शनिवार, 27 सितंबर 2025

तकनीक का सहारा लेकर बच्चों को सुनाएं दादी-नानी की कहानियां

भारत कहानियों का देश है। कहानियां, जो न केवल हमारा मनोरंजन करती हैं अपितु हमारे व्यक्तित्व विकास में भी सहायक हैं। कहानियां, हमारे मन में सेवा, संस्कार, साहस पैदा करती हैं। लोक जीवन की सीख देती हैं। इसलिए तो कहानियां सुनना और सुनाना हमारी परंपरा में है। कौन नहीं जानता कि छत्रपति शिवाजी महाराज के विराट व्यक्तित्व का निर्माण जिजाऊ माँ साहेब ने राम-कृष्ण की कहानियां सुनाकर किया। पंडित विष्णु शर्मा ने राजा अमरशक्ति के तीन अयोग्य राजकुमारों को नैतिकता, बुद्धिमत्ता और राजनीतिक ज्ञान ‘पंचतंत्र’ की कहानियां सुनाकर ही तो दिया। सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र की कहानी सुनकर ही तो महात्मा गांधी के मन में सत्य के प्रति गहनी निष्ठा ने जन्म लिया। हमारे साहित्य में भरी पड़ी हैं- बच्चों की कहानियां, वीर बालकों की कहानियां, दयालु बालकों की कहानियां, दादी-नानी की कहानियां, पौराणिक कहानियां, पंचतंत्र की कहानियां। कहानियों की एक पूरी दुनिया है। 

आज से 20-25 साल पहले के समय को याद कीजिए, उस समय हम सब शाम को भोजन करने के बाद अपनी माँ, दादी-दादा, नानी-नाना से कहानी सुनकर ही नींद के आगोश में जाते थे। भारतीय आख्यानों के अलावा समुद्री लुटेरों,  आम आदमी से लेकर राजा-रानियों की कहानियां हमें स्वप्नलोक की सैर करती थीं। मेरे गाँव में हमारे एक बाबा थे- दाऊबाबा, उनके पास कहानियों का भंडार था। हमें बस उन्हें बताना होता था कि आज किस प्रकार की कहानी सुनने की इच्छा है। उनकी जादुई पोटली से एक से एक शानदार कहानियां निकलकर आतीं, जो कभी रोमांच जगाती, कभी लोट-पोट करतीं तो कभी हौले से जीवन की सीख दे जातीं। कहानी सुनाने का उनका कौशल इतना गजब का था कि हम एक-एक दृश्य को घटते हुए देख पाते थे। कहानियों के पात्रों से खुद को जोड़ पाते थे, उनमें छिपे संदेशों को समझते थे और अपने जीवन में उतारते थे।

उस समय रेडियो-टीवी घर-घर में नहीं पहुँचा था और इंटरनेट ने भी इस तरह पैर नहीं पसारे थे, तब मनोरंजन का मुख्य साधन कहानियां ही होती थीं। परंतु, परिवर्तन का पहिया तो लगातार घूमता रहता है। इसलिए समय के साथ परिवेश बदल गया। वर्तमान में तकनीक के तेज विकास से इस बदलाव को पंख लग गए हैं। आज के समय में दादी-नानी से कहानियां सुनने वाले बच्चे सौभाग्यशाली हैं। दरअसल, मनोरंजन की यह जिम्मेदारी दादी-नानी से अब टेलीविजन और मोबाइल ने ले ली है। टेलीविजन और मोबाइल की इस दुनिया में सब प्रकार की सामग्री उपलब्ध है। इसलिए आज सबसे अधिक जरूरत इस बात की है कि अभिभावक यह सुनिश्चित करें कि उनके बच्चे क्या देख-सुन रहे हैं? यह तकनीक बहुत प्रभावशाली है। जैसा कंटेंट वह देखेगा, उसकी छाप उसके व्यक्तित्व में दिखायी देगी। बच्चों के व्यक्तित्व पर सकारात्मक प्रभाव पड़े, वे अपने मूल्यों और परंपरा से जुड़ सकें, इसलिए इस तकनीक का उपयोग करके हमें उन्हें दादी-नानी की कहानियों से जोड़ना चाहिए। डिजिटल कंटेंट का निर्माण करनेवाले रचनाधर्मी लोग दादी-नानी की कहानियों की परंपरा को अपने ढंग से बचाने का प्रयास कर रहे हैं। ऑडियो-विजुअल में तैयार हो रही यह कहानियां बच्चों को खूब पसंद भी आ रही हैं। आवश्यकता इस बात की है कि हम बच्चों को अपनी इन कहानियों को देखने-सुनने का चस्का लगाएं। कोविड-19 जनित कोरोना महामारी में जब हम अपने घरों में बंद हो गए थे, तब हॉटस्टार पर उपलब्ध एनिमेशन वेबसीरीज ‘द लीजेंड ऑफ हनुमान’ बच्चों को दिखायी। उन्हें यह एनिमेशन वेबसीरीज बहुत पसंद आई। उन्होंने अगले सीजन की बेसब्री से प्रतीक्षा की। इसी तरह, अपने समय का ‘विक्रम-बेताल’ भी उन्हें दिखाया। विक्रम-बेताल की शिक्षाप्रद कहानियों को भी बच्चों ने खूब पसंद किया। आज इन कहानियों को पुन: नये अंदाज में प्रस्तुत किया जा सकता है।

