शुक्रवार, 4 अप्रैल 2025

जब पत्रकारिता ने चलाया गो-संरक्षण का सफल आंदोलन

देखें वीडियो- पंडित माखनलाल चतुर्वेदी का जीवन परिचय

पंडित माखनलाल चतुर्वेदी उन विरले स्वतंत्रता सेनानियों में अग्रणी हैं, जिन्होंने अपनी संपूर्ण प्रतिभा को राष्ट्रीयता के जागरण एवं स्वतंत्रता के लिए समर्पित कर दिया। अपने लंबे पत्रकारीय जीवन के माध्यम से माखनलाल जी ने रचना, संघर्ष और आदर्श का जो पाठ पढ़ाया वह आज भी हतप्रभ कर देने वाला है। आज की पत्रकारिता के समक्ष जैसे ही गो-हत्या का प्रश्न आता है, वह हिंदुत्व और सेकुलरिज्म की बहस में उलझ जाता है। इस बहस में मीडिया का बड़ा हिस्सा गाय के विरुद्ध ही खड़ा दिखाई देता है। सेकुलरिज्म की आधी-अधूरी परिभाषाओं ने उसे इतना भ्रमित कर दिया है कि वह गो-संरक्षण जैसे राष्ट्रीय महत्व के विषय को सांप्रदायिक मुद्दा मान बैठा है। कृषि आधारित अर्थव्यवस्था में गो-संरक्षण कितना महत्वपूर्ण है, इस बात को समझना कोई टेड़ी खीर नहीं। हद तो तब हो जाती है जब मीडिया गो-संरक्षण या गो-हत्या को हिंदू-मुस्लिम रंग देने लगता है। गो-संरक्षण शुद्धतौर पर भारतीयता का मूल है। इसलिए ही ‘एक भारतीय आत्मा’ के नाम से विख्यात महान संपादक पंडित माखनलाल चतुर्वेदी गोकशी के विरोध में अंग्रेजों के विरुद्ध अपनी पत्रकारिता के माध्यम से देशव्यापी आंदोलन खड़ा कर देते हैं। गोकशी का प्रकरण जब उनके सामने आया, तब उनके मन में द्वंद्व कतई नहीं था। उनकी दृष्टि स्पष्ट थी- भारत के लिए गो-संरक्षण आवश्यक है। कर्मवीर के माध्यम से उन्होंने खुलकर अंग्रेजों के विरुद्ध गो-संरक्षण की लड़ाई लड़ी और अंत में विजय सुनिश्चित की। 

1920 में मध्यप्रदेश के शहर सागर के समीप रतौना में ब्रिटिश सरकार ने बहुत बड़ा कसाईखाना खोलने का निर्णय लिया। इस कसाईखाने में केवल गोवंश काटा जाना था। प्रतिमाह ढाई लाख गोवंश का कत्ल करने की योजना थी। अंग्रेजों की इस बड़ी परियोजना का संपूर्ण विवरण देता हुआ चार पृष्ठ का विज्ञापन अंग्रेजी समाचार-पत्र हितवाद में प्रकाशित हुआ। परियोजना का आकार कितना बड़ा था, इसको समझने के लिए इतना ही पर्याप्त होगा कि लगभग 100 वर्ष पूर्व कसाईखाने की लागत लगभग 40 लाख रुपये थी। गो-मांस के परिवहन के लिए कसाईखाने तक रेल लाइन डाली गई थी। तालाब खुदवाये गए थे। कत्लखाने का प्रबंधन सेंट्रल प्रोविंसेज टेनिंग एंड ट्रेडिंग कंपनी ने अमेरिकी कंपनी सेंट डेविन पोर्ट को सौंप दिया था, जो डिब्बाबंद बीफ को निर्यात करने के लिए ब्रिटिश सरकार की अनुमति भी ले चुकी थी। गोवंश की हत्या के लिए यह कसाईखाना प्रारंभ हो पाता उससे पहले ही दैवीय योग से महान कवि, स्वतंत्रता सेनानी और प्रख्यात संपादक पंडित माखनलाल चतुर्वेदी ने यात्रा के दौरान यह विज्ञापन पढ़ लिया। वह तत्काल अपनी यात्रा खत्म करके वापस जबलपुर लौटे। वहाँ उन्होंने अपने समाचार पत्र “कर्मवीर” में रतौना कसाईखाने के विरोध में तीखा संपादकीय लिखा और गो-संरक्षण के समर्थन में कसाईखाने के विरुद्ध व्यापक आंदोलन चलाने का आह्वान किया। सुखद तथ्य यह है कि इस कसाईखाने के विरुद्ध जबलपुर के एक और पत्रकार उर्दृ दैनिक समाचार पत्र 'ताज' के संपादक मिस्टर ताजुद्दीन मोर्चा पहले ही खोल चुके थे। उधर, सागर में मुस्लिम नौजवान और पत्रकार अब्दुल गनी ने भी पत्रकारिता एवं सामाजिक आंदोलन के माध्यम से गोकशी के लिए खोले जा रहे इस कसाईखाने का विरोध प्रारंभ कर दिया। मिस्टर ताजुद्दीन और अब्दुल गनी की पत्रकारिता में भी गोहत्या पर वह द्वंद्व नहीं था, जो आज की मीडिया में है। 

