ने शनल हेराल्ड प्रकरण पर कांग्रेस राजनीतिक सहानुभूति बटोरने का प्रयास कर रही है। लगातार संसद में अवरोध खड़े कर रही कांग्रेस ने मंगलवार को भी इस मसले पर संसद को ही ठप कर दिया। कांग्रेस का यह कदम राजनीतिक अपराध है। भारत में कानून का शासन है और कानून की नजर में सभी नागरिक समान हैं। नेहरू-गाँधी परिवार से संबंध रखने के कारण सोनिया और राहुल न्यायालय से ऊपर नहीं हैं। न्यायालय ने उनके खिलाफ समन जारी किया है, उन्हें न्यायालय में पेश होने के लिए कहा है तो इस पर हाय-तौबा मचाने की क्या जरूरत है? उन्हें न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत होकर अपना पक्ष प्रस्तुत करना चाहिए। व्यक्तिगत मामले को लेकर संसद को ठप करना देश की जनता के प्रति राजनीतिक अपराध नहीं तो क्या है? दरअसल, नेशनल हेराल्ड मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने सोनिया गाँधी और राहुल गाँधी की एक याचिका खारिज करते हुए दोनों को न्यायालय में पेश होने का फैसला सुनाया था। सोनिया और राहुल चाह रहे थे कि न्यायालय में उन्हें स्वयं पेश होने से छूट दी जाए? उनकी यह बात न्यायालय ने नहीं सुनी तो पूरी कांग्रेस असहिष्णु हो गई और संसद को अराजकता के हवाले कर दिया।
कांग्रेस की ओर से सरकार पर राजनीतिक बदले की भावना का आरोप लगाया जा रहा है। चेन्नई में बाढ़ का दौरा कर रहे कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी ललकारते हैं कि हाँ, यह राजनीतिक बदला है। लेकिन, केन्द्र सरकार मुझे सवाल पूछने से रोक नहीं सकती। उधर, इस प्रकरण पर पहली बार सोनिया गाँधी ने भी बयान दिया है। उन्होंने कहा है कि - 'मैं इंदिरा गाँधी की बहू हूँ, मैं किसी से डरती नहीं हूँ।' खुद को इंदिरा की बहू के रूप में प्रस्तुत करने की क्या जरूरत आन पड़ी? इस बयान में कहीं न कहीं सोनिया गाँधी का डर छिपा हुआ है। संभवत: वही डर जो इंदिरा गाँधी के मन में भी आ गया था और उन्होंने खुद को सर्वेसर्वा मानते हुए देश पर आपातकाल थोप दिया था। क्या सोनिया गाँधी डर रही हैं कि न्यायालय में सच उजागर हो जाएगा? यदि सोनिया गाँधी ने कोई गलत काम नहीं किया है तो उन्हें वैसे भी किसी से नहीं डरना चाहिए। कानूनी लड़ाई है, कानून के दायरे में रहकर लड़ें। व्यक्तिगत मसलों पर संसद में राजनीति करना कहाँ तक उचित है? यदि भाजपा नेता डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी के आरोपों में दम नहीं होगी तो केस स्वत: ही अदालत में खारिज हो जाएगा। सोनिया और राहुल बेदाग हैं तो उन्हें न्यायालय पर भरोसा करना चाहिए। संसद का वक्त बर्बाद करने से उन्हें कुछ हासिल नहीं होगा? बल्कि कांग्रेस के खाते में बदनीयत ही आएगी।
देश समझ नहीं पा रहा है कि आखिर कांग्रेस चाहती क्या है? नेशनल हेराल्ड मामले में न्यायालय ने सोनिया-राहुल को झटका दिया है। न्यायालय के इस फैसले के पीछे सरकार की क्या भूमिका हो सकती है? देश में न्याय प्रणाली स्वतंत्र है। अदालतें अपने फैसले सरकार से पूछकर नहीं करती हैं। बात-बेबात पर हंगामा खड़ा करके संसद को ठप करने पर उतारू कांग्रेस न्यायालय का सम्मान क्यों नहीं करना चाहती है? क्या कांग्रेस यह कहना चाह रही है कि अब देश के उच्च न्यायालय भी सरकार के इशारे पर काम करते हैं? सोनिया-राहुल को धोखाधड़ी के मामले में न्यायालय में पेश होने का आदेश देना शुद्ध तौर पर न्यायालय का स्वतंत्र फैसला है। इस फैसले को आधार बनाकर संसदीय कार्य को बाधित करना ठीक नहीं है। ज्यादा अच्छा होता यदि सोनिया और राहुल न्यायालय के समन का जवाब संसद की अपेक्षा न्यायालय में देते। आखिर सोनिया-राहुल गाँधी की ऐसी क्या मजबूरियाँ हैं कि वे आम आदमी की तरह न्यायालय में पेश होने से बचना चाह रहे हैं? क्या वह अपने आपको न्यायालय से ऊपर मानते हैं?
