गुरुवार, 3 दिसंबर 2015

प्रतिपक्ष है असहिष्णु

 लो कसभा में दो दिन असहिष्णुता पर जमकर बहस हुई। कांग्रेस और सीपीएम की मांग पर संसद में असहिष्णुता पर बहस कराई गई थी। आज से राज्यसभा में यह मुद्दा गर्माएगा। कांग्रेस और वामपंथी दल असहिष्णुता पर बहस के जरिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और केन्द्र सरकार को घेरना चाहते थे। लेकिन, बहस के दौरान स्थितियां ऐसी बन गईं कि सरकार के लिए खोड़े गए गड्डे में ये खुद ही गिर गए। यूं तो देश पहले ही जान गया है कि असहिष्णुता का मुद्दा 'बनावटी' है। संसद में बहस से तस्वीर और साफ हो गई। बहस के दौरान देश ने देखा कि हकीकत में असहिष्णु कौन है? गलत बयानबाजी करने के बाद भी माफी मांगना तो दूर, सीपीएम नेता मोहम्मद सलीम सरकार को ललकार रहे थे। क्या यही सहिष्णुता है? वामपंथियों के बारे में धारणा है कि ये 'आरोप लगाओ और भाग जाओ' की नीति का पालन करते हैं। मोहम्मद सलीम के असहिष्णु व्यवहार से यह भी साबित हो गया।
        मंगलवार को जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी राज्यसभा में दलगत राजनीति से ऊपर उठकर आपसी सौहार्द की बात कर रहे थे, ठीक उसी वक्त राहुल गांधी बांहें चढ़ा-चढ़ाकर सरकार पर चिल्ला रहे थे। कलबुर्गी, पानसरे और अखलाक की घटनाओं को उदाहरण बनाकर राहुल गांधी आरोप लगा रहे थे कि नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनते ही देश में अचानक से असहिष्णुता बढ़ गई है। राहुल गांधी सहित समूच विपक्ष इन घटनाओं के लिए राज्य सरकारों को जिम्मेदार मानने से क्यों पीछे हट जाता है? केन्द्र सरकार को दोष देना ही उनकी सहिष्णुता है क्या? तीनों घटनाएं गैरभाजपा शासित राज्यों में हुई हैं। 
        प्रतिपक्ष के असहिष्णुता के गुब्बारे की हवा तब निकल गई जब सरकार ने इन घटनाओं की सीबीआई जांच कराने की मंशा जाहिर की। बहस के दौरान कर्नाटक के भाजपा सांसद प्रह्लाद जोशी ने जब एमएम कलबुर्गी की हत्या की जांच सीबीआई से कराने की मांग की तो कांग्रेस चुप्पी साध गई। क्या कांग्रेस बता सकती है कि उसने जोशी की मांग का समर्थन क्यों नहीं किया? इस मांग पर कांग्रेस की सहिष्णुता कहां चली गई? गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने सामने बैठे मुलायम सिंह से कहा कि अगर उनकी राज्य सरकार चाहेगी तो केन्द्र सरकार दादरी मामले में सीबीआई जांच कराने के लिए तैयार है। जवाब में मुलायम सिंह कुछ नहीं बोले, क्यों? क्या वे नहीं चाहते कि अखलाक को इंसाफ मिले? 
        प्रतिपक्ष की असहिष्णुता उस समय भी देखने को मिली, जब बहस के आखिर में सरकार का पक्ष सुनने की जगह वह सदन से वॉक आउट कर गया। क्या विपक्ष इतना भी सहिष्णु नहीं है कि अपने आरोपों के जवाब सुन लेता? असहिष्णुता पर लोकसभा में दो दिन की बहस के दौरान सत्तापक्ष और प्रतिपक्ष के व्यवहार का आकलन करें तो स्पष्ट होता है कि प्रतिपक्ष कहीं अधिक असहिष्णु है। 
        विपक्ष को गृहमंत्री राजनाथ सिंह की ओर से रखे गए सरकार के पक्ष पर ध्यान देना चाहिए। उन्होंने एक लोकप्रिय अखबार में प्रकाशित खबर का हवाला देते हुए बताया कि असहिष्णुता पर बहस के बीच विदेश से आने वाले पर्यटक भारत के बारे में बड़ी अच्छी राय रखते हैं। विदेशी पर्यटकों का मानना है- 'भारत की धरती पर लोग बहुत मिलनसार हैं। उनकी बातों और व्यवहार में प्यार झलकता है। ऐसा कहीं और नहीं दिखता है।' प्रतिपक्ष यह सच क्यों स्वीकार करना नहीं चाहता? क्या वह देश की छवि बदलने की ठान चुका है? क्या वह इस सब को नजरअंदाज कर भारत को 'असहिष्णु' साबित करना चाहता है? 
         राजनाथ सिंह ने कहा कि देश में जिस असहिष्णुता का माहौल बताया जा रहा है वह कहीं दिखता नहीं है। यदि दिखता हो तो प्रतिपक्ष बताए कि तथाकथित असहिष्णुता के माहौल को ठीक करने के लिए क्या किया जा सकता है? सरकार उनसे सहयोग की अपेक्षा रखती है। गृहमंत्री के इस आग्रह के बाद देखना होगा कि राज्यसभा में प्रतिपक्ष का व्यवहार कैसा रहता है? हालांकि, राजनीतिक चिंतकों और बुद्धिजीवियों का मानना है कि वहां भी प्रतिपक्ष सरकार पर आरोप लगाएगा और भाग खड़ा होगा। 

2 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (04-12-2015) को "कौन से शब्द चाहियें" (चर्चा अंक- 2180) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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