दि ल्ली सचिवालय में मंगलवार की सर्द सुबह जैसे ही सीबीआई ने छापा मारा, देश में राजनीतिक गर्माहट फैल गई। आनन-फानन में ट्विट करके दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने दावा किया है कि छापा उनके दफ्तर पर मारा गया है। जबकि सीबीआई ने स्पष्ट कर दिया है कि छापे की कार्यवाही प्रधान सचिव राजेन्द्र कुमार के दफ्तर में की गई है। दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल ने आदतन सीबीआई के छापे को केन्द्र सरकार के इशारे पर की गई कार्रवाई बता दिया। सीबीआई के छापे पर राजनीति करने के लिए अरविन्द केजरीवाल इतने उतावले हो गए कि प्रधानमंत्री के लिए अपमानजनक भाषा का उपयोग करने से भी नहीं चूके। केजरीवाल ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को कायर और मनोरोगी कह दिया। अपनी भाषा पर खेद जताने की जगह केजरीवाल ने शाम को गाँवों को भी बदनाम कर दिया। उन्होंने कहा कि हमारे शब्द खराब हो सकते हैं क्योंकि हम गाँव के साधारण लोग हैं, लेकिन सरकार के तो कर्म ही खोटे हैं। यह कितना उचित है कि अपनी बदजुबानी पर पर्दा डालने के लिए केजरीवाल गाँव और गाँववालों को बदनाम करें? अरविन्द केजरीवाल को किसने बताया कि गाँव के लोगों की भाषा असभ्य और अमर्यादित होती है?
बहरहाल, सीबीआई की यह कार्रवाई यदि राजनीतिक है तब भी किसी मुख्यमंत्री की ओर से देश के प्रधानमंत्री के लिए इस तरह की भाषा का उपयोग करना कतई उचित नहीं है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि अरविन्द केजरीवाल सीबीआई के छापे से इतने नाराज क्यों हो गए? आम आदमी पार्टी के नेताओं को किस बात का डर सताने लगा? ईमानदार व्यक्ति को सीबीआई के छापे से डरना चाहिए क्या? अरविन्द केजरीवाल को थोड़ा संयम दिखाना चाहिए था। सबसे पहले उन्हें यह पता करना चाहिए था कि असल में छापा उनके खिलाफ की गई किसी शिकायत पर है या किसी और अधिकारी के खिलाफ है। जिस तरह अरविन्द केजरीवाल ने भ्रष्टाचार के आरोप पर अपने एक मंत्री को पद से हटाया है, उसी तरह उन्हें सीबीआई को जांच में सहयोग करना चाहिए था।
दिल्ली सरकार के प्रधान सचिव राजेन्द्र कुमार के खिलाफ दिल्ली डायलॉग कमीशन के सदस्य आशीष जोशी ने भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं। राजेन्द्र कुमार पर आरोप है कि वह सेवानिवृत्त अधिकारियों की एक कंपनी को अनुचित तरीके से आर्थिक लाभ पहुंचा रहे हैं। सीबीआई ने इस शिकायत के आधार पर राजेन्द्र कुमार के दफ्तर और घर सहित दिल्ली और उत्तरप्रदेश में १४ अन्य स्थानों में छापेमार कार्रवाई की है। इस कार्रवाई में सीबीआई ने अलग-अलग जगहों से कुछ कागजात, पेन ड्राइव, विदेशी मुद्रा और लाखों रुपये की नकदी भी बरामद की है।
भ्रष्टाचार की शिकायत पर सीबीआई को छापा नहीं मारना चाहिए क्या? भ्रष्टाचार की शिकायत पर सीबीआई की कार्रवाई में मदद करने की अपेक्षा केजरीवाल ट्वीट पर ट्वीट करके सरकार पर आरोप लगा रहे थे। अपनी सेना को भी उन्होंने सरकार का विरोध करने के लिए मैदान में उतार दिया था। भारतीय जनता पार्टी ने भी पलटवार करते हुए केजरीवाल पर आरोप लगा दिया है कि वे भ्रष्टाचार को छिपाने और भ्रष्टाचारी को बचाने का प्रयास कर रहे हैं? यदि अरविन्द केजरीवाल का अधिकारी ईमानदार है तो उन्हें किसी बात का डर नहीं होना चाहिए। यदि बेईमान है तो सीबीआई की कार्रवाई में उचित सहयोग करना चाहिए ताकि एक भ्रष्ट अधिकारी पर कार्रवाई की जा सके।
भ्रष्टाचार को जड़ से खत्म करने की इच्छा रखने वाला मुख्यमंत्री आखिर इस कार्रवाई के लिए केन्द्र सरकार को क्यों दोष दे रहा है? केजरीवाल कह रहे हैं कि राजेन्द्र कुमार के दफ्तर में कार्रवाई की आड़ में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कहने पर उनके कार्यालय की फाइलों को देखा जा रहा है। संभव है कि केजरीवाल सही कह रहे हों। लेकिन, यदि देख रहे हैं तो देखने दिया जाए, इसमें ईमानदार पार्टी को हो-हल्ला मचाने की क्या बात है? फाइलों में कुछ अनुचित नहीं है तो उन्हें सीबीआई देखे या कोई और देखे, क्या फर्क पड़ता है? इस मामले को इतना अधिक तूल दिया गया कि संसद में भी विपक्षी दलों ने हंमागा खड़ा कर दिया। टीएमसी और जेडीयू के सांसद वेल में जाकर नारेबाजी करने लगे। बेगानी शादी में अब्दुला क्यों दीवाने हुए जा रहे हैं? यह भी समझ से परे है। खैर, वित्तमंत्री अरुण जेटली ने राज्यसभा में बयान देकर साफ कर दिया है कि सीबीआई ने यह कार्रवाई अधिकारी के खिलाफ भ्रष्टाचार की शिकायत पर है, यह कार्रवाई किसी मुख्यमंत्री के खिलाफ नहीं। केन्द्र सरकार का इससे कोई लेना-देना नहीं है।
कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गाँधी को बच्चा कहने वाले अरविन्द केजरीवाल को भी थोड़ी परिपक्व राजनीति दिखानी चाहिए। किसी भी कार्रवाई को अपने खिलाफ राजनीतिक कार्रवाई बताने की आदत उन्हें छोड़ देनी चाहिए। आखिर एक अधिकारी के यहाँ सीबीआई छापा पड़ा है तो इसमें मुख्यमंत्री को आपत्ति क्यों होनी चाहिए? अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई को मुख्यमंत्री अपने खिलाफ कार्रवाई क्यों बता रहे हैं?
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