शुक्रवार, 22 अगस्त 2025

ऐसा शिखालेख आपने नहीं देखा हा

माखनलालजी का समाचारपत्र ‘कर्मवीर’ बना अनूठा शिलालेख

माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के परिसर में स्थापित पंडित माखनलाल चतुर्वेदी की प्रतिमा और उस पर लगा अनूठा शिलालेख

स्मारक, भवन, परिसर इत्यादि के भूमिपूजन या उद्घाटन प्रसंग पर पत्थर लगाने (शिलालेख) की परंपरा का निर्वहन किया जाता है। यह इस बात का दस्तावेज होता है कि वास्तु का भूमिपूजन/ उद्घाटन / लोकार्पण कब और किसके द्वारा सम्पन्न किया गया। ये शिलालेख एक प्रकार से इतिहास और महत्वपूर्ण घटनाओं के विवरण को समझने में सहायता करते हैं। इन शिलालेखों का एक तयशुदा प्रारूप है, हम सबने देखे ही हैं। किंतु, माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल के नवीन परिसर में स्वतंत्रतासेनानी एवं प्रखर संपादक पंडित माखनलाल चतुर्वेदी के प्रतिमा अनावरण प्रसंग पर लगाया गया शिलालेख अनूठा है और अपने आप में अद्भुत है। मुझे विश्वास है कि ऐसा शिलालेख आपने पहले नहीं देखा होगा। माखनलालजी की प्रतिमा के ‘पेडस्टल’ पर आपको समाचारपत्र का प्रथम पृष्ठ चस्पा दिखायी देगा। दरअसल, समाचारपत्र का यह ‘फ्रंट पेज’ ही दादा माखनलाल चतुर्वेदी की इस प्रतिमा का ‘शिलालेख’ है। यह रचनात्मक और अभिनव शिलालेख अपने सृजनात्मक लेखन के लिए पहचाने जानेवाले विश्वविद्यालय के कुलगुरु श्री विजय मनोहर तिवारी की सुंदर कल्पना है। अगर आप माखनलालजी की प्रतिमा के समीप आ रहे हैं, तो यह शिलालेख आपको विश्वविद्यालय की 35 वर्ष की यात्रा, उसकी उपलब्धियों और भविष्य के स्वप्नों से भेंट करा देगा।

प्रतिमा दादा माखनलाल चतुर्वेदी की है, इसलिए उनके ही समाचारपत्र ‘कर्मवीर’ को शिलालेख बनाया गया है। हम सब जानते हैं कि माखनलालजी और कर्मवीर एक-दूसरे के पर्याय हैं। इस शिलालेख पर क्रांतिकारी समाचार पत्र ‘कर्मवीर’ का पंजीयन क्रमांक- एन.338 भी अंकित है। दादा माखनलाल चतुर्वेदी जब कर्मवीर के प्रकाशन के लिए अनुमति पत्र प्राप्त करने ब्रिटिश शासन के अधिकारी के पास गए थे, उसका रोचक किस्सा है। उस किस्से को आप पढ़िए। वह किस्सा बताता है कि दादा माखनलाल चतुर्वेदी और कर्मवीर की पत्रकारिता के तेवर क्या रहे होंगे। इस शिलालेख पर वह सब विवरण बहुत ही रोचक अंदाज में दर्ज है, जो सामान्य शिलालेखों पर दर्ज रहता है। प्रतिमा का अनावरण कब हुआ? इस प्रश्न का उत्तर आपको समाचारपत्र की ‘फोलिया लाइन’ में मिलेगा, जिसमें अंकित है- “बिशनखेड़ी, भोपाल | भाद्रपद, कृष्ण पक्ष, द्वादशी सम्वत 2082 | बुधवार, 20 अगस्त, 2025”। आठ कॉलम में फैली ‘टॉप बॉक्स न्यूज’ में आपको पता चलेगा कि प्रतिमा का अनावरण विश्वविद्यालय की महापरिषद के माननीय अध्यक्ष एवं मध्यप्रदेश के यशस्वी मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव, प्रसिद्ध कवि डॉ. कुमार विश्वास और कुलगुरु श्री विजय मनोहर तिवारी के द्वारा किया गया। इनके अतिरिक्त स्थानीय विधायक श्री भगवानदास सबनानी, आयुक्त जनसंपर्क डॉ. सुदाम खाड़े, इंदौर लिटरेचर फेस्टीवल के सूत्रधार श्री प्रवीण शर्मा, शब्दवेत्ता श्री अजीत वडनेरकर, वानिकी विशेषज्ञ डॉ. सुदेश वाघमारे सहित अन्य गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे। यह लीड न्यूज स्वयं कुलगुरु श्री विजय मनोहर तिवारी ने ही लिखी है। 

पंडित माखनलाल चतुर्वेदी की प्रतिमा के लोकार्पण संबंधी जानकारी देता अनूठा शिलालेख

शिलालेख पर प्रतिमा की विशेषताएं भी दर्ज है। जैसे- बहुधातु से निर्मित दादा माखनलाल चतुर्वेदी की यह प्रतिमा 12 फीट ऊंची और 11 सौ किलोग्राम वजनी है। मूर्ति का निर्माण ग्वालियर स्थित प्रभात मूर्ति कला केंद्र में हुआ है। यहाँ प्रख्यात मूर्तिकार प्रभात राय की देखरेख में 10 से अधिक लोगों के दल ने तैयार किया है। प्रभात मूर्ति कला केंद्र में जाकर दादा की मूर्ति का अवलोकन करने का अवसर मुझे भी मिला। प्रभात राय के निधन के बाद इस परियोजना को उनके सुपुत्र अनुज राय ने संभाला। 

इतना ही नहीं, यह शिलालेख विश्वविद्यालय की 35 वर्ष की गौरवशाली परंपरा से भी परिचय कराता है। साथ ही, पंडित माखनलाल चतुर्वेदी के उस ‘विचार बीज’ का स्मरण भी कराता है, जो विश्वविद्यालय की नींव में है। दक्ष पत्रकारों के निर्माण के लिए एक विद्यापीठ की मूल कल्पना 1927 में भरतपुर में आयोजित संपादक सम्मेलन में माखनलालजी ने ही की थी, जो 1990 में जाकर माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के रूप में साकार हुई। भोपाल में त्रिलंगा स्थित छोटे-से भवन से शुरू हुई यह यात्रा महाराणा प्रताप नगर में स्थित विकास भवन से होकर दो वर्ष पूर्व ही बिशनखेड़ी स्थित 50 एकड़ के परिसर में पहुँच गई है। यह शिलालेख बताता है कि विश्वविद्यालय से दीक्षित होकर निकले विद्यार्थी देश के प्रत्येक मीडिया संस्थान में चमक रहे हैं। पत्रकारिता विभाग से शुरू हुए विश्वविद्यालय में आज 10 शैक्षणिक विभाग हैं। प्रत्येक विभाग की यात्रा और उनके मील के पत्थरों की कहानी भी यह शिलालेख कहता है। 

एक और विशेष बात है कि जिस ‘पेडस्टल’ दादा माखनलाल चतुर्वेदी सुशोभित हैं, उसके चारों और महान विचारों को स्थान दिया गया है। एक वक्तव्य- ‘जन्मभूमि का सम्मान’, महात्मा गांधीजी का है, जिसमें वह बता रहे हैं कि माखनलालजी के जन्मस्थान ‘बाबई’ (अब माखननगर) क्यों जा रहे हैं? गांधीजी कहते हैं कि जिस भूमि ने माखनलालजी को जन्म दिया, उसी भूमि को मैं सम्मान देना चाहता हूँ। दूसरा वक्तव्य- एक कविता ‘जियो सदा माई के लाल’ के रूप में राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त का है। यह कविता उन्होंने माखनलालजी के जन्मदिन के प्रसंग पर लिखी थीं। तीसरा वक्तव्य- ‘लिखना माखनलालजी से सीखा’ फिराक गोरखपुरी का है, जिसमें वह कह रहे हैं- “उनके लेखों को पढ़ते समय ऐसा मालूम होता था कि आदि-शक्ति शब्दों के रूप में अवतरित हो रही है या गंगा स्वर्ग से उतर रही है…”। 

माखनलाल चतुर्वेदी के बारे में महात्मा गांधी, मैथिलीशरण गुप्त और फिराक गोरखपुरी के विचार

नि:संदेह, यह अनूठा शिलालेख माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्याल को एक अलग पहचान देगा। यह विद्यार्थियों को भी कल्पनाशील एवं सृजनशील होने के लिए प्रोत्साहित करेगा। यह रचनाधर्मिता ही पत्रकारिता का गुणधर्म है। यही अर्जित करने के लिए हम सब देश के अलग-अलग हिस्सों से यहाँ एकत्र आए हैं।

सुबह सवेरे में 22 अगस्त, 2025 को प्रकाशित लेखक लोकेन्द्र सिंह का लेख- "माखनलालजी का समाचारपत्र कर्मवीर बना अनूठा शिलालेख"


माखनलाल चतुर्वेदी की प्रतिमा के अनावरण प्रसंग में उपस्थित मुख्य अतिथि मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव, विशिष्ट अतिथि कवि डॉ. कुमार विश्वास, महापौर मालती राय, मंत्री श्रीमती कृष्णा गौर, स्थानीय विधायक श्री भगवानदास सबनानी, विधायक रामेश्वर शर्मा एवं कुलगुरु श्री विजय मनोहर तिवारी

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव एवं कवि डॉ. कुमार विश्वास सहित अन्य अतिथियों को शिलालेख की जानकारी देते कुलगुरु श्री विजय मनोहर तिवारी
 




मंगलवार, 19 अगस्त 2025

नेताजी सुभाषचंद्र बोस के प्रति कम्युनिस्टों की ओछी सोच

क्या अंग्रेजों के डर से जर्मनी भाग गए थे नेताजी सुभाषचंद्र बोस? केरल की कम्युनिस्ट सरकार ने बच्चों को यही पढ़ाने की तैयारी कर रखी थी

कम्युनिस्ट सरकार केरल के विद्यालयों में बच्चों को पढ़ा रही थी कि स्वतंत्रता सेनानी नेताजी सुभाषचंद्र बोस ‘अंग्रेजों के डर से जर्मनी भाग गए थे’। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने जब इस मामले को उठाया और डटकर सरकार का विरोध किया, तब कम्युनिस्ट सरकार को अपने कदम वापस खींचने को मजबूर होना पड़ा है। राज्य शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एससीईआरटी) की चौथी कक्षा की एक हैंडबुक में सुभाष चंद्र बोस के बारे में यह दावा किया गया है। यह सिर्फ एक तथ्यात्मक गलती नहीं है, बल्कि भारत के एक महानतम स्वतंत्रता सेनानी के शौर्य और बलिदान को जानबूझकर विकृत करने का एक निंदनीय प्रयास है। नेताजी सुभाष चंद्र बोस डर से नहीं, बल्कि अंग्रेजों के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय समर्थन जुटाने और एक सशक्त सैन्य मोर्चा बनाने के दृढ़ संकल्प के साथ भारत से बाहर गए थे। उनकी आजाद हिंद फौज (आईएनए) ब्रिटिश शासन के लिए एक बड़ी चुनौती थी और आज भी यह लोगों को प्रेरणा देती है। हालांकि केरल सरकार कह रही है कि यह गलती है, हम इसे सुधार रहे हैं और भविष्य में ध्यान रखेंगे। यह गलती है या कम्युनिस्टों की नेताजी सुभाषचंद्र बोस के प्रति वास्तविक सोच है, इसका विश्लेषण करने के अनेक प्रमाण उपलब्ध हैं। क्योंकि यह अकेली या आकस्मिक घटना नहीं है, यह कम्युनिज्म विचारधारा के उस ओछी मानसिकता को प्रदर्शित करती है, जो नेताजी के प्रति उनके मन में शुरू से रही है।

रविवार, 17 अगस्त 2025

स्वयं से साक्षात्कार का अवसर

 “सोशल मीडिया इन्फ़्लुएंसर्स रिट्रीट : रोल ऑफ डिजिटल मीडिया इन ट्रांसफॉर्मिंग सोसायटी”

