रविवार, 23 नवंबर 2025

सज्जनशक्ति को साथ ले, समाज परिवर्तन के प्रयासों को दी गति

संघ शताब्दी वर्ष : संघ विकास यात्रा के चौथा चरण द्वितीय सरसंघचालक माधव सदाशिवराव गोलवलकर ‘श्रीगुरुजी’ के जन्म शताब्दी वर्ष से शुरू हुआ 

अपने सुदीर्घ सामाजिक यात्रा में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक-एक कदम आगे बढ़, अपना सामर्थ्य बढ़ाता रहा और उसके अनुरूप देशहित में अपनी भूमिका का विस्तार करता रहा है। संघ के स्वयंसेवक एक गीत गाते हैं- "दसों दिशाओं में जाएं, दल-बादल से छा जाएं, उमड़-घुमड़कर हर धरती को नंदनवन सा लहराएं..."। अपने तीन चरण की यात्रा के साथ संघ अब देशव्यापी संगठन हो चुका था। समाज जीवन के विविध क्षेत्रों में भी भारतीयता का पोषण करने वाला वातावरण बनाने के लिए समविचारी संगठन प्रारंभ हो ही गए थे। अब आवश्यकता थी कि सब कार्यों में समाज की सज्जनशक्ति को जोड़कर उन कार्यों को और अधिक प्रभावी बनाया जाए। किसी भी रचनात्मक एवं सृजनात्मक कार्य की स्थायी सिद्धि के लिए आवश्यक है कि समाज के प्रमुख जन उस कार्य को अपना मानें और उसे यशस्वी बनाने में अपनी भूमिका निभाएं। समाज की सज्जनशक्ति तक पहुंचना और उन्हें संघधारा में लेकर आना, इसके लिए संघ ने अपने द्वितीय सरसंघचालक माधव सदाशिवराव गोलवलकर उपाख्य 'श्रीगुरुजी' की जन्मशताब्दी वर्ष को सुअवसर के तौर पर देखा। 

हम कह सकते हैं कि संघ के विकास का चौथा चरण वर्ष 2006 में श्रीगुरुजी की जन्मशती के साथ प्रारंभ होता है। श्रीगुरुजी का जन्म शताब्दी वर्ष संघ ने महत्त्वपूर्ण सामाजिक आयोजनों के साथ मनाया। इस अवसर पर खंड स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक हिन्दू सम्मेलन और समरसता बैठकों की शृंखला आयोजित की गई। देशभर में विभिन्न स्थानों पर बड़े-बड़े हिन्दू सम्मेलनों का आयोजन किया गया, जिनमें समाज के सभी वर्गों, जातियों एवं मत-पंथों के लोगों ने सहभागिता की। पूरे वर्ष चले इन आयोजनों में लगभग 1 करोड़ 60 लाख सामान्य लोगों, 13,000 संतों एवं 1,80,000 सामाजिक नेताओं ने भाग लिया। वर्ष 2006 के दौरान गाँव-गाँव में आयोजित समरसता बैठकों ने समाज में फैले भेदभाव को मिटाने और एकता का संदेश देने का काम किया। संघ ने श्रीगुरुजी के जन्मशती के कार्यक्रमों में जिन भी महानुभाव को संपर्क किया, उन्होंने सहर्ष संघ के कार्यक्रमों में शामिल होना स्वीकार किया। मानो, समाज की सज्जनशक्ति संघ के निमंत्रण की प्रतीक्षा कर रही हो। उपहास, अनदेखी और विरोध को पार करते हुए संघ ने समाज में अपने कार्य से प्रतिष्ठा अर्जित कर ली, जिसके कारण कल तक किनारे पर खड़े रहकर जो बंधु संघकार्य की सराहना और सहयोग कर रहे थे, अब वे उत्साहपूर्व संघकार्य में शामिल होने के लिए आगे आने लगे। 

श्रीगुरुजी के जन्मशताब्दी वर्ष पर संघ के साथ बड़ी संख्या में सज्जनशक्ति जुड़ी। समाज की इस सज्जनशक्ति को साथ लेकर समाज परिवर्तन के कार्य में स्वयंसेवक सक्रिय हों, इसके लिए संघ ने श्रीगुरुजी की जन्मशती के प्रसंग पर 6 गतिविधियों- सामाजिक समरसता, पर्यावरण संरक्षण, समग्र ग्राम विकास, गोसेवा, कुटुंब प्रबोधन और धर्मजागरण- की शुरुआत की। यह ऐसे कार्य हैं, जिनमें समाज का सामान्य व्यक्ति भी जुड़ना चाहता है। सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी कहते हैं कि संघ की सभी गतिविधियां समाज परिवर्तन का साधन है। परिवर्तन के नाम पर राज्य व्यवस्था बदल जाती है, लेकिन उससे सभी बीमारी ठीक नहीं होती है। समाज के स्वभाव में परिवर्तन होना चाहिए। हमें धर्म आचरण करने वाला समाज बनाना है। इन गतिविधियों के माध्यम से संघ न केवल स्वयं कार्य कर रहा है अपितु इन क्षेत्रों में चल रहे निःस्वार्थ प्रयासों को अपना भरपूर सहयोग भी दे रहा। 

