मंगलवार, 28 अक्टूबर 2025

आरएसएस की पहली शाखा में 6 स्वयंसेवक और आज 83 हजार से अधिक दैनिक शाखाएं

संघ शताब्दी वर्ष : संघ के विकास की तस्वीर


नागपुर के मोहिते के बाड़े में लगी आरएसएस की पहली शाखा (Chat GPT और Google Gemini से निर्मित छवि)

आज संघ कार्य का विस्तार समूचे भारत में है। जन्मजात देशभक्त डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने जब नागपुर में संघ की स्थापना की थी, तब उनके अलावा शायद ही किसी ने सोचा होगा कि यह बीज एक दिन वटवृक्ष बनेगा। नागपुर में मोहिते के बाड़े में 6 लोगों के साथ पहली शाखा प्रारंभ हुई, जिनमें 5 छोटे बच्चे थे। इस कारण उस समय में लोगों ने हेडगेवार जी का उपहास उड़ाया था कि बच्चों को लेकर क्रांति करने आए हैं। परंतु डॉक्टर साहब लोगों के इस उपहास से विचलित नहीं हुए। व्यक्ति निर्माण के अभिनव कार्य को स्थापित करने के लिए उन्होंने अपना सर्वस्व समर्पित कर दिया। बच्चों की शाखा देखकर संघ कार्य का उपहास उड़ा रहे लोगों को ही नहीं अपितु संघ कार्य के प्रति सद्भावना रखनेवाले बंधुओं ने भी सोचा नहीं होगा कि मोहिते के बाड़े से निकलकर संघकार्य देश-दुनिया में फैल जाएगा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ विश्व का सबसे बड़ा सामाजिक एवं सांस्कृतिक संगठन बन जाएगा।

जहाँ 1925 में संघ की पहली शाखा में 6 स्वयंसेवक थे, वहीं आज संघ करोड़ों कार्यकर्ताओं का ‘संघ परिवार’ हो गया है। वर्तमान में सम्पूर्ण भारत के कुल 924 जिलों (संघ की योजना अनुसार) में से 98.3 प्रतिशत जिलों में संघ की शाखाएँ चल रही हैं। कुल 6,618 खंडों में से 92.3 प्रतिशत खंडों (तालुका), कुल 58,939 मंडलों (मंडल अर्थात 10–12 ग्रामों का एक समूह) में से 52.2 प्रतिशत मंडलों में, 51,710 स्थानों पर 83,129 दैनिक शाखाओं तथा अन्य 26,460 स्थानों पर 32,147 साप्ताहिक मिलन केंद्रों के माध्यम से संघ कार्य का देशव्यापी विस्तार हुआ है, जो लगातार बढ़ रहा है। इन 83,129 दैनिक शाखाओं में से 59 प्रतिशत शाखाएँ छात्रों की हैं तथा शेष 41 प्रतिशत व्यवसायी स्वयंसेवकों की शाखाओं में से 11 प्रतिशत शाखाएँ प्रौढ़ (40 वर्ष से ऊपर आयु) स्वयंसेवकों की हैं। बाकी सभी शाखाएँ युवा व्यवसायी स्वयंसेवकों की हैं।

