सोमवार, 8 सितंबर 2025

अशोक स्तंभ को तोड़ना, भारत की आत्मा और संविधान पर हमला है

जम्मू-कश्मीर की हजरतबल दरगाह में राष्ट्रीय प्रतीक अशोक स्तम्भ को तोड़ा जाना एक गहरी चिंता का विषय है। इस घटना पर राष्ट्रीय स्तर पर विचार-मंथन होना चाहिए। ईद-ए-मिलाद जैसे मौके पर, एक नवनिर्मित शिलापट्ट से राष्ट्रीय प्रतीक अशोक स्तंभ को तोड़ना केवल एक राजनीतिक विरोध नहीं, बल्कि धार्मिक कट्टरता और राष्ट्र-विरोधी भावना का शर्मनाक प्रदर्शन है। यह कृत्य एक विशेष प्रकार की मानसिकता की ओर संकेत करता है, जिसका प्रदर्शन अफगानिस्तान के बामियान में बुद्ध प्रतिमाओं से लेकर पाकिस्तान-बांग्लादेश के हिन्दू मंदिरों और भारत में जम्मू-कश्मीर की हजरतबल दरगाह में अशोक स्तंभ पर हमले में होता है। इसी कट्टरपंथी सोच ने भारत में अनेक मंदिरों को निशाना बनाया है। इस मानसिकता ने संप्रदाय के नाम पर दुनियाभर में मूर्तियों और प्रतीकों को ध्वस्त किया है। सोचिए कि जो सोच प्रतीक चिह्नों से इनती नफरत करती है, उसने मनुष्यों के साथ किस तरह का बर्बर व्यवहार किया गया होगा।

यहाँ भारत के प्रमुख राजनीतिक दलों एवं उनके नेताओं का दोगला आचरण भी दिखायी देता है। बिना मतलब के संविधान-संविधान चिल्लाने वाले नेताओं ने अपने मुंह में दही जमा लिया है, जब सही अर्थों में भारत की आत्मा एवं संविधान पर हमला किया गया है। वास्तव में इस प्रकार की भीड़ से भारत के लोकतंत्र, संविधान और मूल्यों को बचाने की आवश्यकता है। लेकिन, इस भीड़ एवं मानसिकता के विरुद्ध संविधान की रक्षा के झंडाबरदार बनने वाले नेता कुछ बोलते ही नहीं। मुस्लिम तुष्टीकरण में आखिर कितना ही दब्बूपन ये नेता दिखाएंगे। नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी जैसी पार्टियों ने इस सांप्रदायिक हमले की आलोचना करने की बजाय ऐन-केन-प्रकारेण भीड़ का बचाव ही करने का प्रयास किया है। नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी एक प्रकार से कट्टरपंथी मानसिकता को बल ही दे रहे हैं। याद रहे कि अशोक स्तंभ किसी धर्म का प्रतीक नहीं है; यह हमारे संविधान, धर्मनिरपेक्षता और राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक है। यह भारत की विविधता और एकता का प्रतिनिधित्व करता है। दरगाह वक्फ बोर्ड द्वारा राष्ट्रीय प्रतीक का उपयोग जीर्णोद्धार के दौरान देश के साथ जुड़ने का एक प्रयास था, जिसकी आलोचना करना धार्मिक भावनाओं का बहाना हो सकता है, लेकिन इसे तोड़ना बिल्कुल अस्वीकार्य है। 

अपनी राजनीतिक सभाओं में संविधान की ‘पॉकेट कॉपी’ लहरानेवाले नेताओं से कहीं अधिक सजग और जिम्मेदार तो जम्मू-कश्मीर वक्फ बोर्ड की अध्यक्ष दरख्शां अंद्राबी हैं, जिन्होंने सांप्रदायिक ताकतों को उचित जवाब दिया है। उन्होंने साफ-साफ कहा है कि यह केवल पत्थरबाजी की घटना नहीं, बल्कि राष्ट्रीय प्रतीक और संविधान पर हमला है। उनका यह कहना सही है कि इस तरह का कृत्य किसी भी रूप में स्वीकार्य नहीं है। क्योंकि यह हमारे राष्ट्रीय सम्मान और संवैधानिक मूल्यों पर सीधा हमला है। भारत में राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान करना एक गंभीर अपराध है, जिसके लिए कड़ी सजा का प्रावधान है। इस घटना पर पुलिस और प्रशासन को कठोर कार्रवाई करनी चाहिए। राष्ट्रीय सम्मान का अपमान भारतीय कानून के तहत एक दंडनीय अपराध है और सांप्रदायिक भीड़ में शामिल एक-एक व्यक्ति की पहचान सुनिश्चित करके उसे दण्ड दिया जाना चाहिए। यह हम सभी के लिए आत्मचिंतन का समय है। हमें यह समझना होगा कि जब एक राष्ट्रीय प्रतीक पर हमला होता है, तो वह किसी विशेष धर्म पर नहीं, बल्कि हमारे साझा अस्तित्व और पहचान पर हमला होता है। यह भीड़ आज राष्ट्रीय प्रतीक चिह्न पर हमला कर रही है, कल किसी और बात पर हमला करेगी। 

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