सं युक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता के लिए भारत लम्बे समय से प्रयास कर रहा था। लेकिन, अब जाकर भारत के प्रयासों को ठोस आधार मिला है। १९३ देशों के समर्थन के कारण संयुक्त राष्ट्र महासभा ने सुधार और विस्तार पर चर्चा के मसौदे को मंजूरी दे दी है। अब से सालभर बाद भारत के हित में सुखद परिणाम आने की प्रबल संभावना है। इस बार बाकि देशों का साथ मिलने से चीन, पाकिस्तान, इटली और उत्तर कोरिया का विरोध भी धरा रह गया। भारत की स्थायी सदस्यता का सबसे बड़ा विरोधी चीन भारत के प्रस्ताव पर मतदान चाह रहा था। लेकिन, अन्य देशों का साथ नहीं मिलने के कारण मजबूरी में उसे अपनी जिद छोडऩी पड़ी। भारत के बढ़ते प्रभाव के कारण संभवत: आगे भी इनकी चलने वाली नहीं है। पिछले डेढ़ वर्ष के दौरान दुनिया में भारत की ताकत बढ़ी है। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अनेक देशों का दौरा करके गहरे रिश्ते बनाए हैं। ये रिश्ते व्यापारिक भी हैं और भावनात्मक भी। ये रिश्ते राजनीतिक भी हैं और रणनीतिक भी। मोदी के प्रभाव और प्रयास से कई छोटे-बड़े विकसित, विकासशील और पिछड़े देश भारत के साथ आकर खड़े हो गए हैं। यूं तो पहले भी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्यों में से रूस, अमेरिका और फ्रांस जैसे देश भारत की स्थायी सदस्यता का समर्थन करते थे, लेकिन वह मौखिक ही रहता था। यह पहली बार है कि संयुक्त राष्ट्र महासभा के सदस्य देशों ने भारत के प्रस्ताव पर लिखित में सुझाव दिए हैं। इसे भारत की कूटनीति की बड़ी सफलता माना जा रहा है।
वैसे तो भारत आजादी के बाद से ही सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता और वीटो पावर के लिए कोशिश कर रहा था लेकिन १९९२ से प्रयासों में और तेजी लाई गई। सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता का भारत का दावा स्वाभाविक भी है। भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। भारत शांति और सह-अस्तित्व के सिद्धांत का पालन करता है। पाकिस्तान जैसा युद्ध पिपासु देश पड़ोस में है, जो लगातार भारत को उकसाता है, इसके बावजूद भारत ने कभी भी अपनी तरफ से पाकिस्तान पर हमला नहीं बोला है। यानी संयुक्त राष्ट्र के छह प्रमुख अंगों में से एक सुरक्षा परिषद के मूल उद्देश्य 'अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखना' को भारत ने तमाम विपरीत परिस्थितियों में भी जी कर दिखाया है। बहरहाल, महासभा ने भारत के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया है। एक साल तक प्रस्ताव पर विमर्श की प्रक्रिया चलेगी। संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों से आए सब तरह के सुझावों को ध्यान में रखकर मसौदा तैयार किया जाएगा। इसके बाद मसौदे को मतदान के लिए महासभा में रखा जाएगा। प्रस्ताव पास होने के लिए दो-तिहाई वोट चाहिए। मौजूदा हालत में भारत के लिए यह समर्थन जुटाना कठिन नहीं है। अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर दुनिया को एकजुट करके भारत यह साबित कर चुका है। हालांकि योग की तुलना में स्थायी सदस्यता का मसला अलग है और पेचीदा है।
सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यों की संख्या बढऩे की शुरुआत होती है तो पांचों स्थायी सदस्य चीन, रूस, फ्रांस, अमेरिका और ब्रिटेन का प्रभाव कम होना शुरू हो जाएगा। ये देश ऐसा नहीं चाहते। इसीलिए भारत की स्थायी सदस्यता का प्रबल विरोधी चीन और अन्य चारों सदस्य भी कुछ न कुछ अवरोध खड़े करने का प्रयास कर सकते हैं। अब एक साल तक भारत को और अधिक कूटनीतिक समझदारी दिखानी होगी।
सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यों की संख्या बढऩे की शुरुआत होती है तो पांचों स्थायी सदस्य चीन, रूस, फ्रांस, अमेरिका और ब्रिटेन का प्रभाव कम होना शुरू हो जाएगा। ये देश ऐसा नहीं चाहते। इसीलिए भारत की स्थायी सदस्यता का प्रबल विरोधी चीन और अन्य चारों सदस्य भी कुछ न कुछ अवरोध खड़े करने का प्रयास कर सकते हैं। अब एक साल तक भारत को और अधिक कूटनीतिक समझदारी दिखानी होगी।
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