प्रजापिता ब्रह्माकुमारीज ईश्वरीय विश्वविद्याल के मीडिया आयाम की ओर से 30 जुलाई से 3 अगस्त, 2025 तक पहली बार ‘सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स रिट्रीट : रोल ऑफ डिजिटल मीडिया इन ट्रांसफॉर्मिंग सोसायटी’ का आयोजन किया गया, जिसमें देशभर से सोशल मीडिया के प्रभावशाली उपयोगकर्ता आए। कई जाने-पहचाने थे तो कुछ से नया परिचय हुआ। उनके काम ने नया सीखने और करने की ललक पैदा की। जब मैं ब्रह्माकुमारीज के इस आयोजन के लिए भोपाल से प्रस्थान कर रहा था तब हृदय में उत्साह था, मन में जिज्ञासा और आत्मा कहीं भीतर से एक नए अनुभव के लिए पुकार रही थी। इस यात्रा का उद्देश्य मात्र एक ‘रिट्रीट’ में भाग लेना नहीं था, बल्कि अपने भीतर छुपी उस नीरव शांति को खोज पाना था, जिसे रोज़मर्रा की भागदौड़ ने जैसे ढंक लिया है। यकीनन, मेरे लिए यह आयोजन ‘सोशल मीडिया रिट्रीट’ से कहीं अधिक स्वयं से साक्षात्कार का अवसर बन गया। आबू रोड स्थित ब्रह्माकुमारी के मनमोहिनीवन परिसर में प्रवेश करते ही आध्यात्मिक ऊर्जा की अनुभूति हुई। पहले ही दिन प्रतीत हो गया कि आगामी चार दिन, अविस्मरणीय होनेवाले हैं। यह आयोजन मेरे जीवन का एक ऐसा अनमोल अनुभव बना जिसने मेरी सोच, दृष्टिकोण और आत्मिक ऊर्जा को एक नया आयाम दिया। यहाँ से आध्यात्मिक चेतना से जुड़ने की दिशा में एक नये सफर की शुरुआत करने का प्रयास रहेगा।

शुक्रवार, 15 अगस्त 2025

संघ की प्रतिज्ञा थी- “मैं हिन्दूराष्ट्र को स्वतंत्र कराने के लिए ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ का घटक बना हूँ”

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और स्वतंत्रता आंदोलन

राष्ट्रीय स्वयंसेवक के बारे में अज्ञानता से घिरे लोग अकसर यह प्रश्न पूछते हैं कि स्वतंत्रता आंदोलन में संघ की क्या भूमिका रही है? कुछ लोग इससे भी आगे बढ़ जाते हैं और पूछते हैं कि संघ के किसी एक कार्यकर्ता का नाम ही बता दीजिए, जिसने स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया हो? संघ की स्थापना जिन्होंने की, वे डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार स्वयं ही जन्मजात देशभक्त थे। डॉ. हेडगेवार क्रांतिकारी भी रहे, कांग्रेस में रहकर राजनीतिक संघर्ष किया और जेल भी गए। बाद में, देश की सर्वांग स्वतंत्रता और स्वतंत्रता को स्थायी बनाने के उद्देश्य से उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की। डॉ. हेडगेवार अकेले नहीं हैं, अपितु स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लेनेवाले संघ के ज्ञात-अज्ञात कार्यकर्ताओं की लंबी शृंखला है। जो संगठन अपने कार्यकर्ताओं को यह शपथ दिलाता हो कि “मैं हिन्दूराष्ट्र को स्वतंत्र कराने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का घटक बना हूँ”, उसने कितने ही लोगों के मन में स्वतंत्रता प्राप्ति का भाव भरा होगा, उसकी सहज कल्पना की जा सकती है। 

भारत में प्रतिज्ञा का बहुत महत्व है। हमें भीष्म प्रतिज्ञा का स्मरण है। राजा हरिशचंद्र की सत्य बोलने की प्रतिज्ञा ध्यान है। मुगलिया सल्तनत के अत्याचार के विरुद्ध महाराण प्रताप की प्रतिज्ञा को कौन भूल सकता है। छत्रपति शिवाजी महाराज ने शिव को साक्षी मानकर प्रतिज्ञा करके ‘स्वराज्य’ की नींव रखी, जिसे साकार करने में संपूर्ण समाज प्राणपण से जुट गया। संघ के स्वयंसेवक भी इसी भाव के साथ प्रतिज्ञाबद्ध होते हैं कि वह जो प्रतिज्ञा ले रहे हैं, उसको पूर्ण करने में अपना सर्वस्व देंगे और प्रतिज्ञा को आजन्म निभाएंगे। मार्च 1928 में नागपुर के निकट एक पहाड़ी पर स्वयंसेवकों को एकत्र करके, भगवाध्वज के समक्ष प्रतिज्ञा का पहला कार्यक्रम सम्पन्न कराया गया था। देश की पूर्ण स्वतंत्रता एवं विकास के लिए स्वयंसेवकों को वीरव्रती बनाने के निमित्त आयोजित इस प्रथम कार्यक्रम में 99 स्वयंसेवकों ने प्रतिज्ञा की थी। इस अवसर पर डॉ. हेडगेवार ने संघ के उद्देश्य को स्पष्ट करते हुए जो भाषण दिया, वह स्वतंत्रता प्राप्ति की संघ की आकांक्षा को स्पष्टतौर पर व्यक्त करता है। उन्होंने कहा- “हमारा उद्देश्य हिन्दू राष्ट्र की पूर्ण स्वाधीनता है। संघ का निर्माण इसी महान लक्ष्य के लिए हुआ है”। इस स्पष्ट अभिव्यक्ति के बाद कहने के लिए कुछ और भी बचता है क्या? यह भी समझना होगा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता अपनी नित्य प्रार्थना में कहते हैं कि इस राष्ट्र को परम वैभव पर लेकर जाना है। क्या कोई पराधीन राष्ट्र परम वैभव पर जा सकता है? स्पष्ट है कि भारत की स्वतंत्रता का लक्ष्य संघ की स्थापना में निहित था।

स्वतंत्रता से पूर्व संघ के स्वयंसेवकों द्वारा की जानेवाली प्रतिज्ञा

डॉक्टर साहब ने 1929 में वर्धा में आयोजित प्रशिक्षण वर्ग में भी स्वयंसेवकों एवं नागरिकों की एक सभा में प्रखरता के साथ कहा- “ब्रिटेन की सरकार ने अनेक बार भारत को स्वतंत्र करने का आश्वासन दिया है, परंतु वह झूठा साबित हुआ। अब यह साफ हो गया कि भारत अपने बल पर स्वतंत्रता प्राप्त करेगा”। याद रहे कि डॉ. हेडगेवार ने महात्मा गांधी के आह्वान पर ‘नमक सत्याग्रह’ में शामिल होकर विदर्भ प्रांत में 1930 में ‘जंगल सत्याग्रह’ किया। इस आंदोलन में उनके साथ अनेक प्रमुख स्वयंसेवकों ने हिस्सा लिया। सत्याग्रहियों को पुलिस ने गिरफ्तार किया और जेल भेज दिया। डॉक्टर साहब को नौ माह का कठोर कारावास दिया गया। इससे पूर्व 1921 के आंदोलन में भी डॉक्टर साहब को जेल की सजा हुई थी। महात्मा गांधी के सविनय अवज्ञा आंदोलन को मध्यभारत में सफल बनाने के लिए स्वयंसेवकों ने अथक प्रयास किया। संघ के सरकार्यवाह जीएम हुद्दार, नागपुर के संघचालक अप्पा साहेब हलदे, सिरपुर के संघचालक बाबूराव वैद्य, संघ के सरसेनापति मार्तंडराव जोग के साथ संघ के अन्य प्रमुख कार्यकर्ताओं के आंदोलन में शामिल होने के कारण चार-चार माह का कारावास मिला।

देखें- गोवा की स्वतंत्रता में आरएसएस का योगदान | RSS in Goa Mukti Aandolan | RSS in Freedom Movement

अपनी स्थापना के कई वर्षों बाद कांग्रेस को जनमानस के दबाव के कारण 31 दिसंबर, 1929 को लाहौर में रावी के तट पर पहली बार ‘पूर्ण स्वराज्य’ का प्रस्ताव पारित करना पड़ा। याद रहे कि डॉ. हेडगेवार ने 1920 में नागपुर में आयोजित कांग्रेस अधिवेशन में ही पूर्ण स्वराज्य का प्रस्ताव पारित कराने का प्रयास किया था। उन्होंने कांग्रेस की प्रस्ताव समिति के सामने सुझाव रखा था कि कांग्रेस का उद्देश्य भारत को पूर्ण स्वतंत्र कर भारतीय गणतंत्र की स्थापना करना और विश्व को पूंजीवाद के चंगुल से मुक्त करना होना चाहिए। बहरहाल, सम्पूर्ण स्वतंत्रता का उनका सुझाव कांग्रेस ने 9 वर्ष बाद 1929 के लाहौर अधिवेशन में स्वीकृत किया। कांग्रेस का यह निर्णय संघ के घोषित उद्देश्य के अनुरूप था। इसलिए इससे आनंदित होकर सरसंघचालक डॉ. हेडगेवार ने संघ की सभी शाखाओं को 26 जनवरी, 1930 को कांग्रेस का अभिनंदन करने, राष्ट्रध्वज का वंदन करने और स्वतंत्रता दिवस मनाने के लिए निर्देशित किया। साथ ही यह भी कहा कि शाखाओं पर भाषण करके स्वतंत्रता के वास्तविक अर्थ एवं महत्व को समझाया जाए। सरसंघचालक के निर्देशानुसार, संघ की सभी शाखाओं पर 26 जनवरी, 1930 को सायं 6 बजे स्वतंत्रता दिवस मनाया गया।

26 जनवरी, 1930 को संघ की सभी शाखाओं में स्वतंत्रता दिवस मनाने के लिए आरएसएस संस्थापक सरसंघचालक डॉ. हेडगेवार ने लिखा पत्र

संघ के स्वयंसेवकों ने 1942 के ‘अंग्रेजो, भारत छोड़ो’ आंदोलन में भी सहभागिता की। 8 अगस्त, 1942 को मुंबई के गोवलिया टैंक मैदान पर कांग्रेस अधिवेशन में महात्मा गांधीजी ने आंदोलन की घोषणा की। दूसरे दिन से ही देशभर में आंदोलन प्रारंभ हो गया। विदर्भ में बावली (अमरावती), आष्टी (वर्धा) और चिमूर (चंद्रपुर) में हुए आंदोलनों में संघ के स्वयंसेवकों ने ही नेतृत्व किया। चिमूर के समाचार बर्लिन रेडियो पर भी प्रसारित हुए। यहां के आन्दोलन का नेतृत्व कांग्रेस के उद्धवराव कोरेकर और संघ के अधिकारी दादा नाईक, बाबूराव बेगडे, अण्णाजी सिरास ने किया। चिमूर के इस आन्दोलन में अंग्रेज की गोली से एकमात्र मृत्यु बालाजी रायपुरकर की हुई, जो संघ स्वयंसेवक थे। इस आंदोलन के अंतर्गत राजस्थान में प्रचारक जयदेवजी पाठक, आर्वी (विदर्भ) में डॉ. अण्णासाहब देशपांडे, जशपुर (छत्तीसगढ़) में रमाकांत केशव (बालासाहब) देशपांडे, दिल्ली में वसंतराव ओक एवं चंद्रकांत भारद्वाज और पटना (बिहार) में अधिवक्ता कृष्ण वल्लभप्रसाद नारायण सिंह (बबुआजी) ने भाग लिया।

अंग्रेज सरकार संघ के बढ़ते प्रभाव से घबरा गई थी। इसलिए उसने संघ पर आंशिक प्रतिबंध लगाने शुरू कर दिए ताकि संघरूपी आंदोलन को रोका जा सके। गुप्तचर विभाग की रिपोर्ट के आधार पर अंग्रेज सरकार ने सबसे पहले 15 दिसंबर, 1932 को एक सर्कुलर निकालकर सरकारी कर्मचारियों को संघ में भाग लेने से प्रतिबंधित कर दिया। वहीं, 5 अगस्त, 1940 को ब्रिटिश सरकार ने संघ की सैनिक वेशभूषा और प्रशिक्षण पर पूरे देश में प्रतिबंध लगा दिया। क्योंकि सरकार को गुप्तचर रिपोर्ट में यह जानकारी मिलने लगी थी कि संघ के स्वयंसेवक पूर्ण स्वतंत्रता की ओर तेजी से अग्रसर हैं। राष्ट्रीय आंदोलनों में बढ़-चढ़ कर सहभागिता कर रहे हैं। उल्लेखनीय है कि संघ के प्रचारक बाबा साहब आप्टे ने 12 दिसंबर, 1943 को जबलपुर में गुरुदक्षिणा उत्सव पर स्वयंसेवकों से कहा- “अंग्रेजों का अत्याचार असहनीय है, देश को स्वतंत्रता के लिए तैयार हो जाना चाहिए”। संघ अपनी स्थापना के समय से ही देश की स्वतंत्रता का स्वप्न लेकर चल रहा था। भारत की सर्वांग स्वतंत्रता के लिए संघ के स्वयंसेवक प्रतिज्ञाबद्ध थे इसलिए अवसर आने पर उन्होंने राष्ट्रीय आंदोलनों में सहभागिता की, जेल गए और बलिदान भी दिया। 

यह वीडियो भी देखिए- 

भगवा झंडा होता राष्ट्रध्वज | राष्ट्रध्वज तिरंगा एवं आरएसएस : भाग-1


RSS में तिरंगे के प्रति पूर्ण निष्ठा | राष्ट्रध्वज एवं आरएसएस : भाग-2 


तिरंगे के सम्मान में संघ ने दिया बलिदान | राष्ट्रध्वज एवं आरएसएस : भाग-3 

बुधवार, 13 अगस्त 2025

कुत्तो की चिंता परंतु गो-हत्या पर चुप्पी, क्यों?

