भा रत सरकार ने देर से ही सही लेकिन गाँव की सुध ली है। स्मार्ट सिटी की तर्ज पर स्मार्ट गाँव विकसित करने का केंद्र सरकार का निर्णय सराहनीय है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई मंत्रिमंडल की बैठक में स्मार्ट गाँव विकसित करने के लिए योजना मंजूर की गयी है। श्यामा प्रसाद मुखर्जी ग्रामीण मिशन के तहत गाँवों के उत्थान के लिए 5142 करोड़ रुपये खर्च किये जायेंगे। सरकार के इस महत्वपूर्ण निर्णय के पीछे की प्रेरणा को जान लेना भी देशवासियों के लिए जरूरी है। स्मार्ट सिटी के दिवास्वप्न में खोयी सरकार को अचानक गाँव की याद कैसे आ गयी? हो सकता है देर सबेरे सरकार गाँवों की चिन्ता करती ही। भाजपा के नेतृत्व में पहले भी एनडीए सरकार (पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के समय में) गाँव-गाँव तक सड़क बिछाकर ग्राम विकास की अपनी प्रतिबद्धता जाहिर कर चुकी है। लेकिन, इस समय अचानक से स्मार्ट विलेज के लिए बजट तय करने और सुनिश्चित योजना लाने के पीछे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रेरणास्रोत है। हाल में संघ और उसके विविध संघठनों के बीच समन्वय बैठक हुई थी। उसी समन्वय बैठक के दौरान आरएसएस की ओर से प्रधानमंत्री के समक्ष ग्राम विकास की दिशा में आगे बढऩे का विचार प्रस्तुत किया गया।
संघ लंबे समय से ग्राम विकास के लिए अपने स्तर पर समाज के सहयोग से प्रयास कर रहा है। संघ का स्पष्ट मत है कि केवल शहरों को स्मार्ट बनाकर भारत का विकास संभव नहीं है। ग्राम विकास की भी चिंता सरकार को करनी चाहिए। महात्मा गांधी ने भी लगभग यही कहा था कि गाँवों की अनदेखी करके देश को विकास के पथ पर आगे नहीं बढ़ाया जा सकता। भारत के सन्दर्भ में जब विकास की अवधारणा पर विचार करते हैं तो यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इसमें गाँव और ग्रामीण जीवन प्राथमिक हो। अब तक भारत को विकास के जिस पथ पर आगे बढ़ाया जा रहा था, उस पथ पर कहीं भी गाँव नहीं आते थे। सिर्फ शहरों को चमकाकर भारत की उजली तस्वीर नहीं बनाई जा सकती। गाँवों की अनदेखी से शहर भी आशानुरूप व्यवस्थित नहीं हो सकते। हम जितनी आबादी को ध्यान में रखकर शहर में सुविधाओं का विस्तार करते हैं, वे तब कम पड़ जाती हैं, जब आसपास के ग्रामवासी रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य की खोज में शहर आ जाते हैं।
शहरों के सुनियोजित विकास के लिए भी ग्रामवासनी भारतमाता की चिंता पहले करनी होगी। गाँव से होने वाले पलायन को रोकना होगा। इसके लिए ग्राम विकसित करने होंगे। रोजगार की चिंता करनी होगी। शहरों से गाँव के बीच अच्छी सड़कें बनानी होंगी। गाँव में बुनियादी सुविधाएं यानी बिजली, पानी, रोटी, सड़क इत्यादि उपलब्ध करानी पड़ेंगी। गाँव की पहुँच में अच्छे स्कूल-कॉलेज होंगे तो बड़ी संख्या में तमाम असुविधाएं उठाकर शहरों में पढऩे के लिए आने वाले प्रतिभाशाली बच्चों का पलायन रुकेगा। ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाएं भी चुनौती हैं। ज्यादातर ग्रामीण बच्चे और महिलाएं कुपोषण का शिकार हैं। इलाज के अभाव में कई लोग असमय दुनिया को विदा कह देते हैं। स्मार्ट गाँव विकसित होंगे तो ग्रामवासियों की इन चिंताओं का समाधान होगा। सरकार की योजना में ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक विकास को गति देना भी शामिल है। यदि केंद्र सरकार गाँव और गाँववासियों की बुनियादी जरूरतों को ठीक तरह से समझकर ग्राम विकास की योजना को धरातल पर ले जायेगी तो सफलता निश्चित है। केन्द्र सरकार का नेतृत्व कर रही भारतीय जनता पार्टी गाँव के विकास के लिए प्रतिबद्ध भी है। इसलिए योजना के सफल होने की संभावना अधिक है।
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