संघ शताब्दी वर्ष : वंदेमातरम और आरएसएस - भाग 1
हेडगेवार जी ने जब अंग्रेजों के विरोध में वंदेमातरम का जयघोष बुलंद किया, तो उन्हें स्कूल से निकाल दिया गया
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| प्रतीकात्मक चित्र: आरएसएस के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार और स्वयंसेवक। Gemini AI द्वारा निर्मित छवि |
मातृभूमि की वंदना का वह कौन-सा काव्य है, जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं के लिए श्रीमद्भगवद गीता के संदेश के बराबर न हो। जिस गीत ने राष्ट्रीय आंदोलन को धार दी, अंग्रेजों के पाँव उखाड़ दिए, समाज में राष्ट्रीयता का भाव जगाया, ऐसा अद्भुत ‘वंदेमातरम’ तो संघ के स्वयंसेवकों के लिए अक्षय ऊर्जा का स्रोत है। बंग-भंग आंदोलन के बाद से ‘वंदेमातरम’ मातृभूमि की आराधना और देशभक्ति का मंत्र बन गया। अंग्रेजों के खिलाफ चलने वाले प्रत्येक आंदोलन का बीज मंत्र वंदेमातरम बन गया। अंग्रेज सरकार ने स्कूल-कॉलेज में पढ़ने वाले युवाओं को राष्ट्रीय आंदोलन से दूर करने के लिए ‘रिस्ले सर्कुलर’ जारी किया, जिसके द्वारा विद्यार्थियों को आंदोलनों में शामिल होने से प्रतिबंधित किया गया। यहाँ तक कि ‘वंदेमातरम’ और ‘तिलक महाराज की जय’ जैसे नारे लगाने को दंडनीय अपराध घोषित कर दिया गया। उस समय स्वतंत्रता आंदोलन के नायकों ने अंग्रेजों के इस सर्कुलर की खुलकर आलोचना की। महर्षि अरविंद ने ‘वंदेमातरम’ समाचार पत्र में लेख लिखकर रिस्ले सर्कुलर की भर्त्सना की। उन्होंने स्पष्टतौर पर लिखा कि अंग्रेज युवाओं को देशभक्ति की धारा से दूर करके स्वतंत्रता आंदोलन को कमजोर करना चाहते हैं। हालांकि, अंग्रेज इसमें सफल नहीं हो सके। उनका यह सर्कुलर युवाओं को राष्ट्रभक्ति के तराने गाने और आंदोलनों में शामिल होने से रोक नहीं सका।
वंदेमातरम को लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. केशव बलिराम के जीवन से जुड़ी 1907 और 1908 की दो घटनाएं प्रेरणादायक हैं। भारत के अन्य हिस्सों की भाँति ही मध्यप्रांत के युवा भी अपने रचनात्मक ढंग से अंग्रेजों के रिस्ले सर्कुलर और उसके पीछे की मंशा को विफल कर रहे थे। वर्ष 1907 में नागपुर के नील सिटी हाईस्कूल में केशव बलिराम हेडगेवार पढ़ रहे थे। उनकी उम्र लगभग 18-19 वर्ष होगी। विद्यालय के वार्षिक निरीक्षण के लिए प्रशासनिक अधिकारी आने वाले थे। हेडगेवार जी ने अपने मित्रों के साथ मिलकर योजना बनायी कि निरीक्षक जिस भी कक्षा में जाएंगे, वहाँ उनका ‘स्वागत’ वंदेमातरम के जयघोष से किया जाएगा। केशव की योजनानुसार यही हुआ, जैसे ही निरीक्षक उनकी कक्षा में आए, सभी विद्यार्थियों ने एक साथ खड़े होकर ‘वंदेमातरम’ का जोरदार उद्घोष किया। तिलमिलाया हुआ अधिकारी अगली दो कक्षाओं में पहुँचा, वहाँ भी उसका स्वागत वंदेमातरम से किया गया। गुस्से से लाल-पीले होकर निरीक्षक ने इस ‘अनुशासनहीनता’ पर विद्यार्थियों को अविलंब सजा देने की माँग की। स्कूल प्रबंधन ने अनेक प्रयास किए कि मुख्य योजनाकर्ता विद्यार्थियों के नाम पता चल जाएं ताकि केवल उन पर कार्रवाई की जा सके। लेकिन विद्यार्थियों में गजब की एकजुटता दिखायी दी, किसी ने मुंह नहीं खोला। परिणामस्वरूप सबको निष्काषित कर दिया गया। विद्यालय प्रबंधन समिति के इस निर्णय के विरुद्ध लगभग दो हजार छात्रों ने हड़ताल की। केशव के नेतृत्व में जुलूस एवं प्रभात-फेरियां निकाली गईं। बाद में, स्थानीय नेताओं के हस्तक्षेप, माता-पिता एवं शिक्षकों के दबाव/आग्रह पर लगभग सभी बच्चों ने खेद प्रकट कर दिया। लेकिन केशव ने ऐसा