आवारा कुत्तों को सड़कों से हटाकर आश्रय स्थल भेजने के सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बाद कुछ लोगों का श्वान प्रेम अचानक से जाग गया है। जरा सोचिए, इन लोगों का यह प्रेम / चिंता / संवेदना गाय के प्रति क्यों नहीं जागती... अपितु गो-संरक्षण के मुद्दे पर इनके तर्क ठीक उलट होते हैं। गाय के प्रति इनकी सोच इतनी निर्दयी है कि ये लोग गाय को कसाई के हाथों काटे जाने के पक्षधर दिखाई पड़ते हैं। इनके लोग स्वयं भी गाय काटकर सड़क/चौराहों पर उसके रक्त/मांस भक्षण का उत्सव मनाते हैं।

आवारा कुत्तों को सड़कों से हटाकर आश्रय स्थल में भेजने के निर्णय का विरोध करने जो 'डॉग लवर्स' सोशल मीडिया/सड़कों पर मोमबत्ती लेकर उतरे हैं, उनमें से कई लोग कई जीवों का भक्षण बहुत स्वाद से करते होंगे। जब ये लोग बोटी/हड्डी को चटकारे लेकर चबाते हैं तब क्या इनके भीतर से आवाज नहीं आती कि अपने स्वाद के लिए किसी के प्राण ही ले लिए? यहां तो कुत्तों को मारा नहीं जा रहा है, उन्हें केवल सड़क से शेल्टर में शिफ्ट किया जा रहा है। कभी सोचा है कि आप लोग तो अपनी जीभ के स्वाद के लिए कितने की बकरों/मुर्गों की हत्या के कारण बन चुके हो?

गुरुवार, 31 जुलाई 2025

डॉ. देवेन्द्र दीपक जी : जिन्होंने अपनी मेधा से राष्ट्रीयता के दीपक को प्रज्वलित रखा

श्री देवेन्द्र दीपक जी को प्रो. संजय द्विवेदी पर एकाग्र पुस्तक 'लोगों का काम है कहना' भेंट करते लोकेन्द्र सिंह

वरिष्ठ साहित्यकार श्रद्धेय देवेंद्र दीपक जी का सुखद सान्निध्य प्राप्त हुआ। निमित्त बने युवा पत्रकार आयुष पंडाग्रे। आयुष राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के गीतों की पुस्तक देवेंद्र दीपक जी को भेंट करने के लिए जाने वाले थे, तब मैंने उनसे कहा कि "साथ चलते हैं। मुझे भी जाना है।" लगभग डेढ़ घंटे हम श्रद्धेय दीपक जी के पास रहे। घड़ी की सुइयों पर कौन ध्यान देता, हम तो बस उनको सुनते जा रहे थे। बाहर सावन की रिमझिम थी और भीतर नेह की बारिश। हम एक विरले साहित्यकार की बौद्धिक यात्रा में गोते लगा रहे थे। राष्ट्रीय विचार की पगडंडी पर उनके जीवन में जो संघर्ष आए, उनके समाधान कैसे निकाले, वह सब हमारे सामने आ रहा था। डॉ. दीपक जी ने काव्य विधा में अद्भुत काम किया है। हमें आठ पंक्ति की कविता लिखने में जोर लगाना पड़ना है, आपने कई काव्य नाटक लिखे हैं। नि:संदेह आप पर माँ सरस्वती की विशेष कृपा है। आपने अपनी मेधा राष्ट्रीय चेतना के जागरण में समर्पित की है। आप राष्ट्रीय धारा के यशस्वी साहित्यकारों की माला के चमकते मोती हैं।

शुक्रवार, 25 जुलाई 2025

कविताओं से आती गाँव-माटी-अपनत्व की महक

पुस्तक चर्चा : ‘चलो! चलते हैं अपने गाँव’ (काव्य संग्रह)


मन की भाव-भूमि उर्वर होती है, तब उससे काव्यधारा बह निकलती है। कविता की महक बताती है कि वह किस वातावरण में पल्लवित हुई है। युवा कवि कृष्ण मुरारी त्रिपाठी ‘अटल’ की कविताओं में गाँव, घर, समाज और देश के प्रति अपनत्व की खुशबू है। कर्तव्य का भाव है। अभिमान की अभिव्यक्ति है। उनके मन की पीड़ा भी कभी-कभी कविता का रूप धरकर प्रकट हुई है। कवि ने स्वयं माना है कि “गाँव-माटी, परम्पराएं, अपनापन और निश्छल मन मेरे हृदय तथा भावनाओं में बसता है। जो मेरी लेखनी को कागज के पन्नों में किसी न किसी रचना के रूप में उतारता रहता है”। जैसे अपने काव्य संग्रह ‘चलो! चलते हैं अपने गाँव’ की प्रतिनिधि कविता में अटल अपने गाँव को विविध रूपों में याद करते हैं। उन्हें गाँव की गलियां याद आती हैं, आँगन बुलाते हैं। गाँव का आध्यात्मिक वातावरण उनको राम की भक्ति से सरोबोर करता है। दादी-नानी के किस्से, अम्मा की लोरी, कक्कू की डांट, सब उन्हें अपने गाँव बुलाते हैं। अपनी इस कविता में जहाँ उन्होंने निर्दोष गाँव की उजली तस्वीर हमारी आँखों में उतारने की कोशिश की है, वहीं अपने काव्य संग्रह की आखिरी कविता ‘कोई लौटा दो- मेरा वही पुराना गाँव’ में वह गाँव के उस वातावरण को पुन: पाना चाहते हैं, जो गाँव को गाँव बनाता है। अपने गाँव, गाँव के बाशिदों एवं गाँव की प्रकृति को अटल ने अपनी कविताओं में खूब चित्रित किया है। अपनी लेखनी से वह अपनी जड़ों से जुड़े रहने का अनथक प्रयास करते हैं और पाठकों को भी प्रेरित करते हैं कि वे भी अपनी जड़ों की ओर लौटें।

गुरुवार, 24 जुलाई 2025

उपराष्ट्रपति के त्याग-पत्र ये सियासी प्याली में आया तूफान

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के त्यागपत्र ने सियासी प्याली में तूफान ला दिया है। विपक्ष से लेकर सत्ता पक्ष तक उनके अचानक त्यागपत्र देने के निर्णय से आश्चर्यचकित है। त्यागपत्र के पीछे की वजह उन्होंने अपने स्वास्थ्य को बताया है, लेकिन उनकी इस बात पर कोई भी सहज विश्वास करने को तैयार नहीं है। राजनीतिक गलियारे से बाहर निकलकर देखते हैं तो सामाजिक क्षेत्र से विशिष्ट एवं आमजन भी हैरान है। दरअसल, उपराष्ट्रपति के रूप में जगदीप धनखड़ ने अपनी एक अलग छवि बनायी थी। उनकी अपनी विशिष्ट शैली थी। स्वभाव से विनम्र थे लेकिन अपनी बात को कहने में कभी कोई संकोच नहीं किया। विपक्ष के नेता उनसे इसलिए परेशान रहते थे क्योंकि सदन को नियमों से चलाने में वे कतई कोताही नहीं बरतते थे। विपक्ष को खरी-खरी सुनाने में और सत्ता पक्ष को चेतावनी देने का कार्य वे बराबर करते थे।

मंगलवार, 22 जुलाई 2025

पाठ्यक्रम से साफ हुई कम्युनिस्टों की दूषित सोच

अब पढ़ाया जाएगा- भारत का सच्चा और संतुलित इतिहास


राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) ने अपनी पाठ्य पुस्तकों को संशोधित करने का बहुप्रतीक्षित काम किया है। देश में लंबे समय से यह बहस चल रही थी कि पाठ्य पुस्तकों में भारत का संतुलित इतिहास क्यों नहीं पढ़ाया जाता है? आखिर वह क्या सोच रही होगी जिसने भारतीय नायकों को इतिहास में न केवल सीमित स्थान दिया, अपितु उनको पराजित राजा की तरह ही प्रस्तुत किया? वहीं, भारत को लूटने के उद्देश्य से आए मुगल आक्रांताओं का न केवल महिमामंडन किया अपितु इतिहास की पुस्तकों में उन्हें सर्वाधिक स्थान देकर यह स्थापित करने का प्रयास किया कि मुगल काल ही भारत का वास्तविक इतिहास है। बौद्धिक चतुराई दिखाकर मुगलिया शासन की क्रूरताओं पर पर्दा डाल दिया गया। अब जबकि एनसीईआरटी ने भारत के इतिहास को भारतीय दृष्टिकोण से प्रस्तुत करने की दिशा में जनाकांक्षाओं के अनुरूप पहल की है, तब यही सोच विरोध कर रही है।

विपक्ष को चर्चा नहीं… हंगामा चाहिए

जैसा कि अपेक्षित था कि संसद के मानसून सत्र की शुरुआत में विपक्ष हंगामा करेगा, वही हुआ। विपक्ष का आरोप है कि सरकार चर्चा से भागती है, जबकि सरकार का कहना है कि वह हर प्रकार से चर्चा के लिए तैयार है। इसका क्या अर्थ निकाला जाए? मानसून सत्र की शुरुआत होने से पहले ही हंगामा करना, यही संकेत देता है कि विपक्ष को चर्चा नहीं अपितु हंगामा चाहिए। दरअसल, विपक्ष की कोशिश है कि वह यह वातावरण बना दे कि सरकार ऑपरेशन सिंदूर पर जवाब देने में असमर्थ है। इसलिए विपक्षी नेता अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के युद्ध विराम कराने के दावों की गिनती भी करते रहते हैं। उन्हें अपने देश की सेना और जिम्मेदार अधिकारियों पर विश्वास नहीं है। याद हो, भारतीय सेना स्पष्ट कह चुकी है कि पाकिस्तान की सेना की ओर से युद्ध विराम का प्रस्ताव आया था, जिसे भारतीय सेना ने इसलिए भी मान लिया क्योंकि हम जो चाहते थे, वह प्राप्त कर लिया था। लेकिन विपक्ष के नेताओं को ट्रंप के दावों पर विश्वास है, जो स्वयं ही अपनी बातों से कई बार पलट जाते हैं।

