बुधवार, 30 दिसंबर 2015

सच से क्यों भाग रही है कांग्रेस?

 कां ग्रेस की मुंबई इकाई के मुखपत्र 'कांग्रेस दर्शन' में प्रकाशित लेखों में पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और सोनिया गांधी के नेतृत्व पर सवाल उठाए गए हैं। हालांकि लेखों के शीर्षक 'कांग्रेस की कुशल सारथी सोनिया गांधी' और 'पिता ने सबसे पहले सोनिया नाम से पुकारा था' से प्रथम दृष्टया यही प्रतीत होता है कि यह लेख कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की स्तुति में लिखे गए हैं। संभवत: लेख का शीर्षक देखकर ही 'कांग्रेस दर्शन' के कंटेंट एडिटर सुधीर जोशी गच्चा खा गए होंगे। कांग्रेस के मुखपत्र में नेहरू-गांधी परिवार के शीर्ष व्यक्तियों के खिलाफ सामग्री प्रकाशित होने की गलती पर सुधीर जोशी को उनके पद से हटा दिया गया है। हालांकि कांग्रेस के कई नेता कांग्रेस दर्शन के संपादक संजय निरुपम को जिम्मेदार मान रहे हैं। क्योंकि, उनकी देखरेख में ही 'कांग्रेस दर्शन' का प्रकाशन होता है।
        बहरहाल, आश्चर्य की बात यह है कि कांग्रेस सच को स्वीकार क्यों नहीं कर पा रही है? अपने इतिहास से भागने की क्या आवश्यकता है? कंटेंट एडिटर सुधीर जोशी को हटाने की अपेक्षा कांग्रेस मुखपत्र में प्रकाशित सामग्री को चुनौती देती तो ज्यादा अच्छा होता। प्रकाशित सामग्री पर विमर्श करती, सच बताती, तब कांग्रेस का चरित्र और उज्ज्वल होता। अभी तो ऐसा प्रतीत होता है कि कांग्रेस ने असहिष्णु व्यवहार का प्रदर्शन किया है। क्या प्रकाशित सामग्री तथ्यहीन है? लेख में लिखा गया है कि सोनिया गांधी के पिता स्टेफनो मायनो इटली में मुसोलिनी के सैनिक थे और फासिस्ट थे। यदि यह गलत है तब कांग्रेस को सच बताना चाहिए? और नहीं है तो स्वीकार करने में क्या आपत्ति है? 
        सोनिया गांधी के पिता के फासिस्ट होने से कांग्रेस की विचारधारा पर कुछ असर आया है क्या? यदि नहीं, तब फिर इस सच से मुंह मोडऩे की जरूरत क्यों होनी चाहिए? पिता फासिस्ट थे, तो थे। वहीं लेख में लिखा गया है कि सोनिया गांधी ने कांग्रेस की सदस्य बनने के ६२ दिन बाद ही पार्टी अध्यक्ष का पद संभाल लिया। यह भी सोलह आने सच है। कांग्रेस स्पष्ट करे कि सोनिया में ऐसी कौन-सी नेतृत्व योग्यता थी कि उन्हें ६२ दिन बाद ही अध्यक्ष बना दिया गया? वैसे सच तो सब जानते हैं कि वह नेहरू-गांधी परिवार की बहू थीं। कांग्रेस में अध्यक्ष पद पाने के लिए यह सबसे बड़ी योग्यता है। सोनिया गांधी की देश के प्रति निष्ठा पर भी लेख में सवाल उठाए गए हैं। कांग्रेस बताए कि आखिर सोनिया ने राजीव गांधी से विवाह के बाद भारतीय नागरिकता लेने के लिए १६ साल इंतजार क्यों किया? 
       संभवत: कांग्रेस के पास इनके जवाब नहीं हैं। इसलिए वह इन सब सवालों से बच रही है। लेकिन, यह ऐसे सवाल हैं, जो जब-तब कांग्रेस के सामने नागफनी की तरह उगकर खड़े होते रहेंगे। भविष्य में इस तरह के सवाल परेशान नहीं करें, इसके लिए अच्छा है कि सच को स्वीकार कर लिया जाए। लेकिन, संभवत: कांग्रेस में साहस नहीं है। वह इतनी सहिष्णु नहीं है कि नेहरू-गांधी परिवार के खिलाफ सच को स्वीकार कर सके। 
       'कांग्रेस दर्शन' में प्रकाशित लेख में सरदार वल्लभ भाई पटेल की प्रशंसा करते हुए पंडित जवाहरलाल नेहरू की नीतियों पर भी सवाल खड़े किए गए हैं। वैसे तो इन्हें सवाल कहना ही गलत है, यह तो हकीकत है, जो इतिहास में दर्ज है। विद्वान मानते हैं कि पंडित नेहरू ने जम्मू-कश्मीर, तिब्बत और चीन के मामले में अपरिपक्वता का प्रदर्शन किया। देश की शेष रियासतों का विलय सफलतापूर्वक कराने का श्रेय सरदार पटेल को है। लेकिन, जम्मू-कश्मीर मसले को जवाहरलाल स्वयं देख रहे थे। नतीजा, नेहरू की गलत नीति के कारण जम्मू-कश्मीर आज तक देश के लिए परेशानी का सबब बना हुआ है। नेहरू ने यदि पटेल की सलाह मानी होती तो आज जम्मू-कश्मीर में कोई समस्या नहीं होती। इस सच से कौन इनकार कर सकता है कि सरदार पटेल जम्मू-कश्मीर के मसले को संयुक्त राष्ट्र संघ में ले जाने पर बेहद क्षुब्ध थे। 
        इतिहास में दर्ज है कि सरदार समय-समय पर पंडित नेहरू को अनेक अवसर पर आगाह करते रहे, लेकिन अहंकार के चलते नेहरू ने उनके सुझावों की अनदेखी की। मुखपत्र के कंटेंट एडिटर को हटाकर और एडिटोरियल बोर्ड बदलकर कांग्रेस असलियत को छिपा नहीं सकती। इस मसलें में अभी तक जिस तरह की कार्रवाई और बयानबाजी हुई है, उससे मुखपत्र में प्रकाशित सामग्री की प्रामाणिकता बढ़ती दिखाई दे रही है। 

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