शनिवार, 20 सितंबर 2025

विक्रमादित्य वैदिक घड़ी : भारतीय कालगणना की ओर बढ़ते कदम

भारत का समय-पृथ्वी का समय

मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में मुख्यमंत्री आवास के बाहर लगी 'विक्रमादित्य वैदिक घड़ी'

पिछले कुछ वर्षों में मध्यप्रदेश की धरती सांस्कृतिक पुनरुत्थान का केंद्र बन गई है। सांस्कृतिक पुनरुत्थान के इन प्रयासों में नयी कड़ी है- विक्रमादित्य वैदिक घड़ी का लोकार्पण। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने मुख्यमंत्री निवास पर ‘विक्रमादित्य वैदिक घड़ी’ का अनावरण करके भारतीय कालगणना की ओर आम लोगों का ध्यान तो खींचा ही है, इसके साथ ही कालगणना की अपनी परंपरा को फिर से लोक प्रचलन में लाने के प्रयासों का केंद्र बिन्दु भी मध्यप्रदेश को बना दिया है। यह पहल उम्मीद जगाती है कि भविष्य में पंचांग पर आधारित यह ‘विक्रमादित्य वैदिक घड़ी’ लोक प्रचलन में आ जाएगी और तिथि, मुहूर्त, माह, व्रत, त्योहार की सटीक जानकारी प्राप्त करने की हमारी कठिनाई को दूर कर देगी। सबको उम्मीद है कि हमारे हाथ पर बंधी डिजिटल घड़ियों में भी जल्द ही यह सुविधा आ जाएगी कि हम उनमें ‘भारत का समय’ देख सकें। फिलहाल ‘विक्रमादित्य वैदिक घड़ी’ ऐप के रूप में उपलब्ध है, जिसे हम अपने मोबाइल फोन में उपयोग कर सकते हैं। हमें याद रखना चाहिए कि मध्यप्रदेश के ऐतिहासिक नगर उज्जैन का कालगणना के साथ गहरा नाता है। यहाँ प्रकाशित ज्योतिर्लिंग को इसलिए ही ‘महाकाल’ कहा गया है। यह शुभ संयोग ही है कि मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री भी महाकाल की नगरी उज्जैन से आते हैं। 

इस प्रसंग पर मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने उचित ही प्रश्न उठाया कि “रात 12 बजे दिन बदलने का कोई औचित्य नहीं है”। आखिर रात को 12 बजते ही ऐसा क्या घटता है, जिसके कारण दिनांक ही बदल जाती है? यह पश्चिमी कालगणना पद्धति पर एक सीधा सवाल है, जो रात के अंधेरे में एक नए दिन की शुरुआत मानती है। नये दिन की शुरुआत तो नवप्रभात के साथ ही मानना तार्किक है। यह प्रकृति का संदेश है कि सूर्योदय के साथ नया दिन शुरू होता है। पश्चिम की कालगणना में कितनी अधिक विसंगतियां हैं, इसकी चर्चा हमारे सामने आ चुकी है। महीनों का नाम, क्रम, उनमें दिनों की संख्या, ये सब ही पश्चिम की कालगणना की अवैज्ञानिकता का संकेत कर देते हैं। जबकि हमारी कालगणना अधिक प्राकृतिक एवं वैज्ञानिक है। हमारी वैदिक कालगणना 10 हजार साल पहले के सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण की सटीक गणना कर सकती है। समय की सूक्ष्म गणना भारत में की गई है। प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद में समय की पहली गणना का उल्लेख ‘मुहूर्त’ के रूप में किया गया है। भारत की कालगणना में 60 सेकंड का मिनट नहीं, बल्कि 30 घंटे में 30 मुहूर्त जैसी अवधारणाएँ हैं, जो यह दर्शाती हैं कि हमारा पारंपरिक ज्ञान कितना वैज्ञानिक और व्यावहारिक था। सूर्योदय से सूर्यास्त तक 15 मुहूर्त और सूर्यास्त से सूर्योदय तक 15 मुहूर्त की गणना की जाती है। ‘विक्रमादित्य वैदिक घड़ी’ हमें इसी गणना के अनुसार समय दिखाती है। 

स्मरण रखें कि ‘विक्रमादित्य वैदिक घड़ी’ का अनावरण केवल एक स्थानीय घटना नहीं है। यह भारत की ज्ञान-गंगा को पूरी दुनिया तक पहुँचाने की दिशा में बढ़ाया गया पहला कदम है। यह घड़ी एक संकेत है कि भारत अब केवल पश्चिम की नकल नहीं कर रहा, बल्कि अपने स्वयं के ज्ञान और कौशल को दुनिया के सामने प्रस्तुत कर रहा है। यह एक ऐसा समय है जब भारत अपनी अच्छाइयों और क्षमताओं के साथ दुनिया का नेतृत्व करने के लिए तैयार है। यह घड़ी इस अग्रणी सोच का प्रतीक है। उल्लेखनीय है कि प्रचलित 24 घंटे की समय प्रणाली को वैश्विक स्तर पर 1884 में थोपकर स्वीकार कर लिया गया। अब चूँकि उन्नत डिजिटल तकनीक आ गई है, इसलिए आज भारतीय समय प्रणाली पर आधारित घड़ियां बनाने का रास्ता खुल गया है। ‘विक्रमादित्य वैदिक घड़ी’ की पहल उस दिशा में विश्वास जगाती है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने उचित ही कहा कि “यह घड़ी मात्र एक यंत्र नहीं, बल्कि हमारी प्राचीन वैदिक काल गणना पद्धति का एक पुनर्जागरण है, जो आधुनिकता के साथ हमारी समृद्ध विरासत को जोड़ने का प्रयास है”। वैदिक घड़ी के अन्वेषणकर्ता ‘आरोहनम् इंटरप्राइजेस’ को साधुवाद कि उसने आधुनिक तकनीक और पारंपरिक विज्ञान को जोड़कर भारतीय संस्कृति की पुनर्प्रतिष्ठा की ओर कदम बढ़ाकर अनेक लोगों के सामने उदाहरण प्रस्तुत किया। यह ऐसा नवाचार है जो प्रेरित करता है कि हम तकनीक का उपयोग करके अपने ज्ञान को जन-जन तक पहुँचा सकते हैं। विक्रमादित्य वैदिक घड़ी के विकास में महाराज विक्रमादित्य शोधपीठ की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही है।