दादा माखनलाल चतुर्वेदी की प्रतिष्ठा संपूर्ण देश में थी। इसलिए कसाईखाने के विरुद्ध माखनलाल चतुर्वेदी की कलम से निकले आंदोलन ने जल्द ही राष्ट्रव्यापी रूप ले लिया। देशभर से प्रकाशित होने वाले समाचार पत्रों में रतौना कसाईखाने के विरोध में लिखा जाने लगा। लाहौर से प्रकाशित लाला लाजपत राय के समाचार पत्र वंदेमातरम् ने तो एक के बाद एक अनेक आलेख कसाईखाने के विरोध में प्रकाशित किए। दादा माखनलाल चतुर्वेदी की पत्रकारिता का प्रभाव था कि मध्यभारत में अंग्रेजों की पहली हार हुई। मात्र तीन माह में ही अंग्रेजों को कसाईखाना खोलने का निर्णय वापस लेना पड़ा। आज उस स्थान पर पशु प्रजनन का कार्य संचालित है। जहाँ कभी गो-रक्त बहना था, आज वहाँ बड़े पैमाने पर दुग्ध उत्पादन हो रहा है। कर्मवीर के माध्यम से गो-संरक्षण के प्रति ऐसी जाग्रती आई कि पहले से संचालित कसाईखाने भी स्वत: बंद हो गए। हिंदू-मुस्लिम सौहार्द्र का वातावरण बना सो अलग। दादा माखनलाल चतुर्वेदी की पत्रकारिता का यह प्रसंग किसी भव्य मंदिर के शिखर कलश के दर्शन के समान है। यह प्रसंग पत्रकारिता के मूल्यों, सिद्धांतों और प्राथमिकता को रेखांकित करता है। 

यह ‘पत्रकारिता’ का सौभाग्य था कि उसे दादा माखनलाल जैसा सुयोग्य संपादक प्राप्त हुआ, जिसने भारत की पत्रकारिता में ‘भारतीयता’ के भाव की स्थापना की। माखनलाल चतुर्वेदी भारतीय पत्रकारिता के ऐसे प्रकाश स्तम्भ हैं, जिनसे आज भी भारत की पत्रकारिता आलोकित हो सकती है। 

बुधवार, 2 अप्रैल 2025

अमर संस्कृति का अक्षय वट है संघ

यह सर्वविदित तथ्य है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से गहरा नाता है। संघ की शाखा में प्रधानमंत्री मोदी का संस्कार हुआ है। उनके व्यक्तित्व में सादगी, त्याग, अनुशासन और देशभक्ति की जो अभिव्यक्ति होती है, उसके पीछे संघ का ही संस्कार है। अपने नागपुर प्रवास के दौरान प्रधानमंत्री मोदी संघ के संस्थापक एवं आद्य सरसंघचालक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ‘डॉक्टर साहब’ और द्वितीय सरसंघचालक माधव सदाशिव गोलवलकर ‘श्रीगुरुजी’ के समाधि स्थल ‘स्मृति मंदिर’ पर पहुंचकर श्रद्धासुमन अर्पित करने के साथ ही ‘अभ्यागत पंजीयन’ (विजिटर बुक) में जो विचार दर्ज किया है, वह समाज जीवन में संघ की भूमिका को रेखांकित करता है। प्रधानमंत्री मोदी ने उचित ही लिखा है कि “राष्ट्रीय चेतना के जिस विचार का बीज 100 वर्ष पहले बोया गया था, वह आज एक महान वटवृक्ष के रूप में खड़ा है। सिद्धांत और आदर्श इस वटवृक्ष को ऊंचाई देते हैं, जबकि लाखों-करोड़ों स्वयंसेवक इसकी टहनियों के रूप में कार्य कर रहे हैं। संघ भारत की अमर संस्कृति का आधुनिक अक्षय वट है, जो निरंतर भारतीय संस्कृति और राष्ट्रीय चेतना को ऊर्जा प्रदान कर रहा है”।

रविवार, 23 मार्च 2025

भारत को ‘भारत’ ही लिखें और बोलें

देखें यह वीडियो : भारत या इंडिया - संविधान सभा में किस नाम पर बहस


देश के प्राचीन एवं संविधान सम्मत नाम ‘भारत’ का जिस प्रकार विरोध किया जा रहा है, उससे दो बातें सिद्ध हो जाती हैं। पहली, देश में अभी भी एक वर्ग ऐसा है, जो मानसिक रूप से औपनिवेशिक गुलामी का शिकार है। भारत के ‘स्व’ और उसकी सांस्कृतिक परंपरा को लेकर उसके मन में गौरव की कोई अनुभूति नहीं है। दूसरी, वास्तव में यह समूह ‘भारत विरोधी’ है। भारतीयता का प्रश्न जब भी आता है, तब यह समूह उसके विरुद्ध ही खड़ा मिलता है। एक तरह से यह उसका स्वभाव बन गया है। देश की जनता देखकर आश्चर्यचकित है कि ‘भारत’ का विरोध करने के लिए कांग्रेस सहित उसके समर्थक राजनीतिक दल एवं वैचारिक समूह किस स्तर पर पहुँच गए हैं। ‘भारत’ को ‘भारत’ कहने पर आखिर हाय-तौबा क्यों मची हुई है? भारत विरोधी समूह को एक बार संविधान सभा की बहस पढ़नी चाहिए। निश्चित ही उसे ध्यान आएगा कि तत्कालीन कांग्रेसी नेता अपने देश का नाम ‘भारत’ ही रखना चाहते थे लेकिन अंग्रेजी मानसिकता के दास लोगों के सामने उनकी चली नहीं। आखिरकार ‘भारत’ के साथ ‘इंडिया’ नाम भी चिपक गया।

सोमवार, 17 मार्च 2025

छत्रपति महाराज के व्यक्तित्व, स्वराज्य की संकल्पना व दुर्ग की समझ विकसित करती है पुस्तक 'हिन्दवी स्वराज्य दर्शन'

- सौरभ तामेश्वरी (लेखक पत्रकार एवं स्तम्भकार है।)

पुस्तकों का लेखन जितना सरल हो, उतने ही अधिक लोग उसे पढ़ते हैं। पत्रकार, मीडिया शिक्षक एवं बेहतरीन लेखक लोकेंद्र सिंह ने सरल शब्दों में अधिक संदर्भों के सहारे बड़ी ही तथ्यात्मक पुस्तक ‘हिंदवी स्वराज्य दर्शन’ लिखी है। यह पुस्तक हिन्दवी साम्राज्य के संस्थापक एवं स्वराज्य के उद्घोषक श्री शिव छत्रपति महाराज के व्यक्तित्व, स्वराज्य की संकल्पना एवं दुर्गों को समझने में महत्वपूर्ण दस्तावेज है। पुस्तक ‘हिंदवी स्वराज्य दर्शन’ पाठकों से बड़ी ही सहजता से अपने विषय पर संवाद करती है। यात्रा वृतांत के रूप में लिखी गई इस पुस्तक में हिन्दवी स्वराज के दुर्गों के बारे में विस्तृत रूप से चर्चा की गई है।