सोमवार, 21 जुलाई 2025

न्यायालय की सुने समाज- लव जिहाद के विरुद्ध भय और संकोच छोड़कर सच बोलना ही होगा

लव जिहाद की साजिश जिस तरह सामाजिक संरचना को चोट पहुँचा रही है, उसे देखकर अब न्यायालय भी चिंतित दिखायी देने लगा है। हरियाणा के एक प्रकरण में ‘लव जिहाद’ के दोषी मुस्लिम युवक को सजा सुनाते हुए फास्ट ट्रैक कोर्ट की न्यायमूर्ति रंजना अग्रवाल ने जो चिंता व्यक्त की है, उसे समाज के प्रबुद्ध वर्ग को ध्यानपूर्वक सुनना चाहिए। लव जिहाद पर न्यायालय की चिंता को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। न्यायालय ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि “यह भी प्रामाणिक तथ्य है कि पिछले कई वर्षों से मुस्लिम पुरुष प्रेम के नाम पर भोली-भाली हिंदू लड़कियों को किसी न किसी तरह से बहकाकर उनसे विवाह कर लेते हैं और फिर इस्लाम में मतांतरित कर लेते हैं। यदि इस प्रक्रिया को उदार दृष्टिकोण अपनाकर जारी रहने दिया गया तो यह हमारे देश की सुरक्षा और अस्तित्व के लिए खतरा बन जाएगा। यह मामला दर्शाता है कि हरियाणा में लव जिहाद एक वास्तविकता है”। न्यायालय की यह टिप्पणी उन सबको सुननी चाहिए, जो स्वयं को सेकुलर दिखाने के चक्कर में लव जिहाद की घटनाओं को स्वीकार ही नहीं करना चाहता है।

बुधवार, 16 जुलाई 2025

अमर्यादित नहीं हो सकती है अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता

जब हम विरोध, आलोचना और असहमति के वास्तविक स्वरूप को भूलते हैं तब हमारी अभिव्यक्ति घृणा और नफरत में बदल जाती है। मौजूदा समय में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और राष्ट्रीय विचार के संगठनों एवं कार्यकर्ताओं पर टिप्पणी का स्वर ऐसा ही दिखायी पड़ रहा है, जो अमर्यादित है। सर्वोच्च न्यायालय ने ऐसी ही अमर्यादित अभिव्यक्ति के मामलों की सुनवाई के दौरान बहुत महत्वपूर्ण बातें कहीं है, जिन पर हमें गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है। इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था की रीढ़ है। इस पर किसी प्रकार के बाहरी प्रतिबंध लगाना उचित नहीं होगा। लेकिन यदि इसी प्रकार अमर्यादित लिखा-पढ़ी, बयानबाजी और कार्टूनबाजी जारी रही तब समाज में वैमनस्य और सांप्रदायिक तनाव को फैलने से रोकने के लिए कुछ न कुछ युक्तियुक्त प्रबंध करने ही पड़ेंगे। सोशल मीडिया के इस दौर में किसी को भी अमर्यादित और असीमित अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं दी जा सकती है। नागरिकों को भी समझना चाहिए कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की एक मर्यादा है, उसे लांघना किसी के भी हित में नहीं है। उचित होगा कि नागरिक समाज इस दिशा में गंभीरता से चिंतन करे। सर्वोच्च न्यायालय ने उचित ही कहा है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गलत इस्तेमाल समाज में नफरत और विघटन को जन्म दे सकता है। इसलिए नागरिकों को चाहिए कि वे जिम्मेदारी से बोलें, संयम रखें और दूसरों की भावनाओं का सम्मान करें

मंगलवार, 15 जुलाई 2025

चुनाव आयोग के काम में दखल नहीं देने का उच्चतम न्यायालय का सराहनीय निर्णय

फर्जी मतदाताओं के बल पर लोकतंत्र को लूटने का सपना देखनेवालों को सर्वोच्च न्यायालय ने ढंग से संविधान का पाठ पढ़ाया है। हालांकि, सर्वोच्च न्यायालय की सीख उनके दिल-दिमाग में उतरेगी, इसकी संभावना कम ही है। क्योंकि वास्तव में यह लोग जागे हुए हैं, सोने का केवल अभिनय कर रहे हैं। जो सोने का अभिनय करे, उसे भला कौन जगा सकता है। इसलिए कभी मतदाता सूची में गड़बड़ी का आरोप लगाकर वितंडावाद खड़ा करते हैं तो कभी मतदाता सूची को व्यवस्थित किए जाने की प्रक्रिया का विरोध करते हैं। यह सब कवायद देश को गुमराह करने की है। अपने गिरेबां में झांकने की बजाय कभी चुनाव आयोग की प्रक्रिया पर तो कभी ईवीएम पर तो कभी मतदाता सूची पर सवाल उठाना, अपरिपक्व राजनीति का प्रदर्शन है।

अपने कुतर्कों के आधार पर खड़े किए जाने वाले विमर्श के लिए विपक्षी दलों को हर बार मुंह की खानी पड़ी है। इस बार भी सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट कह दिया कि मतदाता सूची के परीक्षण की चुनाव आयोग की प्रक्रिया को वह नहीं रोकेगा। बिहार में मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण कांग्रेस की सरकार के समय में यानी वर्ष 2003 में भी कराया जा चुका है। आखिर इसमें किसी को क्या आपत्ति हो सकती है कि चुनाव आयोग यह सुनिश्चित कर रहा है कि चुनाव में फर्जी मतदाता भाग न ले सकें? मतदाताओं के परीक्षण की प्रक्रिया का विरोध करनेवाले नेता एवं राजनीतिक दल क्या यह चाहते हैं कि चुनाव में फर्जी मतदान होना चाहिए? क्या उनकी मंशा है कि जिन घुसपैठियों ने चोरी-चालाकी से मतदाता सूची में नाम जुड़वा लिया है, उन्हें भारत के लोकतंत्र को प्रभावित करने का अवसर मिले?

शुक्रवार, 11 जुलाई 2025

‘जल गंगा संवर्धन अभियान’ से प्रदेश होगा जल-समृद्ध

जल संरक्षण को लेकर सामूहिक जिम्मेदारी का भाव जगाता है यह अभियान, निकट भविष्य में आएंगे प्रभावी परिणाम

जलाशय की सफाई करते मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव अपने अभिनव प्रयोगों से अपनी विशेष पहचान बना रहे हैं। मध्यप्रदेश में जल संरक्षण के लिए प्रारंभ हुआ ‘जल गंगा संवर्धन अभियान’ मुख्यमंत्री डॉ. यादव की दूरदर्शी पहल है। निकट भविष्य में हमें इसके सुखद परिणाम दिखायी देंगे। शुभ प्रसंग पर शुभ संकल्प के साथ जब कोई कार्य प्रारंभ किया जाता है, तब उसकी सफलता के लिए प्रकृति एवं ईश्वर भी सहयोग करते हैं। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की पहल पर मध्यप्रदेश सरकार ने गुड़ी पड़वा (30 मार्च) से 30 जून तक प्रदेश स्तरीय ‘जल गंगा संवर्धन अभियान’ चलाकर जल संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया, जो जनांदोलन में परिवर्तित हो गया। सरकार को भी विश्वास नहीं रहा होगा कि जल संरक्षण जैसे मुद्दे को जनता का इतना अधिक समर्थन मिलेगा कि सरकारी अभियान असरकारी बन जाएगा और समाज इस अभियान को अपनी जिम्मेदारी के तौर पर स्वीकार कर लेगा। ‘जल गंगा संवर्धन अभियान’ के अंतर्गत और इससे प्रेरित होकर प्रदेश में अनेक स्थानों पर जल स्रोतों को पुनर्जीवित किया गया, उनको व्यवस्थिति किया गया और वर्षा जल को एकत्र करने की रचनाएं बनायी गईं। कहना होगा कि मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की पहल और प्रतिबद्धता ने  जल संरक्षण के इस अभियान को एक जनांदोलन का रूप दे दिया है, जिससे जल संरक्षण में अभूतपूर्व प्रगति हुई है।

जिहादियों के निशाने पर भारत और हिन्दू

 कन्वर्जन के नेटवर्क का एक छोटा-सा प्यादा है जमालुद्दीन उर्फ छांगुर

भारत को ‘गजवा-ए-हिंद’ बनाने और ‘लव जिहाद’ की साजिशें केवल गल्प नहीं है, बल्कि हिन्दू धर्म और भारत के लिए इन्हें बड़े खतरे के तौर पर देखा जाना चाहिए। ‘गजवा-ए-हिंद’ और ‘लव जिहाद’ की अवधारणाओं को नकारना एक प्रकार से सच्चाई से मुंह मोड़ना है। यह आत्मघाती प्रवृत्ति है। सच को स्वीकार करके उसका समाधान निकालने का प्रयत्न करना ही एक जागृत समाज की पहचान है। भारत में प्रतिदिन ही इस प्रकार के मामले सामने आ रहे हैं, जिससे यह स्थापित होता है कि लव जिहाद और गजवा-ए-हिंद के पीछे बड़े कट्टरपंथी गिरोह शामिल हैं। उत्तरप्रदेश में पकड़ा गया बहुस्तरीय कन्वर्जन का नेटवर्क चलानेवाला फेरीवाला जमालुद्दीन उर्फ छांगुर बाबा, इस व्यापक नेटवर्क का एक प्यादा भर है। अभी हाल ही में हिन्दू लड़कियों से लव जिहाद के लिए मुस्लिम लड़कों की फंडिंग करने के आरोप कांग्रेस के मुस्लिम नेता एवं पार्षद अनवर कादरी पर लगे हैं। जरा सोचकर देखिए कि भारत में हिन्दुओं को कर्न्वट करने का धंधा कितने बड़े पैमाने पर चल रहा है।

हिन्दुओं को कन्वर्ट करने के इस खेल में केवल इस्लामिक संस्थाएं ही नहीं है अपितु चर्च भी शामिल है। पूर्वोत्तर के राज्यों में चर्च ने अपने पैर किस तरह फैलाए हैं, यह किसी से छिपी हुई बात नहीं है। जनजातीय क्षेत्रों में चर्च व्यापक स्तर पर कन्वर्जन का धंधा चला रहा है। चर्च ने पंजाब को अपना हॉट स्पॉट बना रखा है। पंजाब के कितने ही गाँव ईसाई बन गए हैं। इसकी अनेक कहानियां बिखरी पड़ी हैं। हिन्दुओं को कन्वर्ट करने के लिए इस्लामिक संस्थाओं और मिशनरीज को बड़े पैमाने पर विदेशों से फंडिंग होती है। छांगुर बाबा की गिरफ्तारी के बाद हो रहे खुलासों में यह सब सामने आ रहा है। केवल 5-6 साल में ही कन्वर्जन का धंधा फैलाकर साइकिल पर सामान बेचनेवाला फेरीवाला जमालुद्दीन ने छांगुर बाबा बनकर आलीशान कोठी, लग्जरी गाड़ियों और कई फर्जी संस्थाओं का मालिक बन गया है। जांच एजेंसियों के अनुसार, जमालुद्दीन खुद को हाजी पीर जलालुद्दीन बताता था। लड़कियों को बहला-फुसलाकर जबरन उनका धर्मांतरण करवाता।

सोमवार, 7 जुलाई 2025

हिन्दी-मराठी को लड़ाने की राजनीति

अपनी राजनीतिक जमीन तलाशने के लिए नेता किस हद तक उतर आते हैं, यह देखना है तो महाराष्ट्र की राजनीति में चल रही हलचल पर नजर जमा लीजिए। मराठी अस्मिता के नाम पर हिन्दी का विरोध करते हुए उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे दोनों 20 वर्ष बाद एक मंच पर आ गए हैं। महाराष्ट्र में शिवसेना (उद्धव गुट) यह प्रयोग पहले भी कर चुकी है, उस समय भी हिन्दी प्रदेश के लोगों को परेशान करना और उनके साथ मारपीट करना, ठाकरे एंड कंपनी का धंधा हो गया था। लेकिन बाद में शिवसेना के शीर्ष नेताओं को समझ आया कि हिन्दी का विरोध करके उनकी राजनीति सिमट रही है क्योंकि महाराष्ट्र की जनता का स्वभाव इस प्रकार का नहीं है। कहना होगा कि हिन्दी के विस्तार में महाराष्ट्र की बड़ी भूमिका रही है। चाहे वह भारतीय फिल्म उद्योग हो, जिसने देश में ही नहीं अपितु दुनिया में हिन्दी का विस्तार किया या फिर साहित्य एवं राजनीतिक नेतृत्व रहा हो। महाराष्ट्र की जमीन ऐसी नहीं रही, जिसने भाषायी विवाद का पोषण किया हो। इस प्रकार की राजनीति के लिए वहाँ कतई जगह नहीं है। ठाकरे बंधु मराठी अस्मिता के नाम पर जितना अधिक हिन्दी भाषी बंधुओं को परेशान करेंगे, उतना ही अधिक वह और उनकी राजनीति अप्रासंगिक होती जाएगी।