संसद का पिछला सत्र भी भाजपा सरकार के प्रति कांग्रेस की असहिष्णुता, कटुता और असहयोग के कारण हंगामें की भेंट चढ़ गया था। इस बार भी कुछ ऐसा ही होता दिख रहा है। कांग्रेस संसद ठप करने के लिए नित नए बहाने खोजकर ला रही है। कांग्रेस के इस अडिय़ल रवैये से देश का नुकसान हो रहा है। बहुमत प्राप्त सरकार को काम नहीं करने दिया जा रहा है। बहरहाल, नेशनल हेराल्ड प्रकरण की अब तक की कहानी धोखाधड़ी, हेराफेरी और वादाखिलाफी जैसे गंभीर सवाल उठा रही है। कांग्रेस न्यायालय के फैसले के लिए सरकार को कठघरे में खड़ा नहीं कर सकती। सोनिया और राहुल गाँधी को अदालत से समन मिलने के बाद संसद में कांग्रेसी सांसदों का हंगामा करना घोर अनैतिक, गैर जिम्मेदाराना और अलोकतांत्रिक है। अपने नेताओं की चापलूसी में कांग्रेसी सांसद इतना नीचे गिर गए कि उन्हें न्यायालय के सम्मान का ख्याल भी नहीं रहा। लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन जब हंगामा कर रहे कांग्रेसी नेताओं से पूछती हैं कि अदालत के समन पर संसद में हंगामा क्यों? तब वे जवाब नहीं दे पाते। सोनिया गाँधी का इशारा पाकर कांग्रेसी नेता लोकसभा अध्यक्ष के प्रश्न को दरकिनार करके सिर्फ नारा लगा रहे हैं- 'यह तानाशाही नहीं चलेगी और यह सरकार राजनीतिक बदला ले रही है।' संसद में कांग्रेस के व्यवहार से भारतीय जनता पार्टी के नेता और मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी के बयान को बल मिलता है। नकवी ने कहा है कि कांग्रेसी सांसदों के इस व्यवहार से साबित होता है कि दाल में कुछ न कुछ काला नहीं, बल्कि पूरी दाल ही काली है।
कांग्रेस की ओर से सरकार पर राजनीतिक बदले की भावना का आरोप लगाया जा रहा है। चेन्नई में बाढ़ का दौरा कर रहे कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी ललकारते हैं कि हाँ, यह राजनीतिक बदला है। लेकिन, केन्द्र सरकार मुझे सवाल पूछने से रोक नहीं सकती। उधर, इस प्रकरण पर पहली बार सोनिया गाँधी ने भी बयान दिया है। उन्होंने कहा है कि - 'मैं इंदिरा गाँधी की बहू हूँ, मैं किसी से डरती नहीं हूँ।' खुद को इंदिरा की बहू के रूप में प्रस्तुत करने की क्या जरूरत आन पड़ी? इस बयान में कहीं न कहीं सोनिया गाँधी का डर छिपा हुआ है। संभवत: वही डर जो इंदिरा गाँधी के मन में भी आ गया था और उन्होंने खुद को सर्वेसर्वा मानते हुए देश पर आपातकाल थोप दिया था। क्या सोनिया गाँधी डर रही हैं कि न्यायालय में सच उजागर हो जाएगा? यदि सोनिया गाँधी ने कोई गलत काम नहीं किया है तो उन्हें वैसे भी किसी से नहीं डरना चाहिए। कानूनी लड़ाई है, कानून के दायरे में रहकर लड़ें। व्यक्तिगत मसलों पर संसद में राजनीति करना कहाँ तक उचित है? यदि भाजपा नेता डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी के आरोपों में दम नहीं होगी तो केस स्वत: ही अदालत में खारिज हो जाएगा। सोनिया और राहुल बेदाग हैं तो उन्हें न्यायालय पर भरोसा करना चाहिए। संसद का वक्त बर्बाद करने से उन्हें कुछ हासिल नहीं होगा? बल्कि कांग्रेस के खाते में बदनीयत ही आएगी।