हमें ज्ञात है कि हिन्दवी स्वराज्य में दुर्ग केंद्रीय तत्व हैं। जब विदेशी आक्रांताओं के अत्याचारों एवं दासता के अंधकार से देश घिरता जा रहा था, तब हिन्दवी स्वराज के इन्हीं दुर्गों से स्वराज्य का संदेश देनेवाली मशाल जल उठी थी। स्वराज्य की स्थापना हेतु छत्रपति शिवाजी महाराज अपने इन्हीं दुर्गों से गर्जना कर मराठों में आत्मविश्वास और ‘स्व’ से प्रेम जाग्रत करते थे।

पुस्तक ‘हिन्दवी स्वराज्य दर्शन’ में लेखक अपनी यात्रा के अनुभवों को आधार बनाते हुए हमें दुर्गों के बारे महत्वपूर्ण जानकारी दे रहे हैं। पुस्तक में पहले ही बताया गया है कि यह अपने इतिहास को, स्वराज्य के लिए हुए संघर्ष एवं बलिदान को समीप से जानने-समझने की एक अविस्मरणीय यात्रा को समर्पित है। पुस्तक पढ़ने से पहले हिन्दवी स्वराज के दुर्गों के बारे में आपकी जो धारणा होगी, उससे अलग और अधिक जानकारी इस पुस्तक में है। दुर्ग, जिन्हें हम किले, गढ़ और कोट के नाम से भी जानते हैं। पुस्तक में दुर्गों के प्रकारों पर प्रकाश डाला गया है। पुस्तक ‘हिन्दवी स्वराज्य दर्शन’ पढ़ने के बाद दुर्गों के विभिन्न स्वरूपों की समझ विकसित होती है। इस पुस्तक में हिन्दवी स्वराज की प्रतिज्ञाभूमि की स्मृतियां ताजा होंगी। 

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श्रीशिव छत्रपति के राज्याभिषेक से लेकर उनके देवलोकगमन के अवसरों के साक्षी बने ‘श्री दुर्गदुर्गेश्वर- रायगढ़’ के किले की दास्तान सुनने को मिलेगी। मिर्जा राजा जयसिंह और छत्रपति के मध्य हुई ऐतिहासिक और रणनीति पुरंदर संधि की जानकारी प्राप्त होगी। इसमें तानाजी के शौर्य की गाथा कहते सिंहगढ़ की चर्चा होगी तो छत्रपति शंभूराजे की समाधि के महत्व सहित अनेक पहलुओं की बात है।

पुस्तक में छत्रपति शिवाजी महाराज का अपने बच्चों की तरह दुर्गों का ध्यान रखकर उनके प्रति स्नेह दिखता है। साथ ही उनकी चतुराई की समझ का भी ज्ञान होता है, जहां वह दुर्गों की सुरक्षा देखने के लिए प्रतियोगिताएं आयोजित करवाते थे। महाराज ऐसा क्यों करवाते थे, यह आपको पुस्तक पढ़ने के बाद समझ आएगा। आप लेखक लोकेंद्र सिंह की पुस्तक ‘हिन्दवी स्वराज्य दर्शन’ को अवश्य पढ़ें। उनकी यह पुस्तक काफी चर्चाएं बटोर रही है। यह पुस्तक अमेजॉन पर उपलब्ध है, जिसे आप आसानी से घर बैठे ही ऑर्डर कर सकते हैं।

लेखक लोकेंद्र सिंह की बहुचर्चित पुस्तक ‘हिंदवी स्वराज्य दर्शन’ की चर्चा

बुधवार, 5 मार्च 2025

रोहित का मोटापा नहीं, उनके रिकॉर्ड्स देखिए

भारतीय क्रिकेट टीम आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी में बेहतरीन खेल का प्रदर्शन कर रही है, लेकिन कांग्रेस की नेता डॉ. शमा मोहम्मद ने देश और खिलाड़ियों का हौसला बढ़ाने की जगह भारतीय क्रिकेट दल के कप्तान रोहित शर्मा की सेहत को लेकर ओछी टिप्पणी करके विवाद खड़ा कर दिया है। कांग्रेस प्रवक्ता डॉ. शमा मोहम्मद ने भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान रोहित शर्मा के शरीर को लेकर आपत्तिजनक एवं निंदनीय बयान दिया है। यही कारण है कि कांग्रेस ने तत्काल उनके बयान से किनारा किया। डॉ. शमा ने लिखा कि “रोहित शर्मा एक खिलाड़ी के तौर पर मोटे हैं। उन्हें वजन कम करने की जरूरत है। निश्चित रूप से यह भारत का अब तक का सबसे निराशाजनक कप्तान”। कोई भी सभ्य नागरिक किसी के शरीर को लेकर इस प्रकार की टिप्पणी नहीं कर सकता। दरअसल, ऐसा लगता है कि नफरत और नकारात्मकता की आग कांग्रेस के खेमे में इस हद तक फैल गई है कि उसके दायरे में अब केवल भाजपा और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी नहीं है अपितु उसके निशाने पर कोई भी आ सकता है। कांग्रेस की प्रवक्ता की इस टिप्पणी के बाद उनकी जमकर आलोचना हो रही है। डॉ. शमा को भी मजबूरी में यह टिप्पणी हटानी पड़ी है। हालांकि अपनी ओछी एवं संकीर्ण मानसिकता के लिए उन्होंने अब तक सार्वजनिक रूप से माफी नहीं माँगी है। यह बताता है कि उन्होंने अपने नेताओं के दबाव में पोस्ट तो हटा ली लेकिन उनका मौलिक दृष्टिकोण नकारात्मक ही है।

