गुरुवार, 2 अक्टूबर 2025

मध्यप्रदेश का स्वदेशी जागरण महाभियान

भारत को आत्मनिर्भर बनाने के संकल्प को पूरा करने के लिए मध्यप्रदेश की मोहन सरकार केंद्र की मोदी सरकार के साथ कदमताल कर ही रही थी कि अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के स्वदेशी के आह्वान को जन-जन तक पहुँचाने के लिए मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने राज्य स्तरीय स्वदेशी जागरण सप्ताह का शुभारंभ करके स्वदेशी को जनाभियान बनाने की दिशा में कदम बढ़ा दिए हैं। इसे केवल एक सरकारी कार्यक्रम के तौर पर देखना उचित नहीं होगा। यह तो आत्मनिर्भर भारत के व्यापक राष्ट्रीय लक्ष्य के प्रति मध्यप्रदेश की गंभीर प्रतिबद्धता को दर्शाता है। भले ही इस महाभियान की योजना 25 सितंबर से 2 अक्टूबर तक (पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जयंती से महात्मा गांधी की जयंती) की गई हो, लेकिन स्वदेशी के विचार को जन-जन तक पहुँचाने के लिए यह आंदोलन लंबा चलना चाहिए। कोई भी आंदोलन लंबा तब ही चलता है, जब समाज की सज्जनशक्ति उसे अपना आंदोलन मानकर चलती है। कहना होगा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रेरणा से प्रारंभ हुआ ‘स्वदेशी जागरण मंच’ लंबे समय से स्वदेशी के आंदोलन को चला रहा है, जिसके कुछ सुखद परिणाम हमें अपने आस-पास दिखायी पड़ते हैं।

मध्यप्रदेश सरकार और मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव शासकीय तौर पर राज्य स्तरीय स्वदेशी जागरण अभियान चलाकर अत्यंत महत्वपूर्ण संदेश दे रहे हैं कि आर्थिक सशक्तिकरण की शुरुआत स्थानीय गौरव से होती है। अब उस संदेश को जन-जन तक लेकर जाने का कर्तव्य हम सबको मिलकर निभाना चाहिए। प्रदेश सरकार का यह आयोजन सरकारी उपक्रम बनकर न रह जाए, इसकी सावधानी मुख्यमंत्री डॉ. यादव ने रखी है। उन्होंने इस अभियान में जन-भागीदारी का आह्वान किया है। यानी एक प्रकार से सरकार इस आंदोलन को शुरू करके उसे जनता को सौंप देगी। मुख्यमंत्री निवास से सांकेतिक रैली निकालकर अभियान शुरू हुआ है, जो अब प्रदेश के 313 विकासखंड़ों तक पहुँचेगा। यहाँ स्पष्ट संदेश है कि सरकार इसे केवल कागजी कवायद नहीं, बल्कि एक जन-आंदोलन बनाना चाहती है। जरा याद कीजिए कि किसी गैर-भाजपा सरकार ने कभी स्वदेशी के लिए कोई आंदोलन चलाया है क्या? अपितु, अन्य राजनीतिक दलों से जुड़े लोग तो स्वदेशी के आग्रह का अकसर ही उपहास उड़ाते हैं। स्वदेशी का आग्रह करनेवाले लोगों को हतोत्साहित करने में अपनी ऊर्जा का अपव्यय करते हैं। अपने राजनीतिक अस्तित्व को बनाए रखने के लिए महात्मा गांधी की विचार निधि का उपयोग करनेवाले राजनीतिक दल भी गांधीजी के स्वदेशी विचार को पीछे छोड़ चुके हैं। स्वदेशी जागरण के इस प्रकार के अभियान भाजपा के अलावा अन्य राजनीतिक दलों ने कभी चलाए हों, यह स्मरण नहीं होता। अपितु, उनके कई नेता भी स्वदेशी का उपहास उड़ाने वाले समूहों में शामिल दिखायी देते हैं। 

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की सराहना करनी होगी कि पिछले दिनों में उन्होंने स्थानीय बाजारों से खरीदारी करके स्वदेशी के साथ-साथ स्थानीय व्यापारियों से खरीदारी का संदेश दिया है। जब हम स्थानीय रूप से निर्मित वस्तुएं खरीदते हैं, तो हम प्रत्यक्ष रूप से राज्य के सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों को समर्थन देते हैं। इससे स्थानीय स्तर पर रोजगार सृजित होता है और पलायन कम होता है। स्वदेशी को अपनाने से अर्जित पूँजी देश और राज्य के भीतर ही घूमती रहती है, जिससे आधारभूत संरचना, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में निवेश को बढ़ावा मिलता है। एक राजनेता जब इस प्रकार का सांकेतिक संदेश देता है, तब उसका जनता में गहरा असर दिखायी देता है। हम याद रखें कि स्वदेशी का आग्रह समय की माँग तो है ही, यह भारत के भविष्य के लिए भी आवश्यक है। यदि हम प्रारंभ से ही स्वदेशी को लेकर आग्रही रहे होते, तब आज आर्थिक जगत में हमारी तस्वीर अलग ही होती। वैश्विक प्रतिस्पर्धा में किसी भी राष्ट्र की प्रगति उसकी घरेलू उत्पादन क्षमता और उपभोक्ता निष्ठा पर निर्भर करती है।

स्वदेशी वस्तुओं का प्रचार-प्रसार और उन्हें बढ़ावा देना, केवल भावनात्मक अपील नहीं है, बल्कि एक सुदृढ़ आर्थिक रणनीति है। इसलिए प्रत्येक नागरिक की जिम्मेदारी है कि वह ‘स्वदेशी जागरण सप्ताह’ को एक सप्ताह तक सीमित न रखे। हमारी जीवनशैली स्वदेशी बननी चाहिए, जहाँ हम खरीददारी से पहले यह विचार करें कि क्या उसका पैसा किसी स्थानीय कारीगर या उद्योगपति के काम आ सकता है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की पहल सराहनीय है। यह मध्य प्रदेश को आत्मनिर्भरता की राह पर आगे ले जाने का एक सशक्त माध्यम है। अब यह प्रदेश की जनता और स्थानीय व्यापारिक संगठनों पर निर्भर करता है कि वे इस राष्ट्रीय आह्वान को कितनी गंभीरता से लेते हैं और अपने देश एवं मध्यप्रदेश को सही अर्थों में आत्मनिर्भर बनाने में योगदान देते हैं। 

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