मंगलवार, 1 जुलाई 2025

हमारे आसपास की जरूरी कहानियां, जो जीवन सिखाती हैं

17 साल की लेखिका की 13 चुनी हुई कहानियां – वत्सला@2211


अपने पहले ही कहानी संग्रह ‘वत्सला @2211’ के माध्यम से 17 वर्षीय लेखिका वत्सला चौबे ने साहित्य जगत में एक जिम्मेदार साहित्यकार के रूप में अपनी कोमल उपस्थिति दर्ज करायी है। उनके इस कहानी संग्रह में 13 चुनी हुई कहानियां हैं, जो हमें कल्पना लोक के गोते लगवाती हुईं, कठोर यथार्थ से भी परिचित कराती हैं। सुधरने और संभलने का संदेश देती हैं। बाल कहानियों की अपनी दुनिया है, जिसमें बच्चे ही नहीं अपितु बड़े भी आनंद के साथ खो जाते हैं। यदि ये बाल कहानियां किसी बालमन ने ही बुनी हो, तब तो मिथुन दा के अंदाज में कहना ही पड़ेगा- क्या बात, क्या बात, क्या बात। बहुत दिनों बाद बाल कहानियां पढ़ने का अवसर मिला। एक से एक बेहतरीन कहानियां, जिनमें अपने समय के साथ संवाद है। अतीत की बुनियाद पर भविष्य के सुनहरे सपने भी आँखों में पल रहे हैं। एक किशोर वय की लेखिका ने अपने आस-पास की दुनिया से घटनाक्रमों को चुना और उन्हें कहानियों में ढालकर हमारे सामने प्रस्तुत किया है। इन कहानियों में मानवीय संवेदनाएं हैं। सामाजिक परिवेश के प्रति जागरूकता है। अपने कर्तव्यों के निर्वहन की ललक है। अपनी जिम्मेदारियों का भान है। संग्रह के प्राक्कथन में वरिष्ठ संपादक गिरीश उपाध्याय ने उचित ही लिखा है- “ये कहानियां भले ही एक बच्ची की हों, लेकिन इनमें बड़ों के लिए या बड़े-बड़ों के लिए बहुत सारे संदेश, बहुत सारी सीख छिपी हैं, बशर्ते हम उन्हें समझने की और महसूस करने की कोशिश करें”।

शनिवार, 28 जून 2025

किसने बदली संविधान की मूल प्रस्तावना? इस पर चर्चा होनी चाहिए

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने संविधान की प्रस्तावना में जबरन जोड़े गए ‘समाजवादी’ और ‘सेकुलर’ शब्दों के औचित्य को प्रश्नांकित करके महत्वपूर्ण बहस छेड़ दी है। उन्होंने कहा कि "आपातकाल के दौरान संविधान की प्रस्तावना में जोड़े गए Secularism और Socialism शब्दों की समीक्षा होनी चाहिए। ये मूल प्रस्तावना में नहीं थे। अब इस पर विचार होना चाहिए कि इन्हें प्रस्तावना में रहना चाहिए या नहीं?" ध्यान दें कि सरकार्यवाह श्री दत्ताजी ने दोनों शब्दों को सीधे हटाने की बात नहीं की है अपितु उन्होंने इस संदर्भ में विचार करने का आग्रह किया है। लेकिन उनके विचार को गलत ढंग से कौन प्रस्तुत कर रहा है, वे लोग जिन्होंने लोकतंत्र का गला घोंटकर, अलोकतांत्रिक ढंग से, बिना किसी चर्चा के, चोरी से संविधान की प्रस्तावना में सेकुलर और समाजवाद शब्द घुसेड़ दिए। बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर और संविधान सभा द्वारा देश को सौंपी गई संविधान की प्रस्तावना को बदलने वाली ताकतों को वितंडावाद खड़ा करने से पहले अपने गिरेबां में झांककर देखना चाहिए। और, स्वयं से प्रश्न पूछना चाहिए कि "इस विषय में कुछ कहने का उन्हें नैतिक अधिकार भी है?" सत्य तो यह है कि संविधान की मूल प्रस्तावना को बदलने का अपराध करने के लिए उन्हें देश की जनता से क्षमा मांगनी चाहिए। बहरहाल, इस बहस के बहाने कम से कम देश की जनता को पुन: याद आएगा कि सही अर्थों में संविधान की हत्या किसने की है? किसने बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर और संविधान सभा द्वारा निर्मित संविधान को बदलने का काम किया है। वास्तव में यह महत्वपूर्ण प्रश्न है कि जब देश में आपातकाल लगा था तब संसद में बिना किसी चर्चा के संविधान की प्रस्तावना में जबरन परिवर्तन करते हुए ‘समाजवाद’ और ‘सेकुलर’ शब्द क्यों जोड़े गए? क्या इस पर विचार नहीं किया जाना चाहिए कि संविधान की मूल प्रस्तावना से की गई छेड़छाड़ को ठीक किया जाए? संविधान को वापस वही प्रस्तावना मिले, जिसे बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर, संविधान सभा और देश की जनता ने आत्मार्पित किया था। याद रहे कि प्रस्तावना को संविधान की आत्मा कहा जाता है।

गुरुवार, 26 जून 2025

क्या आरएसएस के सरसंघचालक बाला साहब देवरस ने इंदिरा गांधी को पत्र लिखकर आपातकाल का समर्थन किया था?

बौद्धिक जगत में एक वर्ग ऐसा भी है जो आपातकाल की भयावहता को छिपाने और आपातकाल की क्रूरता पर चर्चा की जगह यह साबित करने में आज भी अपनी बुद्धि खपा रहा है कि ‘संघ ने आपातकाल का समर्थन किया था’। कुतर्क की भी हद होती है। ये वही लोग हैं जो पहलगाम में इस तथ्य को झुठलाने की बेशर्म कोशिश कर रहे थे कि आतंकवादियों ने धर्म पूछकर पर्यटकों की हत्या नहीं की। जबकि मृतकों की परिजनों ने बिलखते हुए कहा है कि “उनके सामने ही आतंकवादियों ने धर्म पूछकर हत्याएं की हैं”। बहरहाल, एक बार फिर ‘संविधान हत्या दिवस’ पर कई तथाकथित विद्वान पूर्व सरसंघचालक श्रद्धेय बाला साहब देवरस के एक पत्र को प्रसारित करके दावा कर रहे हैं कि संघ ने आपातकाल का समर्थन किया और श्रीमती इंदिरा गांधी से माफी भी मांगी। मुझे आश्चर्य है कि उन्होंने किस दिव्य दृष्टि से इस पत्र को पढ़ा है। इस पत्र में एक भी स्थान पर, एक भी पंक्ति या शब्द में यह नहीं लिखा है कि संघ देश पर थोपे गए आपातकाल का समर्थन करता है।

रविवार, 15 जून 2025

संघ सृष्टि में रचे-बसे लेखक की अनुभूति 'राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ : स्वर्णिम भारत के दिशा-सूत्र'

पुस्तक चर्चा : RSS की कहानी-प्रचारक की जुबानी


राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपने शताब्दी वर्ष की ओर कदम बढ़ा रहा है। ऐसे में संघ को लेकर गहरी रुचि और जिज्ञासा सामान्य लोगों से लेकर बौद्धिक जगत में दिखायी दे रही है। संघ के संबंध में अनेक पुस्तकें उपलब्ध हैं, जिन्हें विद्वानों ने अपने-अपने दृष्टिकोण से लिखा है। इस शृंखला में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक सुनील आंबेकर की पुस्तक ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ : स्वर्णिम भारत के दिशा-सूत्र’ अवश्य पढ़ी जानी चाहिए। जब संघ की सृष्टि में रचा-बसा लेखक कुछ लिखता है, तब उसे पढ़कर संघ को ज्यादा बेहतर ढंग से समझा जा सकता है। यह एक ऐसी पुस्तक है, जो लेखक की प्रत्यक्ष अनुभूति के साथ विकसित हुई है। संघ की यात्रा और विभिन्न मुद्दों पर संघ का दृष्टिकोण बताते हुए सुनील आंबेकर अपनी संघ यात्रा को भी रेखांकित करते हैं। यह प्रयोग संघ को व्यवहारिक ढंग से समझने में हमारी सहायता करता है। मनोगत में स्वयं लेखक सुनील जी लिखते हैं कि यह पुस्तक उनके लिए है जो व्यवहार रूप में संघ को समझना चाहते हैं, उसके माध्यम से जिसने संघ को जिया है। उल्लेखनीय है कि सुनील आंबेकर वर्तमान में संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख हैं। इससे पूर्व उनका लंबा समय अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद को गढ़ने में बीता है। सुनील जी बाल्यकाल से स्वयंसेवक हैं। संघ के साथ उनके संबंध नैसर्गिक रूप से विकसित हुए हैं। नागपुर में उनका घर संघ मुख्यालय के पड़ोस में ही है। उनके घर का द्वार संघ कार्यालय के प्रांगण में ही खुलता था।

सोमवार, 9 जून 2025

भारत के स्वराज्य की हुंकार : हिन्दू साम्राज्य दिवस

वीडियो देखें : हिन्दू साम्राज्य दिवस का महत्व | Hindu Samrajya Divas


छत्रपति शिवाजी महाराज भारत की स्वतंत्रता के महान नायक हैं, जिन्होंने ‘स्वराज्य’ के लिए संगठित होना, लड़ना और जीतना सिखाया। मुगलों के लंबे शासन और अत्याचारों के कारण भारत का मूल समाज आत्मदैन्य की स्थिति में चला गया था। विशाल भारत के किसी न किसी भू-भाग पर मुगलों के शोषणकारी शासन से मुक्ति के लिए संघर्ष तो चल रहा था लेकिन उन संघर्षों से बहुत उम्मीद नहीं थी। भारत के वीर सपूत अपने प्राणों की बाजी तो लगा रहे थे लेकिन समाज को जागृत और संगठित करने का काम नहीं कर पा रहे थे। जबकि छत्रपति शिवाजी महाराज ने समाज के भीतर विश्वास जगाया कि हम मुगलों के शासन को जड़ से उखाड़कर फेंक सकते हैं, यदि सब एकजुट हो जाएं। यही कारण है कि छत्रपति शिवाजी महाराज के देवलोकगमन के बाद भी ‘हिन्दवी स्वराज्य’ का विचार पल्लवित, पुष्पित और विस्तारित होता रहा। ‘हिन्दू साम्राज्य दिवस’ या ‘श्रीशिव राज्याभिषेक दिवस’ भारतीय इतिहास की महत्वपूर्ण घटना है। इस घटना ने दुनिया को बताया कि भारत के भाग्य विधाता मुगल नहीं हैं। भारत का हिन्दू समाज ही भारत का भाग्य विधाता है। भारत में हिन्दुओं का राज्य है। उनके शासन का नाम है- ‘हिन्दवी स्वराज्य’।

शुक्रवार, 6 जून 2025

सबका स्वागत करता है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

अपने कार्यक्रमों में विभिन्न विचारों के महानुभावों को आमंत्रित करने की संघ की परंपरा, नागपुर में संघ शिक्षा वर्ग 'कार्यकर्ता विकास वर्ग-2' के समापन समारोह में बतौर मुख्य अतिथि सुप्रसिद्ध जनजातीय नेता अरविंद नेताम आमंत्रित

