उ च्चतम न्यायालय ने 'हिन्दुत्व' को सर्वसमावेशी बताया है। न्यायालय का मानना है कि हिन्दुत्व में सबके लिए जगह है। उच्चतम न्यायालय की इस राय का अध्ययन उन सब सेक्युलर बुद्धिजीवियों और राजनेताओं को करना चाहिए, जिन्होंने देश में हिन्दुत्व को बदनाम करने का अधिकतम प्रयास किया है। अपने राजनीतिक स्वार्थों की पूर्ति के लिए वामपंथी और तथाकथित सेक्युलर बुद्धिजीवियों ने प्रेरणास्पद दर्शन 'हिन्दुत्व' को विवादास्पद बना दिया है। गैर-ब्राह्मणों को मंदिरों में पुजारी बनाने की अनुमति देने वाला तमिलनाडु का एक नियम उच्चतम न्यायालय में समीक्षा के लिए लाया गया था। हालांकि उच्चतम न्यायालय ने इस नियम की समीक्षा करने से इनकार कर दिया है। तमिलनाडु में मंदिरों के पुजारी एक खास जाति के लोग ही हो सकते थे। तमिलनाडु सरकार ने कानून बनाकर दूसरे जाति के लोगों के लिए भी मंदिर का पुजारी बनने का रास्ता खोल दिया है। अब किसी भी जाति का वह व्यक्ति मंदिर का पुजारी बन सकता है, जिसे परंपराओं और रीति-रिवाजों की सही जानकारी हो।
यह कानून स्वागत योग्य है। देवता की सेवा करने का अधिकार प्रत्येक मनुष्य को है। वैसे भी भारत का दर्शन कहता है कि ब्राह्मण जन्म से नहीं बल्कि कर्म से होता है। बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट ने अपनी स्पष्ट राय दी है कि हिन्दुत्व कुछेक तबकों तक सीमित नहीं हैं। न्यायमूर्ति रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति एनवी रमन्ना की पीठ ने कहा है कि धर्म के रूप में हिन्दुत्व सभी तरह के विचारों को अपने में जगह देता है। यह सर्वसमावेशी है। किन कारणों से हिन्दुत्व जड़ धर्म नहीं है? हिन्दुत्व के मूल में ऐसा क्या है कि वह सबको अपने में समेट लेता है? हिन्दुत्व के सहिष्णु और उदार होने के पीछे क्या कारण हैं? जहाँ अन्य पंथ केवल अपने ही विचार से दुनिया को रंगने के लिए हाथ में अस्त्र लेकर और अश्व पर सवार होकर निकल पड़ते हों, वहीं हिन्दुत्व सबको साथ लेकर चलने का संदेश कैसे दे पाता है?
इन प्रश्नों का जवाब हमें उच्चतम न्यायालय की टिप्पणी में मिलता है- 'हिन्दुत्व एक ऐसा धर्म है, जिसका कोई संस्थापक नहीं है। इसका कोई एक धर्म ग्रंथ नहीं है और न ही इसकी सीखों का एक रूप है। इसे सनातन धर्म के तौर पर बताया गया है। यह सदियों की प्रेरणा और सामुदायिक समझदारी की परिणति है। हिन्दुत्व इसी का प्रचार-प्रसार करता है।' हिन्दुत्व में सभी प्रकार के विचारों की स्वतंत्रता और स्वीकार्यता है। यहाँ जड़ता नहीं है। किसी एक धर्म ग्रंथ में जो लिख दिया गया है, उसी के अनुसार सबको चलना होगा, यह भाव भी नहीं है। अपनी आत्मा के अनुरूप देवता और ग्रंथ का चुनाव करने की आजादी हिन्दुत्व में है। इस कारण यहाँ धार्मिक विचारों का संघर्ष नहीं है। बल्कि सबके विचारों का सम्मान है। सबको साथ लेकर चलने की भावना को हिन्दुत्व बढ़ाता है। अपने विचार को थोपने की प्रेरणा हिन्दुत्व नहीं देता है।
हिन्दुत्व की कोख तो नये विचारों के जन्म के लिए भी भरपूर उर्वरक है। हिन्दुत्व, जिसे सनातन धर्म माना गया है, उसकी कोख से कितने श्रेष्ठ दर्शनों, पंथों, विचारों का जन्म हुआ है। भिन्न-भिन्न मत, देवी-देवता, धर्मग्रंथ और उपासना पद्धति के बाद भी किस तरह सौहार्द और शांतिपूर्ण ढंग से सामुहिक जीवन जिया जा सकता है, यही संदेश तो हिन्दुत्व देता है। तथाकथित सेक्युलर और वामपंथियों को अपनी आँखों पर चढ़ा चश्मा हटाकर हिन्दुत्व की इसी खूबसूरती को देखना चाहिए। कुतर्कों के आधार पर हिन्दुत्व को बदनाम करने से उन्हें बाज आना चाहिए।
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