लो कतंत्र की आत्मा है संसद। कांग्रेस की जिद आत्मा को तकलीफ पहुंचा रही है। मानसून सत्र के पहले दिन से अब तक कांग्रेस की अगुवाई में जारी गतिरोध से 'हंगामे की हद' भी टूटने लग गई हैं। हालांकि बुधवार को कांग्रेस की मांग पर सभापति ने स्थगन प्रस्ताव (ललित मोदी प्रकरण के संबंध में) पर चर्चा की अनुमति दे दी। लेकिन, स्थगन प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान भी जमकर हंगामा किया गया। प्रश्नकाल की कार्यवाही तो प्रतिपक्ष ने चलने ही नहीं दी। बहरहाल, सीमा लांघते हंगामे पर कांग्रेस के साथ खड़ी दूसरी पार्टियों ने भी एतराज जताना शुरू कर दिया है। सपा प्रमुख मुलायम सिंह ने कहा है कि कांग्रेस संसद नहीं चलने देना चाहती। संसद में अब हंगामा बेमतलब है। काम भी होना चाहिए। कांग्रेस का रुख अनुचित है। अब तक वेल में जाकर तख्तियां दिखा रहे कांग्रेसी सांसदों ने मंगलवार को संसद की मर्यादा ही तार-तार कर दी। उन्होंने उप सभापति पर कागज के टुकड़े उछाल दिए। आसंदी का अपमान।
सांसदों के इस तरह के आचरण पर सभापति सुमित्रा महाजन ने नाराजगी जाहिर करते हुए सख्त लहजे में कहा कि सांसदों के इस तरह के आचरण को कदापि माफ नहीं किया जा सकता। जाओ, पहले अपना आचरण सुधारो। इसी सत्र के दौरान पूर्व में 25 सांसदों को निलंबित करने से भी अधिक कड़ी सजा है प्रतिपक्ष के लिए सभापति का यह बयान। उन्होंने यह कहकर भी प्रतिपक्ष को असली चेहरा दिखाने की कोशिश की कि 40 लोग 440 सांसदों का अधिकार नहीं छीन सकते। वेल में पोस्टरबाजी और नारेबाजी के दौरान सभापति ने कहा कि हंगामा कर रहे सांसदों को टेलीविजन पर दिखाया जाए ताकि देश की जनता देख सके कि उनके नेता कैसा व्यवहार करते हैं। सच है, सांसदों के इस व्यवहार से देश का युवा क्या सीखेगा? नए संसद सदस्य कैसे संसदीय परंपरा सीखेंगे। वॉट्सअप और अन्य माध्यमों पर दो-तीन मिनट की लघु फिल्म तेजी से वायरल हो रही है। फिल्म में अध्यापक अपने छात्रों से कहता है कि आज हम संसद की कार्यवाही को सीखेंगे। उन्होंने कहा कि मौक संसद में असली संसद की अनुभूति होनी चाहिए। विद्यार्थियों ने वही सब किया जो उन्होंने संसद में देखा है- कुर्सी फेंकी, कागज फाड़े, आपस में चिल्ला-चौंट की, धक्का-मुक्की की, सभापति के निर्देशों को अनसुना किया, सभापति का माइक ही छीनकर फेंक दिया। संसदीय कार्यवाही और उसके व्यवहार के नाम पर युवा विद्यार्थियों ने यह सब सीखा है। किससे सीखा? सांसदों के 'संसदीय व्यवहार' से सीखा। संसद में कैसे लोकतंत्र की हत्या की जाती है, यह उन्होंने टीवी पर लाइव देखा है। न्यूज चैनल्स पर बार-बार देखा है। मंगलवार को कांग्रेस ने संसद में डिप्टी स्पीकर पर कागज के टुकड़े फेंककर संसद ही नहीं, लोकतंत्र और भारतीय राजनीति को भी शर्मिंदा किया है।
कांग्रेस को समझना होगा कि प्रतिपक्ष का मतलब सिर्फ हंगामा खड़ा करना नहीं होता है। संसद को ठप करना प्रतिपक्ष का काम नहीं है। प्रतिपक्ष की महत्वपूर्ण भूमिका संसद की कार्यवाही को और अधिक जिम्मेदारी से संचालित कराने की है। हंगामे के पीछे यदि कांग्रेस की नीति खुद को शक्तिशाली प्रतिपक्ष के रूप में स्थापित करना है, कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी को मुख्य प्रतिपक्ष नेता के रूप में स्थापित करना है तो वह गलत है। बिहार चुनाव को ध्यान में रखकर भी यदि कांग्रेस संसद को नहीं चलने दे रही तब भी वह गलत है। संभव है कि कांग्रेस खुद को मजबूत दिखाकर बिहार चुनाव में मतदाताओं का खोया हुआ विश्वास पाने की जुगत भिड़ा रही हो। शुरुआती दिनों में जिस तरह कांग्रेस ने एकजुटता के साथ सत्तापक्ष को घेरा था, उसकी ताकत का प्रदर्शन तो तभी हो गया था। उसके बाद हंगामे को लगातार जारी रखने से कांग्रेस की छवि आर्थिक विकास में रुकावट डालने वाले दल की बनने लगी है। विकास विरोधी कांग्रेस। जनता अब यह कहने लगी है। देश के प्रमुख आर्थिक जानकार और वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भी इस आशय के आरोप कांग्रेस पर लगाये हैं। उन्होंने कहा है कि कांग्रेस भूमि अधिग्रहण विधेयक और जीएसटी बिल को संसद में अटकाकर देश की आर्थिक विकास में रुकावट डाल रही है। भूमि अधिग्रहण बिल और जीएसटी के लागू हो जाने से विदेशी निवेश, इंफ्रास्ट्रक्चर और रोजगार बढ़ेगा। जीएसटी को लेकर यह आकलन भारतीय रिजर्व बैंक का भी है। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि कांग्रेस और अन्य प्रतिपक्षी दल इसलिए भी संसद को चलने नहीं देना चाह रहे, क्योंकि भूमि अधिग्रहण विधेयक और जीएसटी के कारण 'अच्छे दिनों' का माहौल बन सकता है। अलोकप्रिय हो रही भाजपानीत केन्द्र सरकार की लोकप्रियता का ग्राफ फिर से ऊंचाइयां छूने लगेगा। कांग्रेस के अमर्यादित और हदें लांघते हंगामे से अब सत्तासीन भाजपा के प्रति जनता की सहानुभूति बढऩे लगी है। कांग्रेस को समझना चाहिए कि अब हंगामे से उसका ही नुकसान होने लगा है। लोकहित में न सही स्वहित में ही संसद को चलने दिया जाए।
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन बंधक बनी संसद को निहारता बेबस देश में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
जवाब देंहटाएंसचमुच बेहद शर्मनाक और अफसोसजनक है .
जवाब देंहटाएंबेहद शर्मनाक.बेह्तरीन अभिव्यक्ति
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