शुक्रवार, 25 अगस्त 2023

अब सूरज की ओर... अंतरिक्ष में भारत के बढ़ते कदम

पिछले कुछ वर्षों में अंतरिक्ष विज्ञान में मिली बड़ी सफलताओं ने भारत के वैज्ञानिकों को नया हौसला दिया है। चंद्रयान–3 की सफलता के बाद से तो अब विश्व भी भारत की ओर आशा से देखने लगा है। भारत की जिस प्रकार की तैयारी है, उसे देखकर कहा जा सकता है कि नया भारत दुनिया को निराश नहीं करेगा। चंद्रमा पर अपना झंडा गाड़ने के बाद अब भारत सूरज की ओर अपने कदम बढ़ाने को तैयार है। भारतीय अंतरिक्ष शोध संस्थान (इसरो) के वैज्ञानिकों ने इसकी पूरी तैयारी कर ली है। इसी सितंबर में सूर्य तक पहुंचने के लिए आदित्य एल-1 की लॉन्चिंग हो सकती है।

अंतरिक्ष की थाह लेने का भारत का यह सिलसिला यहीं रुकने वाला नहीं है। इसके बाद ‘निसार’ और ‘स्पेडेक्स’ जैसे दो और ताकतवर अंतरिक्ष अभियान शुरू किए जायेंगे। भारत अपने बहुप्रतीक्षित दो मानवरहित और एक मानव सहित गगनयान अभियान भी शुरू करेगा। मंगलयान की सफलता की गूंज अभी कम भी नहीं हुई है कि भारत 2025 में अपना दूसरा मंगलयान अभियान भी शुरू करने जा रहा है। अर्थात एक के बाद एक बहुप्रतीक्षित और महत्वाकांक्षी अभियान शुरू करके भारत दुनिया को एक संदेश देगा कि इस सदी में अंतरिक्ष विज्ञान में वह सबसे आगे रहनेवाला है। 

जो लोग भारत के प्रति श्रद्धा व्यक्त करनेवाले और प्राचीनकाल में रही उसकी स्थिति को व्यक्त करनेवाले विशेषण ‘विश्वगुरु भारत’ का मजाक बनाते हैं, उनको भी ये अभियान और उनकी संभावित सफलताएं आईना दिखाने का काम करेंगी। हैरानी है कि भारत के सामर्थ्य पर संदेह करनेवाली ताकतें भारत के बाहर ही नहीं, अपितु भारत के भीतर भी सक्रिय हैं। दुःख होता है यह देखकर कि संकीर्ण मानसिकता के लोगों ने कुछ नहीं तो इसी बात के लिए ही वैज्ञानिकों की आलोचना की कि वे धर्म में विश्वास क्यों दिखाते हैं? अभियान शुरू करने एवं उसकी सफलता की कामना के लिए मंदिर में प्रार्थना क्यों करते हैं?

बहरहाल, चंद्रयान–3 की सफलता के बाद अब भारत जिस महत्त्वाकांक्षी परियोजना पर आगे बढ़ने जा रहा है, उस दिशा में भी कुछ ही देशों ने प्रयत्न किए हैं। सूर्य को जानने के लिए दुनियाभर से अमेरिका, जर्मनी, यूरोपियन अंतरिक्ष एजेंसी ने कुल मिलाकर 22 मिशन भेजे हैं। सबसे ज्यादा मिशन अमेरिकी अंतरिक्ष संस्थान ‘नासा’ ने भेजे हैं। नासा ने पहला सूर्य मिशन पायोनियर-5 साल 1960 में भेजा था। जर्मनी ने अपना पहला सूर्य मिशन 1974 में नासा के साथ मिलकर भेजा था। यूरोपियन स्पेस एजेंसी ने भी अपना पहला मिशन नासा के साथ मिलकर 1994 में भेजा था। अब इस क्षेत्र में भारत भी आगे आ रहा है। 

सूर्य का अध्ययन करने के लिए भारत ने अपने उपग्रह ‘आदित्य एल–1’ के सभी परीक्षण कर लिए हैं। इसके साथ ही इसरो जलवायु परिवर्तन की निगरानी के लिए ‘निसार’ उपग्रह को लॉन्च करने जा रहा है। इस उपग्रह से न केवल भूकंप, चक्रवात, सुनामी और भूकंप की जानकारी प्राप्त की जाएगी अपितु इससे मिलने वाली हाई-रिजोल्यूशन की तस्वीरें हिमालय में ग्लेशियरों की निगरानी में भारत और अमेरिकी सरकारों की सहायता करेंगी। यह चीन और पाकिस्तान से लगी भारत की सीमाओं पर कड़ी नजर रखने में भी सरकार की सहायता कर सकता है। बहरहाल, चंद्रयान–3 की सफलता के बाद से विश्व पटल पर भारत की जो साख बढ़ी है, उसको और बढ़ाने में आगामी अभियान सिद्ध होंगे। 

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