के न्द्र सरकार ने देश के स्वच्छ शहरों की सूची जारी की है। इस सूची में दक्षिण भारत के शहरों ने बाजी मारी है। दक्षिण भारत के 39 शहर शीर्ष 100 शहरों में स्थान बनाने में कामयाब रहे हैं। जबकि उत्तर भारत के महज 12 शहर ही टॉप 100 में आ सके हैं। शीर्ष पर कर्नाटक का मैसूर है। जबकि मध्यप्रदेश का शहर दमोह सूची में सबसे आखिरी स्थान पर रहा। सूची में भिण्ड 475, नीमच 467, ग्वालियर 400 और उज्जैन 355वें पायदान पर रहा। मध्यप्रदेश के लिए सोचने की बात है कि उसकी राजधानी (भोपाल) भी स्वच्छता के मामले में 106वें स्थान पर है। देश के एक लाख से अधिक आबादी वाले शहरों की स्वच्छता के मामले में स्थिति क्या है, यह जानने के लिए सरकार ने 31 राज्यों के 476 शहरों का सर्वे कराया था। सर्वे में सरकार ने खुले में शौच, सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट, वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट, पानी की गुणवत्ता और पानी से होने वाली बीमारियों से मौतों के आंकड़े का अध्ययन किया।
हम जानते हैं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पिछले साल दो अक्टूबर को स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत की थी। स्वच्छ भारत अभियान को जब तक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी प्रमोट करते रहे तब तक इसे अच्छा प्रतिसाद मिला। यहां-वहां कचरा फेंकने की आदत पर हमारा मन भी हमें टोकने लगा था। लोगों में सफाई के प्रति चेतना भी आई। लेकिन, जैसे ही प्रधानमंत्री ने यह आंदोलन आम जनता के भरोसे छोड़ा तब से फिर हम अपनी पुरानी आदतों पर लौट आए। हम घर में तो साफ-सफाई सारे कायदे ध्यान में रखते हैं लेकिन घर की देहरी के दूसरी ओर सारे शहर को डस्टबिन बना देते हैं। जब तक हम अपने दिल-दिमाग को बड़ा नहीं करेंगे स्वच्छता में हम अव्वल नहीं आ सकेंगे। साफ-सफाई को हमें अपनी आदत बनाना होगा। सारे शहर को अपना घर समझना होगा। जब हम यह अनुभव करेंगे कि ये शहर मेरा अपना घर है तब शायद यहां-वहां कचरा फेंकने की हमारी आदत दूर हो सकेगी। सब कुछ सरकार के बूते नहीं होगा। दुनिया के तमाम देशों में लोग स्वत: इस तरह के अनुशासन का पालन करते हैं, वहां सरकारें झाडू-पौंछा लेकर लोगों के पीछे नहीं घूमतीं। ज्यादा दूर न देखें तो सूची में निचले पायदान पर काबिज शहरों के लोग दक्षिण भारत के शहर, नवी मुम्बई और गंगटोक के सफाई पसंद लोगों का ही अनुसरण कर लें। अलबत्ता, शीर्ष दस शहर मैसूर, त्रिचिरापल्ली, नवी मुंबई, कोच्ची, हासन, मांड्या, बेंगलूरू, तिरुवनंतपुरम, हालीशहर और गंगटोक से आगे निकलकर उन्हें चुनौती पेश करें। स्वच्छता तो आम नागरिकों की सजगता से ही आ सकेगी। इसलिए शहर को स्वच्छ रखने में सरकार से अधिक योगदान तो आम नागरिकों का है। हालांकि कुछ बड़े काम भी सरकार को करने चाहिए। ठोस अपशिष्ट प्रबंधन, दूषित जल का उपचार, जरूरत के हिसाब से शौचालयों का निर्माण। सार्वजनिक शौचालयों की साफ-सफाई की जिम्मेदारी आम नागरिकों के साथ नगर निगम को भी उठानी होगी। वरना होता यह है कि सार्वजनिक शौचालय तो होते हैं लेकिन इतने गंदे कि उनमें जाना कोई पसंद नहीं करता। यानी शौचालयों के होने के बाद भी खुले में शौच के लिए जाना पड़ता है। बहरहाल, सर्वे के नतीजे हमें चुनौती देते हैं कि भविष्य में फिर कभी ऐसा सर्वे हो तो सभी शहर एक ही पायदान पर खड़े दिखने चाहिए। यह संभव होगा, आम नागरिकों और सरकारों के मिले-जुले प्रयासों से और हमारी स्वच्छता की आदत से।
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