देश समझ नहीं पा रहा है कि आखिर कांग्रेस चाहती क्या है? नेशनल हेराल्ड मामले में न्यायालय ने सोनिया-राहुल को झटका दिया है। न्यायालय के इस फैसले के पीछे सरकार की क्या भूमिका हो सकती है? देश में न्याय प्रणाली स्वतंत्र है। अदालतें अपने फैसले सरकार से पूछकर नहीं करती हैं। बात-बेबात पर हंगामा खड़ा करके संसद को ठप करने पर उतारू कांग्रेस न्यायालय का सम्मान क्यों नहीं करना चाहती है? क्या कांग्रेस यह कहना चाह रही है कि अब देश के उच्च न्यायालय भी सरकार के इशारे पर काम करते हैं? सोनिया-राहुल को धोखाधड़ी के मामले में न्यायालय में पेश होने का आदेश देना शुद्ध तौर पर न्यायालय का स्वतंत्र फैसला है। इस फैसले को आधार बनाकर संसदीय कार्य को बाधित करना ठीक नहीं है। ज्यादा अच्छा होता यदि सोनिया और राहुल न्यायालय के समन का जवाब संसद की अपेक्षा न्यायालय में देते। आखिर सोनिया-राहुल गाँधी की ऐसी क्या मजबूरियाँ हैं कि वे आम आदमी की तरह न्यायालय में पेश होने से बचना चाह रहे हैं? क्या वह अपने आपको न्यायालय से ऊपर मानते हैं?
संसद का पिछला सत्र भी भाजपा सरकार के प्रति कांग्रेस की असहिष्णुता, कटुता और असहयोग के कारण हंगामें की भेंट चढ़ गया था। इस बार भी कुछ ऐसा ही होता दिख रहा है। कांग्रेस संसद ठप करने के लिए नित नए बहाने खोजकर ला रही है। कांग्रेस के इस अडिय़ल रवैये से देश का नुकसान हो रहा है। बहुमत प्राप्त सरकार को काम नहीं करने दिया जा रहा है। बहरहाल, नेशनल हेराल्ड प्रकरण की अब तक की कहानी धोखाधड़ी, हेराफेरी और वादाखिलाफी जैसे गंभीर सवाल उठा रही है। कांग्रेस न्यायालय के फैसले के लिए सरकार को कठघरे में खड़ा नहीं कर सकती। सोनिया और राहुल गाँधी को अदालत से समन मिलने के बाद संसद में कांग्रेसी सांसदों का हंगामा करना घोर अनैतिक, गैर जिम्मेदाराना और अलोकतांत्रिक है। अपने नेताओं की चापलूसी में कांग्रेसी सांसद इतना नीचे गिर गए कि उन्हें न्यायालय के सम्मान का ख्याल भी नहीं रहा। लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन जब हंगामा कर रहे कांग्रेसी नेताओं से पूछती हैं कि अदालत के समन पर संसद में हंगामा क्यों? तब वे जवाब नहीं दे पाते। सोनिया गाँधी का इशारा पाकर कांग्रेसी नेता लोकसभा अध्यक्ष के प्रश्न को दरकिनार करके सिर्फ नारा लगा रहे हैं- 'यह तानाशाही नहीं चलेगी और यह सरकार राजनीतिक बदला ले रही है।' संसद में कांग्रेस के व्यवहार से भारतीय जनता पार्टी के नेता और मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी के बयान को बल मिलता है। नकवी ने कहा है कि कांग्रेसी सांसदों के इस व्यवहार से साबित होता है कि दाल में कुछ न कुछ काला नहीं, बल्कि पूरी दाल ही काली है।
Bahot hi achha likna hai sir aapne
जवाब देंहटाएंme es post ko apne Facebook pa post kar kraha chata hun