म ध्यप्रदेश में झाबुआ के पेटलावद में हुए धमाके में करीब 90 लोग काल के गाल में समा गए। अनेक लोग गंभीर घायल हुए हैं। पहले होटल में गैस सिलेंडर फटा। तत्काल बाद विस्फोटक सामग्री के गोदाम में बड़ा धमाका हुआ। इस धमाके से सर्वाधिक नुकसान हुआ। इस तरह की दुर्घटनाओं में लोग ही नहीं परिवार भी मरते हैं। मरने वाले लोगों में कई अपने परिवारों की धुरी थे, मुखिया थे, परिवारों के जीवन की उम्मीद थे। 'उम्मीद के ये दीये' प्रशासन की घोर लापरवाही के कारण बुझ गए। बच्चे स्कूल जा रहे थे और महिलाएं सब्जी खरीद रही थीं, विस्फोट से उनके चिथड़े उड़ गए। कई लोग घर से निकले होंगे बच्चों के लिए मिठाई लेने, चॉकलेट-बिस्किट लेने। सब्जी-भाजी लेने। काम की तलाश में। दुर्भाग्य! उसके बच्चे-परिजन सिर्फ इंतजार करते रह गए। बच्चे अनाथ हुए, महिला विधवा हुई, माता-पिता ने अपने बच्चे खोये। रोटी-पानी की तलाश में घर से निकले व्यक्तियों का दोष था क्या? बच्चे स्कूल के लिए घर से नहीं निकलें क्या? महिलाएं बाजार में सब्जी खरीदने आयीं, उनकी गलती थी क्या? नहीं। फिर दोष किसका है? दोष शासन-प्रशासन का है। प्रशासन की घोर लापरवाही के कारण ये जन हानि हुई है।
प्रशासन बहाना बना सकता है कि जिस गोदाम में विस्फोट हुआ है, उसके संचालक के पास जिलेटिन की छड़ें रखने-बेचने का लाइसेंस है। लेकिन क्या प्रशासन जन सामान्य के प्रश्नों के उत्तर ईमानदारी से दे सकता है? अब तक तो कभी दिए नहीं? जांच समिति गठित होगी। मामले पर लीपापोती का काम किया जायेगा। प्रशासन के जिम्मेदार अधिकारियों को उनकी लापरवाही के दोष से बचा लिया जायेगा। करीब 90 लोगों की मौत हादसा ही रह जायेगी। अगर ऐसा नहीं होगा तो फिर प्रशासन बताये कि आखिर बस स्टैंड और बाज़ार जैसे अति व्यस्त, भीड़-भाड़ वाले क्षेत्र में विस्फोटक सामग्री का गोदाम कैसे स्थापित हो गया? क्या सोचकर प्रशासन ने लाइसेंस दिया? गोदाम में भारी मात्रा में जिलेटिन की छड़ें कैसे रखी थीं, जिनके कारण इतना बड़ा हादसा हुआ? कायदा तो यह कहता है कि डिटोनेटर और जिलेटिन जैसे विस्फोटक पदार्थों के गोदाम शहर या गाँव से बाहर होने चाहिए। गोदाम के आसपास आबादी नहीं होनी चाहिए। जहाँ अधिक चहल-पहल हो, ऐसी जगह तो विस्फोटक सामग्री का भंडार कतई नहीं किया जाना चाहिए। यही नहीं बल्कि गोदाम में तय मात्रा से अधिक विस्फोटक नहीं होना चाहिए। लाइसेंस में दी गई संख्या में ही जिलेटिन की छड़ें गोदाम में होनी थीं। गोदाम लाइसेंस के अनुसार स्थापित है और संचालित हो रहा है, इसकी जिम्मेदारी प्रशासन की बनती है। प्रशासन को लगातार मॉनिटरिंग करनी होती है। लेकिन वास्तविकता में इन कायदों का पालन होता दिखता है क्या? असलियत अलग है। वास्तविकता पेटलावद का सामान्य-सा रहवासी जानता है। कैसे दबंगों और प्रशासन की मिलीभगत चलती है, पेटलावद के लोग अच्छे से जानते हैं? यही कारण है कि घटना के बाद जब मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, गृहमंत्री बाबूलाल गौर और कांग्रेस के नेता कांतिलाल भूरिया संवेदना व्यक्त करने पहुंचे तो उन्हें लोगों की तीखी प्रतिक्रियाओं का सामना करना पड़ा। झाबुआ कलेक्टर डॉ. अरुणा गुप्ता मौके पर पहुंची तो जनता ने उन्हें भी घेर लिया। इस घटना को लेकर पेटलावद के लोग नेताओं के साथ ही प्रशासन से भी बहुत नाराज हैं।
प्रारंभिक जांच में झाबुआ कलेक्टर की लापरवाही सामने आई है। उन्हें और स्थानीय थाना प्रभारी शिवजी सिंह राठौड़ को सस्पेंड कर दिया है। लेकिन, असल दोषियों पर कार्यवाही होगी क्या? यह महज दिखावे की कार्यवाही होकर तो नहीं रह जायेगी? बहरहाल, जिस गोदाम में विस्फोट हुआ है, उसके मालिक राजेंद्र कसावा बीजेपी के स्थानीय नेता हैं। पूर्व में उनके बड़े भाई की भी जान जा चुकी है। इसके बाद भी घोर लापरवाही? आश्चर्य का विषय है। अब तक आई जानकारी के मुताबिक गोदाम में सुरक्षा के कोई इंतजाम नहीं थे। काम कर रहे लोगों को किसी प्रकार का प्रशिक्षण प्राप्त नहीं था। जनता की शिकायत पर ध्यान नहीं दिया गया। पेटलावद की जनता वास्तविक कार्यवाही की उम्मीद कर रही है। मध्यप्रदेश की सरकार जनता की सरकार है, उसे जनता के साथ खड़े दिखना होगा। कड़ी कार्यवाही से प्रशासन को संकेत देना होगा कि जन सुरक्षा के मुद्दों पर लापरवाही सरकार को बर्दाश्त नहीं। यह भी सुनिश्चित करना होगा कि भविष्य में इस तरह की घटनाएं नहीं होंगी।
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