प्र धानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक मीडिया समूह की ओर से आयोजित कार्यक्रम में 'समावेशी जनतंत्र' के संदर्भ में लोकतंत्र को स्पष्ट करने की कोशिश की है। वास्तव में लोकतंत्र की असली परिभाषा जनता के बीच ले जाना आज की आवश्यकता है। समाज में लोकतंत्र की कल्पना उसी तरह बन गई है, जैसी एक कथा के अनुसार हाथी की कल्पना नेत्रहीनों में थी। जिस नेत्रहीन बंधु ने सूंड को टटोला, उसके अनुसार हाथी मोटी रस्सी की तरह। जिसने उसकी पूंछ को पकड़ा, उसके लिए हाथी पतली रस्सी की तरह और जिसने उसके पैर को पकड़ा उसके लिए हाथी खम्बे की तरह है। इसी तरह आज के दौर में लोकतंत्र को सब अपनी-अपनी दृष्टि से देख रहे हैं।
राजनीतिज्ञों और विचारकों द्वारा दी गई लोकतंत्र की परिभाषाओं को देखें तो सबसे अधिक प्रासंगिक परिभाषा अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन की मानी जाती है। उनके अनुसार, लोकतंत्र जनता का, जनता के लिए और जनता के द्वारा शासन व्यवस्था है। अर्थात् लोकतंत्र में जनता ही सत्ताधारी होती है, उसकी अनुमति से शासन होता है, उसकी प्रगति ही शासन का एकमात्र लक्ष्य माना जाता है। क्या यह परिभाषा व्यवहार में उतरती हुई दिखती है? स्पष्ट कहें तो उत्तर होगा- 'नहीं'। वर्तमान में लोकतंत्र का अर्थ बहुत सीमित हो गया है। केवल इच्छानुसार मतदान की आजादी ही लोकतंत्र नहीं है। जागरुकता के अभाव में लोगों के मन में धारणा बन गई है कि हमें लोकतंत्र में सरकार को चुनना होता है। अगर मतदान के द्वारा सरकार के चयन तक लोकतंत्र सीमित हो जाता है तो यह व्यवस्था लोकतंत्र कहाँ है?
अपने मन की सरकार का चुनाव करना तो लोकतंत्र का एक ही चरण है। हमें सोचना चाहिए कि उसके बाद शासन के संचालन में 'लोक' की भूमिका कहाँ है? यहां प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का कहना वास्तविकता के नजदीक ही है। उनका कहना है कि एक बार वोट देकर पांच साल के लिए सरकार का कॉन्ट्रेक्ट किसी राजनीतिक दल को दे देना असली लोकतंत्र नहीं है। बल्कि लोकतंत्र का असली अर्थ तो जनभागीदारी है। लोकंतत्र सामर्थ्यवान तब होता है जब जनभागीदारी बढ़ती है। मोदी ने महात्मा गांधी को याद करते हुए कहा कि यदि देश के विकास का मॉडल गांधीजी के विचारों के आधार पर बनाया गया होता तो सबकुछ सरकार करेगी ऐसा नहीं होता। गांधीजी के अनुसार तो जनता सबकुछ करेगी। लोकतंत्र की यह आदर्श स्थिति है। आदर्श स्थिति को पाने का प्रयास पूर्व में नहीं किया गया तो अब करना चाहिए।
यदि हम वास्तविक लोकतंत्र तक पहुंचना चाहते हैं तब प्रधानमंत्री को यह भी बताना चाहिए कि लोकतंत्र में जनभागीदारी कैसे बढ़ेगी? शासन व्यवस्था में जनता अपनी भूमिका कैसे तलाशे? उदाहरण के लिए माना कि स्वच्छ भारत अभियान देश और लोक कल्याण के लिए है। सरकार जनता को अभियान दे सकती है। उसकी सफलता के लिए जनभागीदारी अनिवार्य है। सरकार जनता के सहयोग से ही सर्वसमावेशी विकास के रास्ते पर प्रभावशाली ढंग से आगे बढ़ सकती है। लेकिन, यदि जनता को सरकार का काम-काज करने का तरीका पसंद न आए तो उसके पास पांच साल इंतजार के अलावा क्या विकल्प है?
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने अब तक के कार्यकाल में शासन व्यवस्था में जनता की भागीदारी बढ़ाने के अनेक प्रयास किए हैं। प्रधानमंत्री के प्रयासों की सराहना की जानी चाहिए। वर्तमान सरकार जनता के सुझावों का स्वागत करती है। प्रधानमंत्री की मंशा के अनुसार लगभग सभी मंत्रालय भी योजनाओं को मूर्तरूप देने से पहले जनता के सुझाव आमंत्रित कर रहे हैं। इसके बावजूद इस सच को खुले दिल से स्वीकारना होगा कि अभी हमारे देश में असली लोकतंत्र नहीं आया है। इसके लिए अभी और अधिक चेतना लाने की जरूरत है।
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