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सबके लिए खुला संगठन है। इसके दरवाजे किसी के लिए बंद नहीं है। कोई भी संघ में आ सकता है। कोई विपरीत विचार का नेता, सामाजिक कार्यकर्ता या विद्वान व्यक्ति जब संघ के कार्यक्रम में शामिल होता है, तब उन लोगों को आश्चर्य होता है, जो संघ को एक ‘क्लोज्ड डोर ऑर्गेनाइजेशन’ समझते हैं। जो संघ को समझते हैं, उन्हें यह सब सहज ही लगता है। इसलिए नागपुर में आयोजित संघ शिक्षावर्ग ‘कार्यकर्ता विकास वर्ग-2’ के समापन समारोह में जब मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ के जनजाति वर्ग के कद्दावर नेता अरविंद नेताम को आमंत्रित किया गया, तब संघ को जाननेवालों को यह सहज ही लगा लेकिन संघ के प्रति संकीर्ण सोच रखनेवाले इस पर न केवल हैरानी व्यक्त कर रहे हैं अपितु वितंडावाद भी खड़ा करने का प्रयास कर रहे हैं। हालांकि, उनके वितंडावाद की हवा स्वयं जनजातीय नेता अरविंद नेताम ने यह कहकर निकाल दी कि “वनवासी समाज की समस्याेओं और चुनौतियों को संघ कार्यक्रम के माध्याम से रखने का सुअवसर मुझे मिला है”। उन्होंने संघ के संबंध में एक महत्वपूर्ण टिप्पणी यह भी की है कि “इस संगठन में चिंतन-मंथन की गहरी परंपरा है। भविष्य में जनजातीय समाज के सामने जो चुनौतियां आनेवाली हैं, उसमें आदिवासी समाज को जो संभालनेवाले और मदद करनेवाले लोग/संगठन हैं, उनमें हम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को मानते हैं”। सुप्रसिद्ध जनजातीय नेता अरविंद नेताम श्रीमती इंदिरा गांधी और पीवी नरसिम्हा राव सरकार में मंत्री रहे हैं। उल्लेखनीय है कि संघ के कार्यक्रमों में महात्मा गांधी, डॉ. भीमराव अंबेडकर और जय प्रकाश नारायण से लेकर श्रीमती इंदिरा गांधी एवं प्रणब मुखर्जी तक शामिल हो चुके हैं। संघ ने कभी किसी से परहेज नहीं किया। संघ अपनी स्थापना के समय से ही सभी प्रकार के मत रखनेवाले विद्वानों से मिलता रहा है और उन्हें अपने कार्यक्रमों में आमंत्रित करता रहा है।

शुक्रवार, 30 मई 2025

‘देशहित’ से ही बचेगी पत्रकारिता की साख

हिन्दी पत्रकारिता दिवस : क्यों मनाते हैं हिंदी पत्रकारिता दिवस


‘हिंदुस्थानियों के हित के हेत’ इस उद्देश्य के साथ 30 मई, 1826 को भारत में हिंदी पत्रकारिता की नींव रखी जाती है। पत्रकारिता के अधिष्ठाता देवर्षि नारद के जयंती प्रसंग (वैशाख कृष्ण पक्ष द्वितीया) पर हिंदी के पहले समाचार-पत्र ‘उदंत मार्तंड’ का प्रकाशन होता है। इस सुअवसर पर हिंदी पत्रकारिता का सूत्रपात होने पर संपादक पंडित युगलकिशोर समाचार-पत्र के पहले ही पृष्ठ पर अपनी प्रसन्नता प्रकट करते हुए उदंत मार्तंड का उद्देश्य स्पष्ट करते हैं। आज की तरह लाभ कमाना उस समय की पत्रकारिता का उद्देश्य नहीं था। भारत की स्वतंत्रता से पूर्व प्रकाशित ज्यादातर समाचार-पत्र आजादी के आंदोलन के माध्यम बने। अंग्रेज सरकार के विरुद्ध मुखर रहे। यही रुख उदंत मार्तंड ने अपनाया। अत्यंत कठिनाईयों के बाद भी पंडित युगलकिशोर उदंत मार्तंड का प्रकाशन करते रहे। किंतु, यह संघर्ष लंबा नहीं चला। हिंदी पत्रकारिता के इस बीज की आयु 79 अंक और लगभग डेढ़ वर्ष रही। इस बीज की जीवटता से प्रेरणा लेकर बाद में हिंदी के अन्य समाचार-पत्र प्रारंभ हुए। आज भारत में हिंदी के समाचार-पत्र सबसे अधिक पढ़े जा रहे हैं। प्रसार संख्या की दृष्टि से शीर्ष पर हिंदी के समाचार-पत्र ही हैं। किंतु, आज हिंदी पत्रकारिता में वह बात नहीं रह गई, जो उदंत मार्तंड में थी। संघर्ष और साहस की कमी कहीं न कहीं दिखाई देती है। दरअसल, उदंत मार्तंड के घोषित उद्देश्य ‘हिंदुस्थानियों के हित के हेत’ का अभाव आज की हिंदी पत्रकारिता में दिखाई दे रहा है। हालाँकि, यह भाव पूरी तरह समाप्त नहीं हुआ है, लेकिन बाजार के बोझ तले दब गया है। व्यक्तिगत तौर पर मैं मानता हूँ कि जब तक अंश मात्र भी ‘देशहित’ पत्रकारिता की प्राथमिकता में है, तब तक ही पत्रकारिता जीवित है। आवश्यकता है कि प्राथमिकता में यह भाव पुष्ट हो, उसकी मात्रा बढ़े। समय आ गया है कि एक बार हम अपनी पत्रकारीय यात्रा का सिंहावलोकन करें। अपनी पत्रकारिता की प्राथमिकताओं को जरा टटोलें। समय के थपेडों के साथ आई विषंगतियों को दूर करें। समाचार-पत्रों या कहें पूरी पत्रकारिता को अपना अस्तित्व बचाना है, तब उदंत मार्तंड के उद्देश्य को आज फिर से अपनाना होगा। अन्यथा सूचना के डिजिटल माध्यम बढ़ने से समूची पत्रकारिता पर अप्रासंगिक होने का खतरा मंडरा ही रहा है।

सोमवार, 26 मई 2025

संस्कार भारती के बहाने हिन्दू कला दृष्टि पर विमर्श

 पुस्तक समीक्षा : हिन्दू कला दृष्टि – संस्कार भारती क्यों?


भारतीय कला परंपरा केवल सौंदर्य और मनोरंजन तक सीमित नहीं है, वह जीवन-दर्शन की संवाहिका रही है। चिंतन की राष्ट्रीय धारा के ऋषि तुल्य चिंतक-विचार दत्तोपन्त ठेंगड़ी की पुस्तक ‘हिन्दू कला दृष्टि: संस्कार भारती क्यों?’ इसी बिंदु को केंद्र में रखकर भारतीय कला की आत्मा, उसकी गहराई और उसकी सामाजिक भूमिका पर विमर्श करती है। यह एक साधारण पुस्तक नहीं, अपितु एक सांस्कृतिक पुनर्जागरण का घोष है। पुस्तक के लेखन का एक उद्देश्य कला-संस्कृति के क्षेत्र में राष्ट्रीय विचार को लेकर सक्रिय संगठन ‘संस्कार भारती’ का परिचय कराना भी है। लेखन ने प्रारंभ में ही बताया है कि संस्कार भारती की स्थापना का उद्देश्य क्या रहा है? ठेंगड़ी जी की यह पुस्तक ‘संस्कार भारती’ के लिए प्रकाश स्तम्भ की भाँति है। प्रस्तावना में महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा के कुलपति रहे कमलेशदत्त त्रिपाठी ने उचित ही लिखा है कि दत्तोपन्त ठेंगड़ी जी की यह रचना कला-प्रेमियों और कला-समीक्षकों को तो गंभीर संदेश देती ही है। संस्कार भारती के लिए यह पुस्तक श्री ठेंगड़ी जी का आशीर्वाद है।

शुक्रवार, 23 मई 2025

धर्मशाला नहीं है भारत

शरणार्थियों को लेकर सर्वोच्च न्यायालय ने बहुत महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। एक मामले की सुनवाई के दौरान सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि “भारत कोई धर्मशाला नहीं है। दुनिया भर से आए शरणार्थियों को भारत में शरण क्यों दें? हम 140 करोड़ लोगों के साथ संघर्ष कर रहे हैं। हम हर जगह से आए शरणार्थियों को शरण नहीं दे सकते”। न्यायालय ने यह  टिप्पणी श्रीलंका से आए नागरिक के संदर्भ में की, जो लिट्टे से जुड़ा रहा है। न्यायालय ने उसे सात साल की सजा सुनाई थी और कहा था कि वह सजा पूरी होते ही अपने देश वापिस चला जाए। लेकिन वह वापस नहीं जाना चाहता क्योंकि वहाँ उसे कठोर सजा मिल सकती है। उसने भारत में ही शरण लेने के लिए याचिका दायर की थी। भले ही न्यायालय की यह टिप्पणी श्रीलंकाई नागरिक के संदर्भ में है लेकिन यह टिप्पणी हमारे लिए अन्य शरणार्थियों के संदर्भ में भी मार्गदर्शन करती है। न्यायालय की टिप्पणी को व्यापक बहस का हिस्सा बनाया जाना चाहिए। हमारे देश में एक वर्ग ऐसा है, जो आपराधिक प्रवृत्ति के शरणार्थियों की पैरोकारी करता है। हिंसक व्यवहार और आपराधिक प्रवृत्ति के कारण म्यांमार से रोहिंग्या मुसलमानों को भगाया गया है। वहाँ से आकर रोहिंग्या मुसलमान भारत में बस गए हैं। यहाँ भी रोहिंग्या हिंसा, चोरी, लूटपाट, महिला अपराधों में शामिल हैं। यहाँ तक की सांप्रदायिक हिंसा में भी रोहिंग्याओं के शामिल होने के प्रमाण सामने आए हैं। इसके बाद भी देश में तथाकथित सेकुलर एवं प्रगतिशील बुद्धिजीवी इन रोहिंग्याओं के निर्वसन का विरोध करते हैं।

शुक्रवार, 16 मई 2025

एक सिक्के के दो पहलू हैं आतंकवाद और पाकिस्तान

भारतीय सेना ने प्रेसवार्ता में बताया कि आतंकियों के जनाजे में पाकिस्तानी सेना के अधिकारी शामिल हुए।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्र के नाम अपने संदेश में कहा था कि अगर पाकिस्तान ने आतंकवाद का साथ नहीं छोड़ा तो वह तबाह हो जाएगा। यह बात सौ फीसदी सच है। लेकिन पाकिस्तान कुत्ते की दुम की तरह है, जिसे बारह वर्ष भी पुंगी में रखेंगे, तो टेड़ी ही रहेगी। वह आतंकवाद का साथ छोड़ ही नहीं सकता। यह कहना सर्वथा उपयुक्त है कि पाकिस्तान और आतंकवाद एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। पाकिस्तान को ‘आतंकिस्तान’ भी कहा जा सकता है। पाकिस्तानी सरकार ने भारतीय हमले में मारे गए आतंकवादियों के परिवारों को एक-एक करोड़ रुपये का मुआवजा देने की घोषणा की है। अंतरराष्ट्रीय आतंकी मसूद अजहर के 14 आतंकी रिश्तेदार भारतीय सेना के हमले में मारे गए हैं। इस तरह पाकिस्तान की सरकार संयुक्त राष्ट्र की ओर से घोषित आतंकी मसूद अजहर को 14 करोड़ रुपये देने की तैयारी कर रही है।

‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान यह भी साबित हो गया कि आतंकवादी समूह पाकिस्तानी सेना का हिस्सा हैं। अन्यथा क्या कारण था कि आतंकवादियों के जनाज में पाकिस्तान के बड़े अधिकारी पहुंचते। पाकिस्तान के सेना प्रमुख ने भी मारे गए आतंकियों के प्रति अपनी शोक संवेदनाएं प्रकट कीं। पाकिस्तान सेना और आतंकियों के बीच के गठजोड़ को लेकर फोटो-वीडियो भी सामने आया है। इसमें पाकिस्तानी नेता और सैन्य अधिकारी, लश्कर-ए-तैयबा के कमांडर अब्दुल रऊफ के साथ जनाजे की नमाज पढ़ते दिख रहे थे। इस संदर्भ में पेंटागन के पूर्व अधिकारी माइकल रुबिन ने कहा है कि “वर्दीधारी पाकिस्तानी अधिकारी आतंकवादियों के अंतिम संस्कार में शामिल हुए। यह दर्शाता है कि आतंकवादी और आईएसआई या पाकिस्तानी सशस्त्र बलों के सदस्य के बीच कोई अंतर नहीं है”। पाकिस्तान की सेना के एक अधिकारी ने प्रेसवार्ता में यह भी स्वीकार किया है कि उनकी सेना का प्रशिक्षण इस्लामिक तौर-तरीकों के साथ ही होता है। जिहाद उनके प्रशिक्षण का हिस्सा है। संभव है कि पाकिस्तानी सेना इसी कारण कई बार बर्बर तौर-तरीके अपनाती है।

गुरुवार, 15 मई 2025

चीन के बचकाने प्रयास : अरुणाचल प्रदेश के स्थानों के नाम बदलने से क्या सच बदल जाएगा?

