श्री अयोध्या धाम में श्रीराम मंदिर पर धर्म ध्वजा की प्रतिष्ठा का यह प्रसंग अविस्मणीय है। यह केवल एक मंदिर पर फहराने वाला ध्वज नहीं है अपितु भारत के विचार की विजय पताका है। सदियों की तपस्या, संघर्ष और आस्था एक होकर भव्य श्रीराम मंदिर के शिखर पर धर्मध्वमजा के रूप में साकार हुई है। वास्तव में, 25 नवंबर, 2025 भारत की सांस्कृतिक चेतना के लिए ‘सार्थकता का दिन’ बन गया। जैसा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत जी ने कहा कि “सार्थकता के इस दिन के लिए जितने लोगों ने प्राण न्योछावर किए, उनकी आत्मा तृप्त हुई होगी। आज मंदिर का ध्वजारोहण हो गया। मंदिर की शास्त्रीय प्रक्रिया पूर्ण हो गई। राम राज्य का ध्वज, जो कभी अयोध्या में फहराता था, जो पूरी दुनिया में अपने आलोक से समृद्धि प्रदान करता था, वह आज धीरे-धीरे ऊपर उठते हुए अपनी आंखों से देखा है। इस भगवा ध्वज पर रघुकुल का प्रतीक कोविदार वृक्ष है। यह वृक्ष रघुकुल की सत्ता का प्रतीक है”।
कहना होगा कि इस दिन को साकार करने में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। श्रीराम जन्मभूमि पर आक्रांता के चिह्न तथाकथित बाबारी ढांचे को हटाकर उस स्थान पर भव्य श्रीराम मंदिर बनाने के लिए हिन्दू समाज विगत 500 वर्षों से संघर्ष कर रहा था। संघ ने इस आंदोलन को अपने हाथ में लेकर हिन्दू समाज के सामर्थ्य को जगाया और उस सपने को साकार कर दिखाया, जिसके लिए हिन्दुओं की पीढ़ियां खप गई थीं। आज जब श्रीराम मंदिर पर धर्मध्वजा लहरा रही थी, तब करोड़ों हिन्दुओं के मन में भावना की ऊंची लहरें उठ रही थीं। निश्चित ही, यह ऐतिहासिक अवसर था, जो यह बताता है कि विजय पताका उसी की फहराती है, जो सच के साथ है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस क्षण को ‘अद्वितीय और अलौकिक’ बताते हुए इसे ‘भारतीय सभ्यता के पुनर्जागरण का ध्वज’ घोषित किया। उन्होंने उचित ही कहा कि “यह केवल एक औपचारिक अनुष्ठान नहीं था; यह सदियों के घावों पर मरहम लगाने, वेदनाओं को विराम देने और एक महान संकल्प की सिद्धि का प्रतीक था। यह धर्मध्व ज, जिस पर रघुकुल का प्रतीक कोविदार वृक्ष अंकित है, दूर से ही रामजन्मभूमि के ध्येय का दर्शन कराएगा और युगों-युगों तक प्रभु श्रीराम के आदर्श संदेश को पूरे विश्व में पहुंचाएगा”।
स्मरण रहे कि ध्वजारोहण का महत्व केवल राष्ट्रीय या औपचारिक नहीं होता, इसके पीछे एक गहरा आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और साहित्यिक भाव छिपा होता है। आध्यात्मिकता की दृष्टि से, यह ध्वज स्वाभिमान और आंतरिक जागृति का प्रतीक है। ध्वज को ऊँचाई पर फहराना स्वयं को गौरव, साहस और सत्य के प्रति जागृत करने जैसा है। इसे ‘ऊर्जा का केंद्र’ माना गया है जो नकारात्मक शक्तियों को दूर कर उस स्थान की ऊर्जा को पवित्र रखता है। यह मन में आत्मबल, संकल्प और सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है, साथ ही मनुष्य को अहंकार छोड़कर धर्म के प्रति समर्पित होने का संदेश देता है। यह श्रद्धा, विनम्रता और आत्मसमर्पण का उच्चतम रूप है। श्रीराम मंदिर पर फहरा यह ध्वज सनातन धर्म, सत्य और सद्गुण की शाश्वत विजय का उद्घोष है।



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