शनिवार, 1 मार्च 2025

अब नहीं चलेगी हिन्दी विरोध की राजनीति

राष्ट्रीय शिक्षा नीति के बहाने तमिलनाडु में फिर से हिन्दी विरोध की राजनीति होते देखना अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन और उनके पुत्र उपमुख्यमंत्री उदयनिधि स्टालिन ने अपनी राजनीतिक जमीन को बचाने के लिए हिन्दी विरोध की राजनीति को हवा देना शुरू कर दिया है। उनको लगता है कि राज्य में अपनी प्रासंगिकता को बचाने और भाजपा के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए यही एक रास्ता है। आश्चर्यजनक बात यह है कि इस संबंध में मुख्यमंत्री स्टालिन झूठ का सहारा लेने में भी संकोच नहीं कर रहे हैं। जब भारत के दक्षिणी हिस्से से उन्हें हिन्दी विरोध में कोई खास समर्थन मिलता नहीं दिखा तो उन्होंने अपनी कुटिल मानसिकता का प्रदर्शन करते हुए बिहार, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, हिमाचल सहित अन्य राज्यों में भाषायी संघर्ष का विस्तार करने की दृष्टि से बयानबाजी प्रारंभ कर दी है। एक संवैधानिक पद पर बैठा व्यक्ति क्षुद्र राजनीति करने के लिए ऐसे मूखर्तापूर्ण बयान दे रहा है कि उससे उसकी ही जगहंसाई हो रही है।

शनिवार, 22 फ़रवरी 2025

छत्रपति शिवाजी महाराज की सेना के हथियार और उनकी विशेषताएं

रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भरता का मंत्र देनेवाले छत्रपति शिवाजी महाराज

सिंहगढ़ किले पर तानाजी मालुसरे और अन्य मावलों की अलग-अलग हथियारों के साथ प्रतिमाएं बनी हुई हैं।

एक उन्नत राष्ट्र के लिए रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भर होना आवश्यक है। शासन में ‘स्व बोध’ की स्थापना करनेवाले छत्रपति शिवाजी महाराज ने रक्षा उत्पादन में भी स्वदेशी के महत्व को स्थापित किया। उन्होंने पैदल सैनिकों के हथियारों से लेकर नौसेना के लिए लड़ाकू जहाज तक स्वदेशी तकनीक पर तैयार कराए थे। सैन्य उपकरणों एवं हथियारों के निर्माण में छत्रपति की दृष्टि अत्यंत सूक्ष्म थी, वे देश-काल-परिस्थिति को ध्यान में रखकर हथियारों के डिजाइन को अंतिम रूप देते थे। छत्रपति ने विदेशी नौकाओं एवं जहाजों की होड़ करके वैसे ही बड़े जहाज नहीं बनवाए बल्कि उन्होंने अपने समुद्री तटों पर तेजी से चलनेवाली छोटी नौकाओं पर जोर दिया। इन्हीं छोटी लड़ाकू नौकाओं ने अंग्रेजों, पुर्तगालियों और मुगलों के हथियारों से सुसज्जित सैन्य जहाजों को हिन्द महासागर के किनारे पर डुबो दिया था। हिन्दवी स्वराज्य की नौसेना के बेड़े में बड़े आकार के जहाज भी शामिल थे।

शनिवार, 15 फ़रवरी 2025

पाश्चात्य मीडिया के भारत विरोध नैरेटिव को उजागर करने वाले पत्रकार

 भारतीय पक्ष का पहरुआ पत्रकार : उमेश उपाध्याय

छवि निर्माण में मीडिया की प्रभावी भूमिका होती है। इसलिए मीडिया का कार्य बहुत जिम्मेदारी और जवाबदेही का है। मीडिया से अपेक्षा की जाती है कि वह पत्रकारिता के सिद्धांतों एवं मूल्यों का पालन करते हुए समाचारों एवं अन्य सामग्री का प्रसार करे। समाचारों के निर्माण, प्रकाशन एवं प्रसारण में निष्पक्षता, संतुलन एवं सत्यता जैसी बुनियादी बातों का पालन करे। परंतु ध्यान आता है कि मीडिया का एक हिस्सा अपने निहित एजेंडा को लेकर कार्य करता है। भारत में ही नहीं अपितु विदेश में भी मीडिया का एक वर्ग ऐसा है, जो भारत के प्रति दुराग्रहों से भरा हुआ है। विदेशी मीडिया में भारत विरोधी नैरेटिव पर वरिष्ठ पत्रकार उमेश उपाध्याय बारीक नजर रखते थे। उन्होंने अपने विश्लेषणों से सिद्ध किया कि भारत के संदर्भ में रिपोर्टिंग करते समय विदेशी मीडिया की कलम तंगदिली से चलती है। भारत के ऐसे पत्रकारों को विदेशी मीडिया खूब स्थान देती है, जो भारत की छवि को बिगाड़ने के लिए वास्तविक तथ्यों की अनदेखी करके लेखन करते हैं। इसी वर्ष (2024) उनकी पुस्तक ‘वेस्टर्न मीडिया नैरेटिव ऑन इंडिया: फ्रॉम गांधी टू मोदी’ प्रकाशित होकर आई थी, जिसने पत्रकारिता एवं अकादमिक जगत में सबका ध्यान आकर्षित किया। अगस्त, 2024 में जब भोपाल में उनसे भेंट हुई, तब मैंने आग्रह किया कि यह पुस्तक हिन्दी पाठकों के लिए भी अनुवादित होकर आनी चाहिए। हिन्दी दुनिया के पाठकों को भी विदेशी मीडिया की संकीर्ण मानसिकता के बारे में जानकारी होनी चाहिए। मीडिया को परिभाषित करते हुए पाश्चात्य विद्वानों ने इसे ‘वॉचडॉग’ कहा है। उमेश जी के विश्लेषण पढ़ने के बाद ध्यान आता है कि इस ‘वॉचडॉग’ की निगरानी भी आवश्यक है। अन्यथा यह किसी के प्रभाव में बहककर निर्दोष को अपना शिकार बना सकता है। पुस्तक लिखने से पूर्व भी उमेश जी भारत के संदर्भ में पाश्चात्य मीडिया के पक्षपाती दृष्टिकोण को अपने लेखों एवं व्याख्यानों के माध्यम से लगातार उजागर करते रहे हैं।

