ने पाल में 20 सितम्बर की शाम से नया संविधान लागू हो गया है। राष्ट्रपति रामबरन यादव ने संविधान लागू होने की घोषणा की है। वर्षों से हिन्दू राष्ट्र नेपाल अब धर्मनिरपेक्ष गणतंत्र बन गया है। संविधान को लेकर मिली-जुली प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। एक ओर, नेपाल में नया संविधान लागू होने पर खुशी का माहौल देखा गया, वहीं दूसरी ओर संविधान के विरोध में भी आवाजें उठती दिखाई दे रही हैं। हालांकि नए संविधान का विरोध पहले से चल रहा था। अब वह विरोध और मुखर हो गया है। मधेसी और थारू समुदाय के लोग विरोध में हैं। वे लम्बे समय से आंदोलन चलाकर अपने लिए अलग प्रांत की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि नए संविधान में उनकी अनदेखी की गई है। संविधान बनाते समय और नेपाल को सात प्रांतों में बांटते समय उनके हितों की चिंता नहीं की गई। नए संविधान से असंतुष्ट मधेसी समुदाय का आंदोलन दक्षिणी तराई और पश्चिमी क्षेत्रों में हिंसक होता जा रहा है। इस हिंसा से भारत चिंतित है।
भारत और नेपाल के संबंध आत्मीय रहे हैं। दोनों देशों के संबंध पड़ोसियों से अधिक दो भाईयों की तरह हैं। विश्व में भारत को नेपाल के बड़े भाई (ब्रिगब्रदर) के रूप में देखा जाता है। अनेक अवसरों पर भारत अपनी भूमिका का निर्वाहन भी करता है। नेपाल में भारत के साथ आत्मीयता रखने वाले लोगों का प्रभुत्व बना रहे, भारत के नजरिए से यह बहुत जरूरी है। नेपाल पर लम्बे समय से चीन की कुदृष्टि है। कम्युनिस्ट और माओवादियों का झुकाव चीन की ही तरफ है। यदि नेपाल की सरकार में इनका प्रभाव अधिक रहता है तो आने वाले समय में भारत की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। भारत पर दबाव बनाने के लिए चीन नेपाल का उपयोग कर सकता है। अभी भी चीन इसी प्रयास में रहता है। चीन चाहता है कि नेपाल और भारत के रिश्ते खराब हों। यदि नेपाल और भारत के संबंध बिगड़ गए तो पाकिस्तान और चीन की कुटिलता से जूझ रहे भारत की सीमा पर मुसीबत और बढ़ जाएगी। यही कारण है कि नेपाल को अपने करीब लाने के लिए चालाक चीन वहां भारी निवेश कर रहा है। बहरहाल, मधेसी समुदाय की जड़ें भारत के बिहार राज्य में हैं। इस तथ्य को ध्यान में रखकर सोचें तो यह शंका स्वाभाविक है कि कम्युनिस्ट दलों ने षड्यंत्रपूर्वक मधेसियों की अनदेखी की है।
भारत की चिंता का एक महत्वपूर्ण कारण यह भी होना चाहिए कि मधेसी समुदाय के सामने नेपाल में विपरीत परिस्थितियां खड़ी होती हैं तो वे निश्चित ही भारत की ओर ही पलायन करेंगे। यह पलायन भारत की दुविधा और चुनौती दोनों बढ़ाएगा। इसीलिए जरूरी है कि हालात बिगड़ें उससे पहले भारत शांति बहाली के लिए नेपाल सरकार से आग्रह करे। नेपाल के नेताओं को भरोसे में लेकर भारत सरकार को उनसे आग्रह करना चाहिए कि सर्वसमोवशी संविधान के लिए वे थोड़े लचीले हों, सबको संतुष्ट करने का प्रयास करें, सबको साथ लेकर चलें। मधेसियों की समस्या सुलझाने के लिए भारत को हस्तक्षेप तो करना ही चाहिए लेकिन सावधानी के साथ। ऐसा न हो कि रिश्तों पर आँच आ जाए। चीन की ओर झुक रहे नेपाल से बेहतर रिश्ते बनाने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी विशेष प्रयास कर रहे हैं। वे प्रधानमंत्री बनने के बाद दो बार नेपाल का दौरा कर चुके हैं। नेपाल में आए भयंकर भूकंप में भारत ने अपनेपन के साथ नेपाल की मददकर, वहां की जनता का दिल जीता है। भारत के सामने अब कूटनीतिक अवसर है। विरोधियों की चालों को मात देने और नेपाल के बिगब्रदर की भूमिका को साबित करने का अवसर भारत के सामने आ खड़ा हुआ है।
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