देखें- RSS की शाखा में आए डॉ. भीमराव अंबेडकर

संघ की शाखा यानी स्वयंसेवकों का नित्य का मिलन स्थान, जहाँ स्वयंसेवक एकत्र आते हैं, व्यायाम करते हैं, खेल खेलते हैं, गीत गाते हैं और भारत माता को परम वैभव पर ले जाने का संकल्प लेते हुए प्रार्थना करते हैं। संघ में शाखा का बहुत महत्व है। संघ कार्य की प्राण शाखा है। कार्यकर्ता निर्माण का केंद्र भी यही शाखा है। संघ की शाखा का विकास और उसके पाठ्यक्रम भी समय के साथ विकसित हुए हैं। प्रारंभिक दिनों में संघ के आज के समान प्रतिदिन के कार्यक्रम नहीं थे। स्वयंसेवकों से केवल इतनी अपेक्षा थी कि सभी किसी भी व्यायामशाला में जाकर पर्याप्त व्यायाम करें। संघ के सभी स्वयंसेवक नागपुर की ‘महाराष्ट्र व्यायामशाला’ के एकत्र आते थे। वहीं, रविवार के दिन सभी स्वयंसेवक ‘इतवारी दरवाजा पाठशाला’ में एकत्र होते थे। कुछ दिनों पश्चात् मार्तण्डराव जोग की देखरेख में सैनिक प्रशिक्षण भी प्रारम्भ कर दिया गया। प्रारम्भ में कुछ महीनों तक रविवार और गुरुवार को राजकीय वर्ग (जिसे 1927 के बाद ‘बौद्धिक वर्ग’ कहा जाने लगा) होता था। इस वर्ग में देश की वर्तमान परिस्थिति, अपने कर्तव्य का बोध और संगठन मजबूत करने के लिए क्या प्रयत्न किए जाएँ, इसकी जानकारी दी जाती थी। इसी प्रकार, शाखा में व्यायाम, खेल, समता और बौद्धिक के कालखंड प्रारंभ हुए।

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संघ कार्य तीन प्रकार के अवरोधों को पार करके समाज व्यापी हुआ है। सबसे पहले संघ कार्य का उपहास उड़ाया गया। स्वभाविक ही लोगों का लगा होगा कि एक अच्छे-भले प्रतिष्ठित स्वतंत्रतासेनानी डॉ. हेडगेवार को क्या हो गया कि ये बच्चों को कबड्डी खिलाकर क्रांति करना चाहते हैं? भला बच्चों को एकत्र करने से कौन-सा आंदोलन खड़ा होगा? इसलिए भी लोगों ने पहले उपहास उड़ाया। कुछ लोग ऐसे भी थे, जिन्हें डॉक्टर साहब की क्षमताओं पर विश्वास था। इसलिए उन्होंने प्रारंभ में ही संघ का कार्य ठप हो जाए, इस उद्देश्य से स्वयंसेवकों को हतोत्साहित करने के लिए उपहास उड़ाया। परंतु, संघकार्य के सहायक बने लोगों को डॉक्टर साहब की सोच पर पूर्ण विश्वास था। इसलिए उपहास के इस अवरोध को स्वयंसेवक हवा में उड़ाकर अपने संघ कार्य को आगे लेकर निकल पड़े। जब उपहास से कुछ न हुआ तो संघ विरोधियों ने उपेक्षा करना प्रारंभ किया। मानो, संघ का अस्तित्व ही नहीं है। यह कोई प्रभावी कार्य या आंदोलन नहीं है, जिसको महत्व दिया जाए। विरोधियों को क्या ही पता था कि जिन्होंने प्रसिद्धि परांगमुखता को अपनी साधना का मंत्र बनाया हो, उन्हें उपेक्षा की क्या चिंता? उपेक्षा भी संघ के विस्तार को रोक नहीं सकी तब विरोधियों ने अनेक विधि से संघकार्य का विरोध करना प्रारंभ कर दिया। यहाँ तक कि लोगों (शासकीय कर्मचारी) को संघ में शामिल होने से रोकने के लिए अंग्रेजों के बनाए कानून को स्वतंत्र भारत में भी लागू किया गया। इससे भी बात नहीं बनी तो संघ की बदनामी की साजिश रची गईं। संविधान और लोकतंत्र की हत्या करते हुए संघ पर प्रतिबंध भी लगाए जाते रहे लेकिन संघ के बढ़ते कदमों को मदमस्त सत्ता रोक नहीं सकी। तथाकथित बुद्धिजीवियों ने भी अपनी बौद्धिकता का दुरुपयोग करते हुए संघ की छवि को बिगाड़ने का भरसक प्रयास किया लेकिन संघ की शाखा से निकले स्वयंसेवकों के प्रति समाज का विश्वास इतना पक्का था कि संघ की छवि कुंदन की तरह दमकती ही रही। इन तीनों अवरोधों को पार करते हुए संघ समाज के साथ एकरस होने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। आज संघ का कार्य सर्वस्पर्शी-सर्वव्यापी हो गया है। 

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