भारतीय कालगणना पर आधारित आधुनिक घड़ी की आवश्यकता हमारे नित्य जीवन में इसलिए भी है क्योंकि वर्षों से बाहरी आक्रमणों के साथ संघर्ष में बहुत कुछ भूलने के बाद भी हम अपने शुभ कार्यों को अपनी कालगणना के आधार पर ही सम्पन्न करते हैं। बच्चे के नामकरण, विवाह, त्योहार, नये कार्य का शुभारंभ, संपत्ति क्रय-विक्रय इत्यादि में हम अपने पंचांग का ही सहारा लेते हैं। अर्थात् हमारे जीवन के महत्वपूर्ण प्रसंग भारतीय कालगणना के आधार पर ही सम्पन्न होते हैं। सामान्य नागरिकों को कालगणना की समझ नहीं होने के कारण अकसर उन्हें परेशानी का सामना करना पड़ता है। विशेषकर, तिथियों की गणना में आम नागरिक भ्रमित होता है। जब उसके सामने यह वैदिक घड़ी होगी, तो वह स्वयं ही आसानी से ज्ञात कर लेगा कि इस समय कौन-सी तिथि और मुहूर्त है। 

उज्जैन को प्राचीन भारतीय खगोल विज्ञान में पृथ्वी के ‘ग्रीनविच’ के रूप में जाना जाता था। उस समय, दुनिया की सभी गणनाएँ, खासकर खगोलीय गणनाएँ, उज्जैन के देशांतर को आधार मानकर की जाती थीं। इसे ‘शून्य देशांतर’ माना जाता था, जहाँ से पूर्व और पश्चिम के सभी स्थानों का देशांतर निर्धारित होता था। उज्जैन का महत्व केवल वैज्ञानिक नहीं, बल्कि धार्मिक भी है। यहाँ की गणनाएँ सूर्य और चंद्रमा की गति पर आधारित हैं, जो भारतीय त्योहारों, शुभ-अशुभ मुहूर्तों और धार्मिक अनुष्ठानों को निर्धारित करती हैं। उज्जैन में स्थित जंतर-मंतर वेधशाला, जिसे महाराजा जय सिंह द्वितीय ने बनवाया था, आज भी सूर्य की छाया से समय और ग्रहों की स्थिति का सटीक माप करती है। यह वेधशाला इस बात का प्रमाण है कि उज्जैन खगोल विज्ञान के क्षेत्र में कितना उन्नत था और भारत की कालगणना सबसे अधिक वैज्ञानिक है।

विक्रमादित्य वैदिक घड़ी की विशेषताएं : 

विक्रमादित्य वैदिक घड़ी भारत की प्राचीन समय प्रणाली पर आधारित है। इसमें एक दिन (सूर्योदय से अगले सूर्योदय तक) में 30 मुहूर्त होते हैं। प्रत्येक मुहूर्त में 30 कला और प्रत्येक कला में 30 काष्ठा होती हैं। यह घड़ी किसी भी स्थान के अक्षांश, देशांतर और स्थानीय सूर्योदय के आधार पर वैदिक समय की सटीक गणना करती है। यह घड़ी ऐप के रूप में आईओएस और एंड्राइड दोनों ही प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध है। यह ऐप 30 मुहूर्त आधारित दिन-रात्रि चक्र, विस्तृत पंचांग और विक्रम सम्वत् कैलेंडर को एक ही स्थान पर लाता है। यह ऐप 3500 ईसा पूर्व से 4000 ईस्वी तक, 7500 वर्षों की जानकारी उपलब्ध कराता है। दुनिया की 189 भाषाओं में इसका उपयोग किया जा सकता है।

  • विक्रमादित्य वैदिक घड़ी में विक्रम सम्वत् पंचांग, तिथि, पक्ष, मास और संवत् वर्ष का प्रदर्शन प्रमुखता से होता है। इससे आज की तिथि आसानी से ज्ञात हो जाती है।
  • घड़ी में चंद्र चरण प्रदर्शित होता है, जिससे हमें जानकारी मिलती है कि अभी शुक्ल पक्ष चल रहे हैं या कृष्ण पक्ष, अमावस्या है या पूर्णिमा। 
  • घड़ी देखकर हम यह भी जान सकते हैं कि इस समय कौन-सा नक्षत्र है। 
  • मुहूर्त और उसके नाम का प्रदर्शन भी वैदिक घड़ी में होता है। 
  • घड़ी के शीर्ष पर मध्य भाग में सूर्य राशि प्रदर्शित होती है, जो दर्शाती है कि सूर्य वर्तमान में किस राशि में स्थित है। 
  • यह घड़ी में प्रचलित भारतीय मानक समय, दिन, दिनांक भी दिखाती है। इसके साथ ही शहर का नाम भी प्रदर्शित होता है। 

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