भा रत सरकार एक बार फिर स्कूली शिक्षा प्रणाली में बदलाव करने का विचार कर रही है। आठवीं कक्षा तक विद्यार्थियों को फेल नहीं करने के नियम को सरकार बदलने जा रही है। शिक्षा से संबंधित केन्द्रीय सलाहकार बोर्ड में बनी सहमति के बाद राज्य सरकारों से रजामंदी मांगी गई है। मध्यप्रदेश के स्कूली शिक्षा मंत्री पारस जैन ने यह मामला उठाया था कि जब से पांचवी और आठवीं की बोर्ड परीक्षा समाप्त की गई है तब से शिक्षा का स्तर गिर गया है। विद्यार्थियों को पता है कि वे फेल नहीं होंगे, इसलिए पढ़ाई पर उनका ध्यान नहीं रहता। प्राथमिक और माध्यमिक स्तर पर बच्चों की नींव कमजोर होने से उच्च शिक्षा में भी दिक्कतें आती हैं। हमें याद है कि आठवीं तक बोर्ड की परीक्षा खत्म करने के पीछे तर्क दिया गया था कि इससे शिक्षा की गुणवत्ता सुधरेगी, बच्चों के दिमाग पर परीक्षा का भूत सवार नहीं रहेगा तो रचनात्मकता बढ़ेगी। बच्चों के दिमाग से तनाव हटेगा। इन महत्वपूर्ण तथ्यों के प्रकाश में आठवीं तक किसी बच्चे को फेल नहीं करने का निर्णय बिना तैयारी किए ही ले लिया था।
हमने कोई तैयारी नहीं की थी कि परीक्षा का भय खत्म होगा तो बच्चों में पढ़ाई के प्रति आने वाली शिथिलता को कैसे दूर किया जाएगा? परीक्षा को ड्रॉप कर रहे हैं तो बच्चों के मूल्यांकन के लिए उचित इंतजाम क्या होने चाहिए? क्या करना होगा कि वे प्रतिस्पद्धी बने रहें? नया सीखने के लिए लालायित रहें। परीक्षा खत्म होने से शिक्षा की गुणवत्ता में गिरावट आई है, इस बात से किसी को इनकार नहीं। लेकिन, क्या परीक्षा का डर खत्म होने से बच्चे शिक्षा के प्रति जानबूझकर लापरवाह हो गए हैं? या फिर हम शिक्षा व्यवस्था का उचित प्रबंधन नहीं कर पाए? यह बड़ा प्रश्न है। कोई भी निर्णय करने से पहले सरकार को इस बारे में जरूर सोचना चाहिए। मैकाले की शिक्षा व्यवस्था के खोल को उतारने से पहले क्या हमने अपनी कोई वैकल्पिक शिक्षा व्यवस्था बनाई है? भारतीय शिक्षा मंडल, शिक्षा बचाओ आंदोलन और शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास जैसे संगठन जो शिक्षा के क्षेत्र में अच्छा काम कर रहे हैं, क्या उनसे सलाह-मशविरा किया है? फिर से सरकार आठवीं में बोर्ड परीक्षा के नियम को वापस ला रही है, तब उसने इन संगठनों के साथ चर्चा की है?
मैकाले द्वारा प्रदत्त अभारतीय शिक्षा प्रणाली को हमें बहुत पहले छोड़ देना था। मैकाले की शिक्षा प्रणाली बच्चों शिक्षित करने की जगह भ्रमित करती है। जड़ हो रही शिक्षा में बदलाव जरूरी हैं। लेकिन, शिक्षा में कोई भी बदलाव लाने से पहले गहन सोच-विचार और शोध की जरूरत है। एक-एक कदम का भविष्य में क्या असर होगा, इसका विचार किया जाना चाहिए। शिक्षा के साथ मनमर्जी और बेतुके प्रयोग उचित नहीं हैं। बहरहाल, आठवीं तक बोर्ड की परीक्षा समाप्त करने के निर्णय के पीछे जो मंशा थी, वह अनुचित नहीं थी। और अब फिर से बोर्ड परीक्षा लागू करने के पीछे की मंशा भी गलत नहीं है। गलत तो हमारा तरीका है। सरकार को सबसे पहले शिक्षा क्षेत्र में काम कर रहे विशेषज्ञों और संगठनों के साथ बैठकर एक वैकल्पिक शिक्षा नीति पर विचार करना चाहिए। विद्यार्थी की योग्यता और उसके सीखने की प्रवृत्ति के मूल्यांकन की उचित व्यवस्था के बारे में सोचा जाना चाहिए। अलबत्ता, हमें अपनी समूची शिक्षा प्रणाली में बदलाव लाने की जरूरत है, परीक्षा हटा देने या बनाए रखने भर के निर्णय से काम नहीं चलेगा। वास्तव में, यदि सरकार की मंशा स्कूली शिक्षा को सुधारने की है तो खुले दिल और दिमाग से, थोड़ा और समय लेकर उसे एक भारतीय शिक्षा प्रणाली तैयार करनी चाहिए।
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