से दूर ले जाने का ही प्रयास किया। देश को उसकी संस्कृति से काटने का षड्यंत्र रचा गया। उन्होंने इस प्रकार के विमर्श खड़े किए, जिनसे भारत बोध तो कतई नहीं हुआ, बल्कि आम समाज भारत को विस्मृत करने की ओर जरूर बढ़ गया। अब जबकि हम 77वें स्वाधीनता दिवस से भारत के अमृतकाल में प्रवेश कर रहे हैं, तब हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारी आगे की यात्रा में यह ‘स्व’ बोध और अधिक मजबूत होगा। ‘स्व’ की भावभूमि जितनी मजबूत होगी, हम प्रगति पथ पर उतने ही मजबूत कदमों से आगे बढ़ पाएंगे।
दृष्टि ममत्व की, स्पर्श अपनत्व का...
— लोकेन्द्र सिंह (Lokendra Singh) (@lokendra_777) August 15, 2023
माननीय प्रधानमंत्री श्री @narendramodi जी की शक्ति यही निश्छल प्रेम है। आप उन्होंने परिवार के मुखिया की तरह देश को संबोधित किया। #NarendraModi #IndependenceDay pic.twitter.com/ACzNuB9lMR
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