शुक्रवार, 26 दिसंबर 2025

हिन्दुओं की मॉब लिंचिंग पर चुप्पी

यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि बांग्लादेश में हिन्दुओं पर हो रहे अत्याचार पर वैसी मुखरता दिखायी नहीं दे रही, जैसी अन्य मामलों में दिखायी देती है। हालिया उदाहरण गाजा का लिया जा सकता है, जहाँ दो देशों की आपसी संघर्ष में सैन्य हमलों का शिकार बने मुस्लिम समुदाय के लोगों के लिए भारत में प्रदर्शन किए गए। हालांकि, यहाँ भी चयनित पाखंड देखा गया था। इस्लामिक चरमपंथियों की ओर से यहूदी महिलाओं एवं लोगों के साथ किए गए घिनौने कृत्यों पर यहाँ भी चुप्पी साध ली गई थी। बांग्लादेश के प्रकरण में केवल भाजपा और राष्ट्रीय विचार के लोग ही हिन्दुओं के हितों की चिंता करते हुए दिखाई दे रहे हैं। उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इसी चयनात्मक चुप्पी को कठघरे में खड़ा किया है। विधानसभा के शीतकालीन सत्र में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों और उस पर विपक्ष की चुप्पी को मुद्दा बनाया। उनका यह सवाल वाजिब है कि जो राजनीतिक दल गाजा की घटनाओं पर कैंडल मार्च निकालते हैं, वे पड़ोसी देशों (पाकिस्तान और बांग्लादेश) में हिंदुओं और सिखों के नरसंहार पर मौन क्यों साध लेते हैं? 

यह ‘चयनित संवेदना’ न केवल मानवाधिकारों के प्रति दोहरे चरित्र को उजागर करती है, बल्कि यह भी संकेत देती है कि वोट बैंक की राजनीति के कारण कुछ दल राष्ट्रीय हितों और अपने ही मूल के लोगों की सुरक्षा के प्रश्न पर समझौता कर लेते हैं। उल्लेखनीय है कि इसी छद्म सेक्युलरिज्म ने हिन्दू-मुस्लिम समस्याओं को बढ़ावा दिया है। बीते दिन, केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी इसी छद्म सेक्युलरिज्म की ओर संकेत कर रहे थे। बांग्लादेश में जिस प्रकार से एक निर्दोष युवक दीपू की हत्या की गई है, वह जघन्य है और इस्लामिक कट्टरता के घिनौने पक्ष को सामने लाती है। दीपू की हत्या योजनापूर्वक की गई है और दुर्भाग्य की बात है कि इस नृशंस अपराध में उसके ही करीबी दोस्त शामिल रहे हैं। दीपू के मुस्लिम दोस्तों ने एक प्रकार से दोस्ती जैसे विश्वसनीय रिश्ते को भी कलंकित किया है। उन्होंने उस आरोप को साबित किया है, जिसमें कहा जाता है कि एक मुस्लिम के लिए उसका ‘दीन’ ही सबसे ऊपर है। जब भी दीन की बात आएगी तो वह सबकुछ कुर्बान कर देगा, अपने सबसे अच्छे दोस्त भी। 

बांग्लादेश में हिन्दुओं पर हो रहे हिंसक हमलों को लेकर भारत में सबसे अधिक मुखर भारतीय जनता पार्टी और विश्व हिन्दू परिषद जैसे राष्ट्रीय विचार के संगठन ही दिखायी दे रहे हैं। अन्य राजनीतिक दलों ने तुष्टीकरण की नीति पर चलते हुए चुप्पी साध रखी है। उन्हें डर है कि दीपू को न्याय दिलाने की माँग करने से उनका वोटबैंक नाराज हो सकता है। हद है। इसका एक अर्थ यह भी हुआ कि इन राजनीतिक दलों को भारत के मुसलमानों पर विश्वास नहीं है कि वे किस ओर खड़े हैं? कहना होगा कि राजनीतिक दलों का यह व्यवहार मुस्लिम समुदाय की छवि को गहरा धक्का पहुँचाते हैं। मुसलमानों के उदारवादी वर्गों को चाहिए कि वे स्वयं आगे आकर कट्टरपंथी सोच का विरोध करें। निर्दोष दीपू एवं उसके परिवार को न्याय दिखाने के लिए हो रहे प्रदर्शनों का नेतृत्व उन्हें करना चाहिए। इसके साथ ही, भारत के तथाकथित सेकुलर वर्ग को भी अपनी चयनात्मक चुप्पी को छोड़कर एक सुर में सांप्रदायिक हिंसा की आलोचना एवं विरोध करना चाहिए।

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