मंगलवार, 12 दिसंबर 2023

मुख्यमंत्रियों के चयन में दिखी भाजपा की विशेषता

मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी की प्रचंड जीत के बाद से खूब कयास लगाए जा रहे थे कि इन राज्यों में मुख्यमंत्री कौन बनेंगे? बहुत हद तक सब एक राय थे कि इन राज्यों में भाजपा नये लोगों को अवसर देगी। राज्यों में दूसरी पंक्ति के नेताओं को आगे लाने का अवसर आ गया है। लेकिन, किन नेताओं को कमान मिल सकती है इसका अंदाज बड़े-बड़े राजनीतिक पंडित भी नहीं लगा सके। छत्तीसगढ़ में विष्णु देव साय, मध्यप्रदेश में डॉ. मोहन यादव और राजस्थान में भजनलाल शर्मा को मुख्यमंत्री बनाकर भाजपा ने विपक्षी राजनीतिक दलों के सामने एक बड़ी लकीर खींच दी है। भाजपा ने बता दिया है कि वह प्रयोग करने में हिचकती नहीं है। पार्टी के साधारण नेता को सामने लेकर आना और उन्हें बड़ी जिम्मेदारी सौंपना, यह भाजपा ही कर सकती है। इसमें किसी को संदेह नहीं कि विष्णु देव साय, डॉ. मोहन यादव एवं भजनलाल शर्मा ने भी नहीं सोचा होगा कि वे मुख्यमंत्री बन सकते हैं।

भाजपा ने अपने मुख्य प्रतिद्वंद्वी राजनीतिक दलों को आईना दिखाया है कि ‘परिवारवाद’ से बाहर निकलकर कैसे नये नेतृत्व गढ़े जाते हैं। उल्लेखनीय है कि एक दिन पूर्व ही बहुजन समाजवादी पार्टी की सुप्रीमो मायावती ने पार्टी का उत्तराधिकार अपने ही भतीजे आकाश आनंद को सौंपा है। अन्य राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय राजनीतिक दलों की स्थिति भी कमोबेश इसी प्रकार की है।

मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह से सीखना चाहिए कि पार्टी के हित के लिए सहर्ष ही कैसे नयी पीढ़ी को उत्तरदायित्व का हस्तांतरण किया जाता है। कहीं कोई नाराजगी नहीं, कोई प्रतिकूल टिप्पणी नहीं। तीनों ही राज्यों में सबकुछ सहजता से सम्पन्न हो गया। यह है भाजपा का अनुशासन। इसके कारण ही भाजपा के लिए कहा जाता है कि यह राजनीतिक दल ‘औरों से अलग’ है। 

यह कहने में कोई संकोच नहीं कि तीनों प्रदेशों में मिली अभूतपूर्व विजय में पूर्व मुख्यमंत्रियों का उल्लेखनीय योगदान रहा है। विशेषकर मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान ने जिस प्रकार का परिश्रम किया, उतनी मेहनत सामान्यत: नेता नहीं करते हैं। उनकी सराहना इसलिए भी करनी चाहिए कि उन्हें भी अंदाजा था कि इस बार भाजपा के जीतने के बाद भी उन्हें मुख्यमंत्री का दायित्व नहीं मिलेगा। केंद्र भविष्य की राजनीति के हिसाब से परिवर्तन का मन बना चुका है। इसके बाद भी शिवराज सिंह चौहान ने अपनी पार्टी को जीत दिलाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया। निश्चित ही भाजपा उनकी प्रतिभा, समर्पण और परिश्रम का उपयोग राष्ट्रीय फलक पर करना चाहेगी। प्रदेश में भी भाजपा के संगठन को और मजबूत बनाने में उनका सहयोग लिया जा सकता है। 

मध्यप्रदेश के नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के सोशल मीडिया अकाउंट से साभार

नवनिर्वाचित मुख्यमंत्रियों के सामने अनेक प्रकार की चुनौतियां हैं। पहली, चुनाव प्रचार के दौरान जारी घोषणा-पत्रों में किए गए वायदों को पूरा करना। दूसरा, भाजपा के प्रति जनता के विश्वास को बनाए रखना और तीसरा, आगामी लोकसभा की तैयारी करना। यह बात ठीक है कि लोकसभा के चुनाव में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मुख्य भूमिका रहती है। यद्धपि भाजपा की प्रदेश ईकाई की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। प्रदेश के नेतृत्व की छवि, संगठन के कामकाज और सांगठनिक जमावट का भी बहुत प्रभाव पड़ता है। अपने-अपने प्रदेश में प्रशासनिक कार्यों को गति देने के साथ ही लोकसभा चुनाव की तैयारी करने के लिए नवनिर्वाचित मुख्यमंत्रियों को दिन-रात एक करना होगा। बहरहाल, भाजपा ने अपने निर्णय से नये नेतृत्व को सामने लाने के साथ ही सभी जातीय वर्गों को भी साधने का काम किया है। तीनों प्रदेशों के नये चेहरों से राष्ट्रीय राजनीति में भी एक संदेश गया है, जिसका प्रभाव अन्य राज्यों में भाजपा के पक्ष में पड़ने की उम्मीद है। 

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