भा रत और भारत के लोगों के बारे में एक धारणा दुनिया में प्रचलित की गई कि भारत जादू-टोना और अंधविश्वासों का देश है। अज्ञानियों का राष्ट्र है। भारत के निवासियों की कोई वैज्ञानिक दृष्टि नहीं रही न ही विज्ञान के क्षेत्र में कोई योगदान है। भारत के संदर्भ में यह प्रचार लंबे समय से आज तक चला आ रहा है। नतीजा यह हुआ कि अधिकतर भारतवासियों के अंतर्मन में यह बात अच्छे से बैठ गई कि विज्ञान यूरोप की देन है। विज्ञान का सूर्य पश्चिम में ही उगा था उसी के प्रकाश से संपूर्ण विश्व प्रकाशमान है। इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि आज हम हर बात में पश्चिम के पिछलग्गू हो गए हैं क्योंकि हम मानते हैं कि पश्चिम की सोच वैज्ञानिक सम्मत है। पश्चिम ने जो सोचा है, अपनाया है वह मानव जाति के लिए उचित ही होगा। इसलिए हमें भी उसका अनुकरण करना चाहिए। भारत में योग पश्चिम से योगा होकर आया तो जमकर अपनाया गया। आयुर्वेद को चिकित्सा की सबसे कमजोर पद्धति मानकर एलोपैथी के मुरीद हुए लोगों की आंखें तब खुली जब आयुर्वेद पश्चिम से हर्बल का लेवल लगाकर आया। भारत में विज्ञान को लेकर जो वातावरण निर्मित हुआ उसके लिए हमारे देश के कर्णधार भी जिम्मेदार हैं। जिन्होंने तमाम शोध और विमर्श के बाद भी भारतीय शिक्षा व्यवस्था में भारत में विज्ञान की उज्ज्वल परंपरा को शामिल नहीं किया। भारत के छात्रों का क्या दोष, जब उन्हें पढ़ाया ही नहीं जाएगा तो उन्हें कहां से मालूम चलेगा कि भारत में विज्ञान का स्तर कितना उन्नत था।
विज्ञान और तकनीकी मात्र पश्चिम की देन है या भारत में भी इसकी कोई परंपरा थी? भारत में किन-किन क्षेत्रों में वैज्ञानिक विकास हुआ था? विज्ञान और तकनीकी के अंतिम उद्देश्य को लेकर क्या भारत में कोई विज्ञानदृष्टि थी? और यदि थी तो आज की विज्ञानदृष्टि से उसकी विशेषता क्या थी? आज विश्व के सामने विज्ञान एवं तकनीक के विकास के साथ जो समस्याएं खड़ी हैं उनका समाधान क्या भारतीय विज्ञान दृष्टि में है? ऊपर के पैरे को पढ़कर निश्चिततौर पर हर किसी के मन में यही सवाल हिलोरे मारेंगे तो इन सवालों के जवाब के लिए 'भारत में विज्ञान की उज्ज्वल परंपरा' पुस्तक पढऩी चाहिए। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक सुरेश सोनी की इस पुस्तक में तमाम सवालों के जवाब निहित हैं। पुस्तक में कुल इक्कीस अध्याय हैं। धातु विज्ञान, विमान विद्या, गणित, काल गणना, खगोल विज्ञान, रसायन शास्त्र, वनस्पति शास्त्र, प्राणि शास्त्र, कृषि विज्ञान, स्वास्थ्य विज्ञान, ध्वनि और वाणी विज्ञान, लिपि विज्ञान सहित विज्ञान के अन्य क्षेत्रों में भारत का क्या योगदान रहा इसकी विस्तृत चर्चा, प्रमाण सहित पुस्तक में की गई है। यही नहीं यह भी स्पष्ट किया गया है कि विज्ञान को लेकर पश्चिम और भारतीय धारणा में कितना अंतर है। जहां पश्चिम की धारणा उपभोग की है, जिसके नतीजे आगे चलकर विध्वंसक के रूप में सामने आते हैं। वहीं भारतीय धारणा लोक कल्याण की है। सुरेश सोनी मनोगत में लिखते हैं कि आचार्य प्रफुल्लचंद्र