विस्तारवादी मानसिकता से ग्रसित चीन अरुणाचल प्रदेश के कई स्थानों के नाम बदलने के व्यर्थ और बेतुके प्रयास कर रहा है। इस तरह की बचकाना हरकत वह पहली बार नहीं कर रहा है, बल्कि पहले भी उसने ऐसा किया है और भारत ने हर बार चीन को आईना दिखाया है। इस बार भी भारत के विदेश मंत्रालय ने चीन की बचकानी सोच पर कहा है कि “हमने देखा है कि चीन भारतीय राज्य अरुणाचल प्रदेश में स्थानों का नाम बदलने के अपने व्यर्थ और बेतुके प्रयासों में लगा हुआ है। हमारे सैद्धांतिक रुख के अनुरूप, हम इस तरह के प्रयासों को स्पष्ट रूप से अस्वीकार करते हैं। नामकरण से इस निर्विवाद वास्तविकता में कोई बदलाव नहीं आएगा कि अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न और अविभाज्य अंग था, है और हमेशा रहेगा”। 

चीन किसी भ्रम में न रहे कि वह भारत का गलत नक्शा बनाकर, वास्तविकता को बदल देगा। भारत एक संप्रभु राष्ट्र है और अरुणाचल प्रदेश भारत का अभिन्न अंग है। सच तो यह है कि चीन ने 1962 में धोखे से भारत की जमीन पर अतिक्रमण कर रखा है। तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को ‘हिन्दी-चीनी, भाई-भाई’ के खोखले नारे में उलझाकर चीन ने भारत पर हमला किया और हमारी जमीन पर कब्जा कर लिया। यह दुर्भाग्य की बात है कि तत्कालीन नेतृत्व ने अपनी खोयी हुई जमीन को वापस पाने के लिए कोई ठोस प्रयास नहीं किए। बल्कि उसे बंजर जमीन मानकर उससे मुंह ही फेर लिया। हमने भूमि को रणनीतिक महत्व से देखने का प्रयास ही नहीं किया।

बुधवार, 14 मई 2025

ध्यान से सुनें पाकिस्तान और ‘दुनिया के चौधरी देश’

ऑपरेशन सिंदूर पर प्रधानमंत्री मोदी का राष्ट्र के नाम संदेश


प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की सफलता के बाद ‘राष्ट्र के नाम संदेश’ दिया, जिसमें उन्होंने सबकी एकजुटता के लिए धन्यवाद दिया। जिस प्रकार की एकजुटता भारत के लोगों ने दिखायी, उसको रेखांकित करना आवश्यक भी था। जब किसी देश के नागरिक ‘राष्ट्र सर्वोपरि’ की भावना से भर जाते हैं, तब वह देश किसी भी क्षेत्र में सबसे श्रेष्ठ प्रदर्शन करता है। एकजुटता से बड़ा कोई संदेश नहीं होता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बहुत ही नपे-तुले शब्दों में भारत का अभिमत रखा है। उनका यह संबोधन भले ही देश के नागरिकों के लिए था, लेकिन इसमें समूची दुनिया के लिए संदेश था। इसलिए उम्मीद है कि पाकिस्तान और दुनिया के चौधरी के रूप में खुद का प्रस्तुत करनेवाले देश के बड़बोले नेताओं ने भी भारत की बात को ध्यान से सुना होगा।

प्रधानमंत्री मोदी ने स्पष्ट कर दिया कि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के जरिए भारतीय सेनाओं ने पाकिस्तान को दुनियाभर में गुहार लगाने के लिए मजबूर कर दिया। इसलिए पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने सीजफायर के बाद अमेरिका को कई बार धन्यवाद दिया। जबकि भारत ने एक बार भी अमेरिका और उसके राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का नाम नहीं लिया। इस अंतर को समझना बहुत जरूरी है। यह भारत और पाकिस्तान की स्थिति के अंतर को भी बताता है। यह साफ संदेश है कि भारत ने किसी के दबाव में या किसी के कहने पर सीजफायर नहीं किया बल्कि पाकिस्तान की गुहार पर आतंकवाद पर अपनी कार्रवाई को स्थगित किया है। अगर ट्रंप अभी भी श्रेय लूटने की कोशिश करते हैं, तब इसे उनका बड़बोलापन ही कहा जाएगा, जिसका प्रदर्शन वे पहले भी कई अवसरों पर करते आए हैं।

मंगलवार, 13 मई 2025

‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर प्रश्न उठाने वालों को शंका की दृष्टि से देखिए

ऑपरेशन सिंदूर की सफलता की जानकारी देती भारतीय सेना

भारतीय सेना ने एक बार फिर देश और दुनिया को बताया कि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ में हमने आतंकवादियों और पाकिस्तान के साथ क्या किया है? इसके साथ ही सेना ने चेतावनी भी दी है कि यदि पाकिस्तान और आतंकियों ने फिर से कोई गलती की तो उसे इससे भी भारी अंजाम भुगतना होगा। भारतीय सेना की ओर से कहा गया है – “भय बिन होई न प्रीति। यानी बिना डर के प्रीत होना संभव नहीं है”। पाकिस्तान की फौज और आतंकवादियों में भारतीय सेना का भय होना चाहिए। सेना ने जिस तरह से पाकिस्तान के भीतर तक उसके मुख्य आतंकी एवं सैन्य ठिकाने तबाह किए हैं, उससे आतंकियों के भीतर खौप पैदा होना स्वाभाविक है। 

पाकिस्तान और पाकिस्तानपरस्त लोगों द्वारा फैलाई जा रही अफवाहों की हवा निकालते हुए सेना ने यह भी कहा कि भारत के सभी सैन्य ठिकाने एवं हथियार न केवल सुरक्षित हैं बल्कि हम अलगे हमले के लिए भी तैयार हैं। पाकिस्तान की अभी इतनी ताकत है ही नहीं कि वह हमारी सुरक्षा व्यवस्था में सेंध लगा पाता। भारतीय सेना को सुनने के बाद किसी भी देशभक्त नागरिक के मन में कोई प्रश्न और शंका नहीं होनी चाहिए। अपने देश को मजबूत बनाने के लिए हमें एकजुट होकर अपनी सरकार और सेना के साथ खड़ा होना चाहिए।

लक्ष्य प्राप्ति में सफल रहा ऑपरेशन सिंदूर

पाकिस्तान पर हमले के संबंध में भारतीय सेना द्वारा जारी किया गया चित्र।

पहलगाम आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान में सुरक्षित बैठे आतंकियों को जहन्नुम पहुँचाने के अपने लक्ष्य में ऑपरेशन सिंदूर पूरी तरह सफल रहा है। ऑपरेशन सिंदूर में पाकिस्तान द्वारा वर्षों से पोषित आतंकियों एवं उनके रिश्तेदारों की मौत पर पाकिस्तान की सेना बौखला गई और उसने भारत के नागरिक क्षेत्रों को निशाना बनाने का प्रयास किया। भारत ने अपनी सैन्य क्षमता का प्रदर्शन करते हुए पाकिस्तान के लगभग सभी हमलों को विफल कर दिया। वहीं, पलटवार में भारत ने पाकिस्तान के भीतरी ठिकानों को निशाना बनाकर अपने इरादे जाहिर कर दिए। पाकिस्तान माइक-कैमरा पर आकर कुछ भी कहे लेकिन भारतीय सेना का रौद्र रूप देखकर वह भीतर से भयभीत था। इसलिए पाकिस्तान की सेना और सरकार ने मिलकर हमले रोकने के लिए गुहार लगाना शुरू कर दिया था। भारत ने अपनी शर्तों पर पाकिस्तान को घुटनों पर बैठने के लिए मजबूर किया है। सीजफायर में भारत ने अपनी शर्तें मनवायी हैं। भविष्य में किसी भी आतंकवादी हमले को ‘युद्ध की घोषणा’ समझा जाएगा। यह भारत के सामर्थ्य की जीत है।

हालांकि, भारत को हमेशा सावधान रहना होगा। पाकिस्तान की सेना, सरकार और उसके द्वारा पोषित आतंकवाद पर किसी भी सूरत में विश्वास नहीं किया जा सकता है। भारतीय वायुसेना ने कहा है कि ऑपरेशन सिंदूर एक पेशेवर ऑपरेशन था, जिसमें हमें सफलता मिली है। तात्कालीक लक्ष्य हमने पहले दिन ही प्राप्त कर लिए थे। वायुसेना ने स्पष्ट किया कि आतंकवाद के विरुद्ध यह ऑपरेशन जारी रहेगा। भारतीय सेना का यह वक्तव्य बहुत कुछ कहता है। हालांकि, यहाँ अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जल्दबाजी दिखाते हुए भारत-पाकिस्तान के बीच सीजफायर का श्रेय लूटने की घोषणा करके भारत के महत्व को कम करने का राजनीतिक अपराध किया है, जिसे संभवत: भारत कभी भूलेगा नहीं।

बुधवार, 7 मई 2025

भारत के स्वाभिमान की अभिव्यक्ति है ‘ऑपरेशन सिंदूर’

भारत ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के जरिए आतंकियों और उसके संरक्षक पाकिस्तान को स्पष्ट संदेश भेज दिया है। यह नया भारत है, जो हिसाब-किताब में पक्का है। यह नया भारत है, जो केवल निंदा प्रस्ताव पारित नहीं करता है अपितु शत्रु को भी यह अवसर देता है कि वह भी निंदा प्रस्ताव पारित करे। यह नया भारत है, जो अपराध की सजा अपराधी को अनिवार्य रूप से देता है। भारत अपने स्वाभिमान और प्रभुत्व की रक्षा के लिए यथासंभव कदम उठा सकता है, यह उसने बता दिया। किसी को यह अधिकार नहीं है कि वह भारत के गिरेबां पर हाथ डाले। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पहलगाम हमले का बदला तो है ही, यह भारत के स्वाभिमान की अभिव्यक्ति भी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर कहा है कि “ये नया भारत है। पूरा देश हमारी ओर देख रहा था। यह तो होना ही था”।

मंगलवार, 29 अप्रैल 2025

यह लव जिहाद नहीं तो क्या है?

साभार : स्वदेश ज्याेति

भोपाल और इंदौर से लव जिहाद के जिस प्रकार के मामले सामने आए हैं, वे एक खतरनाक प्रवृत्ति की ओर संकेत कर रहे हैं। यह मामले अनिवार्य रूप से उस मानसिकता का संकेत दे रहे हैं जिसमें मुस्लिम कट्टरपंथियों द्वारा अपने मजहबी काम के तौर पर हिन्दू और गैर-इस्लामिक युवतियों को साजिश पूर्वक अपने जाल में फंसाया जाता है, उनका शारीरिक-मानसिक शोषण किया जाता जाता है। उसके बाद उन्हें या तो आपराधिक जगत में धकेल दिया जाता है या फिर इस्लाम में कन्वर्ट करके सम्प्रदाय के विस्तार के लिए उनका दुरुपयोग किया जाता है। चिंता की बात यह है कि ये मामले केवल भोपाल और इंदौर तक सीमित नहीं होंगे। मामले की गहराई से पड़ताल की जाए तो इस तरह के गिरोह मध्यप्रदेश के अन्य जिलों में भी सक्रिय मिलेंगे, जो मजहबी मानसिकता से हिन्दू युवतियों को अपना शिकार बना रहे होंगे। इस लव जिहाद के पीछे बड़ा तंत्र है, जिसके तार हमें देशभर में फैले दिखाई देते हैं। फ़िल्म 'द केरल स्टोरी' के माध्यम से पहली बार लव जिहाद की साजिश को बड़े स्तर पर समाज के सामने लाया गया। उससे पहले केरल के उच्च न्यायालय ने 'लव जिहाद' शब्द का पहली बार उपयोग करते हुए, इस प्रवृत्ति पर अपनी चिंता जताई थी। परंतु हमने बीमारी को पहचान करके उसका उपचार करने की बजाय बीमारी को नकारने में अपनी पूरी ऊर्जा खर्च कर दी। भोपाल के प्रकरण में भी पुलिस प्रशासन ने यही गलती की। यदि मीडिया ने खोज-पड़ताल करके इस समाचार को प्रकाशित नहीं किया होता, तब पुलिस मामले को यूँ ही रफा-दफा कर देती। कहना होगा कि हम हर बार इस प्रकार के मामलों में सेकुलर दिखने की चक्कर में शुतुरमुर्ग बन जाते हैं।

