प्र धानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अप्रत्याशित तरीके से पाकिस्तान का दौरा करके दुनिया को चौंका दिया है। मोदी रूस से लौटते वक्त पहले अफगानिस्तान और फिर वहां से अचानक पाकिस्तान पहुंचे। लाहौर में 2 घंटे 40 मिनट रुके। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ उन्हें रिसीव कर जट्टी उमरा में अपने घर ले गए। मोदी करीब डेढ़ घंटे नवाज के घर थे। वहां नवाज की नातिन मेहरुन्निसा की शादी की रस्में चल रही थीं। नवाज शरीफ के जन्मदिन का भी अवसर था। करीब १२ साल बाद भारत के प्रधानमंत्री का पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को उनके घर पहुंचकर जन्मदिन की बधाई देना, नातिन को आशिर्वाद देना और माँ के चरण छूना, भारत-पाक संबंधों की नई इबारत लिखने जैसा है।
नरेन्द्र मोदी ने अपनी पार्टी के शीर्ष नेता और भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की पाक-नीति को आगे बढ़ाकर उन्हें भी ९१वें जन्मदिन का सार्थक उपहार दिया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इस प्रयास का दुनिया में भूरी-भूरी प्रशंसा हो रही है। लेकिन, कांग्रेस को न जाने कौन-सा सदमा पहुंच गया है। नमो-नवाज के मेल से कांग्रेस का दिल जल गया है। कांग्रेस को नरेन्द्र मोदी का पाक-दौरा फूटी आंख नहीं सुहा रहा है। जबकि पाकिस्तान में सभी राजनीतिक दलों ने नमो-नवाज की इस मुलाकात का स्वागत किया है। पाकिस्तान के नेता और बुद्धिजीवी मान रहे हैं कि इस तरह के प्रयासों से दोनों देशों के बीच जमी कटुता की बर्फ पिघलेगी। भारत-पाक रिश्तों की तल्खी में कमी आएगी। इस तरह के प्रयास ही सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं।
पाकिस्तान की आवाम के बीच भी भारत और नरेन्द्र मोदी की उदारता से खुशनुमा संदेश गया है। अपने प्रधानमंत्री की खुशियों में भारत के प्रधानमंत्री को खुले दिल से शामिल होते देख निश्चित ही पाक नागरिकों का हृदय भारत के प्रति और अधिक संवेदनशील हुआ होगा। भारत में भी यही अहसास है। कांग्रेस और शिवसेना को छोड़कर लगभग सभी राजनीतिक दलों और बुद्धिजीवियों ने नरेन्द्र मोदी की सराहना की है। यहाँ तक कि वामपंथी दल भी मानते हैं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का यह प्रयास भारत-पाक संबंधों में मधुरता लाएगा।
लेकिन, कांग्रेस की ओर से लगातार तल्ख विरोध सामने आ रहा है। केन्द्र सरकार और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर तंज कसने के दौरान कांग्रेसी नेता हास्यास्पद बयान दे रहे हैं। कांग्रेस नेता मनीष तिवारी इसे नरेन्द्र मोदी का एडवेंचर बता रहे हैं। उन्होंने बयान दिया है कि बीजेपी का बस चले तो वह लाहौर में ही राम मंदिर बनवा दे। उन्होंने यह भी कहा है कि प्रधानमंत्री चाहे काबुल में नाश्ता करें, लाहौर में अच्छी चाय पिएं और दिल्ली में आकर डिनर खाएं। इन सबका खामियाजा भारत को अपनी सुरक्षा और राष्ट्रीय हित से चुकाना होगा। मनीष तिवारी बौखलाहट में संभवत: भूल गए होंगे कि उनके शीर्ष नेताओं ने भी यही सपना देखा था।
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने तो कहा था कि 'मैं सपना देखता हूं कि अपनी राष्ट्रीयता बनाए रखते हुए एक दिन अमृतसर में ब्रेकफास्ट, लाहौर में लंच और काबुल में डिनर करूं।' अब नरेन्द्र मोदी अपने पूर्व प्रधानमंत्री के सपने को साकार कर रहे हैं तो कांग्रेस को क्या आपत्ति है? विरोध के लिए विरोध, क्या कांग्रेस की यही राजनीति रह गई है? राममंदिर को इस मसले में घसीटकर लाने का क्या तुक है? कांग्रेस के बयान से यह भी साफ होते दिखता है कि वह राम मंदिर निर्माण की धुर विरोधी है।
बहरहाल, संबंधों को सुधारने के लिए बातचीत जरूरी है। अबोला से संबंध सुधर नहीं सकते। इसलिए जरूरी है कि भारत-पाक के बीच औपचारिक-अनौपचारिक बातचीत लगातार होती रहे। इतिहास को देखते हुए यह भरोसा करना सबके लिए कठिन है कि पाकिस्तान पीठ में खंजर नहीं घोपेगा। लेकिन, भविष्य की आशंका को लेकर वर्तमान में सुधार के प्रयास ही नहीं किए जाएं, यह नीति तो कतई ठीक नहीं है। नमो-नवाज मुलाकात से दोनों देशों के बीच बातचीत का जो खुशनुमा माहौल बना है, उसे आगे ले जाने की जरूरत है। कांग्रेस को समझना चाहिए कि प्रत्येक मसले पर बेतुका विरोध नहीं किया जाता। अच्छे प्रयासों के लिए सरकार की सराहना करना भी विपक्ष का काम है।
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