याद करें, हम भारतीय आख्यानों पर आधारित कॉमिक्स ‘अमर चित्रकथा’ खूब रुचि लेकर पढ़ते थे। बदलते परिवेश में अमर चित्रकथा की कहानियां डिजिटल माध्यमों पर उपलब्ध हैं। श्रीकृष्ण, छोटा भीम, मोटू-पतलू इत्यादि कार्टून शृंखला के रूप में भी नैतिक मूल्यों की शिक्षा देने की कहानियां बच्चों तक पहुँच रही हैं। जब नयी पीढ़ी डिजिटल दुनिया में प्रवेश कर ही गई है, तब उनके साथ संतुलन साधते हुए दादी-नानी की कहानियों का विकल्प उन्हें डिजिटली रूप में उपलब्ध कराना ही होगा। इसके अलावा हमारे पास अन्य कोई विकल्प नहीं है। अच्छा कंटेंट नहीं मिलेगा, तब वे व्यर्थ की सामग्री को देखकर बड़े होंगे। हमें यह स्वीकार करना होगा कि आज का दौर पूरी तरह बदल चुका है। बच्चे हों या बड़े, सब अपनी-अपनी दुनिया में खोए हुए हैं। मनोरंजन के साधन अब असीमित हैं। बच्चे अब यूट्यूब और अन्य प्लेटफार्मों पर कार्टून के माध्यम से कहानियां देखते हैं। ‘छोटा भीम’, ‘मोटू-पतलू’, ‘लिटिल कृष्णा’, ‘बाल गणेश’, ‘वीर द रोबोट बॉय’, ‘द हनुमान’, ‘लव-कुश’ और ‘अर्जुन : द वॉरियर प्रिंस’ जैसे कार्टून उनके नए साथी बन गए हैं। भारत के बाहर के कैरेक्टर्स पर आधारित कार्टूनों ने भी बच्चों के बीच जगह बनायी है। या कहें कि वर्तमान परिदृश्य में उन्हें ही अधिक देखा जा रहा है। हम थोड़े प्रयास करें, तो भारतीय पृष्ठभूमि के कार्टून बच्चों की पहली पसंद बन सकते हैं। हमें थोड़ा समय देकर, उनके साथ बैठकर, इन कार्टूनों को देखकर और बच्चों के साथ संवाद करके उनके मन में रुचि जगानी होगी।  

याद रहे कि ये कार्टून और एनिमेटेड कहानियां बच्चों को एक अलग ही दुनिया में ले जाती हैं। इनमें भी नैतिक कहानियां, वीरता और बुद्धिमत्ता से जुड़े प्रसंग होते हैं। बच्चे इन कहानियों के पात्रों से खुद को जुड़ा हुआ महसूस करते हैं, क्योंकि ये उनकी दृश्य दुनिया का हिस्सा हैं। ये कहानियां उन्हें एक साथ कई तरह की जानकारी देती हैं - जैसे कि रंग, आकार, और ध्वनियाँ। इससे बच्चों के बौद्धिक विकास में मदद मिलती है। इसलिए दादी-नानी की कहानियों की जगह जब ऑडियो-विजुअल आधारित कहानियां ले रही हैं, तब उनके चयन में हमें सावधानी बरतनी होगी। वैसे, श्रेष्ठ तो यही होगा कि हमारे घरों में दादी-नानी द्वारा कहानी सुनाए जाने की परंपरा पुन: दिखायी दे। क्योंकि, दादी-नानी की कहानियों में जो अपनापन, स्पर्श और भावनात्मक जुड़ाव था, वह शायद ही किसी आधुनिक माध्यम में मिल पाए। 


हिन्दी विवेक के 7-13 सितंबर, 2025 के अंक में प्रकाशित




कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

पसंद करें, टिप्पणी करें और अपने मित्रों से साझा करें...
Plz Like, Comment and Share