कां ग्रेस और सीपीएम की मांग पर लोकसभा में 'असहिष्णुता' पर चर्चा कराई गई। जैसा कि पहले से ही तय था कि 'असहिष्णुता' के मुद्दे पर सदन में जमकर हंगामा होगा। क्योंकि, पक्ष-प्रतिपक्ष एक-दूसरे पर असहिष्णु होने का आरोप मढ़ेंगे। सरकार तो पहले ही कह चुकी है कि 'असहिष्णुता' का मुद्दा बनावटी है। जिस दादरी की घटना को आधार बनाकर 'असहिष्णुता' का मुद्दा उछाला जा रहा है, वैसी अनेक घटनाएं देश में पहले भी होती आईं हैं। बल्कि इससे भी अधिक गंभीर घटनाएं हो चुकी हैं। इसलिए सरकार यह स्वीकार करेगी नहीं कि देश का माहौल अचानक से डेढ़ साल में बिगड़ गया है। वहीं, कांग्रेस, कम्युनिस्ट और कुछ क्षेत्रीय पार्टियां किसी भी स्तर पर जाकर केन्द्र सरकार को झुकाना चाहती हैं। उनका कहना है कि जब से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश की कमान संभाली है तब से देश में असहिष्णुता बढ़ गई है।
सोमवार को असहिष्णुता पर चर्चा की शुरुआत करते हुए सीपीएम नेता मोहम्मद सलीम ने गृहमंत्री राजनाथ सिंह पर आपत्तिजनक टिप्पणी कर दी। सांसद सलीम ने कहा- 'राजनाथ सिंह ने चुनाव में जीत के बाद बयान दिया था कि देश में 800 साल बाद पहली बार कोई हिन्दू शासक बना है।' इस टिप्पणी पर गृहमंत्री राजनाथ सिंह भड़क गए। सलीम के बयान पर कड़ी आपत्ति जताते हुए उन्होंने कहा कि संसदीय राजनीति में मुझे आज तक इतना दु:ख नहीं हुआ जितना आज हुआ है। उन्होंने कहा कि यह बहुत बड़ा आरोप है। मोहम्मद सलीम सबूत प्रस्तुत करें या फिर माफी मांगे। लेकिन, सलीम अपने बयान पर अड़े रहे। उन्होंने अपने बयान के लिए 'आउटलुक' पत्रिका को आधार बताते हुए कहा कि सरकार को पत्रिका के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए। वह तो उसमें प्रकाशित एक लेख के आधार पर यह बात कह रहे हैं। लेकिन, सत्तापक्ष इस बात पर अड़ गया कि मोहम्मद सलीम को माफी मांगनी चाहिए, क्योंकि स्वयं गृहमंत्री सदन में यह दावा कर रहे हैं कि उन्होंने इस तरह का बयान नहीं दिया है। गलत साबित होने के बाद भी सीपीएम नेता मोहम्मद सलीम ने माफी नहीं मांगी और सदन में हंगामा होता रहा।
इस पूरे प्रकरण के जरिए कुछ महत्वपूर्ण तथ्य देश के सामने आते हैं, जो इस ओर भी इशारा करते हैं कि 'असहिष्णुता' जानबूझकर रचा गया षड्यंत्र है। मीडिया का चरित्र क्या हो गया है? आउटलुक जैसी पत्रिका इतनी गैरजिम्मेदार कैसे हो सकती है कि जनता के बीच भ्रामक जानकारी पहुंचाए? विश्व हिन्दू परिषद के अंतरराष्ट्रीय संरक्षक रहे अशोक सिंघल के बयान को गृहमंत्री राजनाथ सिंह का बयान बनाकर छापना किस तरह की पत्रकारिता है? देश की यह शंका भी मजबूत हुई है कि मीडिया सबकुछ सच नहीं दिखाता है। मीडिया कई मौकों पर कुछ खास उद्देश्यों की पूर्ति करने के लिए गलत तथ्यों को प्रकाशित-प्रसारित करता दिखता है। देश क्यों नहीं शक करे कि 'असहिष्णुता' के मुद्दे पर भी मीडिया ने गलत तथ्यों को प्रचारित किया है?
इस प्रकरण से हमारे माननीय संसद सदस्यों के व्यवहार और विवेक पर प्रश्नचिह्न खड़ा होता है। क्या मोहम्मद सलीम को यह नहीं पता था कि यह चर्चित बयान स्वर्गीय अशोक सिंघल का था? संसद में बोलने से पहले तथ्यों की पुष्टि करना भी सलीम साहब ने जरूरी नहीं समझा, क्यों? उनके व्यवहार से वास्तविक असहिष्णुता का भी पता चलता है कि गलत साबित होने के बाद भी वे माफी मांगने को तैयार नहीं हुए। यानी सरकार पर अंगुली उठाने वाले स्वयं ही घोर असहिष्णु हैं। सरेआम गलती करने के बाद भी माफी मांगने को तैयार नहीं। देश के गृहमंत्री पर गंभीर टिप्पणी करने से पहले उन्होंने सोच-विचार ही नहीं किया।
यहां एक सवाल यह भी उठता है कि असहिष्णुता के मसले पर संसद में बहस हो क्यों रही है? देश ने पिछले दो-तीन महीने में भलीभांति देख लिया है कि असहिष्णुता पर बात करने से आपस में कटुता ही बढ़ रही है। इस अंतहीन बहस से कोई सार्थक परिणाम नहीं निकलना है। पक्ष और विपक्ष में खड़े सभी महानुभाव जानते हैं कि यह देश हमेशा से सहिष्णु रहा है। एक-दो घटनाएं देश का माहौल नहीं बिगाड़ सकतीं। देश ने बहुत कुछ झेला है। इसलिए बेकार की बहसों से जरूर देश में 'असहिष्णुता' का माहौल बन रहा है। देश को मिलकर इससे बचाना चाहिए। इस चर्चा के एक दिन पूर्व ही कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी. चिदंबरम ने कहा है कि सलमान रुश्दी की किताब सैटेनिक वर्सेस पर प्रतिबंध लगाना पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सरकार की एक गलती थी। यह कबूलनामा जाहिर करता है कि कांग्रेस के समय में भी सबकुछ ठीक नहीं था। अतीत में जाएंगे तो ऐसे बहुत से उदाहरण सामने आएंगे जो कहेंगे कि आज 'असहिष्णुता' की बहस खड़ी करना एक सोचा-समक्षा राजनीतिक और वैचारिक विरोध है, जिसकी बलि भारत बन रहा है।
हमारे नेताओं को यह भी समझना चाहिए कि आपसी विरोध के कारण देश की प्रतिष्ठा को दांव पर नहीं लगाया जा सकता। संसद में इस बनावटी मुद्दे पर चर्चा की आवश्यकता ही नहीं थी। फिर भी, सरकार सहिष्णुता दिखाते हुए इस पर चर्चा के लिए तैयार हो गई है, तब प्रतिपक्ष का दायित्व बनता है कि निराधार आरोप-प्रत्यारोप न लगाएं, सत्तापक्ष की तरह प्रतिपक्ष स्वयं भी थोड़ा सहिष्णु बने। पिछला सत्र प्रतिपक्ष की असहिष्णुता की भेंट चढ़ गया था। कम से कम इस बार तो कुछ देश के हित में काम हो जाने दीजिए।
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