सं पादक की सत्ता को जब प्रबंधन ने हिला रखा हो, संपादक खुद भी जब मैनेजर हो गए हों, तब एक शख्स ने संपादक के पद की गरिमा को बनाए ही नहीं रखा बल्कि उसका संवर्धन भी किया। वह शख्स कोई ओर नहीं, हिन्दी पत्रकारिता के पद्मश्री आलोक मेहता ही है। आसमान की बुलन्दियां छू चुके आलोक मेहता सादगी के लिबास में लिपटे आपको कहीं भी मिल जाएंगे। वे सहज हैं, सरल हैं और मिलनसार भी हैं।
हिन्दी पत्रकारिता के मान को आलोक मेहता ने किस तरह और किस कदर बढ़ाया उसे आप कुछ यूं समझ सकते हैं। हमेशा से अंग्रेजीदां पत्रकारों के कब्जे में रहने वाली एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के प्रेसीडेंट की कुर्सी को आलोक मेहता ने सुशोभित किया। यह हिन्दी पत्रकारिता और एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के इतिहास में पहली बार था। हिन्दी पत्रकारिता के लिए ये स्वाभिमान से सिर ऊंचा करने के क्षण थे। प्रसिद्ध जर्मन रेडियो डायचेवेले की हिन्दी सेवा का काम संभालकर भी उन्होंने दुनिया में हिन्दी को गौरवान्वित किया। भारत में तो चालीस वर्ष की लम्बी पत्रकारिता के दौरान उन्होंने कई समाचार-पत्रों और पत्रिकाओं का संपादन किया। टाइम्स ऑफ इंडिया, हिन्दुस्तान ग्रुप, दैनिक भास्कर, नईदुनिया, आउटलुक और नेशनल दुनिया का नाम उनमें प्रमुख है। आउटलुक तो एक वक्त में आलोक मेहता का ही पर्याय हो गई। वे बेहद संवेदनशील हैं, हरदम उन्हें अपनों की चिन्ता भी रहती है। किस हद तक वे अपनों के साथ खड़े रहते हैं इसकी बानगी नईदुनिया प्रकरण है। नईदुनिया जब बिका तो उनसे जुड़े कई पत्रकारों का भविष्य दांव पर लग गया। सब कहां जाएंगे, एकसाथ इतने लोगों को कौन नौकरी देगा? तमाम तरह की आशंकाएं पत्रकारों के मन में उठ रही थीं। नईदुनिया के नए प्रबंधन ने आलोक मेहता को अखबार छोडऩे का अल्टीमेटम दे दिया। वे किंचित भी विचलित नहीं हुए। उनका कौशल कहें या अपनों के हित की रक्षा करने का जुनून, आलोक मेहता ने उसी इमारत से नेशनल दुनिया अखबार निकाल दिया।
महाकाल की नगरी उज्जैन से निकलकर इस अवधूत ने देशाटन ही नहीं किया बल्कि दुनिया के चालीस दूसरे देशों की सैर भी कर आया। उन्होंने 'सफर सुहाना दुनिया का' लिखकर शेष समाज को भी विश्व सभ्यता और संस्कृति को जानने का मौका उपलब्ध कराया। पत्रकारिता की साख पर लगातार उठ रहे सवालों के बीच लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ की विश्वसनीयता और मर्यादा बनाए रखने के लिए वे 'पत्रकारिता की लक्ष्मणरेखा' की बात करते हैं। आलोक मेहता एक ऐसा नाम है जो पत्रकारिता के साथ-साथ अपने साहित्यिक लेखन के लिए भी जाने जाते हैं। श्री मेहता की दर्जनभर पुस्तकें समाज को आलोकित कर रही हैं। यथार्थ परक, सरस, वर्णनात्मक, विचारात्मक और चित्रात्मक लेखन शैली उन्हें औरों से अलग पहचान देती है।
पत्रकारिता के नामी चेहरे ६२ वर्षीय आलोक मेहता संबंधों की मर्यादा को भी बखूबी निभाते हैं। यही कारण है कि पत्रकारिता ही नहीं शिक्षा जगत, न्यायपालिका, नौकरशाही, साहित्य की दुनिया और आम समाज में भी उन्हें जानने वाले, चाहने वाले मिल जाएंगे। वे हिन्दी मीडिया के लोकप्रिय हीरो हैं।
