भा रतीय सेना दुनिया की सबसे जांबाज और बड़ी सेनाओं में शुमार है। हमारे योद्धा प्रतिकूल परिस्थितियों में अपनी जान लड़ाकर मोर्चा संभाले रहते हैं। शियाचीन की बर्फीली चोटियों पर खून जमा देने वाली ठण्ड हो या फिर रेगिस्तान की खून उबाल देने वाली गर्मी, जवान अपने कर्तव्य से नहीं डिगते। ऐसी सेना का मनोबल बढ़ाना प्रत्येक सरकार की जिम्मेदारी है। सैनिकों के लिए उनके निजी हित और परिवार कभी प्राथमिकता की सूची में शीर्ष पर नहीं रहे हैं, उनके लिए तो राष्ट्र सबसे पहले रहा है। लेकिन, अब तक की सरकारों ने निष्ठावान जवानों और उनके परिवारों की बेहतरी के लिए कभी उतना ध्यान नहीं दिया, जितना देना चाहिए था। वन रैंक, वन पेंशन की सिफारिश को लागू करके भाजपानीत केन्द्र सरकार यह श्रेय ले सकती है। केन्द्र सरकार को यह योजना जल्द लागू करना चाहिए।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और समूची भारतीय जनता पार्टी ने सैनिकों से वादा किया था कि उनकी सरकार आएगी तो वन रैंक-वन पेंशन की व्यवस्था लाई जाएगी। वर्षों से सैनिक, उनके परिवार और सेना को चाहने वाले करोड़ों देशवासी वन रैंक-वन पेंशन का इंतजार कर रहे हैं। केन्द्र सरकार ने भरोसा दिलाया है कि वह इसे जल्द ही लागू करेगी, कुछ अड़चनें आ रही हैं, उन्हें दूर करने का प्रयास सरकार कर रही है। सैनिकों को केन्द्र सरकार पर चाहकर भी भरोसा इसलिए नहीं हो रहा है क्योंकि इस मसले पर किसी भी सरकार ने कभी इनकार नहीं किया, लेकिन अब तक इसे लागू भी नहीं किया। कह सकते हैं कि सरकारें सैनिकों को दिलासा ही देती आई हैं। वर्तमान केन्द्र सरकार पर भरोसा है कि वह सैनिकों के हित में फैसला लेकर आएगी, लेकिन अब इंतजार की हद खत्म हो रही है। वन रैंक वन पेंशन योजना का इंतजार 1973 के बाद से सेना को है। यह व्यवस्था लागू होती है तो करीब 40 लाख सैन्यकर्मियों को फायदा होगा। शहीद सैनिकों के परिवारों को ताकत मिलेगी। 1973 तक सेना में वन रैंक वन पेंशन थी लेकिन इसी साल आए तीसरे वेतन आयोग के बाद यह व्यवस्था बदल गई। बाद में, सितंबर 2009 में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को वन रैंक वन पेंशन पर आगे बढऩे का आदेश दिया। मई 2010 में सेना पर बनी स्थाई समिति ने भी वन रैंक वन पेंशन लागू करने की सिफारिश की। लेकिन, तब से अब तक सरकारें वन रैंक वन पेंशन के लिए बजट ही आवंटित करती रही हैं, योजना को लागू नहीं कर पा रही हैं। दुनिया के तमाम देशों में सेना का खास ख्याल रखा जाता है। उन्हें आम सेवाओं के मुकाबले अधिक वेतन दिया जाता है। लेकिन, हमारे देश की सरकारें विपरीत परिस्थितियों में भी सीमा रक्षा करने वाले सैनिकों की भलाई के रास्ते में आने वाली अड़चनों को दूर नहीं कर पा रही हैं।
केन्द्र सरकार में मंत्री और पूर्व सेनाध्यक्ष वीके सिंह की बेटी मृणालिनी सिंह ने दिल्ली में जंतर-मंतर मैदान पर पहुंचकर सैनिकों की मांग का समर्थन किया है। यहां मृणालिनी को सरकार के केन्द्रीय मंत्री की बेटी के रूप में नहीं देखना चाहिए। बल्कि वे उससे पहले एक सैनिक की बेटी हैं जो कुछ समय बाद सैनिक की पत्नी भी बनने जा रही हैं। अगर हम मृणालिनी को सैनिक परिवार की सदस्य के रूप में देखकर विचार करेंगे तो उनकी उपस्थिति के असल मायने समझ सकेंगे। केन्द्रीय मंत्री की बेटी के तौर पर रखकर बात की तो फिर कोरी राजनीतिक बहस ही खड़ी होगी। जंतर-मंतर पर सैन्यकर्मियों के धरना-आंदोलन में मृणालिनी सिंह की उपस्थिति से सरकार को समझना चाहिए कि सैनिकों की मांग में उनके परिवार भी शामिल हैं। वन रैंक वन पेंशन के मसले पर सरकार को जल्द से जल्द कोई कदम उठाना चाहिए। सरकार इतना विलंब न करे कि सैनिक कठोर प्रदर्शन करने पर मजबूर हो जाएं। उसके बाद यदि सरकार कोई फैसला लेगी भी तो उसका श्रेय लेने का अधिकार खो देगी। सरकार सैनिकों के साथ-साथ समूचे देश का भरोसा जीतना चाहती है तो वन रैंक वन पेंशन योजना पर उसे जल्द ही उचित निर्णय करना होगा।
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