भा रत के राजनीतिक दलों और उनके नेताओं में सांप्रदायिक सोच और दृष्टि गहरे तक पैठ कर गई है। इसके पीछे स्पष्ट तौर पर वोट बैंक एकमात्र कारण है। भारत में धर्म संवेदनशील मसला है। हमने धर्म को उसकी मूल प्रकृति से हटाकर पूजा-पाठ, मत-संप्रदाय और पंथ तक सीमित कर दिया है। यह कहना भी अतिशयोक्ति नहीं है कि तुष्टीकरण, वोट बैंक और सांप्रदायिक राजनीतिक नजरिए के कारण धर्म छुईमुई का पौधा हो गया है। आपत्तिजनक स्थिति यह है कि हमारे नेता प्रत्येक घटना में धर्म ढूंढ़ लेते हैं। बात का बतंगड़ बनाते हैं। राजनीतिक चूल्हे पर एक संकीर्ण ढेकची में धर्म को उबालते हैं। विविधता के बावजूद एकसूत्र में बंधे भारतीय समाज को विभाजित कर पॉकेट्स में बांट देते हैं। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 34 साल बाद संयुक्त अरब अमीरात की यात्रा पर गए हैं। वे वहां दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी शेख जायेद मस्जिद में भी गए। विभिन्न राजनीतिक दलों की सांप्रदायिक सोच इस मौके पर भी जाहिर हो गई। भाजपा को सांप्रदायिक पार्टी बताने वाले ही प्रत्येक घटना में धर्म को घसीटकर ले आते हैं, ऐसा महसूस होने लगा है। सवाल खड़ा होता है कि सांप्रदायिक कौन है, भाजपा या अन्य? मोदी ने टोपी नहीं पहनी तो हंगामा। मोदी इफ्तार पार्टी में नहीं गए तो मुसलमानों के विरोधी। मोदी ने जो साफा बांधा था उसकी हरा रंग उसमें ऊपर नहीं पूंछ में था। अब मोदी मस्जिद जा रहे हैं तब भी हंगामा। आखिर हम प्रत्येक घटना को सांप्रदायिक चश्मे से देखना कब बंद करेंगे?
ओछी राजनीति से देश ऊब गया है। देश की सवा सौ करोड़ जनता सकारात्मक राजनीति की अपेक्षा कर रही है। टीवी चैनल पर बहस चल रही हैं कि मोदी पहली बार मस्जिद जाएंगे। मोदी का मुस्लिम प्रेम जाग गया क्या? भारत लौटकर वे जामा मस्जिद भी जाएंगे क्या? इत्यादि। राजनेता भांति-भांति के बयान दे रहे हैं। कोई जरूरी बहस और चर्चा नहीं। भारत के तथाकथित प्रगतिशील और धर्मनिरपेक्ष दलों को प्रधानमंत्री पर दबाव बनाना चाहिए था कि वे यूएई में बसे भारतीय मजदूरों की बेहतरी का रास्ता निकालकर ही आएं। अपने परिवारों की खुशहाली के लिए यूएई में भारतीय मजदूर बद्तर हालात में काम करने को मजबूर हैं। मोदी स्वत: ही भारतीय मजदूरों से मिलकर उनकी समस्याओं को जानेंगे-समझेंगे। भारतीय प्रधानमंत्री के लिए सब प्रोटोकोल तोड़कर अपने पांच भाईयों के साथ एयरपोर्ट पहुंचे शेख सुल्तान बिन जायेद अल नाह्मान नरेन्द्र मोदी की पहल पर भारतीय मजदूरों की बेहतरी के लिए प्रयास करेंगे, इसकी उम्मीद सब कर रहे हैं।
दो टके का चश्मा हटाकर खूबसूरत आंखों से हमें देखना चाहिए कि प्रधानमंत्री का यह दौरा हमारे लिए कितना महत्वपूर्ण है। दो दिन की यात्रा में प्रधानमंत्री का पूरा ध्यान ऊर्जा, सुरक्षा, व्यापार और निवेश पर रहेगा। मोदी चाहते हैं कि इन क्षेत्रों में दोनों देशों के बीच साझेदारी बढ़े। ऊर्जा और व्यापार में सहयोग बढ़ाने की चाहत से मोदी निवेशकों के बीच जाएंगे और भारत को बिजनेस के लिहाज से आकर्षक केंद्र के रूप में प्रमोट करेंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मुख्य फोकस व्यापार और निवेश पर है। इस सिलसिले में मोदी अबू धाबी इन्वेस्टमेंट अथॉरिटी (एआईडीए) के मैनेजिंग डायरेक्टर हामिद बिन जायेद अल नाह्यान के डिनर में भी शामिल होंगे। एआईडीए के पास 800 बिलियन डॉलर का स्वायत्त फंड है। भारत में विकास की संभावनाएं दिखाकर मोदी अधिक से अधिक निवेश आकर्षित करने का प्रयास करेंगे।
गौरतलब है कि 1970 के दशक में प्रति वर्ष भारत और यूएई के बीच 180 मिलियन डॉलर का ट्रेड था। वर्तमान में भारत और यूएई करीब 60 बिलियन डॉलर के ट्रेड पार्टनर हैं। मोदी ने भारत में एक ट्रिलियन डालर निवेश की संभावनाएं जताई हैं। यह व्यापार और बढ़ता है तो दोनों देशों की तरक्की को गति मिलेगी। आतंकवाद और अतिवाद की समस्या से भारत चिंतित है तो इस मसले पर यूएई की चिंता भी कम नहीं है। प्रधानमंत्री अंतरराष्ट्रीय अपराधी दाउद इब्राहिम की संपत्ति को सीज कराने का भी प्रयास करेंगे। यदि वे अपने इस प्रयास में सफल हो गए तो दाउद एण्ड कम्पनी के सामने बड़ी मुश्किलें खड़ी हो जाएंगी। दुबई में होटल कारोबार से लेकर अन्य कई बड़े उद्योगों में दाउद का पैसा लगा है। इसके अलावा भारत पश्चिमी एशिया में बाहरी हस्तक्षेप को कम करने के लिए इस क्षेत्र में अपनी भागीदारी भी बढ़ाना चाहता है। इस दृष्टि से भी भारत के प्रधानमंत्री का यह दौरा महत्वपूर्ण है। बहरहाल, प्रत्येक घटना को सांप्रदायिक चश्में से देखने वालों को अपना चश्मा उतारकर देखना चाहिए कि भारतीय प्रधानमंत्री का जोरदार स्वागत यूएई कर रहा है। वहां बसे भारतीय मुसलमान अपने प्रधानमंत्री को सुनने के लिए लालायित हैं। मोदी-मोदी की जोरदार आवाजें यहां तक सुनाई दे रही हैं।
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