मंगलवार, 11 फ़रवरी 2025

परीक्षा में फेल-पास से बड़ा है जीवन

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक जिम्मेदार अभिभावक की भांति देश के भविष्य के साथ संवाद का एक क्रम बनाया है- परीक्षा पे पर्चा। उनके इस प्रयास का अनुकरण सभी परिवारों में होना चाहिए। परीक्षा के तनावपूर्ण वातावरण को समाप्त करने के लिए अभिभावक अपने बच्चों से इसी प्रकार संवाद करें और उनके भीतर आत्मविश्वास एवं सकारात्मकता जगाएं। अधिकतम अंक पाने की दौड़ में हमने परीक्षा में सफलता को जीवन से बड़ा बना दिया, जिसके कारण कई होनहार विद्यार्थी किन्हीं कारणों से कम अंक पाने पर अवसाद में चले जाते हैं या फिर इसे अपनी विफलता मानकर जीवन को ही समाप्त करने का गलत निर्णय कर बैठते हैं। परीक्षा में बेहतर प्रदर्शन करने के लिए विद्यार्थी के मन में भाव जागृति करना अपनी जगह है, लेकिन उसे ही सफलता के रूप में स्थापित कर देना ठीक बात नहीं है।

शुक्रवार, 7 फ़रवरी 2025

अवैध अप्रवासियों की वापसी

अमेरिका से अवैध भारतीय प्रवासियों को वापस भारत भेजे जाने पर विपक्षी दल जिस प्रकार से राजनीति करने की कोशिश कर रहे हैं, उन्हें यह स्पष्ट करना चाहिए कि नियम-कायदों एवं संविधान में उनका विश्वास है या नहीं? संविधान केवल चुनावी सभाओं में लहराने के लिए नहीं होता है, अपितु जीवन में उसका पालन करना होता है। किसी भी देश में रहने के लिए वहाँ के नियम-कानूनों का पालन करना चाहिए। अमेरिका से भारत के उन नागरिकों को वापस भेजा जा रहा है जो वहाँ अवैध रूप से रह रहे थे। अवैध अप्रवासियों के कारण किस प्रकार की समस्याएं उत्पन्न होती हैं, उसकी अनुभूति भारत को भली प्रकार से है। अवैध बांग्लादेशी और रोहिंग्याओं के कारण भारत के कई हिस्सों में जनसांख्यकीय असंतुलन के साथ ही सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक खतरे पैदा हो गए हैं। सामाजिक संगठन और आम नागरिक कब से भारत सरकार से माँग कर रहे हैं कि अवैध बांग्लादेशियों एवं रोहिंग्या मुसलमानों को पहचान करके उन्हें वापस भेजा जाए।

गुरुवार, 6 फ़रवरी 2025

दिल्ली में रोहिंग्या बने सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक खतरे का कारण

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की शोध रिपोर्ट ‘दिल्ली में अवैध अप्रवासी : सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक परिणामों का विश्लेषण’ को गंभीरता से देखने की आवश्यकता है। यह रिपोर्ट जनसांख्यकीय असंतुलन के भयावह परिणामों की ओर से संकेत करती है। अवैध अप्रवासियों से न केवल सामाजिक और आर्थिक चुनौतियां उत्पन्न होती हैं, अपितु लोकतांत्रिक व्यवस्था को भी खतरा उत्पन्न हो जाता है। जेएनयू की रिपोर्ट बताती है कि बांग्लादेश और म्यांमार से रोहिंग्या सहित अन्य मुस्लिम आबादी बड़ी संख्या में घुसपैठ करके दिल्ली के विभिन्न क्षेत्रों में बस गई है। इसके कारण दिल्ली की डेमोग्राफी में बदलाव आया है, जो दिल्ली आज से 10-15 साल पहले हुआ करती थी, आज नहीं है। अवैध अप्रवासियों के कारण अर्थव्यवस्था बर्बाद हो रही है। संसाधनों पर भी दबाव बढ़ा है। स्वास्थ्य और शिक्षा व्यवस्था पर भी असर पड़ा है। जो मजदूर वर्ग कल तक हरियाणा, पूर्वांचल, ओडिशा, केरल के लोग होते थे, वे अब रोहिंग्या हैं। इन अवैध घुसपैठियों के कारण भारतीय नागरिकों से मजदूरी सहित अन्य काम छिन गया है।

शनिवार, 25 जनवरी 2025

हिन्दवी स्वराज्य की राजधानी ‘रायगढ़’

 राष्ट्रीय पर्यटन दिवस पर विशेष

श्री दुर्गदुर्गेश्वर रायगड़ में छत्रपति शिवाजी महाराज की प्रतिमा के सामने शौर्य प्रदर्शन करना सूर्या फाउंडेशन के युवाओं का दल