हिन्दी पत्रकारिता के मान को आलोक मेहता ने किस तरह और किस कदर बढ़ाया उसे आप कुछ यूं समझ सकते हैं। हमेशा से अंग्रेजीदां पत्रकारों के कब्जे में रहने वाली एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के प्रेसीडेंट की कुर्सी को आलोक मेहता ने सुशोभित किया। यह हिन्दी पत्रकारिता और एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के इतिहास में पहली बार था। हिन्दी पत्रकारिता के लिए ये स्वाभिमान से सिर ऊंचा करने के क्षण थे। प्रसिद्ध जर्मन रेडियो डायचेवेले की हिन्दी सेवा का काम संभालकर भी उन्होंने दुनिया में हिन्दी को गौरवान्वित किया। भारत में तो चालीस वर्ष की लम्बी पत्रकारिता के दौरान उन्होंने कई समाचार-पत्रों और पत्रिकाओं का संपादन किया। टाइम्स ऑफ इंडिया, हिन्दुस्तान ग्रुप, दैनिक भास्कर, नईदुनिया, आउटलुक और नेशनल दुनिया का नाम उनमें प्रमुख है। आउटलुक तो एक वक्त में आलोक मेहता का ही पर्याय हो गई। वे बेहद संवेदनशील हैं, हरदम उन्हें अपनों की चिन्ता भी रहती है। किस हद तक वे अपनों के साथ खड़े रहते हैं इसकी बानगी नईदुनिया प्रकरण है। नईदुनिया जब बिका तो उनसे जुड़े कई पत्रकारों का भविष्य दांव पर लग गया। सब कहां जाएंगे, एकसाथ इतने लोगों को कौन नौकरी देगा? तमाम तरह की आशंकाएं पत्रकारों के मन में उठ रही थीं। नईदुनिया के नए प्रबंधन ने आलोक मेहता को अखबार छोडऩे का अल्टीमेटम दे दिया। वे किंचित भी विचलित नहीं हुए। उनका कौशल कहें या अपनों के हित की रक्षा करने का जुनून, आलोक मेहता ने उसी इमारत से नेशनल दुनिया अखबार निकाल दिया।
महाकाल की नगरी उज्जैन से निकलकर इस अवधूत ने देशाटन ही नहीं किया बल्कि दुनिया के चालीस दूसरे देशों की सैर भी कर आया। उन्होंने 'सफर सुहाना दुनिया का' लिखकर शेष समाज को भी विश्व सभ्यता और संस्कृति को जानने का मौका उपलब्ध कराया। पत्रकारिता की साख पर लगातार उठ रहे सवालों के बीच लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ की विश्वसनीयता और मर्यादा बनाए रखने के लिए वे 'पत्रकारिता की लक्ष्मणरेखा' की बात करते हैं। आलोक मेहता एक ऐसा नाम है जो पत्रकारिता के साथ-साथ अपने साहित्यिक लेखन के लिए भी जाने जाते हैं। श्री मेहता की दर्जनभर पुस्तकें समाज को आलोकित कर रही हैं। यथार्थ परक, सरस, वर्णनात्मक, विचारात्मक और चित्रात्मक लेखन शैली उन्हें औरों से अलग पहचान देती है।
पत्रकारिता के नामी चेहरे ६२ वर्षीय आलोक मेहता संबंधों की मर्यादा को भी बखूबी निभाते हैं। यही कारण है कि पत्रकारिता ही नहीं शिक्षा जगत, न्यायपालिका, नौकरशाही, साहित्य की दुनिया और आम समाज में भी उन्हें जानने वाले, चाहने वाले मिल जाएंगे। वे हिन्दी मीडिया के लोकप्रिय हीरो हैं।
" मौजूदा दौर में कुछ संपादकों के मन में ये भाव है कि जो उनसे उम्र और अनुभव में कनिष्ठ है, उसका मानसिक स्तर भी दोयम दर्जे का है। आलोक जी अपवाद हैं। हमेशा वे अपने से छोटों को ज्यादा अवसर और तरज़ीह देते हैं। जिन विषयों पर उनका भरपूर नियंत्रण है, उस पर भी कनिष्ठों से राय सिर्फ इसी वजह से लेते हैं, ताकि उसे संस्थान में अपने होने का अहसास बना रहे। कुलमिलाकर आलोक मेहता साहब वट वृक्ष नहीं हैं जिसके नीचे कोई पौधा ना पनपे, बल्कि एक ऐसी नर्सरी हैं जहाँ निरंतर दक्ष पत्रकारों की पौध तैयार होती रहती है। "
- प्रवीण दुबे, वरिष्ठ पत्रकार
- जनसंचार के सरोकारों पर केन्द्रित त्रैमासिक पत्रिका "मीडिया विमर्श" में प्रकाशित आलेख।
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