सोमवार, 14 अप्रैल 2025

संघ की शाखा में आए बाबा साहब डॉ. अंबेडकर

RSS की शाखा में अंबेडकर | आरएसएस और डॉ. भीमराव अंबेडकर


संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विचारों में बहुत हद तक साम्य है। विशेषकर, हिन्दू समाज में काल के प्रवाह में आई अस्पृश्यता को दूर करने के लिए जिस प्रकार का संकल्प बाबा साहब के विचारों में दिखायी देता है, उसके दर्शन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्य में प्रत्यक्ष रूप से होते हैं। यही कारण है कि संघ और बाबा साहब प्रारंभ से, प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से एक-दूसरे के निकट रहे हैं। यह तथ्य बहुत कम ही सामने आया है कि डॉ. अंबेडकर ने संघ की शाखा एवं शिक्षा वर्गों में जाकर स्वयंसेवकों को संबोधित भी किया है और संघ के पदाधिकारियों से संघ कार्य की जानकारी भी प्राप्त की थी। इसलिए आज जब कहा जाता है कि बाबा साहब भी संघ की शाखा पर आए थे, तो कई लोग आर्श्चय व्यक्त करते हैं। परंतु, यह सत्य है। यह भी याद रखें कि संघ के प्रति बाबा साहेब के मन में कभी कोई दुराग्रह या नकारात्मक दृष्टिकोण नहीं रहा है। अवसर आने पर उन्होंने संघ के संबंध में सद्भाव ही प्रकट किए हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के कार्यकर्ताओं एवं अधिकारियों के मन में भी बाबा साहेब के प्रति श्रद्धा का भाव है। संघ के कार्यकर्ता एकात्मता स्रोत में प्रतिदिन बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर का स्मरण करते हैं।

शुक्रवार, 4 अप्रैल 2025

जब पत्रकारिता ने चलाया गो-संरक्षण का सफल आंदोलन

देखें वीडियो- पंडित माखनलाल चतुर्वेदी का जीवन परिचय

पंडित माखनलाल चतुर्वेदी उन विरले स्वतंत्रता सेनानियों में अग्रणी हैं, जिन्होंने अपनी संपूर्ण प्रतिभा को राष्ट्रीयता के जागरण एवं स्वतंत्रता के लिए समर्पित कर दिया। अपने लंबे पत्रकारीय जीवन के माध्यम से माखनलाल जी ने रचना, संघर्ष और आदर्श का जो पाठ पढ़ाया वह आज भी हतप्रभ कर देने वाला है। आज की पत्रकारिता के समक्ष जैसे ही गो-हत्या का प्रश्न आता है, वह हिंदुत्व और सेकुलरिज्म की बहस में उलझ जाता है। इस बहस में मीडिया का बड़ा हिस्सा गाय के विरुद्ध ही खड़ा दिखाई देता है। सेकुलरिज्म की आधी-अधूरी परिभाषाओं ने उसे इतना भ्रमित कर दिया है कि वह गो-संरक्षण जैसे राष्ट्रीय महत्व के विषय को सांप्रदायिक मुद्दा मान बैठा है। कृषि आधारित अर्थव्यवस्था में गो-संरक्षण कितना महत्वपूर्ण है, इस बात को समझना कोई टेड़ी खीर नहीं। हद तो तब हो जाती है जब मीडिया गो-संरक्षण या गो-हत्या को हिंदू-मुस्लिम रंग देने लगता है। गो-संरक्षण शुद्धतौर पर भारतीयता का मूल है। इसलिए ही ‘एक भारतीय आत्मा’ के नाम से विख्यात महान संपादक पंडित माखनलाल चतुर्वेदी गोकशी के विरोध में अंग्रेजों के विरुद्ध अपनी पत्रकारिता के माध्यम से देशव्यापी आंदोलन खड़ा कर देते हैं। गोकशी का प्रकरण जब उनके सामने आया, तब उनके मन में द्वंद्व कतई नहीं था। उनकी दृष्टि स्पष्ट थी- भारत के लिए गो-संरक्षण आवश्यक है। कर्मवीर के माध्यम से उन्होंने खुलकर अंग्रेजों के विरुद्ध गो-संरक्षण की लड़ाई लड़ी और अंत में विजय सुनिश्चित की। 

बुधवार, 2 अप्रैल 2025

अमर संस्कृति का अक्षय वट है संघ

यह सर्वविदित तथ्य है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से गहरा नाता है। संघ की शाखा में प्रधानमंत्री मोदी का संस्कार हुआ है। उनके व्यक्तित्व में सादगी, त्याग, अनुशासन और देशभक्ति की जो अभिव्यक्ति होती है, उसके पीछे संघ का ही संस्कार है। अपने नागपुर प्रवास के दौरान प्रधानमंत्री मोदी संघ के संस्थापक एवं आद्य सरसंघचालक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ‘डॉक्टर साहब’ और द्वितीय सरसंघचालक माधव सदाशिव गोलवलकर ‘श्रीगुरुजी’ के समाधि स्थल ‘स्मृति मंदिर’ पर पहुंचकर श्रद्धासुमन अर्पित करने के साथ ही ‘अभ्यागत पंजीयन’ (विजिटर बुक) में जो विचार दर्ज किया है, वह समाज जीवन में संघ की भूमिका को रेखांकित करता है। प्रधानमंत्री मोदी ने उचित ही लिखा है कि “राष्ट्रीय चेतना के जिस विचार का बीज 100 वर्ष पहले बोया गया था, वह आज एक महान वटवृक्ष के रूप में खड़ा है। सिद्धांत और आदर्श इस वटवृक्ष को ऊंचाई देते हैं, जबकि लाखों-करोड़ों स्वयंसेवक इसकी टहनियों के रूप में कार्य कर रहे हैं। संघ भारत की अमर संस्कृति का आधुनिक अक्षय वट है, जो निरंतर भारतीय संस्कृति और राष्ट्रीय चेतना को ऊर्जा प्रदान कर रहा है”।

रविवार, 23 मार्च 2025

भारत को ‘भारत’ ही लिखें और बोलें

देखें यह वीडियो : भारत या इंडिया - संविधान सभा में किस नाम पर बहस


देश के प्राचीन एवं संविधान सम्मत नाम ‘भारत’ का जिस प्रकार विरोध किया जा रहा है, उससे दो बातें सिद्ध हो जाती हैं। पहली, देश में अभी भी एक वर्ग ऐसा है, जो मानसिक रूप से औपनिवेशिक गुलामी का शिकार है। भारत के ‘स्व’ और उसकी सांस्कृतिक परंपरा को लेकर उसके मन में गौरव की कोई अनुभूति नहीं है। दूसरी, वास्तव में यह समूह ‘भारत विरोधी’ है। भारतीयता का प्रश्न जब भी आता है, तब यह समूह उसके विरुद्ध ही खड़ा मिलता है। एक तरह से यह उसका स्वभाव बन गया है। देश की जनता देखकर आश्चर्यचकित है कि ‘भारत’ का विरोध करने के लिए कांग्रेस सहित उसके समर्थक राजनीतिक दल एवं वैचारिक समूह किस स्तर पर पहुँच गए हैं। ‘भारत’ को ‘भारत’ कहने पर आखिर हाय-तौबा क्यों मची हुई है? भारत विरोधी समूह को एक बार संविधान सभा की बहस पढ़नी चाहिए। निश्चित ही उसे ध्यान आएगा कि तत्कालीन कांग्रेसी नेता अपने देश का नाम ‘भारत’ ही रखना चाहते थे लेकिन अंग्रेजी मानसिकता के दास लोगों के सामने उनकी चली नहीं। आखिरकार ‘भारत’ के साथ ‘इंडिया’ नाम भी चिपक गया।

सोमवार, 17 मार्च 2025

छत्रपति महाराज के व्यक्तित्व, स्वराज्य की संकल्पना व दुर्ग की समझ विकसित करती है पुस्तक 'हिन्दवी स्वराज्य दर्शन'

- सौरभ तामेश्वरी (लेखक पत्रकार एवं स्तम्भकार है।)

पुस्तकों का लेखन जितना सरल हो, उतने ही अधिक लोग उसे पढ़ते हैं। पत्रकार, मीडिया शिक्षक एवं बेहतरीन लेखक लोकेंद्र सिंह ने सरल शब्दों में अधिक संदर्भों के सहारे बड़ी ही तथ्यात्मक पुस्तक ‘हिंदवी स्वराज्य दर्शन’ लिखी है। यह पुस्तक हिन्दवी साम्राज्य के संस्थापक एवं स्वराज्य के उद्घोषक श्री शिव छत्रपति महाराज के व्यक्तित्व, स्वराज्य की संकल्पना एवं दुर्गों को समझने में महत्वपूर्ण दस्तावेज है। पुस्तक ‘हिंदवी स्वराज्य दर्शन’ पाठकों से बड़ी ही सहजता से अपने विषय पर संवाद करती है। यात्रा वृतांत के रूप में लिखी गई इस पुस्तक में हिन्दवी स्वराज के दुर्गों के बारे में विस्तृत रूप से चर्चा की गई है।

हमें ज्ञात है कि हिन्दवी स्वराज्य में दुर्ग केंद्रीय तत्व हैं। जब विदेशी आक्रांताओं के अत्याचारों एवं दासता के अंधकार से देश घिरता जा रहा था, तब हिन्दवी स्वराज के इन्हीं दुर्गों से स्वराज्य का संदेश देनेवाली मशाल जल उठी थी। स्वराज्य की स्थापना हेतु छत्रपति शिवाजी महाराज अपने इन्हीं दुर्गों से गर्जना कर मराठों में आत्मविश्वास और ‘स्व’ से प्रेम जाग्रत करते थे।

पुस्तक ‘हिन्दवी स्वराज्य दर्शन’ में लेखक अपनी यात्रा के अनुभवों को आधार बनाते हुए हमें दुर्गों के बारे महत्वपूर्ण जानकारी दे रहे हैं। पुस्तक में पहले ही बताया गया है कि यह अपने इतिहास को, स्वराज्य के लिए हुए संघर्ष एवं बलिदान को समीप से जानने-समझने की एक अविस्मरणीय यात्रा को समर्पित है। पुस्तक पढ़ने से पहले हिन्दवी स्वराज के दुर्गों के बारे में आपकी जो धारणा होगी, उससे अलग और अधिक जानकारी इस पुस्तक में है। दुर्ग, जिन्हें हम किले, गढ़ और कोट के नाम से भी जानते हैं। पुस्तक में दुर्गों के प्रकारों पर प्रकाश डाला गया है। पुस्तक ‘हिन्दवी स्वराज्य दर्शन’ पढ़ने के बाद दुर्गों के विभिन्न स्वरूपों की समझ विकसित होती है। इस पुस्तक में हिन्दवी स्वराज की प्रतिज्ञाभूमि की स्मृतियां ताजा होंगी। 

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श्रीशिव छत्रपति के राज्याभिषेक से लेकर उनके देवलोकगमन के अवसरों के साक्षी बने ‘श्री दुर्गदुर्गेश्वर- रायगढ़’ के किले की दास्तान सुनने को मिलेगी। मिर्जा राजा जयसिंह और छत्रपति के मध्य हुई ऐतिहासिक और रणनीति पुरंदर संधि की जानकारी प्राप्त होगी। इसमें तानाजी के शौर्य की गाथा कहते सिंहगढ़ की चर्चा होगी तो छत्रपति शंभूराजे की समाधि के महत्व सहित अनेक पहलुओं की बात है।

पुस्तक में छत्रपति शिवाजी महाराज का अपने बच्चों की तरह दुर्गों का ध्यान रखकर उनके प्रति स्नेह दिखता है। साथ ही उनकी चतुराई की समझ का भी ज्ञान होता है, जहां वह दुर्गों की सुरक्षा देखने के लिए प्रतियोगिताएं आयोजित करवाते थे। महाराज ऐसा क्यों करवाते थे, यह आपको पुस्तक पढ़ने के बाद समझ आएगा। आप लेखक लोकेंद्र सिंह की पुस्तक ‘हिन्दवी स्वराज्य दर्शन’ को अवश्य पढ़ें। उनकी यह पुस्तक काफी चर्चाएं बटोर रही है। यह पुस्तक अमेजॉन पर उपलब्ध है, जिसे आप आसानी से घर बैठे ही ऑर्डर कर सकते हैं।

लेखक लोकेंद्र सिंह की बहुचर्चित पुस्तक ‘हिंदवी स्वराज्य दर्शन’ की चर्चा