श्री दुर्गदुर्गेश्वर अर्थात् हिन्दवी स्वराज्य की राजधानी- रायगढ़। सह्याद्रि की पर्वत शृंखलाओं में प्राकृतिक रूप से सुरक्षित रायगढ़ हिन्दवी स्वराज्य का बेजोड़ किला है। किला अपने उत्तर और पूर्व से काल नदी से घिरा हुआ है। सह्याद्रि की लहरदार घाटियों एवं घने जंगल में छिपा यह किला दूर से नजर नहीं आता है। यह भी रायगढ़ की विशेषता है। यह किला दुर्जय है। महाराज के जीवित रहते रायगढ़ न केवल प्रतिष्ठा अर्जित कर रहा था अपितु अजेय भी रहा। सब प्रकार से अत्यंत सुरक्षित होने के कारण यूरोप के यात्रियों ने रायगढ़ को ‘पूर्व का जिब्राल्टर’ भी कहा है। छत्रपति शिवाजी महाराज सन् 1670 में हिन्दवी स्वराज्य की राजधानी को राजगढ़ से रायगढ़ लेकर आए। राजसी गौरव एवं भव्यता के साथ 1674 में शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक समारोह रायगढ़ पर सम्पन्न हुआ। राज्याभिषेक समारोह में उपस्थित अंग्रेज प्रतिनिधि ऑक्झिंडन ने रायगढ़ राजधानी की सामरिक सुरक्षा और दुर्जेयत्व की प्रशंसा में अपनी दैनंदिनी में लिखा है-“यह किला केवल विश्वासघात से ही जीता जा सकता है, अन्यथा यह दुर्जेय है”। उसका यह कथन लगभग 15 वर्षों के पश्चात् सन् 1689 में प्रमाणित हुआ जब औरंगजेब की सेना के घेरे के समय दुर्गपति सूर्याजी पिसाल द्वारा विश्वासघात करने के कारण किले पर मुस्लिम सल्तनत का अधिकार हुआ। उस समय रायगढ़ में हिन्दवी स्वराज्य के दूसरे छत्रपति शंभूराजे का शासन था।

‘संघ और तिरंगे’ पर दुष्प्रचार का उत्तर है- राष्ट्रध्वज और आरएसएस

- कृष्णमुरारी त्रिपाठी ‘अटल’ 

माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय भोपाल में सहायक प्राध्यापक एवं जानेमाने ब्लॉगर लोकेन्द्र सिंह की नवीन कृति ‘राष्ट्रध्वज और आरएसएस’ अर्चना प्रकाशन भोपाल से प्रकाशित है। राष्ट्रीय विचारों पर तथ्यात्मक लेखन के चलते लेखक की अपनी सशक्त पहचान है। इसके लिए वे साहित्य अकादमी, मध्यप्रदेश सहित अनेक संस्थाओं से पुरस्कृत हैं। उनकी अब तक 14 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं, जिनमें से कुछ पुस्तकों में उन्होंने सह-लेखक और संपादक के तौर पर भी भूमिका निभाई है। इनमें से उनकी चर्चित कृति ‘संघ दर्शन: अपने मन की अनुभूति’ रही है। लोकेन्द्र सिंह की सद्य: प्रकाशित कृति ‘हिन्दवी स्वराज्य दर्शन’ भी शिवाजी महाराज से जुड़े यात्रा संस्मरणों पर आधारित इसी कड़ी की पुस्तक है।

देखिए- RashtraDwaj Aur RSS | Book Introduction by Sourabh Tameshwari | In the presence of Major Gaurav Arya


शनिवार, 11 जनवरी 2025

बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर पर आरएसएस के प्रचारक के विचार

पुस्तक चर्चा : बाबा साहब के विविध पहलुओं की अभिव्यक्ति - राष्ट्र-ऋषि बाबासाहब डॉ. अंबेडकर

बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर के संबंध में सबने अपने-अपने दृष्टिकोण बना रखे हैं। उनके विचारों एवं व्यक्तित्व को समग्रता से देखने के प्रयास कम ही हुए हैं। बाबा साहब को लेकर राजनीतिक क्षेत्र से उठी एक बहस जब देश में चल रही है, तब एक पुस्तक ‘राष्ट्र-ऋषि बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर’ पढ़ने में आई। अर्चना प्रकाशन, भोपाल से प्रकाशित यह पुस्तक केवल 80 पृष्ठ की है लेकिन लेखक निखिलेश महेश्वरी जी ने ‘गागर में सागर’ भरने का प्रयत्न बड़ी कुशलता से किया है। बाबा साहब से जोड़कर अकसर उठनेवाली बहसों के लगभग सभी मुद्दों को छूने और उन पर एक सम्यक दृष्टिकोण पाठकों के सामने रखने का कार्य लेखक ने किया है। राजनीतिक और सामाजिक चेतना जगाकर जिस एकात्मता के लिए बाबा साहब ने प्रयास किए, उसी एकात्मता के लिए साहित्य के धर्म का निर्वहन निखिलेश जी ने किया है। लेखक का मानना है कि बाबा साहब आधुनिक भारत के ऋषि हैं, जिन्होंने समाज जीवन का आदर्श प्रस्तुत किया। उल्लेखनीय है कि निखिलेश महेश्वरी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक हैं। आप इस समय देश के सबसे बड़े शैक्षिक संगठन विद्या भारती में मध्यभारत प्रांत के संगठन मंत्री हैं। यह पुस्तक पढ़कर पाठक जान सकते हैं कि बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर के प्रति संघ में अपार श्रद्धा है। यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि जिस सामाजिक समता का स्वप्न बाबा साहब ने देखा था, वह संघ की शाखा से लेकर समाज में साकार होता दिखायी देता है। इसकी प्रत्यक्ष अनुभूति बाबा साहब से लेकर महात्मा गांधी तक कर चुके हैं।

देखिए : पत्रकारिता में बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर का योगदान

बुधवार, 8 जनवरी 2025

घर-घर दीप जलाएं… आओ, एक और दीपावली मनाएं

प्राण-प्रतिष्ठा द्वादशी महोत्सव : श्रीराम जन्मभूमि मंदिर में श्रीरामलला की प्राण-प्रतिष्ठा की पहली वर्षगांठ


