भा रत के मुसलमानों ने अनुकरणीय और सराहनीय कदम उठाया है। विश्व सभ्यता पर कलंक और मानवता के लिए खतरा बन चुके इस्लामिक स्टेट के खिलाफ भारतीय मुसलमान सड़कों पर उतर आया है। आईएस के खिलाफ मुसलमानों के प्रदर्शन को मीडिया और बौद्धिक विमर्श में अधिक से अधिक कवरेज मिलना चाहिए था। खूब चर्चाएं होनी चाहिए थी। प्राथमिकता के साथ मुसलमानों की इस पहल को दिखाना चाहिए था। इस विषय में लिखना चाहिए था। दुर्भाग्यवश ऐसा पर्याप्त मात्रा में हो नहीं सका। सबको भारतीय मुसलमानों का समर्थन करना चाहिए था। ऐसा बहुत कम होता है जब मुसलमान इस्लामिक कट्टरपंथियों के खिलाफ इस कदर सड़कों पर उतरता है। भारतीय मुसलमानों ने इसकी शुरुआत की है तो बाकि सबका फर्ज बनता है कि उनकी आवाज को दूर तक पहुंचाया जाए। यह छोटी बात नहीं है। दुनिया में दहशत का पर्याय बन चुके आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट (आईएस) के खिलाफ भारत के मुसलमानों ने अब तक का सबसे बड़ा फतवा जारी किया है। उन्होंने आईएस का विरोध करते हुए बेगुनाहों की हत्या की निंदा की है। आईएस की गतिविधियों को गैर इस्लामिक और शरीयत के खिलाफ बताया है। इस फतवे को दुनिया के सामने मिसाल के तौर पर पेश किया जाना चाहिए। ताकि दुनिया के मुसलमान भी आगे आकर इस्लामिक आतंकी संगठनों का विरोध करें।
आईएस के खिलाफ सबसे बड़े फतवे पर हस्ताक्षर करने वाले प्रमुख इमाम और संगठनों में दिल्ली की जामा मस्जिद के इमाम, उलेमा काउंसिल ऑफ इंडिया, अजमेर दरगाह, निजामुद्दीन औलिया दरगाह, दारुल उलूम मोहम्मदिया, जमीयत-उल-उलेमा महाराष्ट्र, जमीयत अहले हदीस मुंबई, रजा अकादमी, ऑल इंडिया तंजीम अमय-ए-मस्जिद, आमिल साहब दाऊदी बोहरा, सैयद जाहिर अब्बास रिजवी जैनबिया और मोइन अशरफ साहब कछोछा दरगाह आदि शामिल हैं। मुसलमानों की ओर से आईएस का विरोध इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि आईएस अपना वहशीपन इस्लाम के नाम पर फैला रहा है। वह बेगुनाह आदमियों, औरतों और बच्चों का कत्ल इस्लाम के नाम पर कर रहा है। इस्लाम के नाम पर वह औरतों का भी शोषण कर रहा है। आईएस की हरकतों से दुनिया में संदेश जा रहा है कि इस्लाम रक्त पिपासु पंथ। तलवार की जोर पर आगे बढ़ता है। इस्लाम की नजर में अन्य पंथ को मानने वाले लोगों को जीने का अधिकार नहीं।
सच्चे मुसलमान समझ रहे हैं कि आईएसी की हरकतों से दुनिया के शांतिप्रिय लोगों के दिलों में इस्लाम के प्रति घृणा का भाव बढ़ रहा है। सही मायने में अब कहा जा सकता है कि 'इस्लाम खतरे में' है। इस्लाम को बचाने के लिए इस्लाम के असली नुमाइंदों का सामने आना जरूरी है। गैर मुस्लिम तो आईएस का विरोध कर ही रहे हैं लेकिन मुस्लिमों की ओर से विरोध होने पर ही आईएस के खिलाफ लड़ाई अधिक मजबूत हो सकती थी। इस्लाम की सही तस्वीर दिखाने के लिए भी अमनपसंद मुसलमानों को आगे आना होगा। वरना तो दुनिया देख ही रही है आईएस की ओर से दिखाई जा रही रक्त में सनी इस्लाम की खूनी तस्वीर। मुस्लिम युवाओं में 'आईएस के इस्लाम' के प्रति बढ़ रहे आकर्षण को खत्म करने के लिए मुसलमानों की ओर से ही विरोध जरूरी है। मुसलमान जब खुद बताएंगे कि आईएस के लड़ाके खुदा के बंदे नहीं बल्कि आतंकी हैं, तब अधिक प्रभावी संदेश जाएगा। युवा पीढ़ी को आतंक की चपेट से बचाने के लिए भारतीय मुसलमानों का विरोध प्रदर्शन और फतवा बहुत महत्वपूर्ण है। इस्लाम के नाम पर बेगुनाहों का रक्त बहा रहे आतंकियों के खिलाफ मुसलमानों को अपनी आवाज और अधिक बुलंद करने की जरूरत है। देर हो गई तो स्थितियां संभालना मुश्किल हो जाएगा। आईए, भारतीय मुसलमानों का साथ दें। नई सोच को आगे बढ़ाएं।
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