सं सद के शीतकालीन सत्र की शुरुआत पहले 'संविधान दिवस' के साथ हो गयी है। गुरुवार को लोकसभा में संविधान पर सार्थक चर्चा हुई। राजनेताओं से आग्रह है कि पहले दिन की तरह ही आगे भी संसद की कार्यवाही संचालित करने में अपनी-अपनी सार्थक भूमिका का निर्वहन करें। पिछले सत्र की तरह शीतकालीन सत्र को हंगामे की भेंट न चढ़ाएं। प्रतिपक्षी दलों से इसका आग्रह सत्तापक्ष और लोकसभा अध्यक्ष भी कर चुकी हैं। बहरहाल, संविधान पर चर्चा करते हुए गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने 'सेक्युलर' शब्द के दुरुपयोग का मामला उठा दिया है। उन्होंने कहा कि सेक्युलर शब्द का सबसे अधिक दुरुपयोग किया जा रहा है। गृहमंत्री की इस टिप्पणी पर कांग्रेस सहित कुछ प्रतिपक्षी दलों ने विरोध में अपनी प्रतिक्रिया दी। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने केंद्र सरकार, भाजपा और आरएसएस को घेरने का प्रयास किया। उन्होंने आरोप लगाया कि जिन लोगों ने संविधान पर हमला किया है, वे ही आज संविधान पर चर्चा कर रहे हैं। सोनिया ने कहा कि आज संविधान खतरे में हैं। देश में जो कुछ चल रहा है, वह संविधान के खिलाफ है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी सरकार, भाजपा और आरएसएस की तरफ अंगुली उठाते वक़्त संभवतः भूल गयी होंगी कि 'संविधान की आत्मा' पर कुठाराघात कांग्रेस ने ही किया है।
क्या सोनिया गांधी को पता नहीं कि गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने जिस सेक्युलर शब्द के दुरुपयोग की बात की है, उसे राजनीतिक फायदे के लिए कौन लेकर आया? संविधान की आत्मा कही जाने वाली प्रस्तावना में कब और क्यों 'सेक्युलर' शब्द जोड़ा गया? आपातकाल के दौरान धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद शब्द जोड़ने के लिए किसने संविधान की आत्मा के साथ छेड़छाड़ की? देश जनता है कि डॉ. आंबेडकर ने समाजवाद और धर्मनिरपेक्ष शब्द का प्रयोग संविधान में नहीं किया। संविधान सभा ने बहुत सोच-विचारकर प्रस्तावना लिखी थी। भारत का चरित्र में ही सभी पंथों के प्रति सम्मान का भाव है, इसलिए डॉ. आंबेडकर ने सेक्युलर शब्द को संविधान ने शामिल करने की आवश्यकता नहीं समझी। यह तो अपने राजनीतिक फायदे के लिए 42वें संशोधन के बाद प्रस्तावना में शामिल किया गया।
'सेक्युलर' शब्द का सर्वाधिक दुरुपयोग भाजपा के खिलाफ ही किया गया है। इसीलिये भाजपा जब-तब देश का ध्यान इस ओर खींचने का प्रयास करती है। बिहार चुनाव इसका ताज़ा उदाहरण है। धुर विरोधी राजनीतिक दल भी सेक्युलर मंच की आड़ लेकर भाजपा के खिलाफ एकजुट हो गए। धर्मनिरपेक्षता का राग अलाप-अलाप कर लंबे समय तक कांग्रेस और वामपंथी दलों ने भाजपा को राजनीतिक अछूत बनाये रखा। इसीलिये देश के गृहमंत्री राजनाथ सिंह कह रहे हैं कि 'सेक्युलर' शब्द का सबसे अधिक दुरुपयोग किया गया है। इस बात से शायद ही कोई राजनीतिक विचारक इनकार करे कि इस शब्द को लाया ही राजनीतिक दुरुपयोग के लिए था। तुष्टिकरण और वोट बैंक की राजनीति करने वाली पार्टियां भी बेशर्मी से खुद को सेक्युलर घोषित करती हैं। सेक्युलर की आड़ में इन दलों ने सामाजिक सौहार्द को बिगाड़ने का काम किया है। इस शब्द के कारण विभेद की रेखा भी स्पष्ट खिंच गयी है। सही बात तो यही है कि इस देश को सेक्युलर शब्द की कभी जरूरत ही नहीं थी।
राजनाथ कहते हैं कि भारत स्वयं में ही पंथ निरपेक्ष देश है। भारत में पहले से ही लोकतंत्र था। भगवान राम लोकतांत्रिक थे। यहूदी और पारसी समुदाय को यदि सबस अधिक सम्मान मिला है तो वह भारत देश है। इसी तरह मुसलमानों के 72 फिरके भी भारत देश में पाए जाते हैं, जो अन्य किसी देश में नहीं पाए जाते। उनका यह कहना उचित ही है कि संवैधानिक शब्द का राजनैतिक उपयोग नहीं होना चाहिए। संविधान पर चर्चा शुरू कराकर सरकार ने एक सार्थक पहल की है। इसके लिए सरकार की सराहना की जानी चाहिए। अब बुद्धिजीवियों का दायित्व है कि संविधान पर ईमानदार विमर्श को आगे बढ़ाएं।
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