शि वराज सिंह चौहान ने 29 नवम्बर, 2005 को मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी, तब उनके सामने अनेक चुनौतियां थी। चुनौतियां, भीतर (भाजपा) और बाहर, सब जगह थीं। लेकिन, शिवराज सिंह ने सभी चुनौतियां का सूझबूझ के साथ सामना किया। संगठन में एक से एक दिग्गज मौजूद थे, लेकिन मुख्यमंत्री पद के लिए भरोसा शिवराज पर दिखाया गया। उन्होंने संगठन के भरोसे को जीत लिया। बड़ों को आदर देकर, छोटों को स्नेह देकर और समकक्षों को साथ लेकर, बड़ी खूबसूरती से उन्होंने पार्टी में बढ़ती जा रही गुटबाजी पर काबू पाया। इस एकजुटता के कारण ही प्रदेश में भाजपा के सामने खांचों में बंटी कांग्रेस कहीं दिखती नहीं है। पार्टी-संगठन में खुद को मजबूत करते हुए उन्होंने प्रदेश में अपरिचित अपने चेहरे को लोकप्रिय बनाने का प्रयास शुरू कर दिया। अपने सरल, सहज और आम आदमी के स्वभाव के कारण शिवराज सिंह चौहान 'जनप्रिय' हो गए। प्रदेश की बेटियों के मामा, बुजुर्गों के लिए श्रवण कुमार, हमउम्रों के लिए पांव-पांव वाले भैया बन गए।
'जनता का मुख्यमंत्री' होना शिवराज सिंह चौहान की 'यूएसपी' है। उन्होंने मुख्यमंत्री निवास के द्वार प्रदेश की जनता के लिए खोल दिए। अनेक पंचायतें यहां लगाईं। किसानों के दर्द से जुड़े, कामगारों को बुलाया, शिक्षकों की सुनी, महिलाओं की चिंता की और युवाओं से संवाद किया। परिणामस्वरूप शिवराज सिंह चौहान प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी का चेहरा हो गए। छोटे-बड़े सब चुनाव उनका चेहरा आगे करके लड़े जा रहे हैं। विधानसभा चुनाव-2013 की ही बात करें तो भाजपा की राह बहुत कठिन बताई जा रही थी। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना था कि भाजपा के लिए सरकार बनाना मुश्किल हो जाएगा। लेकिन, प्रदेश की जनता ने शिव'राज' पर भरोसा दिखाया। सरकार के मंत्रियों और विधायकों के कारनामों, अहंकार और व्यवहार को नजरअंदाज करते हुए जनता ने अपने लाड़ले मुख्यमंत्री के नाम पर वोटों की बारिश कर दी। जनता के इस प्यार और भरोसे का कारण यह था कि आठ साल में शिवराज ने प्रदेश की जनता का ख्याल रखने का पूरा प्रयास किया था। वे जनता के दर्द से सीधे जुड़ जाते हैं।
संभवत: उनकी तरह प्रदेश के व्यापक दौरे-प्रवास कभी किसी और मुख्यमंत्री ने नहीं किए होंगे। ऐसे भी अनेक अवसर आए जब उन पर भ्रष्टाचार के छींटे उछाले गए। डम्पर कांड और व्यापमं प्रकरण में सीधे उनसे सवाल पूछे गए। इन मुश्किल घड़ी में, जनता से सीधे संवाद के आधार पर ही मुख्यमंत्री खुद की ईमानदार छवि को बचा पाए। हम कह सकते हैं कि तमाम 'इफ एण्ड बट' के बाद भी दस साल का शिव'राज' प्रदेश के लिए बेहतर रहा है। प्रदेश ने प्रत्येक मामले में तरक्की की है। तरक्की का स्तर कहीं कम, कहीं ज्यादा हो सकता है। लेकिन इतना तय है कि प्रदेश हर दिशा में आगे बड़ा है। बिजली पहले की अपेक्षा अधिक मिल रही है। सिंचाई के लिए पानी भी खेतों तक पहुंच रहा है। नहरें पक्की हो गई हैं। सड़कों की हालत सुधरी है। प्रदेश में शिक्षा के अनेक केन्द्र बन गए हैं।
प्रदेश के विकास पर विमर्श हो सकता है। कई बिन्दुओं पर सहमति-असहमति हो सकती है। लेकिन, इस बात से शायद ही कोई इनकार करे कि जब शिवराज सिंह चौहान ने प्रदेश की कमान संभाली थी तब प्रदेश के माथे पर 'बीमारू राज्य' का टीका लगा हुआ था। प्रदेश को विकासशील राज्य की श्रेणी में लाने के लिए उन्होंने खूब प्रयास किए हैं और उनके ये प्रयास रंग भी लाए हैं। यही कारण है कि व्यापमं जैसे प्रकरण के बाद भी जनता का भरोसा शिवराज सिंह से कम नहीं हुआ है। हाल में सम्पन्न हुए नगरीय निकायों के चुनाव नतीजों से यह साबित होता है। दस साल के कार्यकाल को देखते हुए आज एक बात कही जा सकती है कि चाणक्य की पदवी से पूर्व के सभी राजनेताओं को बेदखल करते हुए शिवराज सिंह चौहान प्रदेश के 'चाणक्य' बन गए हैं।
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