ऑ नलाइन शॉपिंग की ओर भारतीयों का रुझान तेजी से बढ़ रहा है। इसके पीछे एक बड़ा कारण ऑनलाइन कंपनियों की ओर से गाहे-बगाहे दिए जा रहे बम्पर ऑफर्स हैं। कैश ऑन डिलेवरी और मासिक किश्त पर खरीदारी की सुविधा भी ई-कॉमर्स की ओर भारतीयों को आकर्षित कर रही हैं। तगड़ी छूट का विज्ञापन भी ये कंपनियां जोर-शोर से करती हैं। विज्ञापन और कंपनियों के भारी डिस्काउंट ऑफर्स के मोहजाल में फंसकर दुकान पर तोल-मोल करके खरीदारी करने वाली महिलाएं भी घर बैठे साड़ी, ज्वैलरी, टेलीविजन, मोबाइल और अपनी किचन का सामान भी ऑनलाइन खरीद रही हैं। ऑनलाइन शॉपिंग का खुमार पुरुषों पर महिलाओं से अधिक है। अलग-अलग सर्वेक्षणों में यह बात सामने आ रही है कि कुछ समय पहले तक मोबाइल और कम्प्यूटर संबंधी उपकरण सहित इलेक्ट्रोनिक सामान ही सबसे अधिक खरीदा जा रहा था लेकिन अब कपड़े, क्रॉकरी, साज-सज्जा, किराने का सामान भी ऑनलाइन खरीदा जाने लगा है।
यदि हम ई-कॉमर्स कंपनी स्नेपडील के आंकड़ों पर नजर डालें तो प्रत्येक 20 सेकंड में वहां एक टेलीविजन बिक जाता है। 12 सेकंड में मोबाइल फोन। प्रत्येक 20 सेकंड में साड़ी भी बिक जाती है और 30 सेकंड के भीतर चार जोड़ी जूतों का ऑर्डर आ जाता है। यह खरीदारी सिर्फ शहरी लोग कर रहे हैं ऐसा भी नहीं है। ऑनलाइन शॉपिंग का आकर्षण दूर-दराज के कस्बों तक भी पहुंच गया है। अमेजन कंपनी भारत के 90 फीसदी पिनकोड पर डिलेवरी करती है। गूगल की रिपोर्ट कहती है कि इंटरनेट के बढ़ते उपयोग और ऑनलाइन खरीदारी के मोह के चलते भारत में ऑनलाइन कारोबार वर्ष 2016 तक 15 अरब डालर का हो जाएगा। कंपनी के सर्वेक्षण में यह तथ्य सामने आए हैं कि वर्ष 2012 में करीब 80 लाख लोग ऑनलाइन खरीदारी कर रहे थे। वर्ष 2014-15 में यह संख्या बढ़कर करीब 3.5 करोड़ हो गई है। 2016 तक ऑनलाइन खरीदारी करने वालों की संख्या 10 करोड़ होने का अनुमान हैं, जिसमें करीब चार करोड़ महिलाएं होंगी। गोल्डमैन सैक्स भी 15 साल में ऑनलाइन कारोबार में बहुत बड़े बदलाव की बात करता है। उसे भरोसा है कि अगले 15 साल में भारत में ऑनलाइन खरीदारी का बाजार करीब 15 गुना बढ़कर 30,000 करोड़ रुपये तक पहुंच सकता है।
बहरहाल, हम वापस भारतीय खरीदार की ओर लौटते हैं। ऑनलाइन शॉपिंग के वक्त भारतीय खरीदारों का मानस क्या रहता है? बढ़ती ऑनलाइन शॉपिंग के पीछे का मनोविज्ञान क्या है? क्या भारतीय उपभोक्ता जरूरत का सामान यहां खरीद रहे हैं या फिर भारी छूट मिलने के कारण गैरजरूरी खरीदारी कर रहे हैं। कंपनी शॉपक्लूज डॉट कॉम के एक सर्वेक्षण में पता चला है कि करीब 70 फीसदी खरीदारी बिना सोचे-विचारे की जाती है। एक चादर के साथ दो चादर मुफ्त मिल रहे हैं, इसलिए खरीद लो। एक पेनड्राइव की कीमत में दो पेनड्राइव आ रही हैं, इसलिए खरीद लो। जूतों पर 50 प्रतिशत छूट मिल रही है, खरीद लो। अमेजन पर तीन दिन तक ही सेल रहने वाली है, फिर सेल आएगी या नहीं, अभी खरीद लो। फ्लिपकार्ट पर दो दिन बम्पर सेल आई है, जल्दी खरीदो, कहीं मौका हाथ से न निकल जाए। अरे, जरा ठहरो। जरूरत है तो खरीदो न। सेल तो आती जाती रहेंगी। ऑफर्स भी आएंगे, कहीं नहीं जाने वाले। जल्दबादी में, गैर-जरूरी खरीदारी की क्या आवश्यकता है। अमूमन भारी डिस्काउंट को देखकर पैसे बचाने के चक्कर में हम ज्यादा खरीदारी कर बैठते हैं यानी पैसा बचने की जगह ज्यादा खर्च हो जाता है और हमारा बजट बिगड़ जाता है।
ऑनलाइन कारोबार में उतरी कंपनियों ने भी खरीदारी को लेकर भारतीयों के मनोविज्ञान का अच्छा अध्ययन किया है। उन्हें पता है कि सेल, एक के साथ एक फ्री और बम्पर छूट के नाम पर खूब ब्रिकी की जा सकती है। पेटीएम कंपनी तो इससे भी आगे बढ़ी, वह 'अपने प्राइज पर डन करो' विकल्प लेकर आ गई। यानी खरीदारी में यहां भी तोल-मोल करके अपनी आत्मसंतुष्टी उपभोक्ता पा सके। ऑनलाइन खरीदारी के चढ़ते बुखार को देखकर बड़ा सवाल यह उठता है कि बेमतलब की खरीदारी की आदत (लत कहना अधिक ठीक होगा) उचित है या अनुचित? इस पर विचार किया जाना जरूरी है। भारतीय उपभोक्ता यह भी ध्यान दें कि वे ऑनलाइन शॉपिंग के कदाचार को ठीक से समझ पाए हैं या नहीं? यह सामाजिक विमर्श का मसला भी है कि आवश्यकता के अनुरूप जीवन जीने वाला भारतीय समाज किस दिशा में आगे बढ़ रहा है? बहरहाल, हमारा विचार है कि कंपनियों के कॉन्सेप्ट को समझिए, अपनी आवश्यकता को जानिए और सही खरीदारी को अपनाइए।
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