स्व तंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का राष्ट्र के नाम संदेश और 15 अगस्त को लालकिले की प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का भाषण हमें सुधारात्मक और सकारात्मक दिशा में आगे बढऩे के लिए प्रेरित करता है। मानसून सत्र के दौरान संसद के भीतर राजनीतिक दलों के बीच आपसी कटुता और भयंकर टकराव को देखकर राष्ट्रपति ने चिंता जाहिर की है। उन्होंने कहा है कि लोकतंत्र की संस्थाएं दबाव में हैं तो समय आ गया है कि जनता और उसके दल गंभीर चिंतन करें। सुधारात्मक उपाय भीतर से आने चाहिए। राष्ट्र के नाम अपने संदेश में उन्होंने स्पष्ट तौर पर कहा कि अपने राजनीतिक उद्देश्यों को साधने के लिए संसद को ठप करना ठीक नहीं। उनका भाषण सत्तापक्ष और प्रतिपक्ष दोनों को बार-बार सुनना और गुनना चाहिए। लोकतंत्र के सम्मान को बचाए रखना सबसे महत्वपूर्ण है। यह हमारे लिए अमूल्य धरोहर है। अपने व्यवहार से हमें लोकतंत्र को और अधिक मजबूत करना है।
संसद के भीतर स्वस्थ माहौल में संवाद की परम्परा को बनाए रखने की चुनौती आज की राजनीतिक पार्टियों और उनके नेताओं के सामने है। वे जरा विचार करें, संसद युद्ध का मैदान नहीं और न ही चुनावी मंच है। संसद तो वह पवित्र मंदिर है जहां नर नारायण को खुश करने की प्रबंध करना होता है। देश और समाज के कल्याण के लिए सत्तापक्ष और प्रतिपक्ष दोनों को विचार करना चाहिए। राष्ट्रपति ने बीते वर्षों में प्राप्त सुखद उपलब्धियों के साथ ही दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ती भारत की अर्थव्यवस्था का भी जिक्र किया। आर्थिक व्यवस्था को लेकर जब वैश्विक स्तर पर चिंता का वातावरण बना हुआ है तब भारत की जीडीपी कुलांचे मारकर 7.4 प्रतिशत के आंकड़े पर पहुंच गई है। हम चीन को भी पीछे छोड़ चुके हैं। हम कह सकते हैं कि पस्त पड़ चुकी विकास दर, भारी महंगाई और उत्पादन में कमी के दौर से उबरते हुए एनडीए सरकार अर्थव्यवस्था को एक तेज रफ्तार विकास पथ ले आई है। इसका लाभ हमें निश्चित ही मिलेगा। भारत की अर्थव्यवस्था के प्रति विश्व में भरोसा पैदा होगा। विदेशी निवेशक आकर्षित होंगे। रोजगार के नए अवसर आएंगे।
स्वतंत्रता दिवस के भाषण पर प्रधानमंत्री ने भी उम्मीदों का आसमान दिखाया है। पिछले डेढ़ साल में बने सकारात्मक वातावरण की ओर ध्यान दिलाने का उन्होंने प्रयास किया। प्रधानमंत्री ने कहा कि भाजपानीत एनडीए के 15 माह के शासनकाल में एक भी पैसे के भ्रष्टाचार का आरोप नहीं लगा है। पूरा देश भ्रष्टाचार से पीडि़त है। आम आदमी इससे जूझ रहा है। समूचा देश चाहता है कि भ्रष्टाचार से निजात मिले। भ्रष्टाचार के खात्मे के लिए ऊपर से शुरुआत की जरूरत है, जिसके लिए प्रधानमंत्री ने अपनी प्रतिबद्धता जताई है। 'न खाऊंगा-न खाने दूंगा' के बाद उन्होंने कहा है कि 'हर जुल्म सहूंगा-भ्रष्टाचार मिटाऊंगा'। सुधारात्मक और सकारात्मक वातावरण के निर्माण के लिए प्रधानमंत्री ने देश की सभी राज्य सरकारों से सहयोग की अपेक्षा की है। केन्द्र सरकार की उपलब्धियों के लिए उन्होंने राज्य सरकारों को भी श्रेय दिया है। अपने 86 मिनट के भाषण में उन्होंने 38 बार टीम इंडिया शब्द का उपयोग किया। टीम इंडिया में सभी राज्य सरकारें शामिल हैं। यह सुखद स्थिति है जब केन्द्र सरकार सभी राज्य सरकारों को साथ लेकर चलने की बात कह रही है। देश को विकास के पथ पर तेज रफ्तार से दौड़ाना है तो राज्य सरकारों का सहयोग अनिवार्य हो जाता है। केन्द्र सरकार की योजनाओं और उद्देश्यों को पूरा करने में राज्यों की महत्वपूर्ण भूमिका है। वर्तमान केन्द्र सरकार ने इस मामले में सकारात्मक माहौल बनाया है। आर्थिक सुधारों को बल और गति देने वाले जीएसटी बिल के लिए भी उसने लगभग सभी राज्यों की सरकारों को राजी कर लिया है। यह दीगर बात है कि मानसून सत्र में संसद ठप रहने से केन्द्र सरकार का महत्वाकांक्षी बिल अटक गया है। हालांकि केन्द्र सरकार ने जल्द ही बिल को पारित कराने की प्रतिबद्धता जाहिर की है। संभवत: इसके लिए शीघ्र ही विशेष सत्र बुलाया जा सकता है। बहरहाल, पिछले स्वतंत्रता दिवस से इस स्वतंत्रता दिवस तक का एक वर्ष भारत के लिए अनेक महत्वपूर्ण उपलब्धियों से भरा रहा है। सब ओर से सकारात्मक और रचनात्मक कार्यों के समाचार प्राप्त हुए हैं। वैश्विक स्तर पर भी भारत की छवि एक मजबूत देश की बनी है। सुधारात्मक और सकारात्मक वातावरण का निर्माण यूं ही होता रहे, इसमें और अधिक गति आए, इसके लिए मिलजुल कर और अधिक प्रयास किए जाएं, प्रत्येक भारतीय यही चाहता है।
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