एक वर्ष पहले पौष शुक्ल द्वादशी (22 जनवरी, 2024) को भारतवासियों ने त्रेतायुग के बाद एक बार फिर अपने आराध्य भगवान श्रीराम के स्वागत में घर-घर दीप जलाए थे। श्रीराम जन्मभूमि अयोध्या में बने भव्य मंदिर में जब श्रीरामलला की प्राण प्रतिष्ठा हुई, तब प्रत्येक रामभक्त की आँखों से नेह की धारा बह रही थी। आखिर रामभक्त भाव-विभोर हों भी क्यों नहीं, लगभग 500 वर्षों की प्रतीक्षा एवं संघर्ष के बाद जन्मभूमि में उल्लासपूर्वक श्रीरामलला की प्राण-प्रतिष्ठा हुई। यह दिन भारत के लिए अविस्मरणीय है। प्रत्येक भारतवासी का मन था कि श्रीरामलला की प्राण-प्रतिष्ठा को उत्सव की परंपरा में शामिल कर दिया जाए। जैसे रावण का वध करके प्रभु श्रीराम के अयोध्या लौटने की घटना को हमने दीपोत्सव के रूप में त्रेतायुग से आज तक अपनी स्मृति में संजोकर रखा है, उसी तरह श्रीरामलला की प्राण-प्रतिष्ठा के उत्सव को भी ‘दीपावली’ की भाँति ही मनाया जाए। पौष शुक्ल द्वादशी को प्रत्येक हिन्दू घर रोशन हो और देहरी-मुडेर पर दीपों की मालिका जगमगाए।

मंगलवार, 7 जनवरी 2025

पत्रकार सुरक्षित होंगे, तभी बचेगा लोकतंत्र

छत्तीसगढ़ के पत्रकार मुकेश चंद्राकार के हत्यारों को मिले कड़ी सजा

लोकतंत्र की मजबूती के लिए पत्रकारिता एवं पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करना अत्यंत आवश्यक है। कहना होगा कि किसी भी देश में पत्रकार सुरक्षित नहीं है। भारत में भी पत्रकारों पर हमले होते रहते हैं। यहाँ तक कि उनकी हत्या कर दी जाती है। हालिया घटना छतीसगढ़ के पत्रकार मुकेश चंद्राकर से जुड़ी हुई है। हत्या के बाद उनके शव को सेप्टिक टैंक में डालकर ऊपर से प्लास्टर कर दिया गया। मुकेश की हत्या के पीछे एक रिपोर्ट को प्रमुख कारण बताया जा रहा है। यह रिपोर्ट घटिया सड़क निर्माण की पोल खोलने से संबंधित है। पत्रकार मुकेश की रिपोर्ट के अनुसार, ठेकेदार सुरेश चंद्राकार ने मिरतुर से गंगालूर के बीच सड़क बनाने का ठेका लिया था, लेकिन सड़क अधूरी बनने के बाद भी प्रशासन ने 90 प्रतिशत से अधिक भुगतान कर दिया। इस मामले में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार किया गया है। इसी मामले को स्वतंत्र एवं निर्भीक पत्रकार मुकेश चंद्रकार ने उजागर किया था। उनकी खोजी रिपोर्ट के सामने आने के बाद सड़क निर्माण की परियोजना पर छत्तीसगढ़ सरकार ने जाँच बैठा दी थी। पूरी आशंका है कि इसी कारण ठेकेदारों ने मुकेश को अपने निशाने पर ले लिया। मामले में मुख्य आरोपी सहित चार लोग पकड़े गए हैं।

सोमवार, 6 जनवरी 2025

आक्रांता और लुटेरा ही था गजनवी

पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने महमूद गजनवी को बताया लुटेरा

पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने महमूद गजनवी को आक्रमणकारी और डाकू-लुटेरा बताकर खलबली मचा दी है। आसिफ ने समाचार चैनल को दिए साक्षात्कार में कहा है कि “महमूद गजनवी आता था और लूटमार करके वापस चला जाता था। हालांकि, हमारे यहाँ उसे हीरो के तौर पर चित्रित किया जाता है, लेकिन मैं उसे हीरो नहीं मानता”। उनके बयान को पाकिस्तान में ‘एंटी पाकिस्तान’ कहा जा रहा है। पाकिस्तान के दूसरे बड़े नेता रक्षा मंत्री के बयान को ‘भारतीय सोच’ बता रहे हैं। उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान महमूद गजनवी को अपना आदर्श मानता है। यहाँ तक कि पाकिस्तान ने अपनी मिसाइलों को गजनवी का नाम दिया है। हालांकि, रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ का कहना बिल्कुल ठीक है क्योंकि जिस समय महमूद गजनवी ने भारत पर आक्रमण किया और यहाँ लूट-मार की थी, तब पाकिस्तान नाम का अस्तित्व ही नहीं था। भले ही पाकिस्तान इतिहास को झुठलाए लेकिन यह सत्य है कि भारत और पाकिस्तान का साझा इतिहास है। वह इतिहास बताता है कि पाकिस्तान के लिए भी महमूद गजनवी एक लुटेरा ही था।

रविवार, 5 जनवरी 2025

अखिल विश्व के प्रेरणास्रोत राम

देखें यह वीडियो- इंडोनेशिया से लेकर कंबोडिया तक और थाईलैंड से तुर्किस्तान तक ‘सिय राम मय सब जग जानी’


मानव देह में भगवान श्रीराम ने जिन शाश्वत जीवन मूल्यों की स्थापना की, वे सार्वभौमिक, सर्वकालिक एवं सार्वदेशिक हैं। इसलिए राम केवल भारत में ही नहीं अपितु दुनियाभर में आराध्य हैं। जीवन की अलग-अलग भूमिकाओं में मनुष्य का आचरण कैसा होना चाहिए, इसका आदर्श राम ने प्रस्तुत किया है। प्रो. फादर कामिल बुल्के ने लिखा है- “मेरे एक मित्र ने जावा के किसी गाँव में एक मुस्लिम शिक्षक को रामायण पढ़ते देखकर पूछा था कि आप रामायण क्यों पढ़ते है? उत्तर मिला कि मैं और अच्छा मनुष्य बनने के लिए रामायण पढ़ता हूँ”। इस प्रसंग से ही स्पष्ट हो जाता है कि दुनिया में राम के नाम की महिमा क्यों है? क्यों दुनियाभर में उन्हें पढ़ा और पूजा जाता है। राम का जीवन मर्यादा सिखाता है। सहिष्णुता एवं सह-अस्तित्व का भाव जगाता है। राम का संदेश मनुष्य को देवत्व की ओर लेकर जाता है। संपूर्ण विश्व में रामराज्य की अवधारणा साकार हो, मूल्य आधारित समाज व्यवस्था निर्मित हो, इसलिए सब अपने यहाँ राम का चरित्र लेकर गए हैं। भारत के स्वाभिमान श्रीराम के स्वरूप एवं संदेश का प्रसार नेपाल, श्रीलंका, थाईलैंड, म्यांमार से लेकर लाओस तक की संस्कृति में स्पष्ट दिखायी पड़ता है। गैर-हिन्दू समुदाय भी उन्हें उतनी ही श्रद्धाभाव से पूजते हैं, जितना कि हिन्दू। इंडोनेशिया दुनिया का सबसे अधिक मुस्लिम आबादी का देश है। लेकिन भारत की भाँति यहाँ भी कण-कण में राम व्याप्त हैं। दुनिया की सबसे बड़ी रामायण का मंचन इंडोनेशिया में किया जाता है। इंडोनेशिया के मुस्लिम भगवान राम को अपना नायक, आदर्श और प्रेरणास्रोत मानते हैं।