करने से साफ मना कर दिया। उन्होंने भरी सभा में कहा- “अगर मातृभूमि की आराधना अपराध है तो मैं यह अपराध एक नहीं, अनगिनत बार करूंगा और इसके लिए मिलने वाली सजा के को भी सहर्ष स्वीकार करूंगा”। परिणामस्वरूप, केशव हेडगेवार को वंदेमातरम का जयघोष करने के कारण विद्यालय से निष्काषित कर दिया गया। हेडगेवार जी के नेतृत्व में हुए इस घटनाक्रम ने नागपुर में हलचल मचा दी थी। अब तो अनेक स्थानों पर युवाओं ने अंग्रेजों और उनके सहयोगियों को ‘वंदेमातरम’ से अभिवादन करके चिढ़ाना शुरू कर दिया था। सुप्रसिद्ध लेखक सुशोभन सरकार, वीआर शेंडे, सीपी भिशिकर, अमूल्य रत्न घोष और अमरेन्द्र लक्ष्मण गाडगिल के लेखन से लेकर ब्रिटिश दस्तावेजों में इस घटना का प्रमुखता से उल्लेख मिलता है।
मध्यप्रदेश की धरती रामपायली पर गूंजा वंदेमातरम :
मध्यप्रदेश की धरती भी ऐसे ही एक घटनाक्रम की साक्षी है, जब हेडगेवार जी ने भाषण के बाद रामपायली ‘वंदेमातरम’ के जयघोष से गूंज उठा। बालाघाट का ऐतिहासिक स्थान है- रामपायली। यहाँ हेडगेवार जी के चाचा आबाजी रिवेन्यू इंस्पेक्टर थे। वर्ष 1908 के अगस्त माह में युवा केशव ने यहाँ पुलिस चौकी पर बम फेंका था। इस घटना के दो माह बाद यहाँ दशहरे के उत्सव में केशव और उनके साथी शामिल हुए। सीमोल्लंघन का अर्थ समझाते हुए उन्होंने भाषण किया कि “अंग्रेजों को सात समुंदर पार भेज देना ही सीमोल्लंघन का वास्तविक अर्थ होगा। रावण-वध का आज तात्पर्य अंग्रेजी राज का अंत करना है”। उनके ओजपूर्ण भाषण से समूचे वातावरण में देशभक्ति की लहर दौड़ गई। भाषण के अंत में केशव ने जब पूरी ऊर्जा के साथ ‘वंदेमातरम’ का जयघोष किया तो सभा में उपस्थित सभी लोगों ने एकसुर में वंदेमातरम का नारा बुलंद किया। चारों ओर ‘वंदेमातरम’ गूंजने लगा। पुलिस की कार्रवाई में केशव के दो मित्र- डबीर और भगोरे पकड़े गए, उन्हें स्कूल से निकाल दिया गया और हेडगेवार पर आपराधिक दंड संहिता की धारा-108 के तहत ‘राजद्रोही भाषण’ देने का मुकदमा चलाया गया। नवंबर में उन्हें गिरफ्तार भी किया गया। भंडारा के प्रतिष्ठित वकील पुरुषोत्तम सीताराम देव के हस्तक्षेप से हेडगेवार जी का मुकदमा वापस हुआ लेकिन उन पर एक प्रतिबंध तो लगा ही दिया गया कि एक वर्ष तक रामपायली में वे किसी भी प्रकार का भाषण नहीं कर सकेंगे। याद रखें कि अंग्रेज सरकार ने इस घटनाक्रम के कारण हेडगेवार जी के चाचाजी की नौकरी छीन ली थी।
वंदेमातरम से गूँज उठते थे रेलवे स्टेशन :
महात्मा गांधी जी के नमक सत्याग्रह में शामिल होकर जब डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने वर्ष 1930 में यवतमाल में जंगल सत्याग्रह का नेतृत्व किया तब उनके साथ सैकड़ों स्वयंसेवक आंदोलन में शामिल हुए और जेल भी गए। डॉक्टर साहब को 9 माह का सश्रम कारावास की सजा हुई। जब उन्हें रेल से अकोला कारावास ले जाया जा रहा था, तब रास्ते में लगभग सभी रेलवे स्टेशन पर उनके स्वागत एवं उन्हें सुनने के लिए भीड़ एकत्र हो रही थी। लगभग प्रत्येक स्टेशन पर डॉक्टर साहब को 5-10 मिनट भाषण करना होता था। उनके भाषण के बाद रेलवे स्टेशन ‘वंदेमातरम’ के जयघोष से गूंज उठते थे। डॉक्टर साहब कहते थे कि “वन्दे मातरम केवल नारा नहीं, स्वराज्य के लिए जन्मी राष्ट्रीय चेतना की ध्वनि है”l यह भी उल्लेखनीय है कि वर्ष 1937 में जब प्रांतीय सरकारों द्वारा वन्देमातरम को स्कूलों में गवाने पर विरोध किया गया, तब डॉक्टर हेडगेवार जी ने स्पष्ट शब्दों में विशेष संप्रदाय के तुष्टीकरण के इस प्रयास की निंदा की।

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