राय की 'हिन्दू केमेस्ट्री', ब्रजेन्द्रनाथ सील की 'दी पॉजेटिव सायन्स ऑफ एन्शीयन्ट हिन्दूज', राव साहब वझे की 'हिन्दी शिल्प मात्र' और धर्मपालजी की 'इण्डियन सायन्स एण्ड टेकनोलॉजी इन दी एटीन्थ सेंचुरी' में भारत में विज्ञान व तकनीकी परंपराओं को प्रमाणों के साथ उद्घाटित किया गया है। वर्तमान में संस्कृत भारती ने संस्कृत में विज्ञान और बॉटनी, फिजिक्स, मेटलर्जी, मशीन्स, केमिस्ट्री आदि विषयों पर कई पुस्तकें निकालकर इस विषय को आगे बढ़ाया। बेंगलूरु के एमपी राव ने विमानशास्त्र व वाराणसी के पीजी डोंगरे ने अंशबोधिनी पर विशेष रूप से प्रयोग किए। डॉ. मुरली मनोहर जोशी के लेखों, व्याख्यानों में प्राचीन भारतीय विज्ञान परंपरा को प्रभावी रूप से प्रस्तुत किया गया है।
भारत में विज्ञान की क्या दशा और दिशा थी उसको समझने के लिए आज भी वे ग्रंथ मौजूद हैं, जिनकी रचना के लिए वैज्ञानिक ऋषियों ने अपना जीवन खपया। वर्तमान में जरूरत है कि उनका अध्ययन हो, विश्लेषण हो और प्रयोग किए जाएं। हालांकि कई विद्याएं जानने वालों के साथ ही लुप्त हो गईं क्योंकि हमारे यहां मान्यता रही कि अनधिकारी के हाथ में विद्या नहीं जानी चाहिए। विज्ञान के संबंध में अनेक ग्रंथ थे जिनमें से कई आज लुप्त हो गए हैं। हालांकि आज भी लाखों पांडुलिपियां बिखरी पड़ी हैं। भृगु, वशिष्ठ, भारद्वाज, आत्रि, गर्ग, शौनक, शुक्र, नारद, चाक्रायण, धुंडीनाथ, नंदीश, काश्यप, अगस्त्य, परशुराम, द्रोण, दीर्घतमस, कणाद, चरक, धनंवतरी, सुश्रुत पाणिनि और पतंजलि आदि ऐसे नाम हैं जिन्होंने विमान विद्या, नक्षत्र विज्ञान, रसायन विज्ञान, अस्त्र-शस्त्र रचना, जहाज निर्माण और जीवन के सभी क्षेत्रों में काम किया। अगस्त्य ऋषि की संहिता के उपलब्ध कुछ पन्नों को अध्ययन कर नागपुर के संस्कृत के विद्वान डॉ. एससी सहस्त्रबुद्धे को मालूम हुआ कि उन पन्नों पर इलेक्ट्रिक सेल बनाने की विधि थी। महर्षि भरद्वाज रचित विमान शास्त्र में अनेक यंत्रों का वर्णन है। नासा में काम कर रहे वैज्ञानिक ने सन् १९७३ में इस शास्त्र को भारत से मंगाया था। इतना ही नहीं राजा भोज के समरांगण सूत्रधार का ३१वें अध्याय में अनेक यंत्रों का वर्णन है। लकड़ी के वायुयान, यांत्रिक दरबान और सिपाही (रोबोट की तरह)। चरक संहिता, सुश्रुत संहिता में चिकित्सा की उन्नत पद्धितियों का विस्तार से वर्णन है। यहां तक कि सुश्रुत ने तो आठ प्रकार की शल्य क्रियाओं का वर्णन किया है। सृष्टि का रहस्य जानने के लिए आज जो महाप्रयोग चल रहा है उसकी नींव भी भारतीय वैज्ञानिक ने रखी थी। सत्येन्द्रनाथ बोस के फोटोन कणों के व्यवहार पर गणितीय व्याख्या के आधार पर ऐसे कणों को बोसोन नाम दिया गया है।
भारत में सदैव से विज्ञान की धारा बहती रही है। बीच में कुछ बाह्य आक्रमणों के कारण कुछ गड़बड़ जरूर हुई लेकिन यह धारा अवरुद्ध नहीं हुई। 'भारत में विज्ञान की उज्ज्वल परंपरा' एक ऐसी पुस्तक है जो भारत के युवाओं को जरूर पढऩी चाहिए।
पुस्तक : भारत में विज्ञान की उज्ज्वल परंपरा
मूल्य : ६० रुपए
