उ त्तरप्रदेश में हिन्दू महासभा के एक नेता कमलेश तिवारी पर आरोप है कि उसने मोहम्मद पैगम्बर के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी की है। टिप्पणी से मुसलमान इतने उद्देलित हैं कि देश के अलग-अलग शहरों में भारी संख्या में एकत्र होकर कमलेश तिवारी को फांसी पर चढ़ाने की मांग कर रहे हैं। तिवारी का सिर कलम करने के फतवे जारी किए जा रहे हैं। इन रैलियों में आईएसआईएस के समर्थन में नारे लगाए जा रहे हैं। मुसलमानों के धार्मिक नेता रक्तपात के लिए मुसलमानों को उकसा रहे हैं। दस-बीस हजार मुसलमानों की भीड़ जोरदार नारे लगाकर सांप्रदायिक हिंसा को भड़काने वाले भाषणों को अपना समर्थन दे रही है। इन रैलियों से लौटती भीड़ को हिंसक होते देखा जा रहा है। मध्यप्रदेश का इंदौर शहर इन जहरीली तकरीरों का असर देख चुका है। भला हो मध्यप्रदेश के शासन-प्रशासन का जिसने हिंसा पर तत्काल ही काबू पा लिया।
मुसलमानों का यह व्यवहार देख-सुनकर कई सवाल उठते हैं। भावनाएं आहत होने पर विरोध प्रदर्शन करना नैतिक और लोकतांत्रिक अधिकार है लेकिन, यह कैसा विरोध प्रदर्शन है, जिसमें मार-काट मचाने की सलाह दी जा रही है? भोपाल में आयोजित ऐसे ही एक विरोध प्रदर्शन में मुस्लिम नेता स्पष्टतौर पर इस तरह का आग्रह करता देखा गया, जिसका समर्थन हजारों की संख्या में मौजूद भीड़ ने इस्लामिक नारे लगाकर किया। उसने उदाहरण भी दिया कि किस तरह भोपाल के एक 'सच्चे' मुसलमान ने कुरान का अपमान करने पर ईसाई महिला के दो टुकड़े कर दिए। क्या समझाने के लिए यह उदाहरण दिया गया? क्या इसी तरह भाईचारा कायम होगा? क्या यह शांति का पाठ है? क्या यह सहिष्णुता है? क्या यह इस्लाम का सम्मान करना है? संभवत: कोई भी नेकदिल इंसान इस तरह की बातें करना तो दूर, वह ऐसा सोच भी नहीं सकता। यह महाशय आतंकवादी याकूब मेमन को बेचारा बताते हुए उसकी फांसी पर सवाल उठाते हैं। आतंकवादी याकूब की तुलना कमलेश तिवारी से करते हैं? जबकि दोनों के कृत्य में जमीन आसमान का अंतर है।
राजस्थान के टोंक में भी इस तरह का जमावड़ा हुआ। रैली निकाली गई। टोंक के एसपी दीपक कुमार के मुताबिक रैली के दौरान भीड़ ने आईएसआईएस के समर्थन में नारेबाजी की। यह क्या है? क्या इससे माना जाए कि इस्लाम आईएसआईएस के समर्थन में हैं? यहां अमरीका के राष्ट्रपति बराक ओबामा सहित अन्य लोगों का यह सवाल भी प्रासंगिक है कि आतंकवाद के विरोध में मुस्लिम भारी संख्या में सामने क्यों नहीं आते? डेनमार्क में मोहम्मद का कार्टून प्रकाशित होता है तब दुनियाभर में भारी संख्या में प्रदर्शन होते हैं। उत्तरप्रदेश में एक नेता मोहम्मद पैगम्बर के खिलाफ कुछ अपमानजनक टिप्पणी कर देता है तो देशभर में भारी संख्या में भीड़ जुटकर विरोध प्रदर्शन करती है। यह भीड़ तब कहाँ चली जाती है जब आतंकवाद इस्लाम का निराधर करता है? इस्लाम के नाम पर बच्चों-औरतों और बेगुनाहों का कत्ल करना क्या इस्लाम का सम्मान है? तब क्यों नहीं यह भीड़ सड़कों पर आतंकवाद के विरोध में निकलती है?
कुछ नेकदिल मुसलमान इस्लाम को आतंकवाद का धर्म साबित होने से बचाने का प्रयास कर रहे हैं, यह भीड़ उनके नेक प्रयास पर भी पानी डालने का काम करती है। वैसे, किसी ने खूब कहा है कि यह भीड़ मुसलमानों की नहीं हो सकती, यह तो अराजक लोगों की है, जो रक्तपात के लिए आतुर बैठे हैं। आम मुसलमान को समझना चाहिए कि वह इस तरह की सांप्रदायिक गतिविधियों का हिस्सा होने से बचे। सांप्रदायिकता का जहर फिजा में घोलने वाले मुस्लिम नेताओं का नारे लगाकर समर्थन नहीं बल्कि बहिष्कार करें।
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