सामाजिक समरसता में संघ ने अभूतपूर्व योगदान दिया है, जिसकी अनुभूति भूरि-भूरि प्रशंसा महात्मा गांधी से लेकर बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर भी कर चुके हैं। श्रीगुरुजी के कार्यकाल में संघ ने संतों के श्रीमुख से उद्घोष कराया कि ‘हिन्दव:सोदरा: सर्वे, न हिन्दू: पतितो भवेत्।’ संघ ने संतों को जाति-संप्रदाय से बाहर निकालकर उन्हें संपूर्ण हिन्दू समाज का मार्गदर्शक बनाया। सब लोग मिलकर संत रविदास, कबीर, नामदेव, फुले और डॉ. अंबेडकर की जयंती मनाएं, ऐसी परंपरा संघ के स्वयंसेवकों ने बनायी। आज संघ के स्वयंसेवक समाज के सभी जाति-संप्रदाय के बंधुओं को साथ लेकर, बिना किसी प्रचार के सामाजिक समरसता के कार्य को प्रभावी ढंग से कर रहे हैं। हिन्दू जीवनशैली प्रकृति अनुकूल है, उसका स्मरण कराना संघ की पर्यावरण गतिविध का उद्देश्य है। सामान्य दिनचर्या में हम प्रकृति का ख्याल रखना सीखें, ऐसे छोटे-बड़े प्रयोगों से पर्यावरण गतिविधि के कार्यकर्ता बड़े उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं। इस बार का महाकुंभ अपनी भव्यता और सुव्यवस्थित आयोजन के साथ-साथ आरएसएस के स्वयंसेवकों द्वारा पर्यावरण संरक्षण के लिए किए गए प्रयासों के लिए भी जाना गया। महाकुंभ में प्लास्टिक कचरा कम करने और पर्यावरण सुरक्षा के लिए संघ ने देशभर में थैला-थाली संग्रह अभियान चलाया, जिसके सुखद परिणाम आए। महाकुंभ में आए श्रद्धालुओं को 20 लाख से अधिक थालियां और इतने ही कपड़े के थैले वितरित किए गए। ग्राम विकास के बिना भारत के विकास की कल्पना नहीं की जा सकती है। लेकिन गाँव के विकास को लेकर जो भी योजनाएं या नीति बनती है, उनमें समग्रता से विचार नहीं किया जाता है। इसलिए गाँव से पलायन नहीं रुका। रोजगार के अवसर निर्मित नहीं हुए। कृषि भी अपने प्राकृतिक स्वभाव से हटकर पूरी तरह रसायन आधारित होती जा रही है। इन सब बातों को विचार करके संघ के स्वयंसेवक किसानों को साथ लेकर समग्र ग्राम विकास की गतिविधि के अंतर्गत उल्लेखनीय कार्य किए हैं। आज 700 से अधिक गाँव ऐसे तैयार हो गए हैं, जो समग्र विकास के मॉडल हैं। गो-सेवा को लेकर आज अगर सबसे मुखर और प्रामाणिक आवाज किसी की है, तो वह संघ की है। आज देश में 74 हजार से अधिक घरों में गो पालन हो रहा है। 11 हजार 640 गोशालाएं संघ के संपर्क में हैं। 21 हजार 469 किसान 67,932 एकड़ भूमि पर गो-आधारित खेती कर रहे हैं। ऐसी कई उल्लेखनीय उपलब्धियां इस क्षेत्र में आज दिखायी देती हैं। इसी प्रकार, समाज की सज्जनशक्ति को साथ लेकर संघ कुटुम्ब प्रबोधन और धर्म जागरण के क्षेत्र में वातावरण बनाने में सफल रहा है। 

संघ शताब्दी वर्ष के प्रसंग पर 'स्वदेश ज्योति' में 23 नवंबर, 2025 को प्रकाशित लोकेन्द्र सिंह का साप्ताहिक कॉलम

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