लेखक : सुरेश सोनी
प्रकाशक : अर्चना प्रकाशन
१७, दीनदयाल परिसर, ई/२ महावीर नगर,
भोपाल-४६२०१६, दूरभाष - (०७५५) २४६६८६५
विज्ञान और तकनीकी मात्र पश्चिम की देन है या भारत में भी इसकी कोई परंपरा थी? भारत में किन-किन क्षेत्रों में वैज्ञानिक विकास हुआ था? विज्ञान और तकनीकी के अंतिम उद्देश्य को लेकर क्या भारत में कोई विज्ञानदृष्टि थी? और यदि थी तो आज की विज्ञानदृष्टि से उसकी विशेषता क्या थी? आज विश्व के सामने विज्ञान एवं तकनीक के विकास के साथ जो समस्याएं खड़ी हैं उनका समाधान क्या भारतीय विज्ञान दृष्टि में है? ऊपर के पैरे को पढ़कर निश्चिततौर पर हर किसी के मन में यही सवाल हिलोरे मारेंगे तो इन सवालों के जवाब के लिए 'भारत में विज्ञान की उज्ज्वल परंपरा' पुस्तक पढऩी चाहिए। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक सुरेश सोनी की इस पुस्तक में तमाम सवालों के जवाब निहित हैं। पुस्तक में कुल इक्कीस अध्याय हैं। धातु विज्ञान, विमान विद्या, गणित, काल गणना, खगोल विज्ञान, रसायन शास्त्र, वनस्पति शास्त्र, प्राणि शास्त्र, कृषि विज्ञान, स्वास्थ्य विज्ञान, ध्वनि और वाणी विज्ञान, लिपि विज्ञान सहित विज्ञान के अन्य क्षेत्रों में भारत का क्या योगदान रहा इसकी विस्तृत चर्चा, प्रमाण सहित पुस्तक में की गई है। यही नहीं यह भी स्पष्ट किया गया है कि विज्ञान को लेकर पश्चिम और भारतीय धारणा में कितना अंतर है। जहां पश्चिम की धारणा उपभोग की है, जिसके नतीजे आगे चलकर विध्वंसक के रूप में सामने आते हैं। वहीं भारतीय धारणा लोक कल्याण की है। सुरेश सोनी मनोगत में लिखते हैं कि आचार्य प्रफुल्लचंद्र राय की 'हिन्दू केमेस्ट्री', ब्रजेन्द्रनाथ सील की 'दी पॉजेटिव सायन्स ऑफ एन्शीयन्ट हिन्दूज', राव साहब वझे की 'हिन्दी शिल्प मात्र' और धर्मपालजी की 'इण्डियन सायन्स एण्ड टेकनोलॉजी इन दी एटीन्थ सेंचुरी' में भारत में विज्ञान व तकनीकी परंपराओं को प्रमाणों के साथ उद्घाटित किया गया है। वर्तमान में संस्कृत भारती ने संस्कृत में विज्ञान और बॉटनी, फिजिक्स, मेटलर्जी, मशीन्स, केमिस्ट्री आदि विषयों पर कई पुस्तकें निकालकर इस विषय को आगे बढ़ाया। बेंगलूरु के एमपी राव ने विमानशास्त्र व वाराणसी के पीजी डोंगरे ने अंशबोधिनी पर विशेष रूप से प्रयोग किए। डॉ. मुरली मनोहर जोशी के लेखों, व्याख्यानों में प्राचीन भारतीय विज्ञान परंपरा को प्रभावी रूप से प्रस्तुत किया गया है।
भारत में विज्ञान की क्या दशा और दिशा थी उसको समझने के लिए आज भी वे ग्रंथ मौजूद हैं, जिनकी रचना के लिए वैज्ञानिक ऋषियों ने अपना जीवन खपया। वर्तमान में जरूरत है कि उनका अध्ययन हो, विश्लेषण हो और प्रयोग किए जाएं। हालांकि कई विद्याएं जानने वालों के साथ ही लुप्त हो गईं क्योंकि हमारे यहां मान्यता रही कि अनधिकारी के हाथ में विद्या नहीं जानी चाहिए। विज्ञान के संबंध में अनेक ग्रंथ थे जिनमें से कई आज लुप्त हो गए हैं। हालांकि आज भी लाखों पांडुलिपियां बिखरी पड़ी