शनिवार, 4 जनवरी 2025

धर्म की सीख

धार्मिक कहानियां सिखाती हैं जीने की कला


AI द्वारा निर्मित प्रतीकात्मक चित्र

सार्थक और देवकी का परिवार बहुत धार्मिक है। उनके माता-पिता अकसर श्री रामचरितमानस और श्रीमद्भगवत गीता का पाठ करते हैं। एक दिन सार्थक और देवकी अपनी माँ के पास बैठे थे। उनके मन में जिज्ञासा उठी कि मम्मी और पापा धार्मिक किताबें क्यों पढ़ते रहते हैं। एक ही प्रकार की पुस्तक को बार-बार पढ़ने से क्या होता है? दरअसल, सार्थक और देवकी को धर्म-अध्यात्म और भारतीय संस्कृति की उतनी अधिक जानकारी नहीं थी क्योंकि वे जिस स्कूल में पढ़ते हैं, वहाँ के पाठ्यक्रम में भी भारत की कहानियां नहीं पढ़ाई जाती हैं।

पंचिंग बैग नहीं है हिन्दू धर्म

केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने दिए सनातन विरोध बयान

तथाकथित सेकुलर राजनीतिक दल और नेताओं ने हिन्दू धर्म को पंचिंग बैग समझ लिया है। अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने और एक खास वोटबैंक को खुश करने के लिए अकसर तथाकथित सेकुलर नेता हिन्दू धर्म को लक्षित करके विवादित बयानबाजी करते रहते हैं। कोई सनातन धर्म की तुलना डेंगू से करता है तो कभी सनातन के समूल नाश पर सेमिनार कराए जाते हैं। कभी संसद में जोश में आकर कह दिया जाता है कि “जो लोग अपने आपको हिन्दू कहते हैं, वो चौबीस घंटे हिंसा, हिंसा, हिंसा; नफरत, नफरत, नफरत; असत्य, असत्य, असत्य कहते हैं”। अब केरल के मुख्यमंत्री एवं कम्युनिस्ट नेता पिनराई विजयन ने सनातन धर्म को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणी करके हिन्दू विरोध की मानसिकता को प्रकट किया है। उनकी टिप्पणी बताती हैं कि सनातन धर्म के संबंध में उनकी समझ बहुत उथली है और उन्होंने जानबूझकर हिन्दू धर्म को निशाना बनाने का प्रयास किया है। यही कारण है कि कि मुख्यमंत्री विजयन की टिप्पणियों का विरोध न केवल भारतीय जनता पार्टी कर रही है अपितु कांग्रेस ने भी विरोध किया है। हालांकि, विश्व हिन्दू परिषद ने विपक्षी दल में शामिल सभी राजनीतिक दलों की सोच पर सवाल उठाए हैं। क्योंकि कांग्रेस के नेताओं की ओर से जो विरोध दर्ज कराया जा रहा है, वह गोल-मोल है।

शुक्रवार, 3 जनवरी 2025

एकात्मता का दर्शन है- महाकुंभ

महाकुंभ का संदेश : एक हो पूरा देश


भारत की संस्कृति का आधार एकात्मता का स्वर है। भारतीय समाज में जो ऊंच-नीच की बीमारी आई, वह विशेष कालखंड की देन है। सत्य तो यह है कि भारत की संस्कृति में ऊंच-नीच के लिए कोई स्थान नहीं। यह दुनिया की इकलौती संस्कृति है जो कहती है कि हम सबमें ईश्वर का अंश है। यानी जो पिंड तुम्हारा है, वही पिंड मेरा है। भारत का दर्शन न तो जाति के आधार पर और न ही रंग-रूप एवं वेष-भूषा के आधार पर लोगों में विभेद करता है। भारत का दर्शन तो सबको अपना मार्ग चुनने की स्वतंत्रता देता है। यह बात हिन्दुत्व की आलोचना करनेवालों को समझनी चाहिए। हिन्दुत्व और भारतीयता के मूल विचार को समझना है तो उसका एक अवसर महाकुंभ के रूप में आ रहा है। कुंभ ऐसा मेला है, जहाँ भारत के कोने-कोने से लोग आते हैं। सभी जाति-बिरादरी, प्रांत, भाषा और संप्रदाय के लोग कुंभ में शामिल होते हैं, बिना किसी भेदभाव के। सब मिलकर संगम में डुबकी लगाते हैं।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी अपने लोकप्रिय रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ में कहा है कि “महाकुंभ की विशेषता केवल इसकी विशालता में ही नहीं है। कुंभ की विशेषता इसकी विविधता में भी है। इस आयोजन में करोड़ों लोग एक साथ एकत्रित होते हैं। लाखों संत, हजारों परम्पराएँ, सैकड़ों संप्रदाय, अनेक अखाड़े, हर कोई इस आयोजन का हिस्सा बनता है। कहीं कोई भेदभाव नहीं दिखता है, कोई बड़ा नहीं होता है, कोई छोटा नहीं होता है। अनेकता में एकता का ऐसा दृश्य विश्व में कहीं और देखने को नहीं मिलेगा”।