बि हार चुनाव गति पकड़ता जा रहा है। बिहार चुनाव के महत्व को देखते हुए चुनावी प्रचार में आक्रामकता भी बढ़ती जा रही है। बुलंद नारे और जुमले उछाले जा रहे हैं। प्रत्येक पार्टी अपनी पूरी ताकत लगा रही है। कोई पार्टी कुछ भी ढील छोडऩे के मूड में नहीं है। सबकी प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। सब जानते हैं कि बिहार चुनाव के नतीजे भारतीय राजनीति की दशा और दिशा पर व्यापक प्रभाव डालेंगे। आगामी वर्षों में होने वाले उत्तरप्रदेश सहित अन्य राज्यों के चुनावों तक बिहार के नतीजों का असर जाएगा। इसलिए चुनाव प्रचार में कोई भी दल पिछडऩा नहीं चाहता। जुबानी ताकत से लेकर जनबल-धनबल, सबका जमकर उपयोग होने वाला है। बिहार सहित समूचे देश की निगाहें इस चुनाव पर हैं।
राजपुरुषों को समझना होगा कि आक्रामकता में उन्हें मर्यादा का ध्यान भी रखना है। आक्रामकता का मतलब यह कतई नहीं है कि आपा खो दिया जाए, अतिव्यक्तिगत आक्षेप लगाए जाएं, संवेदनशील मसलों को राजनीति में घसीटा जाए, गैर-जिम्मेदारान बयानबाजी की जाए या फिर असंयमित भाषा-बोली का उपयोग किया जाए। आक्रामकता तो शालीन रहकर भी आ सकती है। शालीनता के साथ आक्रामकता अधिक मारक होती है। एक-दूसरे पर हमलावर होते समय यह ध्यान रखें कि आपकी भाषा-बोली, नारों और जुमलों का विश्लेषण जनता कर रही है। आपके विचारों के आधार पर जनता आपका मूल्यांकन कर रही है। बेकार की बहसबाजी और आरोप-प्रत्यारोप में जुबानी जमा खर्च करने की अपेक्षा सार्थक बहस कीजिए, तर्क रखिए। चुनावी प्रचार में सभी दल स्पष्टतौर पर बताएं कि बिहार के विकास के लिए उनके पास क्या योजना है। उनके पास कोई रोडमैप है भी या नहीं? बिहार की जरूरतों पर बात हो। वहां की आवाम को कैसे बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराओगे, इस पर बहस करो। रोजगार के इंतजाम कैसे करोगे? बिजली-पानी की समस्या का क्या समाधान है? जनता से जुड़े अहम मुद्दों पर बात हो। जुमलों और एक-दूसरे पर कीचड़ उछालने की राजनीति से जनता ऊब गई है। वह कुछ सकारात्मक और सार्थक चुनाव प्रचार की अपेक्षा कर रही है। 'ग्रेट इंडियन पॉलिटिकल थियेटर' की पहचान से बाहर निकलने की जरूरत है।
भाजपा 'परिवर्तन रैली' निकाल रही है तो नीतिश कुमार और लालू प्रसाद यादव की जोड़ी 'स्वाभिमान रैली'। दोनों को ही समझना होगा कि चुनाव प्रचार की आक्रामकता में असंयमित हो रही भाषा और अनुशासन खो रहे व्यवहार से न तो सार्थक परिवर्तन आएगा और न ही बिहार का स्वाभिमान बचेगा। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की साख को बचाए रखने के लिए सभी राजनीतिक दलों को मर्यादा का ध्यान रखना चाहिए। आरोप-प्रत्यारोप में भाषा की शालीनता को बनाए रखें। अच्छा होगा यदि सिर्फ बिहार के विकास की बात हो।
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