हैं। भृगु, वशिष्ठ, भारद्वाज, आत्रि, गर्ग, शौनक, शुक्र, नारद, चाक्रायण, धुंडीनाथ, नंदीश, काश्यप, अगस्त्य, परशुराम, द्रोण, दीर्घतमस, कणाद, चरक, धनंवतरी, सुश्रुत पाणिनि और पतंजलि आदि ऐसे नाम हैं जिन्होंने विमान विद्या, नक्षत्र विज्ञान, रसायन विज्ञान, अस्त्र-शस्त्र रचना, जहाज निर्माण और जीवन के सभी क्षेत्रों में काम किया। अगस्त्य ऋषि की संहिता के उपलब्ध कुछ पन्नों को अध्ययन कर नागपुर के संस्कृत के विद्वान डॉ. एससी सहस्त्रबुद्धे को मालूम हुआ कि उन पन्नों पर इलेक्ट्रिक सेल बनाने की विधि थी। महर्षि भरद्वाज रचित विमान शास्त्र में अनेक यंत्रों का वर्णन है। नासा में काम कर रहे वैज्ञानिक ने सन् १९७३ में इस शास्त्र को भारत से मंगाया था। इतना ही नहीं राजा भोज के समरांगण सूत्रधार का ३१वें अध्याय में अनेक यंत्रों का वर्णन है। लकड़ी के वायुयान, यांत्रिक दरबान और सिपाही (रोबोट की तरह)। चरक संहिता, सुश्रुत संहिता में चिकित्सा की उन्नत पद्धितियों का विस्तार से वर्णन है। यहां तक कि सुश्रुत ने तो आठ प्रकार की शल्य क्रियाओं का वर्णन किया है। सृष्टि का रहस्य जानने के लिए आज जो महाप्रयोग चल रहा है उसकी नींव भी भारतीय वैज्ञानिक ने रखी थी। सत्येन्द्रनाथ बोस के फोटोन कणों के व्यवहार पर गणितीय व्याख्या के आधार पर ऐसे कणों को बोसोन नाम दिया गया है।
भारत में सदैव से विज्ञान की धारा बहती रही है। बीच में कुछ बाह्य आक्रमणों के कारण कुछ गड़बड़ जरूर हुई लेकिन यह धारा अवरुद्ध नहीं हुई। 'भारत में विज्ञान की उज्ज्वल परंपरा' एक ऐसी पुस्तक है जो भारत के युवाओं को जरूर पढऩी चाहिए।
पुस्तक : भारत में विज्ञान की उज्ज्वल परंपरा
मूल्य : ६० रुपए
लेखक : सुरेश सोनी
प्रकाशक : अर्चना प्रकाशन
१७, दीनदयाल परिसर, ई/२ महावीर नगर,
भोपाल-४६२०१६, दूरभाष - (०७५५) २४६६८६५
ज्ञान की बाते और एक अच्छी सी समीक्षा पढ़ने को मिली ...आभार
जवाब देंहटाएंऐसी पुस्तकों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए!!
हटाएंहम तब ज्ञानी कहलाते थे जब बाकी दुनिया को गिनती भी नहीं आती थी. परन्तु हमने उस ज्ञान को अतीत के साथ ही दफना दिया और बाकी दुनिया उसे अपने साथ लेकर बढ़ चली. और आज उसी अपने ही ज्ञान को हम उनसे खैरात की तरह पाते हैं अब दोष किसका....
जवाब देंहटाएंहमारा ही दोष है... हम आज भी इसे मानने को तैयार नहीं...
हटाएंकल कुछ यही बात दिव्या जी के ब्लॉग ZEAL पर भी पढ़ रहा था ! असल बात यह है की हामी लोग थे जिन्होंने अपने ही लोगो को उनके कार्यों को महत्व नहीं दिया !
जवाब देंहटाएंकुछ हम लोग थे तो कुछ दूसरों ने भी साजिश की थीं हमे हमारे ज्ञान से दूर रखने की...
हटाएंzeal (डॉ. दिव्या जी) के मुताबिक हमारे ही ग्रंथों से कुछ लोग चोरी कर उसे अपने नाम से दुनिया में प्रचारित कर रहे थे....
nice information lokendra...good work keep it up
जवाब देंहटाएंआपकी टिप्पणी पाकर मुझे बड़ी प्रसन्नता हुई सर... बहुत बहुत धन्यवाद स्नेह के लिए.
हटाएंइतनी अच्छी जानकारी और मूल्य मात्र साथ रुपये!! ऐसी पुस्तकों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए!!
जवाब देंहटाएंजी बिलकुल
हटाएंजिन दिन लोग झुमकों और जुल्फों से हटकर भी कुछ पढना और जानना चाहेंगे , उसी दिन उन्हें ज्ञान होगा की हमारा भारत कितना अग्रणी था विज्ञान गणित और खगोलीय शास्त्रों में जबकि उस समय विज्ञान की मदद करने वाले उपकरण तक नहीं थे , फिर भी हमारे प्राचीन मनीषियों की गणनाएं बेहद सटीक और तर्क अकाट्य थे ! यदि लोग समय रहते नहीं चेते तो पाश्चात्य देशों की सरपरस्ती में जीने के लिए तो अभिशप्त हैं ही हम !
जवाब देंहटाएं:)
हटाएंभारत में विज्ञान की उज्जवल परम्परा"पुस्तक की सुन्दर समीक्षा के लिए बधाई,,,
जवाब देंहटाएंresent post : तड़प,,,
धन्यवाद रविकर जी
जवाब देंहटाएंउस दिन एक मुस्लिम मित्र बहुत हैरान और प्रशंसित भाव से दिल्ली की एक मस्जिद के बारे में बता रहा था कि वहाँ पूरे महीने के लिये चांद निकलने(पक्का ध्यान नहीं आ रहा कि उसने चांद कहा था और\या सूरज भी) का समय एडवांस में लिखा देखा है। मैंने यही कहा कि वाकई बहुत जानकार और माहिर लोग होंगे।
जवाब देंहटाएंदिक्कत क्या है लोकेन्द्र भाई, या तो हम इतने आत्म गौरव से भरे रहेंगे कि हमारा अतीत इतना समृद्ध था इसलिये हमें वर्तमान में कुछ करने की जरूरत ही नहीं या फ़िर इतने रीढ़विहीन बनेंगे कि जब तक पश्चिम की मोहर न लगेगी तब तक अपने सोने को भी मिट्टी मानेंगे। आपकी बात ठीक है कि बच्चों का कसूर नहीं है, जब एक षडयंत्र के तहत शिक्षा व्यवस्था को जड़ से ही बदल दिया गया है।
प्रस्तुत पुस्तक अवश्य ही रोचक व शिक्षप्रद होगी। हाँ, सोनी जी के RSS से जुड़े होने के कारण जरूर दिक्कत हो सकती है:)
अच्छी जानकारी है। भारत सदा से बहुविध संस्कृतियों का सम्मिलन रहा है। वर्तमान की तरह अतीत में भी सत-असत का संघर्ष चलता रहा है। ज्ञान भी था अज्ञान भी। इसी तरह ज्ञान प्रसार करने वाले भी थे और ज्ञान पर कुंडली मारकर कब्जा करके बैठने वाले भी। यदि अतीत का आत्मगौरव किसी वर्ग का खोया आत्मविश्वास लौटा सकता है तो उसमें कोई बुरी बात नहीं है लेकिन शिक्षा, ज्ञान, समृद्धि और नवोन्मेषन की धारा में आज हम कहाँ खड़े हैं, यह देखना और भी ज़रूरी है। भेदभाव मिटे, सबको शिक्षा मिले, भ्रष्टाचार मिटे, यह आज के भारत की ज़रूरते है।
हटाएंपुस्तक सोनी जी ने लिखी है वे संघ से जुड़े हैं इसीलिए पुस्तक की चर्चा उतनी नहीं हो सकी जितनी होनी चाहिए थी।
जवाब देंहटाएंलेकिन तथ्य तो अपनी जुबानी बोलते हैं... एक और बात है, चूंकि आरएसएस के लोग इस दिशा में काम कर रहे हैं और जनजागरण भी कर रहे हैं. इसलिए भारत के गौरव के विषय में इतनी अच्छी पुस्तक की उम्मीद उन्ही से की जा सकती है.
बाकि लोगों ने तो मौके पाते ही इतिहास भी बिगड़ दिया...
खैर ज्ञान जहाँ से भी आये स्वीकार होना चाहिए.
विज्ञान शब्द का प्रयोग ज्ञान की ऐसी शाखा के लिये भी करते हैं, जो तथ्य, सिद्धान्त और तरीकों को प्रयोग और परिकल्पना से स्थापित और व्यवस्थित करती है।
जवाब देंहटाएंnice book....ऐसा माना जाता है कि रसायन विज्ञान का विकास सर्वप्रथम मिस्र देश में हुआ था। प्राचीन काल में मिस्रवासी काँच, साबुन, रंग तथा अन्य रासायनिक पदार्थों के बनाने की विधियाँ जानते थे तथा इस काल में मिस्र को केमिया कहा जाता था।
जवाब देंहटाएं